मेरे पहले शिक्षक परमानन्द शर्मा थे,वे मथुरा नगरपालिका के स्कूल में पढाते थे,स्कूल मास्टरों का उन दिनों ट्रांसफर होता रहता था।मैंने कक्षा एक में आज के ही दिन (1962)मथुरा के सतघड़ा मुहल्ले में जवाहर विद्यालय में दाखिला लिया ।स्कूल शिक्षकों को दाखिले के समय आम भेंट करके पिता ने दाखिला दिलाया ,बाद में प्रत्येक गुरूपूर्णिमा पर आम देकर गुरूओं को प्रणाम करने की आदत पड़ गयी।मुझे याद है स्कूल में परमान्द शर्मा प्रिंसिपल थे वे हमारे घर के पास ही भैंरोमंदिर के बराबर वाली गली में भाड़े का कमरा लेकर रहते थे और मेरे मंदिर पर सुबह छह बजे दर्शन करने आते थे। स्कूल में दाखिले के साथ ही परमानंदजी के यहां ट्यूशन पढ़ने का बंदोबस्त कर दिया गया।
परमानन्द शर्मा सादगी,ईमानदारी और सख्त मिजाज के शिक्षक के रूप में सारे शहर में मशहूर थे,उनके पढाए छात्र कभी फिसड्डी नहीं रहे,वे लिखने-पढ़ने के साथ तर्क-वितर्क में भी बेहतर बन जाते थे।परमानन्दजी की सबसे अच्छी बात थी कि वे जो पाठ पढाते थे उसे अपने ही सामने याद कराकर घर भेजते थे,फलतःहोमवर्क जैसी कोई चीज नहीं थी। हमसे बचपन में जब भी कोई शिक्षक का नाम पूछता हम परमानन्द जी का नाम लेते,उसके बाद पूछने वाले के पास परमानन्दजी की प्रशंसा के अलावा कोई शब्द नहीं होते थे।परमानन्दजी से पढ़ना गौरव की बात मानी जाती थी,क्योंकि वे सबसे ज्यादा जनप्रिय ईमानदार शिक्षक थे।
आज गुरू पूर्णिमा है।मुझे यह दिन विशेष प्रिय है।यह सबका दिन है।हम जीवन में किसी न किसी से कुछ न कुछ सीखते हैं,जिससे सीखते हैं वही गुरू है।सीखने का काम बिना निष्ठा और लगन के संभव नहीं है।पूंजीवाद में पढ़ने-लिखने के कारण हम सबका दिलो -दिमाग सीखने पर तो केन्द्रित रहा लेकिन सिखाने वाले के साथ हमने किसी भी किस्म का सामाजिक संबंध नहीं रखा,हम शिक्षक से पढ़ लेते हैं,लेकिन हमारा कोई सामाजिक संबंध नहीं रहता,जिस तरह हम उपयोग करके मोबाइल फेंक देते हैं,वैसे ही शिक्षक से भी पढ़कर उसे भूल जाते हैं,उसके साथ कोई सामाजिक संबंध नहीं रखते।
शिक्षक-छात्र के संबंध में इसने विलक्षण किस्म का अलगाव पैदा किया है।हमने कभी सोचा ही नहीं कि जिस शिक्षक ने हमको बचपन में पढाया,कॉलेज या विश्वविद्यालय में पढाया उसके साथ हमारा सामाजिक संपर्क- संबंध क्यों खत्म हो गया? हमने डिग्री ली और भूल गए।गुरूपूर्णिमा असल में शिक्षक के साथ लिंक स्थापित करने का दिन है।गुरू को याद करने का दिन है। कम से कम कुछ न कर सकें तो फेसबुक पर अपने गुरू के ऊपर कुछ पंक्तियां ही लिखकर याद करें।गुरू यानी शिक्षक से हमने कुछ न कुछ लिया है,सवाल यह है क्या छात्र के नाते उससे प्राप्त ज्ञान का कभी जीवन में क्या असर हुआ है इस पर सोचा है ?
हम इतने खुदगर्ज कैसे हो सकते हैं कि अपने शिक्षक याद न आएं,गुरूपूर्णिमा याद न आए।हमें इस खुदगर्जी के भाव से निकलकर कृतज्ञता के साथ अपने शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए।गुरू के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना मनुष्यता का बेहतर लक्षण है।
परमानन्द शर्मा सादगी,ईमानदारी और सख्त मिजाज के शिक्षक के रूप में सारे शहर में मशहूर थे,उनके पढाए छात्र कभी फिसड्डी नहीं रहे,वे लिखने-पढ़ने के साथ तर्क-वितर्क में भी बेहतर बन जाते थे।परमानन्दजी की सबसे अच्छी बात थी कि वे जो पाठ पढाते थे उसे अपने ही सामने याद कराकर घर भेजते थे,फलतःहोमवर्क जैसी कोई चीज नहीं थी। हमसे बचपन में जब भी कोई शिक्षक का नाम पूछता हम परमानन्द जी का नाम लेते,उसके बाद पूछने वाले के पास परमानन्दजी की प्रशंसा के अलावा कोई शब्द नहीं होते थे।परमानन्दजी से पढ़ना गौरव की बात मानी जाती थी,क्योंकि वे सबसे ज्यादा जनप्रिय ईमानदार शिक्षक थे।
आज गुरू पूर्णिमा है।मुझे यह दिन विशेष प्रिय है।यह सबका दिन है।हम जीवन में किसी न किसी से कुछ न कुछ सीखते हैं,जिससे सीखते हैं वही गुरू है।सीखने का काम बिना निष्ठा और लगन के संभव नहीं है।पूंजीवाद में पढ़ने-लिखने के कारण हम सबका दिलो -दिमाग सीखने पर तो केन्द्रित रहा लेकिन सिखाने वाले के साथ हमने किसी भी किस्म का सामाजिक संबंध नहीं रखा,हम शिक्षक से पढ़ लेते हैं,लेकिन हमारा कोई सामाजिक संबंध नहीं रहता,जिस तरह हम उपयोग करके मोबाइल फेंक देते हैं,वैसे ही शिक्षक से भी पढ़कर उसे भूल जाते हैं,उसके साथ कोई सामाजिक संबंध नहीं रखते।
शिक्षक-छात्र के संबंध में इसने विलक्षण किस्म का अलगाव पैदा किया है।हमने कभी सोचा ही नहीं कि जिस शिक्षक ने हमको बचपन में पढाया,कॉलेज या विश्वविद्यालय में पढाया उसके साथ हमारा सामाजिक संपर्क- संबंध क्यों खत्म हो गया? हमने डिग्री ली और भूल गए।गुरूपूर्णिमा असल में शिक्षक के साथ लिंक स्थापित करने का दिन है।गुरू को याद करने का दिन है। कम से कम कुछ न कर सकें तो फेसबुक पर अपने गुरू के ऊपर कुछ पंक्तियां ही लिखकर याद करें।गुरू यानी शिक्षक से हमने कुछ न कुछ लिया है,सवाल यह है क्या छात्र के नाते उससे प्राप्त ज्ञान का कभी जीवन में क्या असर हुआ है इस पर सोचा है ?
हम इतने खुदगर्ज कैसे हो सकते हैं कि अपने शिक्षक याद न आएं,गुरूपूर्णिमा याद न आए।हमें इस खुदगर्जी के भाव से निकलकर कृतज्ञता के साथ अपने शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए।गुरू के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना मनुष्यता का बेहतर लक्षण है।
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