आम्बेडकर की जयन्ती मोदी सरकार मना रही है, मोदी-मोहन भागवतजी आम्बेडकर पर सुंदर बातें कह रहे हैं।लेकिन आचरण एकदम दलितविरोधी कर रहे हैं।राजनीति में आचरण प्रमुख है, विचार गौण होते हैं। 90वें जन्मदिन के नाम पर 28जुलाई 2016 को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में नामवरजी क्या बोलते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है,महत्वपूर्ण है आरएसएस के लोगों का इस संग्रहालय की आड़ में जन्मदिन मनाना।उसमें नामवरजी का जाना महत्वपूर्ण है।इस आयोजन को नामवरजी द्वारा दी गयी स्वीकृति महत्वपूर्ण है।सवाल यह है आचरण की बातों पर नामवरजी के भक्तगण ध्यान क्यों नहीं दे रहे ? सवाल यह है नामवरजी के निर्माण में किनका खून-पसीना-विचारधारा और पैसा लगा है ?
नामवरजी सार्वजनिक बौद्धिक संपदा का अंग हैं ।वे पूजा की नहीं आलोचना की मूर्ति हैं ! जब उनकी आलोचना हो रही है तो भक्तों को परेशानी क्यों हो रही है ? हम इसलिए परेशान हैं क्योंकि नामवरजी सीधे आरएसएस के साथ गलबहियां देकर घूम रहे हैं।यह जनता और प्रगतिशील साहित्य के खिलाफ सबसे घिनौना कदम है।
यह कोई नामवर पुराण नहीं है।नामवरजी लेखक हैं,वे गल्पपुरूष नहीं हैं,उनके कर्म के मूल्यांकन के मकसद से उनसे फेसबुक के जरिए संवाद है।उनके भक्तों से संवाद है।मौजूदा समय से संवाद है।
हमें कोई आपत्ति नहीं है वे किसे नौकरी देते हैं,किसकी सेमीनार में बोलने जाते हैं,क्या बोलते हैं,वे सरकार से जुड़ें या न जुड़ें,हमें इस सबसे कोई आपत्ति नहीं है, वे यह काम करते रहे हैं,हमने कभी नहीं बोला।हमारी आपत्ति यह है कि नामवरजी ने अपना जन्मदिन मनाने के लिए आरएसएस को अनुमति क्यों दी ॽ नामवरजी उनको अनुमति न देते तो क्या छोटे हो जाते ॽ
मोदीजी के पीएम बनने के पहले से नामवरजी ने संघ की ओर मुँह किया था,हमने तब भी आगाह किया था, फिर कर रहे हैं,यह जनता के साथ गद्दारी है।हम उन लेखकों से भी अपील करते हैं जो अब तक चुप हैं ,नामवरजी के वहां जाने से क्या वे सहमत हैं ॽ यदि हां तो खुलकर कहें कि उनका स्टैंड क्या है ॽयह क्या बात हुई कि नामवरजी का जन्मदिन आरएसएस नियंत्रित संस्था मनाए और आपकी कोई राय ही न हो,क्या हम यह मानें कि आपलोगों का उनको समर्थन है ॽ
कई मित्रों ने कहा काहे को नामवरजी के पीछे पड़े हो? हमने कहा वे हमारे शिक्षक हैं।हमें पूरा हक़ है उनसे सवाल करने, उनके लिखे और बोले पर सवाल करने का। हमने यह भी कहा वे फेसबुक पर हमारे प्रिय व्यक्तित्व हैं,इसीलिए उन पर लिख रहे हैं,दूसरा वे हमारे लिखे का बुरा नहीं मानते!
अफसोस है नामवरजी ने ब्रेख्त की परंपरा छोड़कर एजरा पाउण्ड -हाइडेगर की परंपरा में जगह बना ली है।
मैं जानता हूँ हिन्दी के बूढ़े लेखक मेरी बात नहीं सुनेंगे,वे अपनी सत्ता की आदतों मे मगन हैं,हम तो असल में फेसबुक के जरिए युवा मित्रों से संवाद कर रहे हैं जिससे वे सत्ता की आदतों के शिकार न हों,यही छोटा सा लक्ष्य है,नामवरजी तो बहाना मात्र हैं,नामवरजी की सत्ता की आदतों को मैं छात्रजीवन से जानता हूँ और उनको समय-समय पर बेनकाब करता रहा हूं।
फेसबुक पर नामवरजी के जो भक्त सक्रिय हैं हम उनसे अनुरोध करेंगे कि नामवरजी की हिमायत करते हुए कम से कम जन्मदिन आने तक नामवरजी पर रोज़ एक लेख लिखो ।
नामवरजी पर सब लोग जानें कि भक्तगण कितना नामवरजी को जानते हैं।नामवरजी के नाम पर जाहिलगिरी बंद होनी चाहिए। नामवरजी विद्वान हैं उनका लिखा सहज रूप में उपलब्ध है, आसानी से उसे पढ़कर ही लिखो,कम से कम मोदी के भक्तों की तरह नामवरजी के भक्त न बनो! लेकिन अफसोस है नामवरजी ने भी तो मोदी की तरह भक्त ही पैदा किए हैं!!
