गुरुवार, 12 मई 2016

फेसबुक पापाचार


एक सज्जन हैं और लेखक हैं। लेकिन फेसबुक पर लड़की देखकर लंपट भावबोध में चले जाते हैं।फेसबुक पर उनके कुकर्म देखें ,फेसबुक में कुकर्म भाषा में होता है।जैसे, हलो, कैसी हो,अकेली हो,मैं तो अंधेरे में बैठा हूँ। वगैरह -वगैरह।
अब इन जनाब को कौन समझाए कि जान न पहचान बड़े मियाँ सलाम करके लड़की देखी और पीछे हो लिए।काश,ये जनाब सभ्य हो पाते !
जीवन में कमीनापन पसंद नहीं करते तो फेसबुकलेखन में कमीनापन कैसे मान लें। कमीनेपन की लेखन में कोई जगह नहीं है। कमीनापन असभ्यता है। लेखन का काम है कमीनेपन को नंगा करना, न कि कमीनापन करना।
फेसबुक पर सक्रिय पापबुद्धि का एक और रुप है, हाल ही में जिस दिन समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो मैंने उसदिन कई पोस्ट लगायीं। एक जनाब चैटिंग में आए और लगे बतियाने,बोले अजी सर,अब आपके पास तो कई समलैंगिकों के प्रस्ताव आ जाएंगे। अब आपलोग ही बताएं इस तरह की मनोदशा के लोगों का पागलखाने के अलावा और कहीं इलाज संभव है ?
     फेसबुक पर पापाचार का आलम यह है कि पढ़ी-लिखी लड़कियों को दुष्टलोग आए दिन सताते हैं। सताने के तरीके जानें - शुरु होतेही कहेंगे, हलो,कैसी हो,इसके बाद नाम-पता-अभिरुचि आदि जानेंगे फिर कहेंगे लेख आदि लिखती हो तो भेजो मैं फलां फलां पत्रिका निकालता हूँ ,मैं फलां प्रकाशक को जानता हूँ, इसके बाद डर्टी भाषा में चले जाते हैं। मैसेज बॉक्स को गंदे संदेशों और फोटो से भर देते हैं। इस तरह के व्यक्ति को नामर्द कहते हैं।फेसबुक पर लड़की की मित्रता मिलती तो उपहार की तरह है लेकिन यदि उसका लंपटगिरी के लिए इस्तेमाल किया जाता है तो हमारे देश में बड़े जालिम कानून हैं लंपटो !!
     फेसबुक पापाचार का नया रुप है लड़की को देखकर उन्मत्त हो जाना । उसकी व्यस्तता और खाली समय की खोजबीन करना। गैर जरुरी पर तौर प्रशंसा करना ।यह फेसबुक पर हताश मन की अभिव्यक्ति है।
फेसबुक पर लड़की देखते ही प्रशंसा करना। मुखमंडल या फोटो पर बलिहारी- बलिहारी हो जाना।यह बीमारी है। फेसबुक पर लड़की को सुंदर और वांछनीय मानना अंततःपापाचार है। इसका वास्तव भावनाओं से कोई सरोकार नहीं है। यह फेसबुक लंपटगिरी है।फेसबुक पर कोई लड़की किसी लड़के से बात करती है तो इसका यह अर्थ नहीं है कि वे प्रेम करते हैं। फेसबुक कम्युनिकेशन प्रेम की नहीं सामान्य कम्युनिकेशन की जगह है। फेसबुक पर अनजान लोगों में ,खासकर लड़की के प्रति घनिष्ठता का प्रदर्शन मात्र कम्युनिकेशन है ,यह न मित्रता है ,और न घनिष्ठता है।
फेसबुक पर लड़कियां स्वतंत्र नहीं होतीं। यहां पर भी उनकी घेराबंदी होती रहती है। स्त्री को मर्दवादी मानसिकता की अभिव्यक्ति के लिए उकसाने का सबसे अच्छा तरीका है औरत को बेबकूफियां करने वाले वाक्य या पोस्ट लिखने दो और धड़ाधड़ लाइक करते जाओ। यह फेसबुक लंपटई का नया देशी मुहावरा है।फेसबुक लंपटता मर्द की अल्पकालिक शाब्दिक तड़प है।
फेसबुक कल्चर स्वस्थ कल्चर बने और इसे फेक होने से यथासंभव बचाएं।यह बडा माध्यम है कम्युनिकेशन का। फेसबुक पर ज्यादा से ज्यादा यथार्थवादी-मानवीय और सरल बनें।तर्क करें और पंगे न करें। नई बातें लिखें ,अपमान न करें। आलोचना लिखें,गाली न दें या हेयभाषा न लिखें। यह नया कम्युनिकेशन है और इसका शास्त्र अभी रचा जाना है।
जिस तरह समाज में मूर्खों की कमी नहीं है ,वैसे ही फेसबुक पर भी मूर्खों की कमी नहीं है,वे बिना बुलाए चले आते हैं। जिस तरह समाज में फंडामेंटलिस्ट और अविववेकवादी हैं, फेसबुक पर भी हैं। फेसबुक को समृद्ध करने का तरीका है मूर्खों और अविवेकवादियों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए। अविवेकवादी-फंडामेंटलिस्ट किसी भी दल में हो सकते हैं। हम उनको पहचानें और छोडें।
फेसबुक कल्चर है असहमत के साथ बैठना,कम्युनिकेट करना और आलोचना करना। "हेट " ,"निंदा "या "घृणा" से दूर रहना। मोदी हो या फंडामेंटलिस्ट हों या कांग्रेसी हों हम इनको पसंद नहीं करते, फिर भी ये लोग समाज में हैं तो इनकी हरकतों की बार बार आलोचना करते हैं।आलोचना करना लोकतंत्र में जीना है। यह विरोधी को गले लगाना नहीं है।
     फेसबुक शरीफों का वधस्थल है। यहां पर कम्युनिकेशन तो है ही ,वध भी होता है । खासकर यदि कोई व्यक्ति जनप्रिय हो। उसकी समाज में साख हो तो उसका जनता की आलोचना से बचना मुश्किल है ।


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