मोदीजी के मंत्रीमंडल में नए फेरबदल में खुश होने लायक कुछ नहीं है,सारे मंत्री स्मृति ईरानी जैसी औसत बुद्धि के ही हैं,सबकी बौद्धिकता और निकम्मेपन का स्तर ईरानी के बराबर है।हावर्ड से लेकर गुजरात वि वि तक के जो भी स्नातक भाजपा में सांसद हैं वे सब "न्यूनतम बौद्धिक -अधिकतम संघी" के साँचे में ढले हैं।
मंत्री पद के लिए जिस बुद्धि-विवेक और साहस की दरकार होती है वह भाजपा सांसदों में दूर-दूर तक नहीं है।बुद्धि-विवेक और साहस में यदि भाजपा अग्रणी दल होता तो वह अपना नेता नरेन्द्र मोदी को नहीं चुनता।इसलिए स्मृति ईरानी के हटने से खुश न हों।दूसरी बात यह कि मोदीजी सांसद की क्षमता के हिसाब से मंत्री पद पर नहीं चुनते ,वे निजी वफादारी के आधार पर मंत्री चुन रहे हैं।जो सांसद निजी तौर पर मोदी के प्रति वफादार है,उसे वे सब कुछ देने को तैयार हैं।
कल मैं मोदीजी के परम मित्र और उद्योगपति सुनील अलग और भाजपा प्रवक्ता को टाइम्स नाउ पर सुन रहा था,सुनकर हंसी आ रही थी।किस तरह भांडों की तरह मोदीजी के हर चयन को महान चयन बताने में ये दोनों प्रतिस्पर्धा कर रहे थे।दिलचस्प बात यह है कि स्मृति ईरानी ने नई शिक्षा नीति का मसौदा जारी किया मोदीजी ने उनको मंत्रालय से हटाकर अन्यत्र भेज दिया,सदानंद देवगौडा के मंत्रालय का सुप्रीमकोर्ट के साथ विगत कई महिनों से टसल चल रहा है,नया टसल सिविल कोड है। बेचारे मंत्री का मंत्रालय बदल दिया। यही हाल कमोबेश हर मंत्रालय का है।जो नम्बर एक घूसखोर है संसद में घूस के नोट के साथ मिला उसे मंत्री बना दिया।
हालात यह है अरूण जेटली का वित्तमंत्रालय सबसे खराब काम कर रहा है लेकिन उनको मंत्रीमंडल से बाहर करने की क्षमता मोदीजी में नहीं है। इसका प्रधान कारण है कि भाजपा में शामिल प्रत्येक भ्रष्ट सांसद ताकतवर है ,मोदीजी को इन भ्रष्ट सांसदों में से ही चुनना है ,जो मंत्रीमंडल में आ जाता है वह सहज ही जाता नहीं है।जिन मंत्रियों पर अदालत में संगीन जुर्म में केस चल रहे हैं उनको मंत्रीमंडल से विदा करने में मोदी जैसे शक्तिशाली पीएम को दो साल लगे हैं,इससे मोदीजी की कमजोरी जाहिर होती है,इसी तरह यदि वैंकेय्या नायडू यदि संसदीय मंत्री के रूप में बेहतर काम नहीं कर पाए तो उनको मंत्रीमंडल से निकालने का साहस मोदी में नहीं है,स्मृति ईरानी ने सबसे घटिया ढ़ंग से मंत्री के रूप में काम किया लेकिन उनको मंत्रीमंडल से निकालने की ताकत आरएसएस में नहीं है।जिस मंत्री का 2साल बाद विभाग बदला गया है वह निश्चित तौर पर काम की कसौटी पर खरा नहीं उतरा ,फलतःउसे मंत्रीमंडल के बाहर होना चाहिए,लेकिन वे ऐसा करने की स्थिति में नहीं हैं।
