शनिवार, 15 मई 2010

चीन और पश्चिम बंगाल में भाषायी अंधलोकवाद

( कॉमरेड वेंग लीक्वान) 
      चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अंततः पश्चिमी सिनजियांग क्षेत्र के पार्टी सचिव वेंग लिक्वान को सचिव पद से हटा दिया है और उनकी पदावनति कर दी गयी है। उल्लेखनीय है जुलाई 2009 में सिनजियांग उईघूर क्षेत्र में भयानक दंगे हुए थे जिनमें चीनी मुसलमानों की बड़े पैमाने पर संपत्ति नष्ट हुई थी और 200 से ज्यादा निर्दोष नागरिक मारे गए थे। सचिव साहब दंगे और मुसलमानों के खिलाफ हमले रोकने में पूरी तरह असफल रहे। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने इस क्षेत्र के सचिव को हटाकर दंगे रोकने में पार्टी की असफलता को एकतरह से मान लिया है। वेंग की जगह झांग चुन सियान को इस क्षेत्र का पार्टी सचिव बनाया गया है। यह खबर चीन की सरकारी समाचार एजेंसी सिंहुआ ने आज दी है।  
   उल्लेखनीय है वेंग लीक्वान 1994 - 2010 तक इस क्षेत्र में पार्टी सचिव और केन्द्रीय समिति के सदस्य रहे हैं। सन् 1966 से पार्टी सदस्य हैं। ये जनाब अल्पसंख्यकों के प्रति कड़े रवैय्ये के लिए जाने जाते हैं। इनका स्थानीय संस्कृति और भाषा के प्रति पूर्वाग्रह रहा है। वेंग ने अल्पसंख्यकों के इलाके में उनकी  उईघूर भाषा के बदले मेनडेरियन भाषा को प्राइमरी स्कूलों में लागू किया और अल्पसंख्यकों की भाषा को सरकारी ऑफिसों और स्कूलों में प्रतिबंधित कर दिया।
     अल्पसंख्यकों के प्रति इस तरह के सख्त रुख के कारण जिस तरह भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को लौहपुरुष कहा जाता है उसी तरह वेंग को भी लौहपुरुष कहा जाता है।
     पश्चिम बंगाल में भी अल्पसंख्यकों की भाषा हिन्दी के प्रति माकपा के नेताओं का एक वर्ग भेदभावपूर्ण बर्ताव करता रहा है। हिन्दी की अल्पसंख्यकों की भाषा के रुप में संवैधानिक तौर पर जो व्यवस्था होनी चाहिए वह 34 साल के वाम शासन में नहीं हो पायी है।
      पश्चिम बंगाल सरकार के तहत चलने वाली पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी का 8 साल से गठन नहीं हुआ है। 15 सालों से लेखकों को पुरस्कार नहीं दिए गए हैं। 6-7 साल से एक भी मीटिंग नहीं हुई है। अकादमी के पास कोई स्थायी कर्मचारी नहीं है। राज्य सरकार ने कई वर्षों से अकादमी के किसी भी आयोजन के लिए एक भी पैसा नहीं दिया है।
     जनवादी लेखक संघ और अन्य प्रगतिशील संगठन और उनसे जुड़े लेखक जो आए दिन दिल्ली हिन्दी अकादमी और दूसरी हिन्दी संस्थाओं को लेकर बयान देते रहते हैं पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी के बारे में एक शब्द नहीं बोल रहे हैं।    
      हिन्दीभाषी लोगों के प्रति माकपा का रवैय्या किस तरह सौतेलेपन का शिकार है इसे एक ही उदाहरण से सहज ही समझा जा सकता है निकट भविष्य में राज्य में 80 नगरपालिकाओं के चुनाव होने वाले हैं। माकपा के उम्मीदवारों की सूची में 50 उम्मीदवार भी हिन्दीभाषी नहीं हैं, हां, उर्दूभाषी मुस्लिम प्रत्याशियों को कुछ सीटों पर ममता बनर्जी के मुसलमान कार्ड को काटने के लिए जरुर खड़ा किया गया है। जबकि अकेले कोलकाता में 30 लाख से ज्यादा हिन्दीभाषी रहते हैं उनमें गिनती के 1-2 उम्मीदवार हिन्दीभाषी खड़े किए गए हैं।
     जिस तरह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी हेन जाति के वर्चस्व को अन्य जातियों के खिलाफ इस्तेमाल करती रही है ठीक वैसे ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टीँ पश्चिम बंगाल में बंगाली अंधलोकवाद का भाषायी अल्पसंख्यकों के प्रति औजार की तरह चालाकी के साथ इस्तेमाल करती रही है।
    भारत में भाजपा में हिन्दू और हिन्दी वर्चस्व को लेकर अंधलोकवादी ऱुझान है जिनके आधार पर वह भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ आए दिन आक्रामक व्यवहार और हमले करती रही है।
       भाषायी अल्पसंख्यकों के प्रति पश्चिम बंगाल में सामान्यतौर पर दोयम दर्जे के नागरिक जैसा व्यवहार होता है। उल्लेखनीय है भाषायी अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैय्या सोवियत संघ से लेकर यूगोस्लाविया तक, चैकोस्लोवाकिया से चीन तक समाजवाद का साझा फिनोमिना है। यह फिनोमिना पश्चिम बंगाल में भी खूब फलफूल रहा है। बांग्ला अंधलोकवाद के कारण आज बंगाली जाति और बांग्ला भाषा के प्रति असम,उड़ीसा, झारखण्ड में उग्र प्रतिक्रियाओ का चक्र चल रहा है। भाषायी अंधलोकवाद अंततः राष्ट्रीयस्तर पर राजनीतिक तौर पर अप्रासंगिक बनाता है और सामाजिक विभाजन पैदा करता है काश हमारे यहां यह बीमारी न आयी होती ?    






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