मोदी सरकार का कश्मीर को लेकर रवैय्या साफ है वे कानून-व्यवस्था का मसला मानकर चल रहे हैं इसीलिए वहां सेनाध्यक्ष को परिस्थिति का जायजा लेने भेजा है,यदि राजनीतिक समस्या मानते तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह को भेजते।दुर्भाग्यजनक है मोदी मंत्रीमंडल के किसी सदस्य का,यहां तक कि मोदीजी का कश्मीर के हालात पर ट्विट मूवमेंट नजर नहीं आ रहा,सवाल यह है संकट की अवस्था में इन सबके मुँह पर ताला क्यों लग जाता है? आतंकियों के खिलाफ और आम जनता के पक्ष में बोलने के लिए इनके पास कोई वाक्य तक नहीं है,इतने गूंगे तो नहीं हो ट्विटर नरेश मोदीजी!
कश्मीर के बिगड़े हुए हालात पर सर्वदलीय बैठक बुलाने से पीएम मोदी भाग क्यों रहे हैं,यह देश आऱएसएस के इशारे पर चलेगा तो हर राज्य में संकट पैदा होगा।कश्मीर पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग एक सप्ताह से विपक्ष कर रहा है लेकिन मोदीजी के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही।देश को चलाने का यह तरीका अंततःदेश का नुकसान करेगा,गरीब कश्मीरियों के लिए और संकट पैदा करेगा।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कश्मीर की घटना का संज्ञान लिया,केन्द्र -राज्य सरकारों को 15 दिन में जबाव देने का आदेश दिया। हमने भी फेसबुक पर यह मांग रखी थी कि मानवाधिकार आयोग संज्ञान ले। आयोग का शुक्रिया।
कश्मीर की निहत्थी जनता पर पुलिसबलों की कार्रवाई के परिणाम सामने आने लगे लगे हैं विभिन्न अस्पतालों में पेलेटगन और गन से घायल हुए मरीजों में से 93मरीज हमेशा के लिए अपाहिज हो सकते हैं,ये गंभीर रूप से घायल हैं,इनके इलाज का खर्चा न तो राज्य सरकार दे रही है और केन्द्र सरकार दे रही है बल्कि अस्पताल अपनी ओर से मुफ्त इलाज कर रहे हैं और खर्चा उठा रहे हैं। Bone & Joint Hospital में इसतरह के 60 मरीजों का इलाज चल रहा है बाकी 30मरीजों का दूसरे अस्पतालों में इलाज चल रहा है। इन मरीजों को देखने अभी तक कोई नेता नहीं पहुँचा,किसी ने सहायता कोष नहीं बनाया,कमाल है 40 से ज्यादा निर्दोष लोग मारे गए हैं लेकिन अभी तक इन मौतों पर सुप्रीमकोर्ट ने भी संज्ञान नहीं लिया। कहां सो गया भारत का मानवतावाद ।
जम्मू-कश्मीर उच्चन्यायालय ने हाल के घटनाक्रम में घायल लोगो को मुफ्त इलाज की सुविधा दिए जाने का आदेश दिया है ।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने आम जनता को सरकारी दुकानो से राशन तुरंत मुहैय्या कराने के आदेश दिए हैं,साथ में यह भी कहा है कि नागरिकों को उधार राशन दिया जाय।
जम्मू-कश्मीर उच्चन्यायालय ने राज्य सरकार की इस बात के लिए आज तीखी आलोचना की कि उसने कर्फ्र्यू ग्रस्त इलाकों में जरूरत की अनिवार्य वस्तुओं की सप्लाई नहीं की।न्यायालय की यह टिप्पणी केन्द्र सरकार के मुँह पर भी करारा तमाचा है।अदालत ने राज्य के हालात में अदालत में पेश की गयी रिपोर्ट पर असंतोष व्यक्त किया है। रिपोर्ट के अनुसार अकेले श्रीनगर में 400 सरकारी दुकानें हैं जिनमें बमुश्किल 50दुकानें खुली रही हैं।
कश्मीर के हाल के घटनाक्रम में 2115लोग घायल हुए थे इनमें से 1924 को अस्पताल से इलाज के बाद घर भेज दिया गया है।लेकिन191लोग अभी भी गंभीर रूप से घायल हैं जिनका इलाज चल रहा है,इनमें 70 की आंखों में पेलेट गन के छर्रे लगे हैं।
कल (18जुलाईR 2016)अनंतनाग जिले के गाजीगुंड इलाके में सेना के ऑपरेशन के दौरान तीन लोग मारे गए,इनमें दो औरतें भी हैं,सेना ने इस घटना के जांच के आदेश दिए हैं।यह सही दिशा में उठाया कदम है,उल्लेखनीय है सेना के वाहन पर लोग पत्थर फेंक रहे थे जिसके जबाव में सेना ने गोली चलायी।कायदे से सेना को बुरहान वानी की मौत और उसके बाद के समूचे घटनाक्रम पर जांच का आदेश देना चाहिए।
सवाल यह घायलों को देखने अभी तक जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री अस्पताल और उनके घर क्यों नहीं गयीं,किसके आदेश का इंतजार है मैडम।
