शनिवार, 5 मार्च 2011

चे ग्वेरा की मौत पर फिदेल कास्त्रो-2-


    मैं आपसे कह रहा था कि हम इस निर्णय पर पहुंच चुके हैं। हम अपने निष्कर्ष पर किन्हीं एकांगी तथ्यों, एकांगी शब्दों या एकांगी फोटोग्राफों के माध्यम से नहीं पहुंचे हैं। फोटोग्राफ कृत्रिम हो सकते हैं। लेकिन इन फोटोग्राफों को सरकार ने नहीं जारी किया है। ये चित्र बोलेविया में मौजूद पत्रकारों ने लिए हैं। उस जगह से ये चित्र लिए गए हैं, जहां शरीर रखा गया था। इसलिए इन फोटोग्राफों के कृत्रिम होने का सवाल ही नहीं उठता। यह मानना ठीक नहीं कि ये फोटोग्राफ झूठे हैं।
इसके अलावा भी कई अन्य मान्यताएं हैं, जैसे यह दरशाया गया शरीर मोम का पुतला हो सकता है, यह कहना अत्यधिक असंभाव्य है, और ऐसा करना संभव भी नहीं है।
इन सभी तथ्यों पर एक-एक करके गौर किया गया है, और सभी तथ्यों को स्वतंत्र रूप से पर्यवेक्षित भी किया गया है। पाया यह गया है कि व्यक्त की गई भिन्न-भिन्न संभावनाएं सर्वोच्च रूप से असंभाव्य हैं। इन सभी बातों पर, खबरों और अन्य माध्यमों से पाए गए तथ्यों की शृंखला से विद्यमान संबंधों के आधार पर जांचा गया है।
उदाहरणस्वरूप, हमने पाया कि दिखाई गई हस्तलिपि चे की हस्तलिपि है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह उनकी हस्तलिपि नहीं है, और मेरे खयाल से जिसका अनुकरण करना असंभाव्य है। इस सबसे अलग चे का व्यक्तित्व बहुत ही भिन्न किस्म का था, और उनकी शैली का अनुकरण करना तो बिलकुल ही असंभाव्य है। वास्तव में कहा जाए तो यह करना किसी भी व्यक्ति के लिए असंभव है। यहां तक उनके लिए भी, जो उन्हें बहुत अच्छी तरह से जानते थे, वर्षों तक साथ रहे, क्योंकि चे के हर वाक्य में उनकी 'पोजीशन' व्यक्त होती है। फिर उनके लिखने की शैली, अभिव्यक्ति का तरीका, प्रत्येक विवरण के प्रति उनकी प्रतिक्रिया, और भी ढेरों चीजें, और अंतत: उनके चारित्रिक गुणों की शृंखला, जो कि उनके हस्तलेख से नहीं, बल्कि लिखे गए मसौदे, शैली और प्रतिक्रिया से परिलक्षित होता है। इस सबकी अनुकृति करना तो अत्यधिक असंभाव्य है।
स्वाभाविक रूप से मात्र डायरी एक लड़ाके की मृत्यु को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। डायरी राह चलते खो सकती है, झोले से गिर सकती है या हो सकता है कि कहीं सुरक्षित रखने के लिए छोड़ी गई हो। यद्यपि यह डायरी 7 अक्टूबर तक की ही है, यानी उस अंतिम युध्द की पूर्व संध्या तक। उस युध्द की पूर्व संध्या तक, जिसके बारे में माना जाता है कि इसी युध्द में उनकी हत्या हुई। इस डायरी को चे ने अंतिम युध्द के कुछ घंटे पहले तक लिखा था। यह निर्विवाद सत्यहै। इसके अलावा यदि मान भी लिया जाए कि डायरी खो गई थी, तो यह 8 अक्टूबर के आसपास ही खोई जो युध्द का दिन था।
