बुधवार, 9 मार्च 2011

चे ग्वेरा की मौत पर फिदेल कास्त्रो-समापन किश्त

7 अक्टूबर को लिखे चे डायरी के पन्नों के अनुसार : 'आज का दिन अविस्मरणीय है क्योंकि बिना किसी बाधा या परेशानी या संकट के आज गुरिल्ला संघर्ष के 11 महीने पूरे हो गए।' 'बिना किसी संकट के गुरिल्ला संघर्ष के 11 महीने पूरे होना', यह तथ्य गुरिल्ला फौजों की रणनीतिक स्थिति के बारे में बताता है। उनके अनुसार इस दौर में कोई परेशानी नहीं आई। इस विषय पर विचार करना चाहिए कि चे यह मानते थे कि कोई गंभीर परिस्थिति विद्यमान है।
डायरी के अनुसार : 'लगभग 12 बजकर 20 मिनट पर जहां हम लोग रह रहे थे, वहां एक बूढ़ी महिला अपनी बकरियों के साथ दर्रे में आई और उसे बंदी बना लिया गया। उसने हमें सिपाहियों के बारे में कोई संतोषजनक सूचना नहीं दी। उसने सामान्य रूप से यही दोहराया कि वह कुछ नहीं जानती है। और यह कि वह इस क्षेत्र में भटक गई है। उसने हमें केवल सड़कों के बारे में बताया। जिस तरह से उस बूढ़ी महिला ने हम लोगों को कुछ बातें बताईं, उसके अनुसार हम लोग हिग्यूरा से एक लीग (3.5 मील), जेग्यूई से भी एक लीग और पूसरे से 6 लीग की दूरी पर हैं। और एक बजकर बीस मिनट पर....' उन्होंने यहां एक नाम दिया है 'एंसिटो और....बूढ़ी महिला के घर गए। उसकी एक बेटी बिस्तर पर पड़ी (शय्याग्रस्त) थी। उन लोगों ने उसे 50 पैसे दिए और उससे कहा कि वह चुप रहे। लेकिन उन लोगों को थोड़ी सी यह आशंका जरूर हुई कि वह अपने वादे से मुकर जाएगी। ऐसे में हम 17 व्यक्ति चंद्रमा की रोशनी में ही चल पड़े। यह जाना बहुत खतरनाक था। और हम जहां ठहरे थे वहां हमारी उपस्थिति के ढेरों चिह्न छूट गए थे। इधर-उधर कोई घर नहीं था, लेकिन दो पारानोस के बीच के रास्ते पर कुछ आलू जरूर गिर पड़े थे।' पारानोस के बीच यह पंक्ति कहती प्रतीत होती है कि यह कोई वनस्पतियों से भरी दो पहाड़ियां होंगी, '...इसलिए हम उसी दिशा में आगे बढ़ते चले गए।'
कुछ चीजें यहां अच्छी तरह अथवा स्पष्ट रूप में नहीं समझी जा रही हैं। डायरी के अनुसार : 'सेना को यह प्रभावकारी सूचना है कि यहां लगभग 250 क्रांतिकारी उपस्थित हैं।' इस पंक्ति के साथ ही डायरी का यह पृष्ठ खतम होता है।
चे एक ऐसे क्षेत्र के बारे में ठीक-ठीक बता रहे हैं। बिलकुल इसी के समान स्थिति का उन्होंने उस क्षेत्र की पहले व्याख्या की, जिसे उन्होंने रात में पार किया था। उन्होंने इस बात की ओर इशारा किया कि यह घाटी ऊंची चोटियों वाली और वनस्पतियों से ढकी है। उन्होंने जो अंतिम चीज लिखी है, उसमें कहते हैं : 'हममें से 17 लोगों ने चांद की मध्दिम रोशनी में...ऐसी स्थिति में एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर जाना खतरनाक था, और इससे भी खतरनाक कि हमने अपने पीछे कई पदचिह्नों को छोड़ दिया...'हम इन सभी गूढ़ार्थों को छोड़ देते हैं। कभी-कभी अर्थों की क्रमानुसार शब्दों के अर्थों का अंदाजा करना होता है।
डायरी में उसी समान क्षेत्र को इंगित किया गया है, जिसे हमने पहले29 सितंबर के डिस्पैच और 8 अक्टूबर को न्यूयार्क टाइम्स के लेख में इंगित किया है। इसके बाद के भी कई डिस्पैच हैं और उन सभी डिस्पैचों में समान क्षेत्र का विवरण दर्ज है।
29 सितंबर को उन्होंने केवल एक ही घाटी के विषय में चर्चा की थी, जो पहाड़ियों द्वारा विभाजित है। पहाड़ियां वनस्पतियों से ढकी हुई हैं, और उन्हें पार करना बहुत ही मुश्किल है। वे लोग जंगल के रास्ते में होंगे या ऊंची जमीन पर आ गए होंगे। यह एक ऐसी स्थिति थी जहां प्रत्यक्ष हुए (दृष्टव्य हुए) कोई भी गतिविधि करना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभाव्य थी।
गुरिल्ला इस समय इसी क्षेत्र विशेष में थे। यह डायरी की एक इंदराज से भी स्पष्ट होता है। इसी डायरी के 7 अक्टूबर का नोट सूचना देता है कि वे किसी भू-भाग की खोज में थे। चे वहां 16 अन्य आदमियों के साथ थे, क्योंकि वह कहते हैं, 'हमने 17 व्यक्तियों के साथ जगह छोड़ी' और किसी स्थान की तलाश में आगे बढ़े। इसके साथ वह यह भी बताते हैं कि 'हम यहां से एक लीग की, दूसरी जगह से एक लीग की दूरी पर और तीसरी जगह से छह लीग की दूरी पर थे।' तात्पर्य यह है कि वे अपनी वास्तविक स्थिति का आकलन करने का प्रयास कर रहे थे। और जैसे ही अपनी स्थिति का निर्धारण किया, उन्होंने अपने आगे बढ़ने की दिशा तय कर ली।
पहले और बाद की सूचनाओं में स्पष्ट रूप से साम्यता विद्यमान है। इसके अलावा डायरी भी कम-ज्यादा मात्रा में उन परिस्थितियों के बारे में स्पष्ट रूप से बताती है, जो वहां विद्यमान थीं : भेदिए की भूमिका, अपने साथ के लोगों की ठीक-ठीक संख्या, और जहां वे लोग थे उस स्थान का स्पष्ट विवरण।
यह बात बिलकुल स्पष्ट हो गई है कि वे बिलकुल ही नए इलाके में थे। कोई भी गुरिल्ला दस्ता या कोई फौजी टुकड़ी किसी क्षेत्र में तभी जाती है जब उस क्षेत्र के बारे में पूरी सूचना हो, विस्तृत नक्शे आदि हों, यहां तक कि उन स्थानों के चित्र आदि भी हों। लेकिन वे लोग इस नए क्षेत्र में एकाएक गए, या ढंग से कहा जाए तो वे लोग उस क्षेत्र में अलग-थलग पड़ गए थे। वे लोग पहले से ही पहाड़ी क्षेत्र में थे और अब अचानक उन सबको वनस्पतियों से भरे हुए निष्क्रिय जीवन वाले भूभाग का सामना करना पड़ा। साफ अर्थों में गुरिल्ला बल उस क्षेत्र से वंचित हो चुके थे, जो गुरिल्ला युध्द के लिए बेहतरीन थी। ऐसे में गुरिल्लाओं के लिए जरूरी हो गया था कि वे एक ऐसे क्षेत्र में जाएं, जो उनके लिए रणनीतिक रूप से बेहतर और सुरक्षित हो। इसके लिए जरूरी था कि निरंतर चलते रहा जाए। हममें भी ऐसी ही स्थिति का सामना सिएरा मिस्ट्रा में शुरुआती दिनों में करना पड़ा था। ऐसी स्थिति में हम पहले एक खोजी दल को आगे भेजते थे, और पूर्ण रूप में संतुष्ट होने पर आगे बढ़ते थे।
हम बिलकुल नहीं जानते कि वास्तव में वह क्षेत्र किस तरह से अन्य स्थानों से अलग-थलग हो गया था या उस क्षेत्र का किस तरह अन्य स्थानों से संपर्क कट गया था। हमें यह भी नहीं पता कि जिस क्षेत्र में वह लोग पहुंचे, वह क्षेत्र एक घाटी में स्थित था, या वहां घाटियों की एक लंबी शृंखला विद्यमान थी। इसके साथ-साथ वह इलाका कैसा था, जिसे उन लोगों ने पार किया था। यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पूर्वोक्त किस्म के क्षेत्र को एक रात की यात्रा में नहीं पार किया जा सकता। वह भी यह जानते हुए कि शत्रुओं के हौसले बुलंद हैं। ऐसे वक्त पर हमें उस स्थान के विषय में पूर्ण जानकारी रखनी होती है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि दमनकारी फौजों की इस तरह की आशाएं व्यर्थ साबित होती हैं, और अधिकतर ये आशाएं पूरी नहीं होती हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि ऐसी स्थिति में संघर्ष जो भी शक्ल अख्तियार करता, उसके परिणाम के बारे में कोई भी भविष्यवाणी निश्चित तौर पर नहीं की जा सकती। स्पष्ट रूप से वहां भारी पैमाने पर सैन्य टुकड़ियों की आवाजाही थी। और ये फौजी टुकड़ियां उधर की गईं, जिसके विषय में पूर्व में सूचना दी गई थी।
जाहिर तौर पर उस क्षेत्र में भारी पैमाने पर फौजों का आगमन हुआ। फौजें चिह्नित स्थान की ओर ही बढ़ीं। इस क्षेत्र की स्थिति के कारण ही दमनकारी फौजों की आशाओं में बढ़ोतरी हुई, क्योंकि यहां गुरिल्ला दस्तों का दमनकारी फौज से अचानक ही आमना-सामना हुआ। यदि गुरिल्ला बलों और फौजों के बीच अचानक से आमना-सामना हुआ है, तो इस बात की संभावना है कि चे मारे गए होंगे, क्योंकि इस तरह की धूर्तताओं के बारे में मैं पहले ही बता चुका हूं।
यह स्पष्ट है कि न तो गुरिल्लाओं ने और न ही दमनकारी शक्तियों ने पहले आक्रमण किया। यह भी स्पष्ट है कि एक संघर्षपूर्ण स्थिति ने जन्म ले लिया था। और सभी संकेतकों के अनुसार, जब संघर्ष हुआ, चे ने कार्रवाई की। जैसा पहले कहा गया, सभी किस्म के प्राप्त संकेतकों के आधार पर हम आगे की कार्रवाइयों का मूल्यांकन करेंगे। गुरिल्ला उसी भाग में आगे बढ़ते गए या उस स्थान से हटने का प्रयास किया, और कोशिश की कि उस स्थान पर जाया जाए जहां बाकी लड़ाके थे। यह सारी स्थिति चे के चारित्रिक संघर्ष के विषय में बताता है, साथ ही पता यह भी चलता है कि वह पहले से ही घायल थे और बाकी लोगों की स्थिति भी 'व्यक्तिविहीन भूमि' जैसी स्थिति थी। यह भी स्पष्ट है कि जब उनके साथियों ने चे को घायल देखा और पाया कि वे खतरे की स्थिति में हैं, इस तथ्य के बाद ही उन लोगों ने वहां से जाने का निश्चिय किया, क्योंकि अब यह संघर्ष किसी सामान्य परिस्थिति में लड़ जाने वाले गुरिल्ला युध्द से भिन्न स्थिति में पहुंच गया था। यह संघर्ष 4 घंटे चला, और कुछ अन्य लोगों के मुताबिक यह संघर्ष 5 से 6 घंटे चला।
सामान्य तौर पर कोई भी गुरिल्ला दस्ता इस तरह के युध्दों को नहीं लड़ना चाहता, जिसमें शत्रुओं की संख्या ज्यादा हो। यदि शत्रुओं को भी समय दे दिया जाए तो वह हमेशा ही गुरिल्लाओं को घेर लेते हैं। गुरिल्ला यदि इस तरह की असामान्य परिस्थितियों में फंसते हैं, तो ज्यादा से ज्यादा चार, पांच या छह घंटे ही संघर्ष करने में सक्षम होते हैं। कई अन्य कारणों से भी गुरिल्ला दस्तों के पास हथियारों की संख्या के आधार पर भी इतनी ही देर संघर्ष कर सकते हैं। यह एक अन्य मामला है जिसका हमने मूल्यांकन किया और जिसे समझने का प्रयास किया।
जब आप कोई न्यूज डिस्पैच पढ़ते हैं, गुरिल्ला संघर्ष का अनुभव रखने वाले व्यक्ति आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि वास्तव में क्या घटनाक्रम हुआ होगा। वह भी तब जब गुरिल्लाओं का सामना किसी दमनकारी शक्ति के साथ आमने-सामने की स्थिति में होता है। इसमें गलतियां नहीं होतीं, बल्कि सामान्य तौर पर इस तरह के मामले में दमनकारी फौज अपने अग्रभाग के सुरक्षा दस्ते और कई आदमियों को खो देती है। इसमें हथियारों का नुकसान हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। यह गुरिल्लाओं की संख्या और अन्य परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इसी तरह, जब गुरिल्ला शक्तियां किसी दमनकारी फौज पर आक्रमण करती हैं, ऐसे समय पर गुरिल्ला शक्तियों की संख्या कम ही होती है। जाहिर बात है कि इस तरह की स्थिति में आक्रमणकरियों का अधिक नुकसान नहीं होता है। यह युध्द का एक सामान्य नियम है। इस दिए गए उदाहरण में, यदि इस मामले में दोनों ही पक्षों की ओर से आक्रमण नहीं किया गया होता, तो यह मामला साफ होता और वास्तविक लंबी लड़ाई का संकेतक होता। यह संकतेक कुछ अप्रत्याशित घटित होने का भी सूचक है।
तथ्यात्मक रूप से सैन्य सूचनाएं बताती हैं कि इस संघर्ष में कई सारे सैनिक घायल हुए और मारे गए। जबकि गुरिल्लाओं की ओर से घायल होने वालों की संख्या मात्र 10 थी। पहला पक्ष उन्हें 5 ही बताता है, यह अपेक्षाकृत अविश्वसनीय है, लेकिन इससे भी हमारा एक सरोकार जुड़ता है। शुरुआती सूचनाओं से पता चलता है कि घायल होने वालों में चे पहले व्यक्ति थे और वह एक मनुष्यविहीन भूमि (नो मैन्स लैंड) जैसी स्थिति में थे। ये केवल वे परिस्थितियां हैं, जिनके अंतर्गत गुरिल्लाओं ने लंबा संघर्ष किया। अंतिम व्यक्ति तक ने रात घिरने तक संघर्ष किया। यानी ऐसी स्थिति में निर्णायक तथ्य केवल परिस्थितियां हैंकेवल परिस्थितियां! विशेष रूप से इसी पक्ष से हमारा सबसे अधिक सरोकार है। सामान्य मामलों में जब एक या कई समूह आक्रमण में व्यस्त होते हैं, उस समय परिस्थितियों का चरित्र ज्यादा स्पष्ट होता है। लेकिन कोई भी गुरिल्ला दस्ता उन फौजी टुकड़ियों से अपना संघर्ष 5 या 6 घंटे नहीं चलाता है, वह भी तब जबकि शत्रुओं की संख्या ज्यादा हो, उनके पास ज्यादा शस्त्र हों, साथ ही साथ गुरिल्लाओं की संख्या कम हो।
जिस किसी को गुरिल्ला युध्द का अनुभव है, वह जानता है कि इस तरह में एक पक्ष का दूसरे पर आक्रमण नहीं होता। संघर्ष का यह तरीका गुरिल्ला संघर्ष का चरित्र नहीं है। इस मामले में अस्वाभाविक तथ्य यह है कि चे घायल हो गए थे। अपने साथियों में वे वह अति-मानवीय, निर्भीक, प्रयास करने वाले और हर परिस्थितियों में खतरा उठाने वाले व्यक्ति थे। चे इस स्थिति में भी लड़ते रहे और शत्रुओं में से 10 लोगों को क्षति पहुंचाई; यह संख्या तो शत्रुओं के हवाले से ही बताई गई है, यह उससे ज्यादा भी हो सकती है।
तथ्यों का यह हिस्सा वह है, जिसे मैंने पहले उध्दृत किया। और इन्हीं तथ्यों में दर्ज स्थितियों और अन्य चीजों ने हमें परिस्थितियों के बारे में कोई निर्णय लेने में सक्षम किया है।
जैसा कि मैंने पहले कहा कि विवाद इस प्रश्न से उत्पन्न होता है कि बाद में क्या हुआ। प्रश्न यह है कि चे की (संघर्ष के) तुरंत मृत्यु हो गई, या वे घायल रहे और दमनकारी फौज द्वारा कुछ घंटों बाद जीवित अवस्था में पकड़े गए। उन्हें तभी पकड़ना संभव था, जबकि वह बेहोश हों, या अपने जख्मों से पूरी तरह से अक्षम हो गए हों, या उनके पास हथियार न रहे हों और उनके पास कोई रास्ता न बचा हो, जिससे शत्रुओं की कैद में जाने से बचा जा सकता हो। स्थितियां यह स्पष्ट करती हैं कि हथियारों की अनुपस्थिति में चे आत्महत्या करने में भी अक्षम हो गए होंगे। यह एक ऐसा मामला है कि जो चे को अच्छी तरह से जानता है, उसे इस मामले में कोई भ्रम नहीं होगा।
इसके अलावा भी कई बातें हैं। शत्रु स्वयं, शत्रुओं की सेना के अधिकारी स्वयं चे के असाधारण साहस पर एकमत हैं, साथ ही उनके व्यवहार और खतरों का सामना करने की उनकी क्षमता पर भी वे मुग्ध थे। चे के व्यक्तित्व में निहित पूर्वोक्त गुणों से इनकार करने का साहस किसी को नहीं हुआ है। इसके अलावा इस पर विश्वास करना कठिन है कि शत्रुओं ने उनको पकड़ लिया होगा। यद्यपि ऐसा होना असंभाव्य नहीं, विशेषकर जब वे मनुष्यविहीन भूमि (नो मैन्स लैंड) में घायल, चलने-फिरने में अक्षम और संभवत: बेहोशी की स्थिति में हों। तात्पर्य यह कि यह बिलकुल नामुमकिन नहीं कि शत्रुओं ने जब उन्हें पकड़ा हो, वह जीवित हों। और इसी बिंदु पर भ्रमों की एक विस्तृत शृंखला निर्मित होती है और वे अंतर्विरोध सामने आते हैं, जो कि बाद में घटित घटनाक्रम के प्रति हमें एक दृष्टिकोण निर्मित करने में मदद करता है, साथ ही घटनाक्रमों के चरित्र को भी स्पष्ट
करता है। स्वाभाविक रूप से मैं अपने साथ सारे डिस्पैचों को नहीं लाया हूं, कारण साफ था कि वे बहुत अधिक थे। लेकिन बिलकुल ही शुरुआत में, जब एक भी आधिकारिक रिपोर्ट सामने नहीं आई थी, अफवाहें शुरू हो गई थीं। संवाददाताओं द्वारा आकलन किया जा रहा था (या बताया जा रहा था) कि चे की मृत्यु हो गई है, या वे घायल हैं, या उन्हें घायल अवस्था में पकड़ लिया गया है। पहली ही रिपोर्ट में चे को एक घायल कैदी के रूप में बताया गया था।
बाद में आधिकारिक बयान आने शुरू हुए। उदाहरण के लिए, 10 अक्टूबर को एक बेतार डिस्पैच से रिपोर्ट दी गई : आधिकारिक रूप से बोलेवियाई सेना के उच्चाधिकारियों ने इस बात की पूरी तरह से पुष्टि कर दी है कि अर्जेंटीनी-क्यूबाई गुरिल्ला नेता की कल यहां मृत्यु हो गई। दो दिन पूर्व वे गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख जनरल अलफडो ओवेंडो ने सूचना दी है कि चे स्वयं की और अन्य बोलेवियाई गुरिल्लाओं की पहचान बता चुके हैं, जिनको पूरी तरह से खतम कर दिया गया था।
कोई भी व्यक्ति बयान के उस हिस्से पर यकीन नहीं करेगा, जिसमें चे ने पूर्वोक्त किस्म की बात कही है। यहां तक कि हम उनकी अतिशय स्पष्टता और अतुलनीय ईमानदारी से परिचित हैं। हमें कहना चाहिए कि यदि उन परिस्थितियों में वे बोलने में सक्षम होंगे, तब भी उन्होंने शत्रुओं से किसी किस्म की दया की मांग नहीं की होगी। वास्तव में शत्रु जिन परिस्थितियों के बारे में बता रहे हैं, वे यदि इस तरह की बातें नहीं बताएंगे, तो दुनिया के सामने क्रूर शत्रु साबित होंगे।
लेकिन समस्या यह है कि इस सज्जन व्यक्ति ने कहा कि चे की उसी दिन अपने घावों की ताब न लाकर मृत्यु हो गई। यही वह सब है जो उन्हाेंने कहा। उच्चाधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि की है। तब इस क्षेत्र में विद्यमान फौजी डिवीजन के संचालक प्रमुख परिदृश्य में आए। उन्होंने कहा कि 'संघर्ष एल यूरो नामक भूक्षेत्र में हुआ, जहां सैनिकों ने बहादुरी से संघर्ष किया। यह लगभग आमने-सामने का संघर्ष था, यहां तक दोनों पक्षों के बीच की दूरी मात्र 50 मीटर तक थी।'
जेंटेनों ने इसके आगे कहा कि 'ग्वेरा जीवित पकड़े गए। लेकिन उस वक्त से बहुत गंभीर रूप से जख्मी थे।''यह पूछने पर कि ग्वेरा ने पकड़ने वालों को कुछ बताया या कुछ कहा। यहीं पर जेंटेनों की बयान ओवेंडो के बयान से अंतर्विरोध को व्यक्त करता है; क्योंकि उनके अनुसार ग्वेरा के पास कहने के लिए वक्त नहीं था।'
ओवेंडो कहता है कि चे को गंभीर रूप से घायल अवस्था में जीवित पकड़ा गया था। दूसरे अधिकारी भी यही बात दोहराते हैं। लेकिन ओवेंडो कहता है कि चे ने उसे बताया कि वह कौन हैं, और अब वह असफल हो गए हैं। दूसरे अधिकारी बताते हैं कि चे ने कुछ भी नहीं कहा, यहां तक कि एक भी शब्द नहीं।बेहिचक, इस बयान ने कुछ ही समय बाद इन्हीं सज्जन पुरुष ने घोषणा की यहां उनका उनके प्रमुख के बयान के साथ विद्यमान अंतर्विरोध देखें कि हां वे जीवित थे, और ओवेंडो ने जिस सबका दावा किया, वह सब कुछ चे ने कहा। लेकिन दोनों के ही अनुसार चे जीवित थे।
स्वाभाविक रूप से यह दावा करना बहुत हद तक असंवेदनशीलता का ही परिचायक है कि चे ने इस तरह की कोई बात कहीं, क्योंकि इतने यांत्रिक तरीके से वे और कुछ नहीं कह सकते थे। उन्होंने स्वयं ही चे की पूर्णता, उनके साहस और अन्य गुणों को रेखांकित किया है। चे पराक्रमी ढंग से इस तरह ही कुछ कह सकते हैं : 'मेरा नाम यह, वह या कुछ और है।' यह कहने के साथ उनके चरित्र को ध्यान रखना चाहिए। लेकिन उन्होंने क्या कहा होगा और उक्त सज्जन ने क्या सुना?
लेकिन दोनों ही इस बात से सहमत हैं कि चे जीवित थे। और ये बयान तब और महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब हम बाद के घटनाक्रम की पूरी शृंखला को समझने का प्रयास कर रहे हैं। यह तब है जब कहा जा रहा है कि जब चे पकड़े गए, तब वे गंभीर रूप से घायल थे। लेकिन जीवित थे और बाद में उन्हें मार डाला गयाया कि उन्हें गोली मार दी गई। दूसरे शब्दों में उनकी घायलावस्था का कोई खयाल नहीं किया गया, न ही किसी किस्म का कोई उपचार ही उपलब्ध कराया गया। साफ शब्दों में उनके जीवन को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। इसके साथ घटनाक्रमों की पूरी शृंखला प्रमाणित करती है कि वास्तविकता में चे की हत्या करने के लिए क्या-क्या किया गया। इस बात को इसकी रोशनी में देखना चाहिए कि शुरुआती डिस्पैचों से हमेशा इस तरह की सूचनाएं प्राप्त हुईं कि आक्रमणघात-प्रतिघात की कार्रवाई में किस तरह से बोलेवियाई सैनिक घायलावस्था में पकड़े गए और क्रांतिकारियों ने उनकी देखभाल की, और उनके ठीक हो जाने पर उन्हें मुक्त कर दिया। लेकिन आप भाड़े के सैनिकों और सेना से क्या उम्मीद रख सकते हैं? क्या अपेक्षा रख सकते हैं भाड़े की सरकार और उसके अधिकारियों सेकोई भी इस बात का आश्वासन नहीं दे सकता कि चे अपने घावों का मुकाबला (ताव लाने) में सक्षम थे, क्योंकि जाहिरा तौर पर घाव बहुत खतरनाक थे। कोई भी ऐसी स्थिति में नहीं कह सकता कि वे जीवित रहेंगे कि नहीं। लेकिन क्या कोई इससे भी इनकार करेगा कि उनको बचाने के लिए कोई भी छोटा सा प्रयास भी नहीं किया गया। इससे स्पष्ट रूप से जाहिर होता है कि चे की जानबूझकर हत्या की गई है।
इस तरह के सारे अंतर्विरोध कैसे सामने आए? घटनाक्रम के मामले की एक पूरी शृंखला अब सामने स्पष्ट है, क्योंकि युध्द में डाक्टर, अपेक्षाकृत सैनिक घायल हुए, और उन्होंने बयान देना शुरू किया। उदाहरणस्वरूप हमने कल ही यहां एक बेतार संदेश को प्राप्त किया। इसके अनुसार : ग्रांडे से आने वाले शरीरों (शवों?) की देखभाल करने वाले डाक्टरों में से एक डॉ. मार्टिनेज कासो ने यहां साक्षात्कार दिया। उनसे पूछा गया कि क्या कोई भी व्यक्ति शव परीक्षण के दौरान जीवित मिला। चिकित्सक का जवाब था कि 'नहीं। हमने केवल एक सामान्य सा परीक्षण किया। मृत्यु पांच घंटे पहले हो चुकी थी, क्योंकि शव अभी तक गर्म थे।'
इसका मतलब है कि मृत शरीर वाले को ग्रांडे के अस्पताल में 9 अक्टूबर को शाम पांच बजे के करीब लाया गया और मृत्यु उसी दिन दोपहर के करीब हुई।
चिकित्सक का कहना था कि शरीर में गोलियों के लगने के घाव थे। पांच निशान पैरों पर थे, एक गले में और एक अन्य निशान छाती में बाईं ओर था। यह गोली हृदय और फेफड़ों को छेद कर पार कर गई। डाक्टर ने बताया कि 'यह सबसे घातक जख्म था।'
जब मृत शरीर को उनके सामने लाया गया, तो उन्होंने कहा कि प्रतीत होता है कि यह शरीर किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का है। यह राय उस शरीर के पैरों की सही सलामत हालत को देखकर व्यक्त की गई थी। इससे यह संकेत मिलता है कि उस व्यक्ति को अधिक चलने-फिरने की आदत नहीं थी।
इसलिए शरीर चिकित्सक के सुपूर्द कर दिया गया, और उसने खोजबीन करके बताया कि मृत्यु मात्र कुछ घंटे पूर्व ही हुई है। यह राय इसलिए व्यक्त की गई क्योंकि शरीर के अकड़ने के कोई चिह्न नहीं विद्यमान थे। यह तथ्य अभी बरकरार है कि उच्चस्तरीय अधिकारी ओवेंडो, कर्नल जेंटेनों, सभी ने कहा कि उन्होंने चे को जीवित पकड़ा। वह जीवित थे, और जो व्यक्ति दवाओं आदि के विषय में थोड़ी सी भी जानकारी रखता है, सहमत होगा कि यदि हृदय गोलियों से छलनी हो जाए तो व्यक्ति कुछ मिनटों से ज्यादा नहीं जीवित रह सकता। इस तरह से एक अन्य संदेह पुन: जन्म लेता है।
इंटरप्रेस से भेजा गया एक संदेश इस प्रकार है : ला पांज, पिछले रविवार को हुए एक संघर्ष में मारे गए। अर्नेस्टो चे ग्वेरा की मृत्यु के दौरान विद्यमान परिस्थितियों की जांच को लेकर यहां एक नाटकीय मोड़ आ गया है। यह स्थिति बोलेवियन चिकित्सक जोसे मार्टिनेज के शव परीक्षण के बाद आई। सोमवार की दोपहर को शव परीक्षण के बाद चिकित्सक का निर्णय था कि चे की मृत्यु पांच घंटे पहले हुई है।
चिकित्सक की पुष्टि के बाद गुरिल्ला विरोधी बलों की कार्रवाइयों के बीच में उपस्थिति एक प्रतिष्ठित पत्रकार की इस राय का वजन बढ़ा देती है कि ग्वेरा को जीवित पकड़े जाने के बाद दो अन्य गुरिल्लाओं के साथ उनकी हत्या कर दी गई। कई अन्य अधिकारियों ने विद्रोही आंदोलन के इस आधारभूत सिध्दांतकार की इस तरह की मृत्यु पर संदेह व्यक्त किया है।
इसके साथ इस परिदृश्य में एक नई व्याख्या शामिल की जा सकती है। क्योंकि उच्च पदस्थ सैन्य सूत्रों की कुछ गुप्त जानकारियां भी सार्वजनिक हो गई हैं। इस स्रोत्र के अनुसार, चे की मृत्यु एल यूरो में सेना के साथ हुए संघर्ष में लगे घावों के कारण नहीं हुई, बल्कि इस गुरिल्ला नेता की मृत्यु हिंग्यूराल में शाम 1 बजकर 15 मिनट पर हुई, जहां उन्हें संघर्ष का अंत होने से पूर्व लाया गया।
इसी सैन्य सूत्र के अनुसार चे के केवल पैरों पर ही घाव हुए थे। अग्रलिखित एक वाक्य है, जिससे आप आसानी से अर्थ निकाल सकते हैं, क्योंकि इसे विकृत किया गया है। इसके अनुसार, 'केवल एक गोली ने उनकी रायफल को बेकाम कर दिया....।'
इससे प्रतीत होता है कि चे घायल होने के बाद अपना संघर्ष जारी रखे हुए थे। वे तब तक अपनी रायफल से फायरिंग करते रहे जब तक कि उनकी रायफल बेकाम नहीं हो गई। यह संभव है। चे के लिए यह कोई अप्रत्याशित बात नहीं थी कि वे घायल होने के बाद भी अपने शत्रुओं से संघर्षरत रहें। बाद में लड़ाकों ने उनकी नष्ट हो चुकी रायफल को प्राप्त किया।
समाचार संदेश आगे कहता है :
जब एक गोली ने उनकी एम-12 रायफल नष्ट कर दी, जिसे वह एक सब-मशीनगन की तरह प्रयोग करते थे। वह अन्य दो गुरिल्लाओं के साथ बंदी बना लिए गए। वे दोनों गुरिल्ला भी घायल थे। सोमवार को हुई पूछताछ के दौरान चे ने किसी प्रश्न का जवाब नहीं दिया।
हममें से जो लोग चे को अच्छी तरह से जानते हैं, वे जानते हैं कि यदि इस तरह की कोई घटना होती है, तो चे पूर्वोक्त रुख ही अपनाएंगे।
और यह आगे कहता है : 'उन्होंने एक भी प्रश्न का जवाब नहीं दिया। उन्होंने स्वयं को कैद करने वालों की ओर से मुंह फेर लिया।' आगे : 'अन्य दो गुरिल्लाओं को उसी दिन हिंग्यूराल में मार डाला गया।यह समाचार संस्था बताती है कि किस तरह से चे घायल हुए, किस तरह वे घायलावस्था में संघर्ष करते रहे। यह वह बात है जिस पर सभी विश्वास करेंगे।
मेरे पास एक अन्य समाचार संवाद है : डा. जोसे मार्टिनेज कासो ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा कि सबसे घातक घाव उनके हृदय पर किया गया, अन्य घाव पैरों पर थे। इसी डाक्टर ने शव परीक्षण किया था। इतना समाचार संवाद तो एक समान ही है। लेकिन आगे के संवाद में कहना है कि 'मार्टिनेज का बयान चार अन्य गुरिल्लाओं के बारे में यही कहता है।'
आह! यह समाचार संवाद कहता है कि चिकित्सक के अनुसार सैनिकों ने उन्हें बताया कि जब उन लोगों ने ग्वेरा को देखा, तो उसकी ओर बढ़े और उन्हें चोट पहुंचाई।
इसके आगे : 'मार्टिनेज का बयान जाहिर करता है कि अन्य चार गुरिल्लाओं ने भी संघर्ष में भागीदारी की। उन चारों साथियों का कहना था कि उन्होंने भी संघर्ष खतम होने के बाद चे को जीवित देखा था।' इनमें से ताबोड़ा नाम के एक साथी ने बताया कि है कि जब चे को चोट पहुंचाई गई, वह उनके निकट था। साथ ही साथ उसका कहना था कि 'चे संघर्ष के दौरान घायल तो जरूर हुए थे, लेकिन जीवित थे।यह एक महत्वपूर्ण बयान इसलिए है क्योंकि यह पहली मान्यता को पूर्णरूप से पुष्ट करता है और बताता है कि चे को अत्यधिक घायल अवस्था में कैद किया गया था।
आगे रहते हुए और सैनिकों का नेतृत्व करते हुए घायल होना स्वाभाविक ही था। और घायल रहते हुए संघर्ष को जारी रखना चे की चरित्रगत विशेषता थी। उन्हें जीवित अवस्था में तभी बंदी बनाया जा सकता था जब वह अचेत (बेहोश) हों, या उनके हथियार नष्ट हो चुके हों या फिर वे इतने अधिक जख्मी हो चुके हों कि हिलने-डुलने में भी अक्षम हों। चे को प्रश्नांकित करना या यह मानना कि उन्होंने पीठ दिखाई, उनके बारे में बिलकुल विपरीत सोचना है। इस भिन्नता से दूर बंदी बनाने वाले का तिरस्कारयह उनके चारित्रिक गुण में शामिल था। और इसी चारित्रिक गौरव के साथ वह इस रणभूमि में मृत्यु को प्राप्त हुए।
महत्वपूर्ण तथ्य यह नहीं है कि उनकी मृत्यु रणक्षेत्र में हुई या खतरनाक घावों के चलते उनकी मृत्यु बाद में हुई। अपने आप में यह कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है। बल्कि महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वह घातक रूप से घायल हुए और करीब-करीब इन्हीं घातक घावों के कारण उनकी मृत्यु हुई।
लेकिन इसी बिंदु पर एक गहरा अंतर्विरोध जन्म लेता है और टुकड़ों-टुकड़ों में इसकी व्याख्या की जाती है। सवाल आंशिक रूप में यह है कि बाद में उनके शरीर के साथ क्या किया गया।इस मामले में समाचार संवादों की एक पूरी शृंखला ही सामने है।एक समाचार संस्था द्वारा 11 अक्टूबर को भेजा गया संवाद : 'गणराज्य के राष्ट्रपति जनरल रेने बेरिंटोस ने यूनाइटेड प्रेस इंटरनेशनल को बताया कि अर्नेस्टो चे ग्वेरा की अंत्यष्टि इसी रात को बोलेवियन एंडेस के एक गुप्त स्थान पर कर दी गई और उन्हें ला पाज नहीं लाया जाएगा न ही उनको (शव को) अब प्रदर्शित ही किया जाएगा।'
राज्य प्रमुख ने आगे कहा कि 'एक अन्य बेहूदा बात और कहनी है कि यह (चे का) शव अब बोलेविया में ही रहेगा।'
इस बयान से बहुत सी बातें संप्रेषित हो जाती हैं। बोलेविया से प्राप्त संवाद के अनुसार चे ने अपनी डायरी में एक बात दर्ज की है कि बेरिंटोस मूर्ख है। इसलिए दोस्तो, यदि डायरी के इस हिस्से में चे उसे मूर्ख कहते हैं, तो इसका भी एक संदर्भ है।
11 अक्टूबर को दावा किया गया कि मृत शरीर को किसी गुप्त स्थान पर दफनाया गया। वहीं अगले दिन, यानी 12 अक्टूबर को एक अन्य डिस्पैच के अनुसार : वह पत्रकार, जिनका दावा है कि वे चे ग्वेरा का साक्षात्कार ले चुके हैं, उन्होंने बताया कि सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख अलफर्डो ओवेंडो ने उन्हें बताया कि क्यूबाई-अर्जेंटीनी क्रांतिकारी के शरीर की अंतिम क्रियाएं आज की जाएंगी। उनके इस मौकिंफ का सरकारी अधिकारियों द्वारा विरोध किया गए।
विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी का दावा है कि राष्ट्रपति रेने बैरिंटोस आज शाम 5 बजे तक वास्तव में कुछ नहीं जानते थे।
स्रोत के अनुसार, 'हमें बहुत अधिक विस्मय होगा यदि यह बात सच हो। क्योंकि सैन्य शक्तियों द्वारा यह निर्णय बिलकुल आखिरी क्षण पर लिया गया। यहां तक कि इस निर्णय से राष्ट्रपति को भी नहीं परिचित कराया गया था। इन सारी बातों पर विश्वास करना बहुत कठिन है।'प्राप्त होने वाले सभी समाचार संवाद संकेत देते हैं कि चे की अंत्येष्टि की जा चुकी थी। बाद में शरीर को पुन: खोदकर निकाला गया, जिससे उन्होंने एक हाथ या एक उंगली काटी। इस तरह से प्राप्त होने वाले समाचार संवादों में ढेरों अंतर्विरोध विद्यमान हैं और अविश्वसनीयता का घटाटोप है।कोई भी आसानी से कल्पना कर सकता है कि वे इस सबूत को छिपाना चाहते थे कि चे की कैद में हत्या की गई। उन लोगों को आशंका थी कि यदि सभी प्राप्त विवरणों का सावधानीपूर्वक परीक्षण किया जाएगा तो प्रशासन का झूठ खुल जाएगा। लेकिन मेरे खयाल से कुछ ऐसा भी है जिसे और अधिक महत्व देना चाहिए, जो इन सब गैर-परिचित चीजों के पीछे है, और यह बात है कि चे की मृत्यु के बाद भी उन लोगों के मन में उनके प्रति विद्यमान भय। जब चे जीवित थे तब भी वे लोग उनसे भयभीत रहते थे, और वे मृत्यु के बाद भी उनसे भयभीत हैं, शायद ज्यादा भयभीत हैं। सच मायनों में (चे) यह एक विचार है जिसे वे चे को समाप्त करके खतम नहीं कर सकते।
वे सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि इतिहास में उन सबकी भर्त्सना की जाएगी। वे लोग यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि यह भाग्य से भी ज्यादा है कि वे चे को भौतिक रूप से समाप्त कर पाए। इसलिए तार्किक तो यह है कि वे चे की स्मृतियों से भी भयभीत रहेंगे, जहां चे की अंत्येष्टि की गई वे उस स्थान से भी भयभीत रहेंगे। जाहिर बात है कि निकट भविष्य में यह स्थान किसी तर्क से कम नहीं होगा। वे क्रांतिकारी आंदोलन के प्रतीक, स्थान, और जमीन को मिटाना चाहते हैं। सारभूत रूप में वे चे की मृत्यु के बाद ज्यादा भयभीत हैं।
मेरी राय में, उनके व्यवहार का मुख्य उद्देश्य छिपाना नहीं है, न ही उन्होंने आखिरी गोली चलाई। महत्वपूर्ण बात यह है कि वे 'चे' से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। वे डरते हैं कि चे का परिवार उनके मृत शरीर के लिए दावा करेगा, जिसे उन्होंने एक खास स्थान पर दफनाया है। और वहजैसा कि इसे बाद में पुकारेंगेएक तीर्थ, क्रांतिकारियों के लिए एक खास संरक्षित स्थान में तब्दील हो जाएगा, मेरे खयाल से पूर्वोक्त सारी बातों के पीछे असली बात यही है।
संक्षेप में पूर्वोक्त हमारी राय है कि कैसे घटनाक्रम हुआ। हमारा आकलन समाचार सूचनाओं के आधार पर है जिनमें चे की मृत्यु संबंधी सभी बातें अजनबी और परस्पर अंतर्विरोधी थीं।
यह सब बताना हम अपना दायित्व मानते हैं, तथ्यों को सामने रखना चाहते हैं। यह इस तथ्य के बावजूद कि इस मामले में अनिश्चय की स्थिति क्रांतिकारी आंदोलन के लिए उपयोगी होगी। हम मानते हैं कि यह एक नैतिक सवाल है, एक सैध्दांतिक प्रश्न है, लोगों के प्रति हमारा दायित्व है और हर कहीं उपस्थित क्रांतिकारी के प्रति भी हमारा दायित्व है। हमारी राय में अनिश्चितता और संशय की स्थिति का केवल एक ही लाभ होता है कि लोगों में झूठी आशाएं बनी रहती हैं जो कि साम्राज्यवाद ही है।
हम बोलेविया में विद्यमान साम्राज्यवाद की कठपुतलियों के विषय में ही नहीं, बल्कि वे भी, जो साम्राज्यवाद की कठपुतली बनने के लिए आपस में प्रतिस्पर्ध्दी हैं, वे भी चाहते हैं कि हम खबरों पर संशय करें। यह स्पष्ट है कि बोलेविया में विद्यमान साम्राज्यवादी कठपुतली चाहते हैं कि खबरों पर यकीन किया जाए, क्योंकि अग्रमुखी कठपुतली के रूप में वे अपनी यही भूमिका, यही हिस्सा अपने सामने चाहते हैं। लेकिन साम्राज्यवादियों की तरह, जो बहुत चालाक हैं, वहां कोई अंध संशय भी नहीं होना चाहिए कि चे को भौतिक रूप से समाप्त करके वे उनके व्यवहारभावनाओं के प्रभाव को भी खतम कर देंगे, उनके प्रयासों की क्रमिकता को मिटा देंगे, उनकी वीरता के उदाहरण की चमक को कम करने में सफल हो जाएंगे या उनके क्रांतिकारी दृष्टिकोण को खतम कर देंगे। वे चे जैसे उदाहरण को मिटाना चाहते हैं, उसके प्रभाव को खतम करना चाहते हैं और वे लोग यह भ्रमिक आशा, अनिश्चितता और रहस्य को जन्म देकर करना चाहते हैं। वे 5, 10, 15 या 20 वर्ष इसी तरह के रहस्यों के साथ बिताना चाहते हैं, यानी संशय या आशा को अनिश्चितता में रखना चाहते हैं। वास्तव में ऐसी आशा स्वाभाविक होती है, उन सभी के बीच तो और भी, जिनके लिए चे की मृत्यु पीड़ादायक और दुखद है। उन सभी के बीच इस तरह की आशा स्वाभाविक ही है जो चे से सहानूभति रखते थे, उनसे प्रभावित थे, और उन क्रांतिकारियों के बीच जो पूरे विश्व में फैले हुए हैं।
साम्राज्यवाद जानता है कि वह भौतिक रूप से चे से मुक्ति पा चुका है। अब उसकी कोशिश है कि वह इस विश्व को उनकी भावनाविचार से मुक्त कर दे। और वह यह कार्य भ्रम और कल्पनीय आशा को उत्पन्न करके करना चाहता हैएक ऐसी आशा जो कभी नहीं पूरी हो सकती है, और जुआरियों जैसे दावे और कल्पित कथाओं को जन्म देती है कि 'हमने उन्हें यहां देखा' या 'हमने उन्हें वहां देखा'
संबंधित चीजों के साथ जुड़ी हुई गढ़ी कहानी बाद में गलत साबित हो सकती है। हमें इसकी चिंता नहीं है। यहां तो काफी लंबे समय से सच्ची-झूठी व्याख्याएं, ढेरों बयानों द्वारा मिथ्यापवादों को फैलाया जा रहा है। इन सच्ची-झूठी व्याख्याओं, मिथ्यापवादों के विषय में हमें बिलकुल भी चिंता नहीं है। हमें तथ्य पता है, सच हमारे सामने है, भविष्य के लिए अच्छी-बुरी आशा संजोना मिथ्या बात साबित होगी और इससे हमारा कोई सरोकार नहीं है।
लेकिन इस विद्यमान संभावना से हमारा गहरा रिश्ता है कि भविष्य में अन्य तरह की झूठी आशाओं का जन्म हो सकता, जिसमें विद्यमान अंतर्विरोधों का कोई स्पष्टीकरण न हो। और इस तरह की झूठी आशाएंकई वर्षों तक और गहराई तक विद्यमान रहस्यों के बीचइतिहास के एक असाधारण उदाहरण के प्रभाव को कमजोर कर सकती हैं। वह उदाहरण जो इतिहास में क्रांतिकारी सिध्दांतों के प्रति प्रतिबध्दता, संघनित विचार, साहस, अद्वितीयता और नि:स्वार्स्थता का अद्वितीय उदाहरण है।
सामने आए तथ्य साम्राज्यवादियों के उन्माद को ठंडा कर देंगे, जिसमें उनका मानना है कि चे की मृत्यु से क्रांतिकारी संघर्ष की धार कम हो जाएगी। साम्राज्यवादी भी इस ताकत को जानते हैं, विशाल ताकत, अविश्वसनीय ताकत, क्रांतिकारी संघर्ष की ताकत, जो कि एक उदाहरण है। वे जानते हैं कि किसी भी व्यक्ति को भौतिक रूप से खतम किया जा सकता है, लेकिन चे जैसे अद्वितीय उदाहरण को किसी तरह से नहीं उन्मूलित किया जा सकता है! वे इस विषय में बहुत ही समझदारी के साथ संबध्द हैं।
सभी विचारधाराओं के समाचारपत्र और विचारधाराओं से संबध्द व्यक्ति वैश्विक स्तर पर चे के गुणों को स्वीकार कर रहे हैं। इन सारे व्यक्त दृष्टिकोणों के बीच केवल एक ही अपवाद है, जो बदमाशी के साथ बेहूदी राय व्यक्त की गई है। चे के जीवन के गुणात्मक पहलू उनके सबसे बड़े विचारधारात्मक शत्रुओं को प्रभावित करने में सक्षम है, क्योंकि वे उनके लिए भी प्रशंसनीय थे। यह एक अद्वितीय उदाहरण है कि किस तरह एक व्यक्ति को अपने शत्रुओं के बीच स्वीकृति और आदर प्राप्त होता है, उसकी विचारधारा को समर्थन प्राप्त होता है। इसी कारण चे को सर्वसम्मति से आदर और उनके विचारों के प्रति सम्मान प्राप्त होता है। इसके बाद अच्छे से समझा जा सकता है कि साम्राज्यवादी चे से क्यों डरते हैं, और सही मायनों में उन्हें डरना भी चाहिए।
राजनीतिक हस्तियों के साथ अनेक लोगों का मानना है कि चे की मृत्यु के समाचार के प्रभाव से पूरा यूरोप स्तब्ध है, क्योंकि वहां भी चे के प्रति जबरदस्त लगाव था। सही मायनों में यह हमारे समय की वास्तविकताओं के प्रति जागरूकता का मामला है।
हम ईमानदारी पर विश्वास करते हैं, और इस राय पर सहमत हैं कि सभी अंतर्विरोधों और सुविधाजनक रास्तों पर खड़े होने की अपेक्षा ईमानदारी को बताना हमारी जिम्मेदारी है। हमें अपनी राय, हमारी सर्वोच्च निश्चयता और प्राप्त समाचारों के हमारे विश्लेषण को सभी क्रांतिकारियों को बताना चाहिए।
वैसे यह उम्मीद है कि तथ्यों पर कुछ क्रांतिकारी सहमत नहीं थे, या उन्हें प्राप्त समाचारों पर संशय था और इसलिए उन्होंने स्वयं को किसी भी प्रतिक्रिया से पृथक कर लिया। किसी भी क्रांतिकारी नेकिसी भी किस्म की आशातीत आशाइस तरह की खबरों को स्वीकार नहीं कर पाया। हम जानते हैं कि विश्व के क्रांतिकारियों का क्यूबाई क्रांतिकारियों के शब्दों पर अटूट विश्वास होता है। इस विश्वास में पुष्टि के लिए, क्रांति के प्रति सर्वोच्च ईमानदारी के प्रति विश्वास व्यक्त करने के लिए हम यहां कई बार आ चुके हैं। इस बात का कोई मतलब नहीं कि हम कितने कटु, कितने तिक्त अवसरों पर आए हैं। उन क्षणों में भी जिनके बारे में हम बात कर रहे हैं, गहरे संबंधियों के संशयों के बीच हम अपनी इस जिम्मेदारी को पूरा करने में पीछे नहीं हट सकते हैं।
इसके अलावा प्रश्न है कि झूठी आशाएं बनाए रखने से स्थिति किस तरह से क्रांतिकारियों के लिए लाभप्रद होगी? इससे क्या प्राप्त होगा? क्या क्रांतिकारी वह व्यक्ति होते नहीं हैं जो स्वयं को किसी भी संभाव्य परिस्थिति में रखते हैं, जीवन के लिए सभी किस्म के सुख-दु:ख के लिए, यहां तक कि सभी किस्म के आघातों के लिए भी? क्या क्रांति और क्रांतिकारी व्यक्तियों के इतिहास को भीषण आघातों के बिना पूरा कर सकते हैं? क्या यह सच नहीं है कि सच्चे क्रांतिकारी किसी किस्म के आघात को सहने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली होते हैं, इन प्रत्याघातों के लिए, वह भी बिना हौसला खोए? क्या क्रांतिकारी उन व्यक्तियों में नहीं होते, जिनके भौतिक रूप से समाप्त हो जाने के बाद अपने कार्यों की गुणवत्ता और सिध्दांत के रूप में जीवित रहते हैं? क्या क्रांतिकारी दुनिया के पहले व्यक्ति नहीं हैं, जिन्होंने मानव के भौतिक अस्तित्व की क्षणभंगुरता को सबसे पहले चिह्नित नहीं किया था और बताया कि किस तरह मानवीयता के विचार, आचार और उदाहरण दीर्घजीवित होते हैं? इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि किस तरह इतिहास में सब लोग उदाहरणों से प्रेरणा पाते रहे हैं।
यही वह रास्ता है, जिस पर हमें चलना चाहिए। कठिनतम आघातों, सर्वोच्च कठिनाइयों के बीच स्वतंत्रता के लिए हुई हमारी क्रांति के साथ मार्ते और मैकियो की मृत्यु संबध्द है। इस तरह के प्रत्याघातों का संबंध अनेक क्रांतिकारी आंदोलनों के साथ रहा है, और क्रांतिकारी आंदोलन हमेशा इस तरह के आघातों-प्रत्याघातों के बाहर निकल पाने में सफल रहे, इस बात का कोई मतलब ही नहीं कि कठिनाइयां कितनी कठोर और जटिल थीं।
इस बात से कौन इनकार करेगा कि चे की मृत्यु क्रांतिकारी आंदोलन के लिए आघात नहीं है। लेकिन क्यों लंबे समय तक उनका उदाहरण, उनकी प्रेरणा और उनकी विचारात्मक उपस्थिति विद्यमान नहीं रह पाएगी, जबकि इस उदाहरण ने प्रतिक्रियावादियों के मन में खौफ पैदा कर दिया है? यह हमारे लिए एक अग्निबध्द आघात है, एक कठिनतम आघात। लेकिन हम निश्चिंत हैं कि उस व्यक्ति की मान्यताओं के प्रति जो मानता है कि भौतिक अस्तित्व की अपेक्षा उसका आचरण ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। यह एक मात्र तरीका है जिसके माध्यम से यह समझ सकते हैं कि किस तरह चे की सर्वोच्च अवधारणा में अपने व्यक्ति के कार्यों के साथ खतरों को संबध्द कर रखा था।
हमें न तो समय गंवाना चाहिए न ही हमारी विचारधारा और हमारी क्रांति के शत्रुओं को अवसर ही देना चाहिए कि वे हमें विचारधारात्मक रूप से रक्षात्मक स्थिति में ला दें या क्रांतिकारी आंदोलन के विशृंखलन की कल्पना करके मनोवैज्ञानिक बढ़त प्राप्त कर लें। हम सभी को सचाई को आधार बनाकर और सत्य को स्वीकार करने के साथ चे के उदाहरण को और शक्ति संपन्न करके क्रांतिकारी आंदोलन को आगे ले जाना चाहिए, उसे और अधिक सुसंगत, सुगठित और अधिक निर्णायक बनाना चाहिए।
मैं इस कठिनतम कार्य को कर चुका हूं। इसके अलावा यह बताना जरूरी है कि यह कोई सर्वांगपूर्ण विश्लेषण नहीं है, बल्कि इस विश्लेषण का आशय यह है कि सभी चीजों का मूल्यांकनविश्लेषण करे, सर्वोच्च रूप में सभी चीजों का। हम क्रांति के सभी नेता, जो चे को बहुत अधिक गहराईआत्मीयता से जानते थे, हम सभी सर्वसम्मति से बिना किसी संशय के उस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं, जिसे मैंने अभी आप लोगों के समक्ष व्यक्त किया।
आज मंत्रियों की परिषद की एक बैठक हुई, और इस बैठक में निम्न प्रस्तावों को स्वीकार किया गया : 'जबकि : लैटिन अमरीका लोगों की मुक्ति के प्रति समर्पित नायक व्यक्तित्व के स्वामी अर्नेस्टो चे ग्वेरा की बोलेवियाई मुक्ति सेना के प्रमुख के रूप में मृत्यु हो गई है।
'जबकि : क्यूबा के लोग कमांडर अर्नेस्टो चे ग्वेरा को उनके द्वारा चलाए गए मुक्ति संग्राम और क्रांति के बाद उसकी सुदृढ़ता के लिए किए गए अप्रतिम योगदान के लिए हमेशा स्मरण में रखेंगे।
'जबकि : उनका व्यवहार और कार्य अंतर्राष्ट्रीयतावाद की भावना को समाहित किए हुए है, कि लोगों को साझा संघर्ष के लिए प्रेरित करता रहेगा।
'जबकि : उनकी अथक क्रांतिकारी गतिविधियां, जो हर किस्म की सीमाओं का भी अतिक्रमण करती हैं, उनकी कम्युनिस्ट विचार क्षमता, और लैटिन अमरीकी लोगों की राष्ट्रीय और सामाजिक मुक्ति की रक्षा में और साम्राज्यवाद के विरुध्द किए गए उनके संघर्ष की अविचलित क्षमता, जो विजय या मृत्यु तक निरंतर विद्यमान रहने वाली थी, ने क्रांतिकारी परंपरा और नायकत्व का एक ऐसा उदाहरण कायम किया है जिसकी चमक हमेशा विद्यमान रहेगी।'
इसके अलावा हम लोगों ने प्रस्ताव पारित किया है :
'पहला : इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के पहले तीस दिनों तक राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा; और इन तीस दिनों की शुरुआत आज रात 12 बजे से होती है, साथ ही इस अवधि में हर किस्म के सार्वजनिक मनोरंजन को प्रतिबंधित किया जाता है।
'दूसरा : युध्द में जिस दिन चे की नायकत्वपूर्ण मृत्यु हुई, उस दिन को राष्ट्रीय दिवस घोषित किया जाता है, यानी 8 अक्टूबर को गुरिल्ला नायक दिवस (डे आफ हिरोइक गुरिल्ला) घोषित किया जाता है।
'भावी पीढ़ियों की स्मृतियों में चे के जीवन और उनके अप्रतिम उदाहरण को जीवित रखने वाली गतिविधियों और कार्यों को लगातार किया जाएगा।
'इसी के साथ हमारी पार्टी की केंद्रीय समिति ने प्रस्ताव पारित किया है :
'पहला : कामरेड जुआन अमलेडिया, रामरों वालाडेस और अलफोंसो जाएस की सहभागिता में एक समिति बनाई गई है। इस समिति की अध्यक्षता जुआन अलमेडिया करेंगे। यह समिति कमांडर अर्नेस्टो चे ग्वेरा की स्मृतियों को विद्यमान रखने के उद्देश्य से वे कार्रवाइयां करेगी जिनकी आवश्यकता होगी।
'दूसरा : हमेशा स्मरणीय और नायक योध्दा, जिनकी संघर्ष में मृत्यु हुई, को श्रध्दांजलि अर्पित करने के लिए बुधवार, 18 अक्टूबर को शाम 8 बजे रिवोल्यूशन प्लाजा पर लोगों को एकत्र होने के लिए बुलाया जाए।'

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