हमारे पुराने जेएनयू के मित्र अमिताभ मट्टू इन दिनों जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री के सलाहकार हैं ,दिलचस्प बात यह है कि कोई नहीं जानता कि बुरहान वानी को मारने का आदेश किसने दिया। जबकि महबूबा मुख्यमंत्री होने के साथ राज्य की गृहमंत्री भी हैं।कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है,फिर वानी के बारे में आदेश किसने दिए ?
भाजपा ने पीडीपी के साथ जो साझा कार्यक्रम बनाया था उसमें हुर्रियत से बात करने का वायदा किया था, आज टीवी पर भाजपा नेता कह रहे हैं हुर्रियत से बात नहीं करेंगे क्योंकि वह पृथकतावादी संगठन है। सवाल यह है जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के समय भी वह पृथकतावादी संगठन था , उस समय उससे समझौता करके चुनाव में वोट क्यों लिए ? बातचीत करने का वायदा क्यों किया ?
कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत का मोदीजी ने जम्मू-कश्मीर के चुनाव में वोट के लिए दिया नारा है, आज यही नारा मोदीजी और महबूबा ने अंगारों की भेंट चढ़ा दिया है।
यह है भाजपा पीडीपी समझौते का आधारभूत कार्यक्रम जिसमें १५ सूत्र रखे गए हैं आज इस न्यूनतम साझा कार्यक्रम को मोदीजी ने अंगारों के हवाले कर दिया है,जम्मू-कश्मीर की जनता के साथ यह धोखाधडी है-
The PDP and the BJP on Sunday released their common minimum programme (CMP) for running the coalition government in Jammu and Kashmir.
Here are the 15 highlights of the CMP:
1) To meet the political and economic objectives of the alliance, it is important to create an environment of peace, certainty and stability.
2) The government will be transformed into a 'smart government' which will be pro-active, transparent and accountable.
3) It shall be the mission of the government to be the most ethical state in the country from the present day position of being the most corrupt state.
4) The overall economic policy will align the economic structure of Jammu and Kashmir with its own resources, skills and society.
5) The government will ensure genuine autonomy of institutions of probity which include the state accountability commission, vigilance commission, which will be re-designated as transparency commission and an organisation which deals with the Right to Information Act.
6) Following the principles of "Insaniyat, Kashmiriyat and Jamhooriyat" of the earlier NDA government led by Atal Bihari Vajpayee, the state government will facilitate and help initiate a sustained and meaningful dialogue with all internal stakeholders which include political groups irrespective of their ideological views and predilections.
The dialogue will seek to build a broad based consensus on resolution of all outstanding issues of the state.
7) The government will examine the need for de-notifying disturbed areas which will as a consequence enable the union government to take a final view on the continuation of the Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) in these areas.
8) Article 370: The present position will be maintained on all constitutional provisions including special status.
9) Dialogue with Hurriyat Conference: The coalition government will facilitate sustained dialogue with all stakeholders irrespective of their ideological views.
10) All the land other than those given to the security forces on the basis of lease, licenses and acquisition under the provision of the land acquisition act shall be returned to the rightful owners except in a situation where retaining the land is absolutely imperative in view of a specific security requirement.
