नामवरजी के व्यक्तित्व के वैसे ही अनंत पहलू हैं जैसे किसी सामान्य व्यक्ति के होते हैं। अनंत पहलुओं में से व्यक्ति किसी भी दिशा में अपना विकास कर सकता है।नामवरजी का साहित्येतिहास और आलोचना में योगदान रहा है।वे कम से कम यह तो बता ही सकते हैं कि हिन्दी में आरएसएस और मोदीयुग का क्या योगदान है जिसके कारण उनके साथ जुड़ने की जरूरत आन पड़ी ॽ हम समझ सकते हैं हिन्दीसाहित्येतिहास में कांग्रेस,कम्युनिस्ट,समाजवादी,उदारतावाद,फोर्ड फाउंडेशन,नव्य़ आर्थिक उदारीकरण आदि विचारधाराओं का योगदान रहा है,इन विचारधाराओं ने किसी न किसी रूप में हिन्दी साहित्य और लेखकों को प्रभावित किया है, लेकिन आरएसएस का क्या योगदान है ॽ ऐसी कौनसी विपत्ति आन पड़ी कि दूसरी परंपरा को आरएसएस की मालाओं की जरूरत पड़ी! क्या दूसरी परंपरा का हिन्दुत्व से कोई संबंध बनता है ॽ यदि हां,तो कम से कम कुछ तो आपकी साहित्यिक टीम कल के आयोजन में रोशनी डालेगी !
नामवरजी आपको लेकर मुझे एक पुराना दार्शनिक रूपक याद आ रहा है।जंगल में जब पेड़ गिरता है तो वह शब्द जरूर करता है लेकिन उसके गिरने की ध्वनि को कोई नहीं सुनता।उसके गिरने की ध्वनि कोई अंतर पैदा नहीं करती।यही दशा आपकी है आप मोदी-आरएसएस की गोदी में गिरे तो हैं।समाज में आपका वैचारिक पतन तो हुआ है लेकिन हिन्दी साहित्य की प्रतिवादी परंपरा पर इसका कोई असर नहीं होने वाला।लेकिन यह सच है कि वृक्ष गिरा है।आरएसएस वाले सोच रहे हैं आपके और आपकी साहित्य टीम के उनके साथ चले जाने का साहित्य में बहुत बड़ा असर होगा ! लेकिन वे गलतफहमी में हैं।आप भी जानते हैं आरएसएस की विचारधारा सर्जनात्मकता विरोधी बर्बर विचारधारा है।बांझ विचारधारा है। वे लोग अब तक साहित्य पर कोई असर नहीं छोड़ पाए,वे लोग आज तक बेहतरीन रचनाकार पैदा नहीं कर पाए।ऐसी बांझ अवस्था में आपके जरिए हिन्दू साहित्य की परंपरा का विकास कैसे होगा यह देखना बाकी है !
नामवरजी हम यह नहीं मानते कि आपके आरएसएस के खेमे में जाने का कोई असर नहीं होगा।जंगल में वृक्ष के गिरने से एक परिवर्तन जरूर हुआ है।इसने जंगल का नक्शा बिगाड़ दिया है। प्रगतिशील साहित्य की शक्ल बिगाड़ दी है।यह वह शक्ल है जिसको बनाने में एक जमाने में आपकी और आपकी साहित्यटीम की भूमिका रही है।आपके इस एक कदम ने प्रगतिशील लेखकों के सामने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं ,उनकी भूमिका को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है।हम जानते थे मोदी सरकार आने के बाद आपकी टीम को असुविधा होगी,सत्ता के भत्तों और संरक्षण पर आपकी टीम का समूचा कारोबार चलता रहा है।मैंने समय-समय पर उसकी तीखी आलोचना भी लिखी है।लेकिन आपकी टीम तो महान साहित्य टीम है, उसमें महान मार्क्सवादी आलोचक हैं,ये ऐसे आलोचक हैं जो किसी की आलोचना पर ध्यान ही नहीं देते।यही इसबार भी हुआ।मैंने फेसबुक पर कई बार आने वाले संकट की ओर संकेत भी किया था,लेकिन लोगों ने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया,मैं जानता हूँ आपने साहित्य का परिदृश्य इतना गंदा ,भ्रष्ट और विचारधाराहीन बना दिया है कि अब लेखक का मूल्यांकन ही बंद हो गया है। अब लेखक के लिए संपर्क-संबंध और सत्ता के कनेक्शन मुख्य हो गए हैं,इस परंपरा को निर्मित करने में नामवरजी आपकी निश्चित तौर पर निर्णायक भूमिका रही है। पहले लेखक के सामान्य से वैचारिक विचलन पर बहस होती थी,लेखक संगठनों के बयान आते थे, लेकिन आज परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है,नामवरजी और उनकी साहित्यटीम पूरी तरह मोदीमंडली में शामिल हो चुकी है लेकिन लेखक संगठनों का कोई बयान तक नहीं आया है,लेखकों की ओर से कोई प्रतिवाद नहीं है।
नामवरजी आपका मोदी की गोद में जाना सामान्य घटना नहीं है।यह युगांतरकारी घटना है।इसने हिन्दी साहित्येतिहास की दिशा बदल दी है। साहित्येतिहास अपनी दिशा तब बदलता है जब वह अपने लक्ष्य बदलता है।नामवरजीने इसी संदर्भ में साहित्य की भूमिका,लेखक की भूमिका आदि को बुनियादी तौर पर आपने बदलकर रख दिया है।
नामवरजी और उनकी साहित्य टीम के आलोचक हिन्दी के मंचों पर आएदिन ´अंत´ पदबंध की खिल्ली उड़ाते थे।लेकिन इस टीम ने ही ´अंत ´को साकार कर दिया।नामवरजी का मोदी की गोदी में जाना ´साहित्य का अंत´है।´विचारधारा का अंत ´है। यह उस भ्रम का भी अंत है कि ये लोग अंत के विरोधी हैं।नामवरजी अब खेलो अपने हाथों ´अंत´का साहित्यखेल!
