मंगलवार, 15 मार्च 2011

विकीलीक और अमेरिकी साम्राज्यवाद- 5वीं और समापन किश्त-


विकीलीक के प्रकाशन के बाद एक बहस हो रही है कि क्या विकीलीक का प्रकाशन पत्रकारिता है ? पहले हम देखें कि विकीलीक क्या कहता है  "On Sunday 28th November 2010, Wikileaks began publishing 251,287 leaked United States embassy cables, the largest set of confidential documents ever to be released into the public domain. The documents will give people around the world an unprecedented insight into the US Government's foreign activities." (Wikileaks homepage)
“WikiLeaks has released more classified intelligence documents than the rest of the world press combined.” (Wikileaks homepage)
“With its anonymous drop box, WikiLeaks provides an avenue for every government official, every bureaucrat, and every corporate worker, who becomes privy to damning information that their institution wants to hide but the public needs to know. What conscience cannot contain, and institutional secrecy unjustly conceals, WikiLeaks can broadcast to the world.” (Wikipedia homepage)

मेरे ख्याल में इसमें संदेह नहीं होना चाहिए कि विकीलीक ने दस्तावेज जारी किए हैं। कोई खोजी प्रेस रिपोर्ट जारी नहीं की है। विकीलीक के दस्तावेज का मामला ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के दायरे में आता है। जैसे किसी पत्रकार का लेखन आता है। विकीलीक की घोषणा के साथ हमें देखना होगा कि क्या दस्तावेजों को सीधे पत्रकारिता कह सकते हैं ? जी नहीं।
    ये दस्तावेज पत्रकारिता का कच्चा माल हैं। कोई पत्रकार चाहे तो इनके आधार पर प्रेस के लिए लिख सकता है। पत्रकारों के लिए ये दस्तावेज प्रमाण हैं इसीलिए वे इन दस्तावेजों के प्रकाशन की हिमायत कर रहे हैं। दस्तावेज स्वयं में पत्रकारिता नहीं हैं। वे तो दस्तावेज हैं। इन दस्तावेजों में से सूचनाओं को छांटना,बीनना और फिर समाचार विश्लेषण के रूप में पेश करना पत्रकारिता है। लेकिन सीधे दस्तावेज छापना पत्रकारिता नहीं है। अधिकांश मीडिया घरानों के विकीलीक के आधार पर लिखवाया है, सीधे दस्तावेज नहीं छापे हैं। विकीलीक वालों ने ये दस्तावेज कैसे हासिल किए यह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि वे प्रामाणिक दस्तावेज के आधार पर खबरें प्रकाशित कर रहे हैं। कुछ लोग कह रहे हैं वे जासूसी करके दस्तावेज लाए हैं. कुछ कह रहे हैं वे घूस देकर दस्तावेज लाए हैं, कुछ आरोप लगा रहे हैं कि विकीलीक ने चोरी करके दस्तावेज हासिल किए हैं। विकीलीक ने दस्तावेज कैसे हासिल किए, यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है। बल्कि दस्तावेज में बतायी बातें सत्य हैं।
     पत्रकारिता का सत्य से रिश्ता होता है। अन्य चीजें उसके लिए गौण हैं। यह भी महत्वपूर्ण नहीं है कि सत्य का किस पर और क्या असर होगा। सत्य महत्वपूर्ण है। सत्य का स्थान राष्ट्रीय हितों.राष्ट्रवाद,सुरक्षा, सेना,मुखबिर,जासूस,राजनयिक,पेंटागन,सेना, सीआईए आदि से ऊँचा होता है। सत्य को पीडित और पीडक के दायरे में बांधकर नहीं रखा जा सकता है। सत्य को आप बंदी बनाकर या वर्गीकृत करके नहीं रख सकते। कारपोरेट मीडिया ने इराक और अफगानिस्तान युद्ध में सूचनाओं की हत्या की। सत्य को मौत के घाट उतारा । उस समय किसी ने हंगामा नहीं किया और जब विकीलीक ने कारपोरेट मीडिया के साजिश और अमेरिकी प्रशासन के साथ मिलीभगत को दस्तावेजों के साथ नंगा किया है तो कारपोरेट मीडिया का एक बड़ा हिस्सा और अमेरिकी प्रशासन के मदांध शासक हल्ला कर रहे हैं कि असांजे को आतंकवादी है। देशद्रोही है। वे मांग कर रहे हैं कि असांजे को किसी तरह जेल में बंद कर दिया जाए।
    विकीलीक के दस्तावेजों ने बड़े मीडिया घरानों के विदेशी संवाददाताओं की तथाकथित सत्यतापूर्ण रिपोर्टिंग को भी असत्य करार दिया है। प्रकारान्तर से यह बताया है कि विदेशी संवाददाता इराक और अफगानिस्तान के मामले में रिपोर्टिंग करते हुए विशुद्ध झूठ बोल रहे हैं।
     विकीलीक ने कारपोरेट मीडिया के इस प्रचार की हवा निकाल दी है कि शीतयुद्ध खत्म हो गया है। ईरान के खिलाफ किस तरह परमाणु अस्त्रों के बहाने हंगामा खड़ा किया जा रहा है, चुनी गई सरकार के खिलाफ किस तरह बाहर से उकसावे और हस्तक्षेप की कार्रवाईयां हो रही हैं। किस तरह आज भी अमेरिका विभिन्न फंडामेंटलिस्ट और उग्रवादी,आतंकी गिरोहों की मदद कर रहा है और विभिन्न देशों में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहा है। दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में कैसे शीतयुद्ध चल रहा है इसके व्यापक विवरण और ब्यौरे विकीलीक ने प्रकाशित किए हैं।
    अमेरिका के विभिन्न राजनयिकों के द्वारा प्राइवेट केबल संवाद किस तरह ईरान के आंतरिक मामलों में अमेरिकी हस्तक्षेप चल रहा है इसकी सूचना देते हैं। इन केबल संवादों से यह भी पता चलता है कि अमेरिका विभिन्न क्षेत्रों में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करके क्षेत्रीय संतुलन को बदलना चाहता है।  
   जनता की राय का मेनीपुलेशन-     
      विकीलीक के बारे में अमेरिका स्थित ‘पेव रिसर्च सेंटर’ के मीडिया सर्वेक्षण पर भी गौर कर लेना समीचीन होगा। 29 नवम्बर2010 से लेकर 5 दिसम्बर 2010 के बीच में मीडिया में प्रकाशित खबरों के सर्वे के आधार पर पेव ने रेखांकित किया है कि 23-29 मार्च 2009 में अमेरिकी मीडिया में ओबामा का कवरेज एक सप्ताह के बीच में सबसे ज्यादा यानी 43 प्रतिशत था। उसके बाद 29 नवम्बर से 5 दिसम्बर की अवधि में प्रकाशित विकीलीक का कवरेज 13 प्रतिशत दर्ज किया गया। जबकि इसी अवधि में अमेरिका के समाचारपत्रों में आर्थिक कवरेज 28 प्रतिशत,सेना में समलैंगिकता का सवाल 5 प्रतिशत,2010 के चुनावों पर 4 प्रतिशत,अफगानिस्तान का कवरेज 3 प्रतिशत रहा।
   पेव के अनुसार विकीलीक की खबर उपरोक्त सप्ताह की दूसरी बड़ी खबर रही और इसने समग्र मीडिया में 16 फीसदी स्थान घेरा। इसमें अखबारों के प्रथम पन्ने की हैडलाइन से कर रेडियो-टीवी की खबरें,टॉक शो आदि सबका स्थान शामिल है। विकीलीक रहस्योदघाटन के बाद अमेरिकी मीडिया विकीलीक की खबरें तीसरी बार पहली पांच खबरों में स्थान बनाए रखने में सफल रही है। इनमें अफगानिस्तान के बारे में सूचनाएं 13 प्रतिशत ( 26 जुलाई 2010 से 1 अगस्त 2020 के बीच) रहीं।
    विकीलीक की 29 नवम्बर से प्रकाशित सामग्री में मीडिया में दो महत्वपूर्ण तत्व उभरे हैं। पहला, अमेरिकी कूटनीति,खासकर विदेश विभाग में काम करने वालों की प्रतिक्रियाएं और उसका अमेरिकी कूटनीति पर असर। दूसरा ,जूलियन असांजे की भूमिका। उसे अमेरिकी शासन के लोगों ने ‘हाइटेक आतंकवादी’ तक कह डाला। उसके सेक्सुअल दुर्व्यवहार पर इंटरपोल की सर्च करा दी गयी। विकीलीक के एक्सपोजर पर न्यूयार्क टाइम्स के कार्यकारी संपादक बिल केल्लर ने कहा कि ‘इस तरह के रहस्योदघाटन की अपनी चुनौतियां हैं।’ इसने व्यापक कवरेज हासिल किया। आरंभ के रहस्योदघाटन से यह बात साफ हो गयी कि अमेरिका अपने गोपनीय दस्तावेजों को सुरक्षित रखने में असफल रहा है। सभी माध्यमों में कवरेज का फोकस यही था कि ये दस्तावेज अमेरिकी विदेशनीति और नेताओं को कितनी क्षति पहुँचा सकते हैं। सीएनएन के टीकाकार डेविड गेर्गन ने कहा ये ‘‘दस्तावेज गंभीर क्षतिकारक हैं। यह कोई घोटाला नहीं है। लेकिन यहां हम देख रहे हैं कि अमेरिकी प्रशासन जनता से झूठ बोल रहा है।’’
 दूसरी ओर यह भी देखा गया कि 60 फीसद से ज्यादा अमेरिकी जनता ने कहा कि विकीलीक के दस्तावेजों का प्रकाशन नुकसानदेह है। पेव ने सर्वे में पाया कि 10 में 6 आदमी कह रहे थे कि इन दस्तावेजों का प्रकाशन नुकसानदेह है। जबकि 31 फीसदी ने कहा कि इससे जनसेवा हुई है। यह सर्वे 2-5 दिसम्बर 2010 को किया गया। रोचक बात यह थी कि पाठकों ने दस्तावेज और मीडिया की भूमिका में अंतर किया और पता चला कि 38प्रतिशत मानते थे कि मीडिया इस मामले को बहुत दूर तक खींचकर ले गया। जबकि 39 प्रतिशत का मानना था कि मीडिया ने संतुलन से काम किया है। मात्र 14 प्रतिशत ने कहा कि मीडिया ने गोपनीय दस्तावेजों को अतिरंजित करके छापा है। अगस्त 2010 में विकीलीक के दस्तावेजों के प्रकाशन के समय आम जनता में 47 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने थोड़ा बहुत सुना है विकीलीक की स्टोरी के बारे में। जबकि 42 फीसदी ने कहा कि इसने जनहित के लक्ष्यों की पूर्ति की है।
    विभिन्न दलों में विकीलीक के प्रभाव को लेकर भिन्न राय थी। मसलन रिपब्लिकन का मानना था कि विकीलीक के प्रकाशन से जनता के हितों का नुकसान ज्यादा हुआ है। यानी 75 फीयदी मानते थे कि  नुकसान किया है जबकि मात्र 2 फीसद मानते थे कि जनहित की सेवा की है। डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्यों में 53 फीसदी मानते थे कि इससे जनहित की क्षति हुई है।जबकि 36 फीसद मानते थे कि जनहित की सेवा की है। जबकि बिना दल के लोगों में 53 फीसदी मानते थे कि जनहित की क्षति हुई है और 36 फीसद मानते थे कि जनहित में इनका प्रकाशन सही है।      
विकीलीक के खुलासे के बाद सीआईए और अमेरिकी दूतावास के अन्तस्संबंधों का पर्दाफाश हुआ है। कायदे से दूतावासों को जासूसी का केन्द्र नहीं बनाया जा सकता और खासकर सीआईए के केन्द्र या एजेंट के रूप में अमेरिकी कूटनीतिज्ञों का सीआईए के लिए काम करना चिंता की बात है।
   विकीलीक के खुलासे की शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका और फ्रांस ने अपने सभी इंटरनेट सर्वरों से इसका संचार रोक दिया था ।अन्य देशों पर भी दबाब डाला गया कि वे प्रसारण बंद कर दें। स्वीडन का सर्वर अभी तक काम कर रहा था लेकिन स्वीडन सरकार पर अमेरिकी दबाब है कि वह अपने सर्वर के जरिए विकीलीक को संचार न करने दे। स्थिति की भयावहता का अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि दुनिया की सभी गुप्तचर संस्थाएं हरकत में आ गयीं। अभी विकीलीक हम तक जो पहुँचा है वह उपासला स्थित सर्वर के माध्यम से पहुँचा है। स्वीडन के सर्वर के जरिए कोई विकीलीक पर पहुँचना चाहता है तो उसे इंकार का सामना करना पड़ रहा है। इंटरनेट अनुरोध को स्वीकार नहीं कर रहा है। चीन के द्वारा बड़े पैमाने पर विकीलीक पर हमले किए गए हैं। 
    विकीलीक केबल का सबसे महत्वपूर्ण अर्थ है कि अमेरिकी प्रशासन,चाहे वहां राष्ट्रपति कोई भी हो ,कभी भी मानवाधिकारों का सम्मान नहीं करता। सर्वसम्मत विश्व कानूनों को नहीं मानता। खासकर 2009 और 2010 में जितने केबल प्रकाशित किए गए हैं उनमें बताया गया है कि कौंसिल ऑफ यूरोप और इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के द्वारा अमेरिका के द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों को किस तरह अमेरिकी प्रशासन और उसके मित्रदेशों ने छिपाने और इन मंचों को प्रभावित करने की कोशिश की थी। मसलन कौंसिल ऑफ यूरोप ने यह सत्य रहस्योदघाटित किया था कि अमेरिका आतंकियों के नाम पर किसी भी व्यक्ति को पकड लेता है और उसे तीसरी दुनिया के किसी भी देश में भेज देता है। वहां उसके ऊपर जांच पड़ताल के नाम से अत्याचार किए जाते हैं। इन देशों में ऐसे लोगों को किसी भी तरह का कानूनी संरक्षण नहीं दिया जाता। कौंसिल ने यह भी रेखांकित किया है कि यूरोपीय देशों का अमेरिका के प्रति नरम रूख है। कौंसिल ने यह भी खुलासा किया है कि सीआईए के यूरोप और अन्य देशों में काले जेलघर हैं। कौंसिल के द्वारा अमेरिका के बारे में किए गए खुलासों पर अमेरिकी प्रशासन कैसे सोचता रहा है इसकी झलक हमें स्ट्रासबर्ग में अमेरिका के कौंसिल जनरल विंसेंट कर्वर के विकीलीक केबल संदेशों के एक्सपोजर से पता चलती है। विकीलीक के मार्च 2009 में “Council of Europe: More Effective Around the Edges than at the Core.” शीर्षक से प्रकाशित केबल में विंसेंट ने लिखा है “The Council of Europe (COE) likes to portray itself as a bastion of democracy, a promoter of human rights, and the last best hope for defending the rule of law in Europe—and beyond. It is an organization with an inferiority complex and, simultaneously, an overambitious agenda. In effect, it is at its best in providing technical assistance to member-states and at its worst in tackling geo-political crises.” , “receives (rightfully, in our view) neither the level of funding nor the attention from member-states that other regional organizations, such as the EU and the OSCE (Organization for Security and Cooperation in Europe) receive.” आगे लिखा - “The ECHR will block the extradition of prisoners to non-COE countries if it believes they would be subject to the death penalty or torture. It has also requested more information on pending British extradition cases to the US where it believes the prisoners might be sentenced in the US to life imprisonment with no possible appeal or automatic judicial review of the life sentence.”
     विकीलीक के खुलासे के बाद से यह स्थिति बनी है कि अमेरिका और दूसरे देशों में उन पत्रकारों,अफसरों ,सैनिकों और राजनयिकों की खोज की जा रही है जो विकीलीक के लिए सूचनाएं जुटाने और मदद के काम में लगे हैं। अमेरिकी प्रशासन परेशान है कि उसे अभी तक विकीलीक के स्थानीय संपर्कों का पता नहीं चला है। विकीलीक की मदद करने वाले अमाजॉन कंपनी और पायपाल ने अमेरिकी दबाब में आकर सबसे पहले अपने हाथ खींचे, उसके बाद कई वित्तीय संस्थाओं ने अपने को विकीलीक से अलग कर लिया।
    पूंजीवादी ताकतों की नयी रणनीति है कारपोरेट अधिनायकवाद की। वे इस रास्ते पर राज्य को भी चलने के लिए बाध्य कर रहे हैं। कारपोरेट अधिनायकवाद का अर्थ है ‘हमारे साथ सहयोग करो वरना मरने को तैयार रहो।’ कारपोरेट अधिनायकवाद से सहयोग किए बिना जो जीना चाहता है उसको वे हाशिए पर डाल देते हैं,विभिन्न किस्म की समस्याओं में घेरकर परेशान करते हैं और अंत में मरने के लिए मजबूर करते हैं। विभिन्न पूंजीवादी देशों में राज्य इसी फार्मूले का अनुसरण कर रहा है और विकीलीक के मामले में भी यही रणनीति अपनायी गयी है।
    अमेरिका ने विकीलीक के हमदर्दों और सहायकों पर हमले तेज कर दिए हैं। कारपोरेट अधिनायकवाद की खूबी है कि वह हमारी इच्छाओं पर शासन करता है। जो उसके खिलाफ प्रतिवाद कर रहे हैं उनको वह उन्हें धीमी गति से आत्महत्या करने या हत्याएं करने के लिए मजबूर करता है। कारपोरेट मीडिया किस तरह भय की सृष्टि करता है उसका आदर्श नमूना है अमेरिका में विकीलीक के रहस्योदघाटन पर किया गया जनमत सर्वेक्षण। 2दिसम्बर 2010 को अमेरिका में यह सर्वे किया गया। इस सर्वेक्षण में 2,000 लोगों से बात की गयी जिसमें से 63 प्रतिशत अमेरिकी मानते हैं कि विकीलीक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। इन लोगों ने अमेरिकी समाचारपत्रों के द्वारा विकीलीक के दस्तावेज प्रकाशित किए जाने का भी विरोध किया है।
    सवाल उठता है अमेरिकी जनता की यह राय कैसे बनी ? असल में विकीलीक के रहस्योदघाटन के बाद से विभिन्न माध्यमो और टीवी पर परिचर्चाओं और टॉक शो में विभिन्न दलों के नेताओं ने विकीलीक विरोधी घृणा का प्रचार किया हैं और धमकाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया है। उन्होंने बार बार एक ही बात पर जोर दिया है कि ‘‘विकीलीक के रहस्योदघाटन के बाद से असंख्य निर्दोष लोगों की जिंदगी के लिए खतरा पैदा हो गया है।’’यह प्रचार वास्तव में मिथ्या है।
     असल में विकीलीक ने बताया है कि अमेरिका का सबसे महत्वपूर्ण माल है युद्ध और हिंसा । अमेरिका सालाना सैंकड़ों विलियन डॉलर सेना पर खर्च करता है। यह अमेरिका के सभी व्यापारिक मुनाफों से ज्यादा बैठता है। उसके सभी राज्य,फेडरल और स्थानीय सरकारी संस्थानों के बजट से भी ज्यादा है। सेना को दीजाने वाली आर्थिक राशि पर अमेरिका में सांसद कभी सवाल नहीं उठाते। अमेरिका की सेना ही उसकी जनसंपर्क अधिकारी है। वही अमेरिका के लिए बाजार और संसाधन मुहैय्या कराती है।
   अमेरिका के मालों और विचारों को हम समृद्धि के मंत्र की तरह ग्रहण करते हैं। विकीलीक के इराक-अफगानिस्तान के जिस सत्य की ओर ध्यान खींचा हैं उसके दो प्रधान पहलू हैं ,पहला पहलू है, इराक-अफगानिस्तान के बारे में कारपोरेट मीडिया और अमेरिकी राजनीतिक दलों का असत्य प्रचार। दूसरा पहलू है, अमेरिकी सेना और राजनयिकों की भूमिका। इन सबकी धुरी है अमेरिका का सैन्य उद्योग।