11) The government will work out a one-time settlement for refugees from Pakistan occupied Kashmir of 1947, 1965 and 1971.
12) The government will take measures for sustenance and livelihood of the West Pakistan refugees.
13) It will extend all benefits accruing to the people living on the Line of Control (LoC) to the people living on the international border.
14) It will secure a share in the profits of NHPC emanating from Jammu and Kashmir's waters to the state government.
15) It will reverse all royalty agreements with NHPC.
हुर्रियत नेता सैय्यद अली शाह जिलानी ने कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए विश्वसमुदाय को जो पत्र लिखा है वह निंदनीय है।यह पत्र भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ है।
जो संगठन समाज में हिन्दू बनाम मुसलमान ,भारत बनाम पाक का गंदा खेल खेल रहे हैं वे स्टीरियोटाइप विचारों,इमेजों और तर्कों के आधार पर बातें कर रहे हैं।किसी भी किस्म का स्टीरियोटाइप विमर्श अंततःज्ञानहीन बनाता है,सही समझ नष्ट करता है।
आरएसएस और आतंकियों में राष्ट्रवाद महान है,एक को हिन्दू राष्ट्र चाहिए,दूसरे को मुस्लिम राष्ट्र चाहिए,दोनों कश्मीरमें राष्ट्रवाद का ढोल पीटते रहते हैं,आतंकी बंदूक और बारूद के जरिए राष्ट्रवाद लाना चाहते हैं, मोदी सरकार को सेना के जरिए राष्ट्रवाद की रक्षा करनी पड़ रही है,सच्चाई यह है कश्मीर को किसी भी रंगत का राष्ट्रवाद नहीं चाहिए,वहां की जनता मानवतावाद चाहती है।जो संगठन राष्ट्रवाद को महान बनाने में लगे हैं वे वस्तुतःमानवता और कश्मीरी जनता के दुश्मन हैं।कश्मीर की जनता को राष्ट्रवाद नहीं मानवतावाद चाहिए।सेना नहीं सहयोग चाहिए।
कश्मीर के सभी अखबारों के संपादकों ने अखबारों के प्रकाशन पर लगी पाबंदी को अनुचित बताया है और उसकी कड़े शब्दों निंदा की है और मांग की है कि राज्य सरकार यह पाबंदी तुरंत हटाए। दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार खुलेआम पृथकतावादी संगठनों के प्रति हमदर्दी दिखाती रही है,उनको नियंत्रित करने के लिए उसने कोई कदम नहीं उठाए,लेकिन प्रेस पर हमला करने के लिए तुरंत कदम उठा लिए,यदि राज्य सरकार को किसी अखबार की किसी रिपोर्ट,तथ्य आदि को लेकर आपत्ति थी तो उसे संपादक को बुलाकर पूछना चाहिए,बात करनी चाहिए,कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए,लेकिन यह सब न करके सीधे सभी अखबारों के प्रकाशन पर पाबंदी लगाकर यह संदेश दिया है कि कश्मीर का प्रेस आग भड़का रहा था।वास्तविकता यह है कि आग भड़काने का काम किसी और ने किया,आग भड़काने वाले को राज्य सरकार कुछ नहीं बोल रही।
कश्मीर की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं।जो लोग सोच रहे हैं कि मीडिया को बंद करके हालात सुधारे जा सकते हैं,वे गलतफहमी के शिकार हैं।इस समय कश्मीर में अघोषित आपातकाल है।राज्य सरकार ने सभी अखबारों पर पाबंदी लगा दी है।मोबाइल बंद हैं,इंटरनेट बंद है।सड़कों पर कर्फ्यू है।आम नागरिक किस तरह गुजर बसर कर रहा होगा,रोज खाने-कमाने वाले कैसे जी रहे होंगे,इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है।जम्मू-कश्मीर सरकार तुरंत अखबारों पर लगी पाबंदी हटाए और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बहाल करे।
कश्मीर को शांति नहीं सहानुभूति और सही समझ की जरूरत है। जो लोग कश्मीर को भारत के साथ देखना चाहते हैं वे शांति स्थापित करने तक न देखें। इससे समस्या सुलझने वाली नहीं है। कश्मीर को सहानुभूति और सही समझदारी के साथ देखो।
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