नामवरजी सार्वजनिक बौद्धिक संपदा का अंग हैं ।वे पूजा की नहीं आलोचना की मूर्ति हैं ! जब उनकी आलोचना हो रही है तो भक्तों को परेशानी क्यों हो रही है ? हम इसलिए परेशान हैं क्योंकि नामवरजी सीधे आरएसएस के साथ गलबहियां देकर घूम रहे हैं।यह जनता और प्रगतिशील साहित्य के खिलाफ सबसे घिनौना कदम है।
यह कोई नामवर पुराण नहीं है।नामवरजी लेखक हैं,वे गल्पपुरूष नहीं हैं,उनके कर्म के मूल्यांकन के मकसद से उनसे फेसबुक के जरिए संवाद है।उनके भक्तों से संवाद है।मौजूदा समय से संवाद है।
हमें कोई आपत्ति नहीं है वे किसे नौकरी देते हैं,किसकी सेमीनार में बोलने जाते हैं,क्या बोलते हैं,वे सरकार से जुड़ें या न जुड़ें,हमें इस सबसे कोई आपत्ति नहीं है, वे यह काम करते रहे हैं,हमने कभी नहीं बोला।हमारी आपत्ति यह है कि नामवरजी ने अपना जन्मदिन मनाने के लिए आरएसएस को अनुमति क्यों दी ॽ नामवरजी उनको अनुमति न देते तो क्या छोटे हो जाते ॽ
मोदीजी के पीएम बनने के पहले से नामवरजी ने संघ की ओर मुँह किया था,हमने तब भी आगाह किया था, फिर कर रहे हैं,यह जनता के साथ गद्दारी है।हम उन लेखकों से भी अपील करते हैं जो अब तक चुप हैं ,नामवरजी के वहां जाने से क्या वे सहमत हैं ॽ यदि हां तो खुलकर कहें कि उनका स्टैंड क्या है ॽयह क्या बात हुई कि नामवरजी का जन्मदिन आरएसएस नियंत्रित संस्था मनाए और आपकी कोई राय ही न हो,क्या हम यह मानें कि आपलोगों का उनको समर्थन है ॽ
कई मित्रों ने कहा काहे को नामवरजी के पीछे पड़े हो? हमने कहा वे हमारे शिक्षक हैं।हमें पूरा हक़ है उनसे सवाल करने, उनके लिखे और बोले पर सवाल करने का। हमने यह भी कहा वे फेसबुक पर हमारे प्रिय व्यक्तित्व हैं,इसीलिए उन पर लिख रहे हैं,दूसरा वे हमारे लिखे का बुरा नहीं मानते!
अफसोस है नामवरजी ने ब्रेख्त की परंपरा छोड़कर एजरा पाउण्ड -हाइडेगर की परंपरा में जगह बना ली है।
मैं जानता हूँ हिन्दी के बूढ़े लेखक मेरी बात नहीं सुनेंगे,वे अपनी सत्ता की आदतों मे मगन हैं,हम तो असल में फेसबुक के जरिए युवा मित्रों से संवाद कर रहे हैं जिससे वे सत्ता की आदतों के शिकार न हों,यही छोटा सा लक्ष्य है,नामवरजी तो बहाना मात्र हैं,नामवरजी की सत्ता की आदतों को मैं छात्रजीवन से जानता हूँ और उनको समय-समय पर बेनकाब करता रहा हूं।
फेसबुक पर नामवरजी के जो भक्त सक्रिय हैं हम उनसे अनुरोध करेंगे कि नामवरजी की हिमायत करते हुए कम से कम जन्मदिन आने तक नामवरजी पर रोज़ एक लेख लिखो ।
नामवरजी पर सब लोग जानें कि भक्तगण कितना नामवरजी को जानते हैं।नामवरजी के नाम पर जाहिलगिरी बंद होनी चाहिए। नामवरजी विद्वान हैं उनका लिखा सहज रूप में उपलब्ध है, आसानी से उसे पढ़कर ही लिखो,कम से कम मोदी के भक्तों की तरह नामवरजी के भक्त न बनो! लेकिन अफसोस है नामवरजी ने भी तो मोदी की तरह भक्त ही पैदा किए हैं!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें