रविवार, 17 जुलाई 2016

आतंकी टीपू सुल्तान की मौत और हमारी सेना

         यह वाकया 1992-93 का जब कश्मीर में संकट गहरा था।आतंकी-पृथकतावादी संगठनों का उभार चरम पर था,घर –घर तलाशी हो रही थी।हर आदमी पर पुलिस नजर रखे हुए थी,ऐसे हालात में पाक स्थित आतंकियों ने कश्मीर के क इलाके के सरगना के तौर पर टीपू सुल्तान का नाम मीडिया में उछाल दिया,टीपू सुल्तान ने भी खुशी-खुशी इलाके के कमांडर की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। यह वाकया कश्मीर के किसी छोटे इलाके का है, आतंकी कमांडर बनाए जाने की घोषणा के बाद टीपू सुल्तान बड़े अहंकारी भाव में रहने लगा,दिन में एक-दोबार बाजार में एके47 लेकर घूम आता था।इलाके के लोग घरे रहते लेकिन जानते थे कि वह आतंकी नहीं है गरीबी का मारा चिरकुट किस्म का आदमी है।

टीपू सुल्तान खुश था कि उसको आतंकियों ने इलाके का कमांडर बना दिया, वास्तविकता यह थी कि टीपू सुल्तान ढाई पसली का आदमी था,एकदम सूखा हुआ शरीर, लेकिन साढ़े छह फुट लंबा। खाने और सोने का कोई ठिकाना नहीं ,उसके परिवार में कोई नहीं था,वह एक छोटे से कमरे के घर में रहता था। मीडिया में ज्योंही टीपू सुल्तान का नाम आतंकियों ने उछाला उस मुहल्ले को पुलिस ने कुछ ही दिन बाद आकर उसे घेर लिया।उसके नाम की घोषणा के बाद उस पर इनाम भी घोषित कर दिया गया।लेकिन मुश्किल यह थी पुलिस और सेना के पास उसका कोई फोटो नहीं था,यहां तक कि आतंकियों के पास भी फोटो नहीं था। दस-पन्द्रह दिन बाद कश्मीर के डाउन टाउन इलाके को तकरीबन 11सौ सैनिकों ने घेर लिया,मुहल्ले के सारे लोगों को कहा गया कि वे टीपू सुल्तान को सेना को सौंप दें,दिल्लगी यह कि टीपू सुल्तान की सेना में फोटो किसी ने देखी नहीं थी,मुहल्ले के लोगों के अलावा उसे कोई जानता नहीं था,सेना के पास उसकी कोई फोटो नहीं थी, ऊपर के अफसरों का आदेश था जाओ और टीपू को पकड़कर लाओ, लेकिन 1500सैनिकों में से कोई भी उसे पहचानता नहीं था।



टीपू आतंकियों का इलाका कमांडर था इसलिए मुहल्ले के लोग उससे डरने लगे थे,मजेदार बात यह कि कमांडर घोषित होने के पहले टीपू सुल्तान को किसी ने किसी भी किस्म की बदमाशी,शरारत,गुंडागर्दी आदि करते नहीं देखा,लेकिन अचानक एक रात वह कमांडर बन गया,उसके हाथ में एके 47 बंदूक आ गयी और उसने भी बंदूक के साथ मुहल्ले में प्रदर्शन करके सूचना देदी कि वह आतंकी संगठन का इलाके का कमांडर है। लेकिन ज्योंही सेना ने मुहल्ले को घेरा तो बाहर जीप से लाउडस्पीकर लगाकर सेना का कमांडर टीपू सुल्तान को समर्पण करने की अपील कर रहा था, घरों में तलाशी शुरू हो गयी,लेकिन टीपू सुल्तान तो अपने कमरे से निकलकर सीधे कमांडर के पास कर खड़ा हो गया,कमांडर को उसकी कद-काठी देखकर नहीं लगा कि यह कोई आतंकी है।वह कमांडर के पास सहज भाव से खड़ा,घरों में दहशत थी,कई घंटे तलाशी अभियान चला ,सेना को टीपू नहीं मिला,जबकि टीपू तो बाहर सेना के कमांडर के पास ही खड़ा था। सेना के जाने के बाद टीपू ने मुहल्ले के लोगों में बढ़-चढ़कर बातें कहीं और अपनी वीरता के किस्से सुनाए,लोगों को आश्चर्य था कि टीपू तो सेना के कमांडर के पास ही खड़ा था फिर सेना ने उसको पकड़ा क्यों नहीं। कुछ दिन तक टीपू के किस्से चलते रहे, अंत में एक दिन टीपू को अपनी बंदूक से पुलिस पर गोली चलाने का शौक चर्राया और उसने सीधे बंदूक करके फायरिंग शुरू कर दी,वह जानता नहीं था कि एक47 गन से फायरिंग के साथ ही पीछे तेजी से झटका लगता है,वह बेहद दुबला-पतला था, उसने ज्योंही फायरिंग शुरू की बंदूक की दिशा पलटकर उसकी ओर हो गयी और वह अपनी ही गोली से ढेर हो गया,बाद में आतंकियों ने खबर फैला दी कि एरिया कमांडर टीपू सुल्तान सेना से मुठभेड़ करते मारा गया।

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