मंगलवार, 3 मई 2016

अनपढ़ ईरानी की शैतानियों के प्रतिवाद में


             मोदी सरकार में मंत्री स्मृति ईरानी ने भगतसिंह आदि क्रांतिकारियों को ´आतंकवादी´कहने के लिए विपन चन्द्रा आदि की किताब पर पाबंदी लगा दी,कमाल है,ईरानीजी आप शिक्षामंत्री हैं लेकिन आपको नहीं मालूम कि चन्द्रशेखर आजाद अपने को क्या कहते थे! पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जब पहलीबार चन्द्रशेखर आजाद से मुलाकात की थी तो उसका वर्णन उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया है,कम से कम उसी को आपने पढ़ लिया होता तो भगतसिंह संबंधी आतंकवादी-क्रांतिकारी ´गुत्थी सुलझ गयी होती,लेकिन अब तो ईरानीजी ने भगतसिंह को आतंकवादी लिखने के कारण विपन चन्द्रा आदि इतिहासकारों की किताब पर ही पाबंदी लगा दी है,तो अगला कदम उन किताबों की ओर बढ़ना चाहिए,जिनमें इन क्रांतिकारियों को आतंकवादी लिखा गया है ! ताकत है तो उन सभी किताबों पर पाबंदी जारी करके दिखाओ जिनमें आतंकवादी के रूप में क्रांतिकारियों का जिक्र है !

पंडित जवाहरलाल नेहरू की आत्मकथा ´मेरी कहानी´ को ही लेते हैं। याद कीजिए जब लाला लाजपतराय पर अंग्रेजों की लाठियां पड़ी थीं और उसके कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गयी ।ईरानीजी जानती हैं किसी हिन्दुत्ववादी का इस घटना पर खून नहीं खोला,दिलचस्प बात यह है कि लालाजी पर पड़ी लाठियों से भगतसिंह आदि क्रांतिकारियों का खून खोला ।जबकि उनके लालाजी से विचार नहीं मिलते थे।ईरानीजी आप कल्पना कीजिए कि किसी हिन्दुत्ववादी का उस समय खून क्यों नहीं खौला ॽभगतसिंह औप उनके साथियो ने लालाजी पर हमला करने वाले अंग्रेज शासन से बदला लेने का फैसला किया और उसके कारण भगतसिंह और उनके साथियों को सारे देश में बड़ी प्रसिद्धि मिली।इस वाकया का पंडित नेहरू ने बहुत सुंदर ढ़ंग से वर्णन किया है।

नेहरू ने लिखा है ´साइमन-कमीशन हिन्दुस्तान में दौरा कर रहा था और काले झंडे लिए ´गो बैक´के नारे लगानेवाली विरोधी भीड़ हर जगह उसका स्वागत कर रही थी।कभी-कभी भीड़ और पुलिस में मामूली झगड़ा भी हो जाता था।लाहौर में बात बहुत बढ़ गई और यकायक देश-भर में गुस्से की लहर दौड़ गई। लाहौर में जो साइमन-विरोधी प्रदर्शन हुआ वह लालालाजपत राय के नेतृत्व में हुआ।जब वह सड़क के किनारे हजारों प्रदर्शनकारियों के आगे खड़े हुए थे तब एक नौजवान अंग्रेज पुलिस अफसर ने उनपर हमला किया और उनकी छाती पर डंडे बरसाए.लालाजी का तो कहना ही क्या ,भीड़ की तरफ से किसी किस्म का झगड़ा खड़ा करने की कोई कोशिश नहीं हुई थी।.....लेकिन फिरभी जिस ढ़ंग से उन पर हमला किया गया,उससे और उस हमले के बहशियाने ढ़ंग से हिन्दुस्तान के करोड़ों लोगों को धक्का लगा।उन दिनों हम पुलिस द्वारा लाठियों के मार खाने के आदी न थे।´ लालाजी की कुछ दिन बाद इस लाठीचार्ज से लगी चोटों के कारण मौत हो गई और सारे देश में गुस्से की लहर दौड़ गई।

पंडित नेहरू ने भगतसिंह आदि द्वारा इस घटना के प्रतिवाद में की गई कार्रवाई की प्रशंसा की और जो लिखा उसका तो महत्व है ही,साथ ही उनको ´आतंकवादी´कहकर सम्बोधित किया है। ईरानीजी हिम्मत है तो नेहरू की आत्मकथा पर पाबंदी लगाकर दिखाओ,हम भी देखते हैं संसद कितने दिन चलती है और आप कितने दिन ऑफिस जाती हैं !

नेहरू ने जो लिखा उसे ईरानीजी आप पढ़ें,संदर्भ है लालाजी पर पड़ी लाठियां और उसका भगतसिंह आदि के द्वारा किया गया प्रतिवाद,इस प्रतिवाद ने भगतसिंह को जनप्रिय बनाया, नेहरू ने लिखा ´इससे पहले भगतसिंह को जो लोकप्रियता मिली वह कोई हिंसात्मक या आतंकवाद का काम करने की वजह से नहीं मिली , आतंकवादी तो हिन्दुस्तान में करीब- करीब तीस बरस से रह-रहकर अपना काम कर रहे हैं, और बंगाल में आतंकवाद के शुरू के दिनों को छोड़कर और कभी किसी भी आतंकवादी को,भगतसिंह को जो लोकप्रियता हासिल हुई,उसका सौवां हिस्सा भी नहीं मिली।यह एक ऐसी जाहिर बात है,जिससे इन्कार नहीं कर सकता।इसे तो मानना पड़ेगा।´

