मंगलवार, 1 मार्च 2011

शहरीकरण और शहरी गरीबी से भागे हुए वित्तमंत्री


    विदेशी मुद्रा भंडार में 300 विलियन डॉलर हैं जो मात्र दो सप्ताह के भुगतान के लिए काफी हैं। 33 करोड़ भारतीय गरीबी की रेखा के नीचे जी रहे हैं।दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे भारत में हैं।जबकि देश की विकासदर 9 प्रतिशत है। भारत दुनिया में सबसे ज्यादा शिक्षित-अशिक्षित बेकारों का देश कहलाता है ।केन्द्र सरकार की प्रत्येक योजना भ्रष्टाचार में निमग्न है। वित्तमंत्री यह क्यों नहीं बताते कि देश में कितने शिक्षित बेकार हैं और कितने अशिक्षित बेरोजगार हैं। विगत एक साल में कितने शिक्षितों-अशिक्षितों को पक्की नौकरी मिली
   इसबार बजट में भी वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने शहरी गरीबी के समाधान का कोई रास्ता नहीं बताया है। आज भी भारत के शहरों में 25 फीसदी से ज्यादा गरीब निवास करते हैं। ये लोग ज्यादातर छोटे शहरों और कस्बों में रहते हैं। नव्य उदारीकरण ने शहरीकरण का विकास नहीं किया है। प्रणव मुखर्जी जानते हैं शहरीकरण के बिना पूंजीवाद का देश में असमान विकास होगा। संक्षेप में भारत में सन् 2008 में 27 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती थी।जबकि इण्डोनेशिया में 43 प्रतिशत,द.अफ्रीका में 58 फीसदी,ब्राजील में 82 फीसद,विकसित देशों में 75से 90 फीसदी तक आबादी शहरों में रहती है। वित्तमंत्री चीन से होड़ कर रहे हैं लेकिन शहरीकरण उनका एजेण्डा नहीं बन पाया है।सन् 1980 में चीन की शहरी आबादी 20 फीसद थी,जबकि भारत में उस समय 23 फीसदी आबादी शहरों में रहती थी। चीन ने नीति बदली और 2002 में चीन की शहरी आबादी का आंकड़ा 38 फीसदी को पार गया। जबकि भारत में शहरी आबादी का आंकड़ा 28 फीसद पर ही अटका पड़ा है। मंत्री महोदय कैसी ग्रोथ है ये ? बजट चुप क्यों है इन सवालों पर ?            




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