   अमेरिका को जो लोग विकास के आदर्श मानक के रूप में देखते हैं वे सैन्य उद्योग और अमेरिकी आकांक्षाओं के बीच के अन्तस्संबंध की अनदेखी करते हैं। इस प्रसंग में सीनेटर जे. विलियम फुलब्राइट की किताब ‘ दि पेंटागन प्रौपेगैण्डा मशीन’ में बताए तथ्यों पर गौर कर लेना समीचीन होगा। उन्होंने लिखा है आज अमेरिका में 22,000 बड़े सैन्य ठेकेदार हैं। 100,000 सब-ठेकेदार हैं। अमेरिका के 363 स्थानों और 435 कांग्रेसनल जिलों में सैन्य उत्पादन केन्द्र हैं। अमेरिका के सैन्य उत्पादन केन्द्रों और सैन्य हरकतों को अमेरिकी जनता में अधिकांश समय समर्थन मिला है। इस समूचे अमेरिकी सैन्य उद्योग समूह में लाखों लोगों के हित दांव पर लगे हैं। और वे आम जनता की राय को प्रभावित करते हैं।
     पेंटागन के ताजा आंकड़े बताते हैं कि उसके जनसंपर्क के नेटवर्क में 30 हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं और एसोसिएट प्रेस की खोजी रिपोर्ट पर विश्वास करें तो विगत पांच सालों में सेना ने देश और विदेश में बेशुमार दौलत खर्च की है। अकेले 2009 में ही अमेरिकी सेना ने जनसंपर्क पर होने वाले खर्चे में 63 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है यानी 4.7 बिलियन डॉलर खर्च किया है। इसमें तकरीबन दो बिलियन ड़लर पैसा स्टाफ पर खर्च हुआ। इसके अलावा 1.6 बिलियन डॉलर नए लोगों की भर्ती पर खर्च किया गया। आधा बिलियन डॉलर मनोवैज्ञानिक युद्ध पर खर्च किया गया। जिसके जरिए विदेशी जनता को  निशाना बनाया गया। कुल मिलाकर जनसंपर्क पर 547 मिलियन डॉलर खर्च किया गया। इसका काम था अमेरिका जनता को पेंटागन के लक्ष्यों के अनुकूल ढ़ालना।
  पेंटागन के 2002 के आंतरिक दस्तावेज में जनसंपर्क बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया था। साथ ही यह भी तथ्य सामने आया कि सेना के 75 भू.पू, अफसरों को जनसंपर्क के लिए काम करने के लिए अनुबंधित किया गया और उन्हें टीवी और रेडियो कार्यक्रमों में उतारा गया। साथ ही इन लोगों का काम था अखबारों और पत्रिकाओं के लिए पेंटागन के पक्ष में लिखना।     
    अमेरिकी की आक्रामक विदेश नीति और हस्तक्षेपकारी भूमिका की धुरी यही सैन्य उद्योग है। जितने भी राजनयिक हैं वे इसी उद्योग के लिए जासूसी का काम करते हैं। अमेरिका में सतह पर लोकतंत्र है लेकिन वास्तव अर्थों में अमेरिकी सैन्य अधिकारी जो कहते हैं उसका राजनेता अनुकरण करते हैं। अमेरिका के सभी महत्वपूर्ण फैसले सैन्य उद्योग लेता है लेकिन ऊपर से यह चीज नजर नहीं आती।
    विकीलीक के एक्सपोजर के परे जाकर देखना चाहिए कि आखिरकार राजनयिक जासूसी क्यों कर रहे हैं ? युद्ध क्यों हो रहे हैं ? यहां महत्वपूर्ण यह नहीं है कि किसने क्या कहा ? बल्कि महत्वपूर्ण है सैन्य उद्योग ने क्या किया ? इराक-अफगानिस्तान के दस्तावेज हमें जमीनी हकीकत के एक अंश का अंदाजा देते हैं लेकिन हमें इन दस्तावेजों के परे जाकर पीछे से काम करने वाले सैन्य उद्योग की भूमिका पर विचार करना चाहिए। बिना उसके विकीलीक का एक्सपोजर विचारधारात्मक रूप में समझ में नहीं आएगा।  