इसके अलावा तथ्यों की एक अन्य शृंखला भी सामने है। विश्व के विभिन्न समाचारपत्रों में इस तरह के चित्र प्रकाशित हुए हैं, जिनसे पता चलता है कि चे बोलेविया में थे। कुछ समाचारपत्रों में इस तरह के चित्रों को प्रकाशित किया गया है (फोटोग्राफ दिखाते हैं)। इसमें वे अपने साथ एक झोला लिए हुए हैं, रास्ते में उन्होंने स्वयं को सामान से लैस किया। इस सामान में एम-12 रायफल भी थी। इसके अलावा एक चित्र और है, जिसमें वह एक खच्चर पर बैठे हैं (चित्र दिखाते हैं)। और यह भी गैर प्रश्नांकित रूप से ऊर्ध्व मुद्रा का चित्र है। संभवत: चित्र में उपस्थित व्यक्ति से वह किसी विषय पर कुछ हंसी-मजाक कर रहे हैं। इसके अलावा कई अन्य चित्र भी प्राप्त हुए हैं। बहुत से चित्रों को तो शत्रुओं द्वारा 'सीज' कर दिया गया है। दूसरे शब्दों में, इस विषय में ढेरों संकेत हैं, जिनमें सामान्य तौर पर स्वीकार भी किया जाता है कि वे बोलेविया में थे।
तथ्य यह भी बताते हैं कि हालिया सप्ताहों में बोलेविया में गुरिल्लाओं की जोरदार सरगर्मी विद्यमान थीं, जिसके पीछे भारी संख्या में फौजी टुकड़ियां संघर्षरत थीं। इन टुकड़ियों में वे इकाइयां खास तौर पर शामिल थीं जिनको साम्राज्यवादियों ने गुरिल्लाओं के विरुध्द तैयार किया था। ये कुछ तथ्य हैं, जिनको चे की मृत्यु संबंधी सूचनाओं पर विचार करते समय विश्लेषित करना चाहिए।
हमारी अपनी राय में डायरी सबसे अधिक प्रमाणिक तथ्य है और वहां से प्राप्त चित्रों की प्रामाणिकता भी समान ही है। हमारे नजरिए से यह बिलकुल ही असंभाव्य है कि इन सारे तथ्यों को कृत्रिम रूप से गढ़ा गया हो या इनके साथ तकनीकी छेड़छाड़ की गई हो। सभी तथ्यों का विश्लेषण, सभी खबरें, सभी पहलू, डायरी, प्राप्त सूचनाएं, सूचनाओं (खबरों) के स्रोत और तथ्यों की एक विस्तृत शृंखला देखने के बाद हमारा निष्कर्ष है कि इन सबूतों को गढ़ना बिलकुल भी असंभाव्य है।
लेकिन थोड़ी और गहराई से छानबीन करें। बोलेवियाई सत्ता में भी कई अंतर्विराध विद्यमान हैं। कई प्रतिस्पर्ध्दी आमने-सामने हैं। ढेरों समस्याएं विद्यमान हैं। और ऐसी स्थिति में यह बिलकुल भी असंभाव्य है कि उक्त सत्ता और वहां विद्यमान विभिन्न गुटों के बीच इस झूठ पर आम सहमति या आम समझौता हो पाए। वे वैसे भी जारी की गई खबरों के माध्यम से, घटनाक्रम की जानकारी के विषय में, मारे गए गुरिल्लाओं के शवों को न प्रदर्शित करके, अब तक बहुत झूठ बोल चुके हैं। प्रतिक्रियावादी शासन तंत्र की आदत ही होती है कि वह झूठी खबरें
दे, और यह कोई बड़ी बात नहीं है। यह एक ऐसी बात है, जिस पर अब हमें विश्वास कर लेना चाहिए।
दूसरे, तकनीकी दृष्टि से (इस झूठ को गढ़ने के लिए) उन्हें जिन स्रोतों और अनुभव की आवश्यकता होती है, वह उनके पास नहीं हैं।
तीसरे, और वह बहुत ही स्वाभाविक प्रश्न है कि वह सत्ता तंत्र इस तरह की खबरों को क्यों गढ़ेगा? इस तरह की खबरों को गढ़कर उसे क्या हासिल हो जाने वाला है, जबकि दस, पंद्रह या बीस दिनों में यह सचाई सामने ही जाने वाली है?