नामवरजी आपको लेकर मुझे एक पुराना दार्शनिक रूपक याद आ रहा है।जंगल में जब पेड़ गिरता है तो वह शब्द जरूर करता है लेकिन उसके गिरने की ध्वनि को कोई नहीं सुनता।उसके गिरने की ध्वनि कोई अंतर पैदा नहीं करती।यही दशा आपकी है आप मोदी-आरएसएस की गोदी में गिरे तो हैं।समाज में आपका वैचारिक पतन तो हुआ है लेकिन हिन्दी साहित्य की प्रतिवादी परंपरा पर इसका कोई असर नहीं होने वाला।लेकिन यह सच है कि वृक्ष गिरा है।आरएसएस वाले सोच रहे हैं आपके और आपकी साहित्य टीम के उनके साथ चले जाने का साहित्य में बहुत बड़ा असर होगा ! लेकिन वे गलतफहमी में हैं।आप भी जानते हैं आरएसएस की विचारधारा सर्जनात्मकता विरोधी बर्बर विचारधारा है।बांझ विचारधारा है। वे लोग अब तक साहित्य पर कोई असर नहीं छोड़ पाए,वे लोग आज तक बेहतरीन रचनाकार पैदा नहीं कर पाए।ऐसी बांझ अवस्था में आपके जरिए हिन्दू साहित्य की परंपरा का विकास कैसे होगा यह देखना बाकी है !
नामवरजी हम यह नहीं मानते कि आपके आरएसएस के खेमे में जाने का कोई असर नहीं होगा।जंगल में वृक्ष के गिरने से एक परिवर्तन जरूर हुआ है।इसने जंगल का नक्शा बिगाड़ दिया है। प्रगतिशील साहित्य की शक्ल बिगाड़ दी है।यह वह शक्ल है जिसको बनाने में एक जमाने में आपकी और आपकी साहित्यटीम की भूमिका रही है।आपके इस एक कदम ने प्रगतिशील लेखकों के सामने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं ,उनकी भूमिका को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है।हम जानते थे मोदी सरकार आने के बाद आपकी टीम को असुविधा होगी,सत्ता के भत्तों और संरक्षण पर आपकी टीम का समूचा कारोबार चलता रहा है।मैंने समय-समय पर उसकी तीखी आलोचना भी लिखी है।लेकिन आपकी टीम तो महान साहित्य टीम है, उसमें महान मार्क्सवादी आलोचक हैं,ये ऐसे आलोचक हैं जो किसी की आलोचना पर ध्यान ही नहीं देते।यही इसबार भी हुआ।मैंने फेसबुक पर कई बार आने वाले संकट की ओर संकेत भी किया था,लेकिन लोगों ने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया,मैं जानता हूँ आपने साहित्य का परिदृश्य इतना गंदा ,भ्रष्ट और विचारधाराहीन बना दिया है कि अब लेखक का मूल्यांकन ही बंद हो गया है। अब लेखक के लिए संपर्क-संबंध और सत्ता के कनेक्शन मुख्य हो गए हैं,इस परंपरा को निर्मित करने में नामवरजी आपकी निश्चित तौर पर निर्णायक भूमिका रही है। पहले लेखक के सामान्य से वैचारिक विचलन पर बहस होती थी,लेखक संगठनों के बयान आते थे, लेकिन आज परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है,नामवरजी और उनकी साहित्यटीम पूरी तरह मोदीमंडली में शामिल हो चुकी है लेकिन लेखक संगठनों का कोई बयान तक नहीं आया है,लेखकों की ओर से कोई प्रतिवाद नहीं है।
नामवरजी आपका मोदी की गोद में जाना सामान्य घटना नहीं है।यह युगांतरकारी घटना है।इसने हिन्दी साहित्येतिहास की दिशा बदल दी है। साहित्येतिहास अपनी दिशा तब बदलता है जब वह अपने लक्ष्य बदलता है।नामवरजीने इसी संदर्भ में साहित्य की भूमिका,लेखक की भूमिका आदि को बुनियादी तौर पर आपने बदलकर रख दिया है।
नामवरजी और उनकी साहित्य टीम के आलोचक हिन्दी के मंचों पर आएदिन ´अंत´ पदबंध की खिल्ली उड़ाते थे।लेकिन इस टीम ने ही ´अंत ´को साकार कर दिया।नामवरजी का मोदी की गोदी में जाना ´साहित्य का अंत´है।´विचारधारा का अंत ´है। यह उस भ्रम का भी अंत है कि ये लोग अंत के विरोधी हैं।नामवरजी अब खेलो अपने हाथों ´अंत´का साहित्यखेल!
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