बुधवार, 3 मार्च 2010

अकेलेपन का रेगिस्तान है पोर्न फैंटेसी

पोर्न यथार्थ नहीं है। बल्कि फैंटेसी है। ऐसी फैंटेसी जो मर्द और स्त्री दोनों को नष्ट करती है। संबंध भी नष्ट करती है। इस फैंटेसी से बचने के लिए जरूरी है कि वास्तविक सामाजिक सबंधों में जीने का प्रयास किया जाए। आप अपना ज्यादातर समय इंटरनेट की बजाय वास्तव जीवन में गुजारें,रचनात्मक कार्यों में गुजारें। यदि इंटरनेट पर ही रहना हो तो कोशिश हो कि पोर्न से बचें।

पोर्न का पुरूष पर यह भी प्रभाव होता है कि स्वयं को ही सेक्स के लिए दोषी मान लेता है ,सेक्स की व्यस्तता के लिए दोषी मान लेता है। जबकि सच यह है कि सेक्स और पोर्न को समाज पर पूंजीपतिवर्ग के अपने मुनाफों के लिए थोपा है। ग्राहकों की मोटी रकम सेक्स उद्योग के पास चली जाती है।

आज सेक्स उद्योग की कमाई हॉलीवुड की कमाई से भी ज्यादा है। सेक्स उद्योग का दूसरा सामाजिक प्रभाव यह होता है कि वह व्यक्ति का मुक्तिकामी और विवेकवादी गतिविधियों की तरफ से ध्यान हटाता है।वास्तव जीवन के आत्मीय संबंधों से दूर ले जाता है।स्त्री-पुरूष संबंधों को क्षतिग्रस्त करता है, इन संबंधों को अमानवीय बनाता है। इससे बचने का एकमात्र उपाय है कि सेक्स संबंधी सूचनाएं, समस्याओं आदि पर खुलकर चर्चा हो, सेक्स उद्योग के सभी रूपों या आयामों के बारे में सामान्य लोगों और बच्चों को शिक्षित किया जाए।सामाजिक संबंधों में प्रगाढ़ आत्मीयता पैदा की जाए।
       
पोर्न के करीब वे लोग ज्यादा आते हैं जो अकेलेपन के शिकार हैं , आत्मीयता की तलाश या करीबीपन के अभाव में जी रहे हैं। आत्मीयता और भावात्मक करीबीपन सबको चाहिए। मानवीय अस्तित्व इस पर टिका हुआ है।यदि पूंजीवादी समाज के कार्य व्यापार पर नजर डालें तो पाएंगे कि उसने मनुष्य को अलगाव का शिकार बनाया है।समाज में बेगानापन बढाया है।भावात्मकता को नष्ट किया है और औपचारिक संबंध बनाए हैं। संबंधों की अनौपचारिकता और मानवीय संवेदनशीलता नष्ट की है। सारी मुश्किलें यहीं से शुरू होती हैं।

आज आत्मीयता या करीबीपन के केन्द्र और सामाजिक यूनिटें बिखर गयी हैं। वहीं दूसरी ओर आत्मीयता और करीबीपन को लेकर जनमाध्यमों ने एक मिथ रचा है जिसका समाज पर गहरा असर है। मिथ यह है कि आत्मीयता का अर्थ है सेक्स अथवा कामुक भावनाएं।

करीबीपन या आत्मीयता का अभाव व्यक्ति के अंदर उतावलापन पैदा करता है। इस अवस्था में सबसे ज्यादा आदमी सेक्स की ओर भागता है। फलत: व्यक्ति सेक्स को ही करीबीपन समझने लगता है। जबकि वातविकता यह है कि आत्मीय संबंध बनाने के लिए सेक्स की जरूरत नहीं होती। सेक्स के बगैर प्रगाढ आत्मीय संबंध ज्यादा बनते हैं। खासकर स्त्री-पुरूष के बीच आत्मीयता तब ज्यादा अच्छी और मजबूत होती है जब उसमें गहरी संवेदनात्मकता हो।

शुद्ध बौद्धिकता या कामरेडशिप या भाईचारे के आधार पर करीबीपन पैदा नहीं होता। करीबीपन पैदा होता है गहरी संवेदना के जरिए। पूंजीवादी विचारक यह प्रचार कर रहे हैं कि अकेलेपन का समाधान सेक्स है। सेक्सुअल संबंध हैं। कामुक मनोरंजन है। जबकि सच यह है कि अकेलेपन से मुक्ति का समाधान सेक्स नहीं सक्रिय सामाजिक संबंध और गतिविधियां हैं। 

अकेलेपन के विकल्प के तौर पर यदि सेक्स की ओर रूझान बढ़ता है तो समस्याएं घटने की बजाय बढ़ सकती हैं। अकेलापन,हताशा और जीवन के प्रति प्रतिगामी विचारों में इजाफा ही होगा। शर्म, हताशा , अकेलापन,आत्मीयता का अभाव सेक्स के प्रति स्वस्थ नजरिया विकसित नहीं होने देता।आज सेक्स उद्योग में वेश्यावृत्ति,पोर्नोग्राफी फिल्म, पोर्नोग्राफी पत्रिकाएं, सेक्स वेबसाइट,फोन सेक्स, आदि मुनाफाधारित व्यवसाय शामिल हैं। ये सब वे व्यापार हैं जो उत्तेजनात्मक कामुक अनुभूतियों का व्यापार करते हैं।
 

5 टिप्‍पणियां:

  1. "जबकि वातविकता यह है कि आत्मीय संबंध बनाने के लिए सेक्स की जरूरत नहीं होती। सेक्स के बगैर प्रगाढ आत्मीय संबंध ज्यादा बनते हैं। खासकर स्त्री-पुरूष के बीच आत्मीयता तब ज्यादा अच्छी और मजबूत होती है जब उसमें गहरी संवेदनात्मकता हो। "
    असहमत -वह गहरी संवेदनशीलता ,समर्पण और समझ तभी वजूद में आती है जब निरंतर सेक्स सम्बन्ध स्थापित होते रहें -हाँ अतिशय व्यामोह किसी भी चीज का बुरा होता है !

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  2. आप सही कह रहें हैं,अकेलापन और भावनात्मक संबधो की कमी,पोर्न की और आकर्षित करता है,पर बहुत बार सबधं बनाने में कमी इस ओर खीचतीं है,परन्तु भावनात्मक सबधं ही इसका इलाज है ।

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  3. यह तो तय है कि इसका अंत घोर अकेलेपन मे ही होता है ।

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