डाक्टर,वकील,पीएचडी धारी मोदीजी के मंत्रीमंडल में हैं इससे क्या बताना चाहते हैं मीडियावाले।यदि कहना चाहते हो कि मोदीजी के मंत्रीमंडल में पढ़े लिखे लोग हैं तो यह कौन सी बड़ी बात है।यह कोई देश पर एहसान नहीं है,सवाल यह है क्या कोई मंत्री स्वतंत्र रूप से काम करने की क्षमता रखता है,किसी को आजादी है,जान लो मोदी के मंत्रीमंडल में सिर्फ मोदी को ही काम करने की आजादी है और मोदीजी तो इतने शर्मीले हैं कि अपनी बीए,एमए, की डिग्री तक नहीं दिखा रहे।
पूरा देश इस समय एक ऐसा व्यक्ति चला रहा है जिसके पास कोई डिग्री नहीं है और डिग्री दिखाने में उसे शर्म आती है,यही वजह है गुणी लोग उसके मंत्रीमंडल में बंधकमंत्री की तरह काम कर रहे हैं।जो मंत्री बंधक हैं वे डिग्रीधारी नहीं हो सकते,संविधान की सबसे डिग्री है स्वतंत्र और स्वायत्त मंत्री की और यह डिग्री मोदीजी के अलावा आरएसएस ने किसी को नहीं दी है।
एक अन्य चीज जो नजर आई वह यह कि मोदीजी अपने सहयोगी सांसदों की योग्यता से वाकिफ नहीं हैं या अतिरिक्त प्रेम होने के कारण उनको मंत्री बनाकर लेकर आए थे,मसलन् ,वीके सिंह और अकबर का क्या काम है विदेश मंत्रालय में,विगत दो साल में वीके सिंह की कोई भूमिका नहीं रही,फिर भी बने हुए हैं।
सिर्फ भाजपा संसदीय दल में आंतरिक असंतोष को दबाए रखने के लिए मौजूदा परिवर्तन किया गया है।इस समय स्थिति यह है कि भाजपा के सांसदों में हर दूसरा सांसद मंत्री है या मंत्री पद की सुविधा का विभिन्न तरीकों से लाभ ले रहा है।इस तरह लाभ बांटकर मोदीजी भ्रष्ट भाजपा को टूटने से बचाए हुए हैं।
मंत्री पद के लिए जिस बुद्धि-विवेक और साहस की दरकार होती है वह भाजपा सांसदों में दूर-दूर तक नहीं है।बुद्धि-विवेक और साहस में यदि भाजपा अग्रणी दल होता तो वह अपना नेता नरेन्द्र मोदी को नहीं चुनता।इसलिए स्मृति ईरानी के हटने से खुश न हों।दूसरी बात यह कि मोदीजी सांसद की क्षमता के हिसाब से मंत्री पद पर नहीं चुनते ,वे निजी वफादारी के आधार पर मंत्री चुन रहे हैं।जो सांसद निजी तौर पर मोदी के प्रति वफादार है,उसे वे सब कुछ देने को तैयार हैं।
कल मैं मोदीजी के परम मित्र और उद्योगपति सुनील अलग और भाजपा प्रवक्ता को टाइम्स नाउ पर सुन रहा था,सुनकर हंसी आ रही थी।किस तरह भांडों की तरह मोदीजी के हर चयन को महान चयन बताने में ये दोनों प्रतिस्पर्धा कर रहे थे।दिलचस्प बात यह है कि स्मृति ईरानी ने नई शिक्षा नीति का मसौदा जारी किया मोदीजी ने उनको मंत्रालय से हटाकर अन्यत्र भेज दिया,सदानंद देवगौडा के मंत्रालय का सुप्रीमकोर्ट के साथ विगत कई महिनों से टसल चल रहा है,नया टसल सिविल कोड है। बेचारे मंत्री का मंत्रालय बदल दिया। यही हाल कमोबेश हर मंत्रालय का है।जो नम्बर एक घूसखोर है संसद में घूस के नोट के साथ मिला उसे मंत्री बना दिया।