    अमेरिकी सेना की नीतियों और आदेशों के अनुसरण का ही परिणाम है कि राजनयिक और अमेरिकी प्रशासन लोकतांत्रिक मूल्यों, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, देशज कानून, विश्व कानून,प्रोटोकोल आदि का खुला उल्लंघन करता रहा है।
    अमेरिका ने अपने शत्रुओं के खिलाफ सेना,भाड़े के सैनिकों और शारीरिक तौर पर सफाया कर देने की नीति का खुले तौर पर पालन किया है। ये सारी चीजें लोकतांत्रिक सरकार की इमेज के अनुकूल नहीं हैं बल्कि सैन्य अधिकारियों की मनोदशा के अनुकूल हैं।
    अमेरिका की विदेशनीति और प्रचार नीति में साझा तत्व है उन्माद का। वे जब भी किसी मसले को उठाते हैं तो उन्मादी की तरह उठते हैं । उन्मादी की तरह प्रचार करते हैं। उन्मादी प्रचार अमेरिकी सैन्य उद्योग का गहना है।
    अमेरिकी जनता में विकीलीक के एक्सपोजर को अधिकांश अमेरिकी जनता ने राष्ट्रीय हितों के खिलाफ माना है। इसका प्रधान कारण क्या है ? असल में अमेरिकी सैन्य उद्योग समूह का भारी प्रचार अभियान सेना के पापों पर पर्दादारी करता रहा है। उल्लेखनीय है सैन्य समूह के प्रचार के निशाने पर सबसे पहले अमेरिकी जनता रहती है। वे मीडिया को पहले अपने अनुकूल बनाते हैं और बाद में उसके जरिए अमेरिकी जनता पर विचारों की वर्षा करते हैं।
      अमेरिकी सेना में कार्यरत सैनिकों को सैन्य उद्योग समूह और पेंटागन ने अपने विचारों का बंदी बनाकर रखता है। अमेरिका में इस समय भू.पू. सैनिकों की संख्या 28 मिलियन से ज्यादा है। यानी अमेरिका की वयस्क आबादी में पांच में से एक आदमी भू.पू. सैनिक है। इन लोगों के दिमागों की धुलाई हो चुकी है और उस पर निरंतर सैन्य विचारों की महत्ता के पेंटागन प्रचार का दबाब रहता है।
    इसके अलावा 3 मिलियन सैनिक हैं जिनकी अहर्निश पेंटागन दिमागी धुलाई करता रहता है। इन लोगों तक सैन्य विभाग के प्रचार के अलावा अन्य कोई प्रचार नहीं पहुँच पाता है। उल्लेखनीय है 1.5 मिलियन सैन्य स्टेशन विदेशों में हैं जहां पर सैनिकों को पेंटागन और सुरक्षा विभाग के अलावा अन्य किसी भी स्रोत से सूचना नहीं मिलती।
   सेना के विभिन्न अंगों के लिए बड़े पैमाने पर रेडियो और टेलीविजन चैनलों की व्यवस्था है। संभवतः यह विश्व में सबसे बड़ी सैन्य सूचना-मनोरंजन व्यवस्था है। अमेरिकी सेना के नेतृत्व में चलने वाले जमीनी 704 रेडियो और 80 टेलीविजन स्टेशन हैं। ये थाईलैंड से लेकर ईरान तक फैले हुए हैं।  इसके अलावा समुद्री बेड़ों में 56 रेडियो और 11 टेलीविजन स्टेशन हैं। रेडियो स्टेशनों से 450,000 रेडियो कार्यक्रमों के ट्रांस्क्रिप्शन और 60 मिलियन फीट लंबी टीवी फिल्में सालाना मुहैय्या करायी जाती हैं।
   चूंकि सेना 35 सालों से भी ज्यादा समय शीतयुद्ध का हिस्सा रही है अतः आज सेना के लोग अपने को राष्ट्रीय राजनीति का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। अमेरिकी सैन्य उद्योग किसी न किसी बहाने युद्ध को प्रधान एजेण्डा बनाए रखता है और शांति का विरोध करता है। अमेरिका को विश्वस्तर पर अलग-थलग डालने के लिए जरूरी है कि युद्ध की बजाय शांति को प्रधान एजेण्डा बनाया जाए। शांति को समाज में स्थापित करने के लिए लोकतंत्र का ईमानदारी के साथ पालन किया जाए। यही विकीलीक का सबक है।  

















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