शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

कश्मीर को यहां से देखो-

                  आतंकवादी वहां की जनता की आवाज नहीं हैं, वहां की लोकतांत्रिक ताकतें हैं जो सही आवाज हैं।मुश्किल यह है पीडीपी को महत्ता देकर सिरबिठा दिया है मोदी ने,वे ही उनको महत्व दे रहे हैं।राज्य और केन्द्र सरकार तुरंत निचले स्तर पर सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुला रहे,किसने रोका है।पीडीपी चाहती है आतंकी विपक्ष में रहें।जबकि सब जानते हैं नेशनल कांफ्रेस के बिना कश्मीर में लोकतंत्र बचाने वाला और कोई दल नहीं है। उल्लेखनीय है विधानसभा –लोकसभा चुनाव में भाजपा- पीडीपी ने प्रति वोट एक हजार रूपया नीचे सप्लाई देकर बड़े पैमाने पर पैसा खर्च किया है,पता करो यह पैसा किसने दिया। करोडों रूपया बांटा गया था,हर वोट पर एक हजार रूपया दिया गया है, लेकिन मीडिया में खबर तक नहीं है।हमारा अनुमान है भाजपा को यह पैसा बहुराष्ट्रीय शस्त्र निर्माता कंपनियों ने दिया था उसके बाद मोदीजी ने बड़े पैमाने शस्त्र समझौते ही किए हैं।

कश्मीर की जनता आजादी नहीं विकास और शांति चाहती है,आजादी तो आतंकी चाहते हैं।भाजपा वाले उसे हवा दे रहे हैं।मोदीजी के साथ पीडीपी ने विकास पर चुनाव लडा है वे जीते हैं विकास पर,हुर्रियत चुनाव नहीं जीती है।इसलिए हुर्रियत को न उछालें।विधानसभा चुनाव कौन जीता है इस पर सोचो,जीतने वाले ने क्या वायदे किए हैं,हुर्रियत ने चुनाव नहीं लड़ा,इसके अलावा आम जनता और आतंकियों में अंतर करो, जनता का एजेण्डा वह नहीं है जो आतंकियों का है। जनता ने कभी वोट का बहिष्कार नहीं किया,इससे समझ लो कि जनता लोकतंत्र और भारत चाहती है।

पृथकतावाद अपने एक्शन से खुद को तो नंगा करता है अन्य को भी खासकर साम्प्रदायिक ताकतों को भी नंगा कर देता है।कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाने के दिन से हम भाजपा की आलोचना कर रहे हैं।भाजपा का मानना है कि वे अपनी साम्प्रदायिक नीतियों के प्रभाव से पीडीपी को बदल देंगे, लेकिन हो उलटा रहा है,भाजपा लगातार पीडीपी के प्रभाव में काम कर रही है,उसके इशारों पर मोदी नाच रहे हैं।साम्प्रदायिकता और पृथकतावाद के इस संयुक्त मोर्चे का कुफल कश्मीर की जनता भोग रही है।36निर्दोष मारे गए हैं,1500से ज्यादा घायल पड़े हैं।150 से ज्यादा की आँखें खतरे में हैं।समूचा पर्यटन का धंधा चौपट हो गया है।

मीडिया में लंबे समय से सेना को लेकर परम पवित्र भाव की आंधी चलायी जा रही है,यह बेहद खतरनाक चीज है। लोकतंत्र में सेना की भी समीक्षा होती है,आलोचना होती है,सेना को भी दण्डित किया जा सकता है। संघी मीडिया आंधी के बहाने सेना को विचारधारा विशेष की सेवा करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार किया जा रहा है।

सेना की लोकतंत्र में राजनीतिक भूमिका जीरो होती है।सेना की भूमिका देश की सरहदों पर है या विशेष अशांति की स्थिति में है,लेकिन इन सभी हालातों में सेना को राजनीतिक विचारधारा से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।यह दुखद है कि सेना का किसी न किसी रूप में राजनीतिक असफलताओं को छिपाने या राजनीतिक समाधानों को स्थगित करने के लिए सत्ताधारीदलों ने निहित स्वार्थी ढ़ंग से हमेशा इस्तेमाल किया है।

इधर मीडिया में सेना को हिन्दू राष्ट्रवाद से जोड़कर पेश करने की प्रतिस्पर्धा छिड़ी हुई है।सेना पूर्व अधिकारी और इन दिनों संघ के संघी फाउंडेशन से जुडे बड़े पूर्व सैन्य अधिकारी सबसे घटिया ढ़ंग से राष्ट्रोन्माद पैदा कर रहे हैं,सेना को राष्ट्रवाद से जोड़कर पेश कर रहे हैं और यह बेहद खतरनाक काम है,खासकर टीवी टॉक शो में सेना के पूर्व अफसरों के जरिए सेना को वैचारिक कवच पहनाने की ये गंदी हरकतें बंद होनी चाहिए।

सेना के पूर्व अधिकारियों का इराक-अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप को वैध ठहराने के लिए मीडिया के जरिए अमेरिका-ब्रिटेन और नाटो ने जमकर दुरूपयोग किया,ये पूर्व सैन्य अधिकारी अमूमन सफेद झूठ बोलते रहते हैं जिनको इन सैन्य अधिकारियों में सत्य दिखता है उनको इराक हमले पर हाल ही में आई ब्रिटिश जांच रिपोर्ट को पढ़ना चाहिए।पूर्व संघी सैन्य अधिकारी आमतौर पर मीडिया में उत्तेजक भाषा बोलते हैं,अशांति और झूठ के वक्ता के रूप में पेश आते हैं।इन सबको कायदे से बेनकाब करने की जरूरत है।

कश्मीर के सच को आतंकियों ,संघियों और बहुराष्ट्रीय शस्त्र निर्माता कंपनियों और कारपोरेट मीडिया की नजर से देखना बंद करें।ये चारों तत्व मिलकर इस इलाके में अशांति बनाए रखना चाहते हैं।आतंकियों की सबसे ज्यादा मदद कौन कर रहा है ? पाक तो बहाना है ,असल में शस्त्र निर्माता कंपनियां कश्मीर को सुलगाए रखना चाहती हैं जिससे भारत में हथियारों की अबाध सप्लाई बनी रहे।इन कंपनियों के साथ भाजपा और कांग्रेस दोनों के गहरे संबंध हैं।इन दोनों दलों को इन कंपनियों से गुपचुप पैसा मिलता रहा है।कश्मीर में विगत विधानसभा-लोकसभा चुनाव में इन दोनों दलों ने वोटरों को खरीदने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया था,यह पैसा कंपनियों ने शांति स्थापित करने के लिए नहीं दिया है।कश्मीर पर हो रही सारी बहस शस्त्र निर्माता कंपनियों की भूमिका की अनदेखी करके चल रही है,दिलचस्प बात है इन कंपनियों का पैसा अनेक स्तरों पर बंट रहा है।





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