हालात यह है अरूण जेटली का वित्तमंत्रालय सबसे खराब काम कर रहा है लेकिन उनको मंत्रीमंडल से बाहर करने की क्षमता मोदीजी में नहीं है। इसका प्रधान कारण है कि भाजपा में शामिल प्रत्येक भ्रष्ट सांसद ताकतवर है ,मोदीजी को इन भ्रष्ट सांसदों में से ही चुनना है ,जो मंत्रीमंडल में आ जाता है वह सहज ही जाता नहीं है।जिन मंत्रियों पर अदालत में संगीन जुर्म में केस चल रहे हैं उनको मंत्रीमंडल से विदा करने में मोदी जैसे शक्तिशाली पीएम को दो साल लगे हैं,इससे मोदीजी की कमजोरी जाहिर होती है,इसी तरह यदि वैंकेय्या नायडू यदि संसदीय मंत्री के रूप में बेहतर काम नहीं कर पाए तो उनको मंत्रीमंडल से निकालने का साहस मोदी में नहीं है,स्मृति ईरानी ने सबसे घटिया ढ़ंग से मंत्री के रूप में काम किया लेकिन उनको मंत्रीमंडल से निकालने की ताकत आरएसएस में नहीं है।जिस मंत्री का 2साल बाद विभाग बदला गया है वह निश्चित तौर पर काम की कसौटी पर खरा नहीं उतरा ,फलतःउसे मंत्रीमंडल के बाहर होना चाहिए,लेकिन वे ऐसा करने की स्थिति में नहीं हैं।
डाक्टर,वकील,पीएचडी धारी मोदीजी के मंत्रीमंडल में हैं इससे क्या बताना चाहते हैं मीडियावाले।यदि कहना चाहते हो कि मोदीजी के मंत्रीमंडल में पढ़े लिखे लोग हैं तो यह कौन सी बड़ी बात है।यह कोई देश पर एहसान नहीं है,सवाल यह है क्या कोई मंत्री स्वतंत्र रूप से काम करने की क्षमता रखता है,किसी को आजादी है,जान लो मोदी के मंत्रीमंडल में सिर्फ मोदी को ही काम करने की आजादी है और मोदीजी तो इतने शर्मीले हैं कि अपनी बीए,एमए, की डिग्री तक नहीं दिखा रहे।
पूरा देश इस समय एक ऐसा व्यक्ति चला रहा है जिसके पास कोई डिग्री नहीं है और डिग्री दिखाने में उसे शर्म आती है,यही वजह है गुणी लोग उसके मंत्रीमंडल में बंधकमंत्री की तरह काम कर रहे हैं।जो मंत्री बंधक हैं वे डिग्रीधारी नहीं हो सकते,संविधान की सबसे डिग्री है स्वतंत्र और स्वायत्त मंत्री की और यह डिग्री मोदीजी के अलावा आरएसएस ने किसी को नहीं दी है।
एक अन्य चीज जो नजर आई वह यह कि मोदीजी अपने सहयोगी सांसदों की योग्यता से वाकिफ नहीं हैं या अतिरिक्त प्रेम होने के कारण उनको मंत्री बनाकर लेकर आए थे,मसलन् ,वीके सिंह और अकबर का क्या काम है विदेश मंत्रालय में,विगत दो साल में वीके सिंह की कोई भूमिका नहीं रही,फिर भी बने हुए हैं।
सिर्फ भाजपा संसदीय दल में आंतरिक असंतोष को दबाए रखने के लिए मौजूदा परिवर्तन किया गया है।इस समय स्थिति यह है कि भाजपा के सांसदों में हर दूसरा सांसद मंत्री है या मंत्री पद की सुविधा का विभिन्न तरीकों से लाभ ले रहा है।इस तरह लाभ बांटकर मोदीजी भ्रष्ट भाजपा को टूटने से बचाए हुए हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें