गुरुवार, 12 मई 2016

भारतीय परिवार और लोकतंत्र


         
भारतीय परिवार स्वभाव से अ-राजनीतिक और पुंसवादी है।परिवार का यह ढाँचा बदले इसकी ओर स्वाधीनता संग्राम में ध्यान गया।जिन परिवारों में लोकतांत्रिक राजनीतिक माहौल था वहाँ से जो राजनीति में आया उसकी राजनीतिक भूमिका बेहतर रही है।बेहतर से मतलब लोकतंत्र की मान्यताओं और संस्थाओं के निर्माण में ऐसे लोगों की बेहतर भूमिका रही है । सवाल है कि लोकतंत्र के निर्माण में परिवार की भी कोई भूमिका होती है क्या ? क्या लोकतंत्र के लिए परिवार को बदलने की ज़रुरत है या नहीं ? संघ परिवार ने ऐसे नेता दिए जो परिवारविहीन हैं। परिवारविहीन नेता सामाजिक ज़िम्मेदारियाँ कम निबाहते हैं। सामाजिक विध्वंस ज़्यादा करते हैं !

पूरा परिवार राजनीति करे, यह संस्कार हमारे देश में स्वाधीनता संग्राम ने पैदा किया था । नेहरु परिवार आज़ादी की लड़ाई में तपा और बदला। गांधी परिवार ने नेहरु परिवार की इस विरासत की यथाशक्ति रक्षा की । गांधी परिवार की तरह कोई परिवार संघ के नेता क्यों नहीं पैदा कर पाए ? लोकतांत्रिक परिवार हो और राजनीतिक परिवार हो, यह स्वाधीनता संग्राम की देन है,आज़ादी के बाद कम्युनिस्टों,सोशलिस्टों और कांग्रेसियों ने लोकतांत्रिक-राजनीतिक परिवार की परंपरा का काफ़ी हद तक निर्वाह किया है । लोकतांत्रिक- राजनीतिक परिवार लोकतंत्र का स्वस्थ मूल्य है।संघ परिवार के नेता आए दिन गांधी परिवार पर जो हमले करते हैं वह असल में लोकतांत्रिक -राजनीतिक परिवार की संरचना पर हमले हैं। संघ परिवार चाहता है हमारे देश में लोकतांत्रिक-राजनीतिक परिवार न हों बल्कि उपभोक्ता परिवार हों ,जिनका अ-राजनीति की राजनीति में विश्वास हो। इस तरह के परिवार फासिज्म का आसानी से जनाधार बनते हैं ।नरेन्द्र मोदी इस तरह के परिवारों के लाड़ले हैं।

गांधी परिवार राजनीतिक परिवार है और लोकतंत्र के प्रति वचनवद्ध है। वे परिवार अच्छे हैं जो लोकतांत्रिक राजनीति करते हैं । कम से कम गांधी परिवार ने राजनीति के अलावा कोई धंधा नहीं किया ।

"संघ परिवार "और "गांधी परिवार" में कौन देशभक्त है ?किस "परिवार" ने देश के लिए क़ुर्बानियाँ दी हैं ?

परिवार पर बातें करते समय मेरा-तेरा परिवार करके न देखें । परिवार को एक संस्थान की तरह देखें। यह कहना सही नहीं है कि मेरा परिवार तो ठीक है और आपकी बातें हम पर लागू नहीं होतीं।

महाशय,हमारे आपके भद्रजनों के परिवार अंदर से पूरी तरह सड़ चुके हैं ।कभी आपको अंदर से दुर्गंध महसूस क्यों नहीं होती ? कभी परिवार को बदलने की मांग को लेकर हमारे आजाद देश में कोई जुलूस क्यों नहीं निकला ?

समाज को बदलने के लिए हमें अपना एजेण्डा बदलना होगा ।सरकार,पुलिस,नेता,भ्रष्टाचार,मनमोहन सिंह,कांग्रेस,भाजपा आदि के खिलाफ बोलना आसान है,जुलूस निकालना आसान है, लेकिन अपने परिवार के सड़े तंत्र के खिलाफ बोलना और जुलूस निकालना बेहद कठिन है।

हमसब कायर हैं और हमने लोकतंत्र के विभिन्न तंत्रों के आवरण में अपनी कायरता को छिपा लिया है , रेशनलाइज कर लिया है । लोकतंत्र के आवरण के बाहर निकलकर परिवार को खोलें और सड़कों पर,मीडिया में ,लोकसभा से लेकर पंचायतों तक बहस करें और समाधान खोजें ।

भारत को अपराधमुक्त बनाना है तो परिवार को अपराधमुक्त बनाओ। देश में लोकतंत्र लाना है तो परिवार में पहले लोकतंत्र स्थापित करो।फलतः देश में बहुत बडी मात्रा में अपराधों में गिरावट स्वतःमहसूस करेंगे । समाज में होने वाले अपराध हमारे परिवार के अंदर होने वाले अपराधों का ही विस्तार हैं ।

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