इसके बजाए प्रतीत यह हो रहा है कि वे यह सब बहुत सावधानीपूर्वक कर रहे थे। केवल दस या बारह दिनों पूर्व ही उन्होंने इसी तरह की रिपोर्ट जारी की थी। लेकिन कुछ ही घंटों के बाद अगले दिन उन्होंने इससे तीव्रतापूर्वक इनकार किया। लेकिन यह ताजी खबर शीघ्रतापूर्वक फैल गई, और जिसे परिमार्जित करने के लिए उन लोगों ने वर्गीकृत बयान जारी किए। पहली अफवाह कई पत्रकारों की ओर से आई। इसके अलावा वे यह कोशिश कर रहे थे कि कुछ सबूतों को पाया जाए, तब वे बिना किसी डर के या गलती के आधिकारिक बयान जारी कर सकें। हमने इन सारी बातों पर गौर किया है।
हमको प्राप्त खबरों को विश्लेषित करने का कुछ अनुभव है। हम सभी रोज ढेरों 'डिस्पैचों' को पढ़ते हैं, और हमें लगभग हर सरकार की शैली और चरित्र को आकलित करने का कुछ अनुभव प्राप्त है, उन व्यक्तियों का भी जो सत्ता में हैं। इन सभी चीजों और तथ्यों ने हमें खबर की सत्यता आकलित करने में मदद दी है। वे बहुत सावधानीपूर्वक कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि बोलेवियाई सरकार का व्यवहार अल्पबुध्दि और मूर्खतापूर्ण है। लेकिन इस पर भी केवल जड़ बुध्दि नहीं, बल्कि वर्तमान में मौजूद सभी जगहों की सरकारों में सबसे मूर्ख सरकार ही ऐसा करने की सोच सकती है और इसे प्रमाणित करने का प्रयास करेगी। ऐसा मानना बिलकुल ही असंवेदनशीलता ही होगी।
इसमें भी कोई शक नहीं कि बोलेविया में गुरिल्ला आंदोलन एक ऐसे दौर में था, जिस पर गुरिल्लाओं का अस्तित्व निर्भर करता था। आधारभूत रूप से उनकी क्षमताओं पर और उनके संसाधनों पर भी निर्भर करता था। यह कोई ऐसा अवसर नहीं था कि जहां संकट अवश्यंभावी ही था। ऐसी स्थिति में सरकार के झूठ ने आठ, दस दिन या एक सप्ताह ले लिया, ऐसी बात भी नहीं थी।
गुरिल्ला इस अवधि मेंइस अवधि के विषय में हम जानते हैं, आधारभूत रूप से अपनी निजी शक्तियों पर निर्भर थे। और गुरिल्ला लड़ाकों ने जब इन खबरों
को सुना, तो वे हंसे। तात्पर्य यह कि ये खबरें गुरिल्लाओं पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाईं। इसके विपरीत वही लोग प्रभावित हुए, तुरंत प्रभावित हुए। सच मायनों में तो इस तरह की सरकारों के विश्वास और प्रतिष्ठा पर ही गंभीर आंच आई।
मैंने स्वयं से ही तर्क किया कि इस तरह की खबरों को गढ़ना क्या कोई तार्किकता रखता है। मैंने यह मानने का प्रयास किया कि हो सकता है कि इस तरह की खबरों को गढ़ने के पीछे कोई उद्देश्य हो, लेकिन कोई उद्देश्य नहीं दिखलाई पड़ता है।
डायरी में दर्ज विवरण, डायरी में दर्ज भूस्थिति, फोटोग्राफ जो वहां की सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए थे, इन सभी के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकालने में सक्षम हो पाए कि प्राप्त खबरें सच हैं।
तार्किक रूप से यह किसी भी मनुष्य की स्वाभाविक प्रकृति होती है कि वह जिस व्यक्ति से गहराई से प्रेम करता है या उससे लगाव महसूस करता है, उसके विषय में बुरी खबरों को स्वीकार नहीं कर पाता है। सर्वोच्च स्तर पर यह हमारे साथ पहली बार हो रहा है। लोगों के मस्तिष्क में, विश्व के सारे क्रांतिकारियों के मस्तिष्क में भी, यही प्रवृत्ति विद्यमान है कि इस तरह की आने वाली खबरों को अस्वीकृत कर दे।
इसके अलावा सरकार की निम्नतम विश्वसनीयता, प्रतिष्ठा की अत्यधिक कमी ने खबरों की सत्यता के विषय में संदेह उत्पन्न किया। भावुकता की सर्वोच्चता ने भी इन खबरों को अस्वीकृत करने में योगदान दिया।
यह बोलेवियाई सरकार इतनी अविश्वसनीय है कि यांकी साम्राज्यवादियों के साथ इसकी सभी सहयोगी सरकारों ने खबरों के आने के बाद कहा कि वे इन खबरों के बारे में आश्वस्त नहीं हैं या वे इन पर विश्वास नहीं कर पा रही हैं, कहकर एक सावधानी भरा रुख अख्तियार किया। और बाद में स्वाभाविक रूप से उन लोगों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों को अपनाना शुरू किया, वह भी तब जब उनके हाथ में इस तरह के कुछ सबूत आए जिससे वे खबरों की सत्यता के बारे में सुनिश्चित हो सकें। लेकिन ध्यान देने की बात है कि जब तक उनके हाथ सबूत नहीं आए, तब तक उन्होंने न तो बोलेविया से आने वाली खबरों पर विश्वास ही किया, न ही इस विषय में उन्होंने कुछ कहा ही।
लेकिन विवाद और संशय तो अभी भी विद्यमान हैखास तौर परइसका रिश्ता मृत्यु की तथ्यात्मकता से नहीं, बल्कि इस बात पर है कि उनकी मृत्यु कैसे हुई, उनकी मृत्यु के साथ जुड़ा घटनाक्रम क्या है।
हममें से जो लोग अर्नेस्टो चे ग्वेरा को अच्छी तरह से जानते हैं, और जानते हैं
कि मैंने अर्नेस्टो चे ग्वेरा के बारे में भूतकाल का इस्तेमाल क्यों नहीं किया, इसलिए क्योंकि उसके साथ भूतकाल का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। वह बहुत अनुभवी, चरित्रवान और धैर्यवान व्यक्ति थे। यद्यपि यह कल्पना करना बहुत ही कठिन है कि उनके जैसे कद, प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति को गुरिल्लाओं के दल और सैन्य टुकड़ी के बीच संघर्ष में मार दिया जाए। यह जितना असंभव दिखता है उतना ही अतार्किक भी है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। हम लोग जितना उन्हें जानते हैं, उतने ही परिचय में वह असाधारण साहस के धनी साबित हुए थे। कितना भी बड़ा खतरा सामने हो, उसका साहस के साथ मुकाबला करने के लिए उध्दत, किसी भी कठिनाई या खतरनाक स्थिति में बड़े से बड़ा खतरनाक या कठिनतम कार्य करने के लिए उध्दत। हमारे संघर्ष के दौरान उन्होंने अपने इन गुणों को बखूबी प्रदर्शित किया था। इसी तरह की शौर्यता के साथ उन्होंने सिएरा मस्चेरा और लास विलास में कार्य किया था।
कई बार तो उनकी सुरक्षा के लिए हमें कई तरह के कदम उठाने पड़ते थे। एक से अधिक बार ऐसा हुआ कि वह जो कार्रवाई करना चाहते थे, उनकी सुरक्षा के कारणों से हम यह कार्रवाई से असहमत होते थे। लेकिन बाद में उनकी संघर्ष क्षमता की तारीफ करनी पड़ती थी। क्रांति के दौरान उन्होंने ऐसे ही अनेक साहसिक कारनामों को अंजाम दिया था, और ये सारे मिशन गहरे रणनीतिक महत्व के थे। लेकिन इन सारी स्थितियों में हमारा पहला उद्देश्य यही होता था कि जहां क्षति होने की संभावना हो, या जो मिशन कम रणनीतिक महत्व के हों, हम उन्हें वहां खतरा उठाने से रोकें। यही वे थोड़े-बहुत क्षण हैं, जिनके बीच उनको एक हमलावर दस्ते का कमांडर बनाया गया और नेतृत्व सौंपा गया। लास विल्लास प्रांत को कब्जे में लेने के जैसा असंभाव्य कार्य उन्होंने असाधारण शौर्य के साथ किया। जो उनको जानते हैं, वे जानते हैं कि उन्होंने कितने असाधारण शौर्य के कार्यों को अंजाम दिया।
हमें कहना चाहिए कि हम उनकी ऊर्जा से सदैव चिंतित रहते थे, और अपनी इसी इच्छाशक्ति और संकल्प से वे मृत्यु के क्षणों को भी पीछे धकेलने में सक्षम रहे। कोई भी इस बात पर निश्चिंत नहीं हो सकता कि उन्होंने सावधानी के अल्पतम उपायों को भी स्वीकार किया हो। कई बार तो वे खोजी दल (स्काउटिंग पार्टिज) के मुखिया के तौर पर भी आगे बढ़ गए।
वहीं दूसरी ओर, वे अपने हाथ में लिए गए मिशन की महत्ता के विषय में भी अत्यधिकसर्वोच्च स्तर पर सावधान रहते थे। इसी कारण यह संभव था कि वे जिस मिशन को अपने हाथों में लेते थे, उसे पूरा ही करते थे। यह मानीयता का ऐसा गुण है जिसके समानांतर शायद ही कोई उदाहरण हो।
हम उन्हें किसी अग्रदूत की जगह या किसी अन्य रूप के बजाए, एक निर्माता के रूप में देखना चाहते हैं, लोगों की महान विजयों के निर्माता के रूप में। परिस्थितियों के प्रति प्रतिक्रिया के कारण दुर्भाग्यवश ऐसे मिजाज, व्यक्तित्व और चरित्र के व्यक्ति को लोग विजयों के निर्माता के बजाए अग्रदूत बनाना ज्यादा पसंद करते हैं। वैसे अग्रदूत स्वभावत: विजयों का निर्माता भी होता है, विजयों का महान निर्माता!
चे इस सबसे बहुत अधिक व्यग्र होंगे। उनके प्रति अत्यधिक लगाव रखने वाले हम सभी व्यक्तियों के लिए यह समझना बहुत कठिन है कि स्वयं से त्यागपत्र देकर वे एक अग्रदूत बने। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसकी हम सब पर अमिट छाप है, और बेहिचक यह एक बहुत महान उदाहरण है। उनके जैसे एक चरित्र, एक मस्तिष्क और पूर्ण मानवीय व्यक्तित्व के भौतिक रूप से नष्ट (मृत्यु) होने से कोई भी व्यक्ति दु:खी होगा। लेकिन जैसा मैंने पहले कहा कि किसी को इस बात पर विस्मय नहीं होना चाहिए कि उस गुरिल्ला संघर्ष में शहीद होने वालों में सबसे पहले वही होंगे। यह अपने आप में एक चमत्कार की भांति भले ही प्रतीत हो, लेकिन यदि सचाई में इसके विपरीत कुछ भी हुआ होता तो वह जरूर विस्मयजनक होता। उन्होंने अनेक बार खतरों का सामना किया। कई बार उन परिस्थितियों में भी जब संघर्ष में बिलकुल गणितीय नियम लागू होते हैं। यह ऐसा कुछ नहीं था, जिसके बारे में हम सोचते हों कि ऐसा कभी नहीं होगा। हमने इन सभी स्थितियों का सामान्य रूप से परीक्षण किया है।
इसलिए इस अवसर की पृष्ठभूमि क्या है, संघर्ष की कारक परिस्थितियां क्या थीं, जिनमें शत्रुओं को भारी पैमाने पर एकीकृत होने का अवसर मिला, और वे उनके (चे के) विरुध्द भारी संख्या में फौजों को तैनात कर सकें?
उदाहरण के लिए यहां, हमारे पास कुछ तथ्य हैं, जो इस स्थिति की पृष्ठभूमि की व्याख्या करने में कुछ मदद कर सकते हैं। हम उन प्रश्नों का कोई श्रेणीबध्द जवाब नहीं दे सकते हैं कि कब किसके द्वारा दी गई सूचना पर निर्णय कर सकते हैं कि हम कौन सी सूचनाओं को एकत्र करने, चयन करने और उनका परीक्षण करने में सक्षम हुए। सही मायनों में यह प्राप्त खबरों और डिस्पैचों के समुद्र से चयन करना था, और हम उसमें सफल हुए। उदाहरण के लिए 27 अक्टूबर का डिस्पैच यही है :
एक उच्च स्तरीय सैन्य सूत्र ने आज इस बात की पुष्टि की कि बोलेवियाई सेना पूर्णरूप से सहमत है कि उसने अर्जेंटीना-क्यूबाई क्रांतिकारी 'चे' ग्वेरा को यहां से 128 किलोमाटर दूर एक जंगल में घेर लिया है।
स्रोत ने इस विषय में और अधिक विवरण देने से इनकार कर दिया। लेकिन उन्होंने आज शाम एसोशिएट प्रेस के सामने यह रहस्योद्धाटन किया था कि पिछले कुछ दिनों से घने जंगलों में फौजें एक घातक और महत्वपूर्ण संघर्ष में मुब्लता हैं।
जबकि जंगल में अभियान चलाने में सक्षम यंत्रों से लैस दूसरी 800 टुकड़ियां भी इसी अभियान के लिए सांताक्रूज शहर से आगे बढ़ गई हैं।
इसी शहर में रीगिस डेब्रेए पर मुकदमा चलाया गया था, अब यह शहर सेना की चौथी बटालियन का मुख्यालय है, वहीं सांताक्रूज अब आठवीं बटालियन का मुख्यालय है।
सैन्य टुकड़ियों का एक दस्ता कामेरी से बुधवार को गया था, और एक दस्ते ने इस जगह को पिछली रात को छोड़ा। एक अन्य टुकड़ी इस दोपहर को रवाना होने वाली है।
विश्वसनीय सैन्य सूत्रों के मुताबिक ग्वेरा की खोज में 1,500 से ज्यादा की टुकड़ियां भाग ले रही हैं।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...