ईरानीजी इसी क्रम में पंडित नेहरू ने बड़े मार्के की बात कही है जो आपको समझनी चाहिए। लिखा है ´मामूली तौर पर आतंकवाद से किसी देश में होने वाली क्रान्तिकारी प्रेरणा का बचपन जाहिर होता है।वह अवस्था गुजर जाती है और उसके साथ-साथ महत्वपूर्ण घटना के रूप में आतंकवाद भी गुजर जाता है; स्थानिक कारणों या व्यक्तिगत दमन के कारण कभी-कभी कुछ आतंकवादी कार्य भले ही होते रहें। बिलाशक हिन्दुस्तान की क्रान्ति का बचपन बीत चुका और इसमें कुछ शक नहीं कि उसके फलस्वरूप यहां कभी-कभी हो जानेवाली आतंकवादी घटनाएं भी धीरे-धीरे बन्द हो जाएंगी। ´

नेहरू ने साफ लिखा आतंकवाद आज तो ´महज एक तात्विक विवाद का सवाल है।´ ईरानीजी आप यह भी जान लें ,नेहरू ने लिखा है ´भगतसिंह ने अपने हिंसात्मक कार्य से लोकप्रियता प्राप्त नहीं की, बल्कि इससे प्राप्त की कि कम-से-कम उस समय लोगों को ऐसा मालूम हुआ कि उसने लालाजी की और लालाजी के रूप में राष्ट्र की इज्जत रखी है।भगतसिंह एक प्रतीक बन गया।उसके काम को लोग भूल गए,केवल प्रतीक उनके मन में रह गया।´

ईरानीजी आप बहुत ही ड्रामेबाज मंत्री हैं।आपने अपने जीवन में कभी कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं किया,कभी गंभीर किताबें नहीं पढ़ी,इसलिए किताब और जनसंघर्ष का मतलब आपको नहीं आता। क्रांतिकारियों में ये दोनों गुण होते हैं ,वे पढ़ते भी हैं और जनता के हितों के लिए लड़ते भी हैं।आपने कभी गौर किया कि भारत में कभी किसी शिक्षा मंत्री ने क्रांतिकारियों को सम्बोधित किसी भी किताब पर कभी कोई पाबंदी नहीं लगायी ,ऐसा क्यों हुआ ॽक्या आप सबसे बड़ी अक्लमंद हैं ॽया फिर आपके आरएसएस के सलाहकार सबसे बड़े अक्लमंद हैं ॽ कभी गंभीरता से सोचना आपसे पहले कभी किसी आरएसएस-जनसंघ के नेता ने क्रांतिकारियों को ´आतंकवादी क्रांतिकारी´ लिखने पर पाबंदी लगाने की न तो मांग की और न मंत्री होते हुए इस तरह की किताबों पर पाबंदी लगायी।सोचकर देखें ईरानीजी आप क्या श्यामाप्रसाद मुखर्जी,दीनदयाल उपाध्याय,अटलबिहारी बाजपेयी,मुरली मनोहर जोशी आदि से ज्यादा अक्लमंद हैं ॽ सवाल यह है इन नेताओं को, क्रांतिकारियों को ´आतंकवादी क्रांतिकारी´कहने वाली किताबों से कभी कोई परेशानी नहीं हुई,लेकिन आपको परेशानी हुई और आपने ताबड़तोड़ ढ़ंगसे तुरंत पाबंदी का आदेश जारी कर दिया।

ईरानी जी आप नहीं जानतीं कि आपने अपने जीवन का सबसे घटिया काम किया है। एक सही किताब पर पाबंदी लगाना सबसे घटिया काम है,मैं इसे देशद्रोह से भी खराब हरकत मानता हूँ। दुख इस बात का है आपने भारत के सभी कानूनों को ताक पर रखकर यह काम किया है।किसी भी किताब पर पाबंदी लगाने से पहले उसके लेखक-प्रकाशक से नोटिस देकर पूछा जाता है कि आपने ऐसा क्यों लिखा ॽयदि आप उनके उत्तर से संतुष्ट नहीं होतीं तो फिर देखतीं कि जो वैध किताब है,उस पर पाबंदी लगाने का आपको हक है या नहीं।विपन चन्द्रा की किताब वैध किताब है।आप उस पर दिल्ली विश्वविद्यालय में पाबंदी नहीं लगा सकतीं।यदि वह किताब अवैध है तो सारे देश में पाबंदी लगाकर दिखाएं और फिर देखें कि आपको कानून का कितना करारा तमाचा खाना पडेगा।आपने कानून के तमाचे से बचने के लिए मंत्री पद का दुरूपयोग किया है और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों को एक बेहतरीन किताब को वैध रूप में पढ़ने से वंचित किया है।

ईरानीजी आप पढ़ती नहीं हैं और आपके अनुयायी आरएसएस के लोग भी नहीं पढ़ते, आपका प्रचार करने वाले टीवी चैनलवाले भी पढ़ते नहीं हैं।इतने अनपढ़ यदि एक साथ मिल जाएं तो हमारे जैसे लोगों के लिए मुसीबतें तो आएंगी।लेकिन बुद्धिजीवी का काम तो यही है कि वह अनपढों के द्वारा पैदा की गयी मुसीबतों से देश को छुटकारा दिलाए,देश को पढ़ाए,सत्य,तथ्य और ज्ञान का अनुभव कराए।



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