शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

"नामवरजी मार्क्सवादी थे"- राजनाथ सिंह

       इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के द्वारा "नामवर सिंह की दूसरी परम्परा " के नाम से आयोजित कार्यक्रम ( 28जुलाई 2016)में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संस्कृति को सीधे धर्म से जोड़ा. सवाल यह है क्या नामवरजी भी यही मानते हैं? नामवरजी ने धर्म को संस्कृति से जोड़ने वाले संघी नजरिए का प्रतिपाद न करके,मौन रहकर,उसे सम्मति प्रदान करके हजारी प्रसाद द्विवेदीजी की संस्कृति संबंधी दृष्टि पर अपनी आँखों के सामने राजनाथ सिंह के हमले को नतमस्तक होकर स्वीकार किया।यह है नामवरजी का कायान्तरण!

नामवरजी के सामने राजनाथ सिंह ने कहा धर्म वैज्ञानिक होने का प्रयास नहीं कर रहा,बल्कि धर्म तो वैज्ञानिक है ही।यानी इस तरह उन्होंने गिरीश्वर मिश्र की धारणा का विरोध किया। मजेदार बात यह थी दोनों मंत्री महेश शर्मा-राजनाथ सिंह ने अलिखित भाषण दिया,लेकिन नामवरजी ने लिखित भाषण पढ़ा।राजनाथ सिंह ने सीधे कहा "नामवरजी जब मार्क्सवादी थे।" सवाल यह है क्या नामवरजी अब मार्क्सवादी नहीं रहे ? क्या मोदी सरकार के वरिष्ठमंत्री की इस शानदार घोषणा के लिए इस कार्यक्रम को रखा गया था ?

संस्कृति मंत्री महेश शर्मा का बयान बहुत ही अर्थपूर्ण है वे बार बार कर्तव्य निर्बाह की ओर ध्यान दिलाते रहे,बड़ी निर्लज्जता के साथ उन्होंने कहा लोकतंत्र और आजादी के दो पाटों का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए।यह सीधे नामवरजी और संगोष्ठी में बोलने वालों के लिए हिदायत थी।

कमाल उस समय हो गया जब राजनाथ सिंह ने कलियुग के बहाने प्रतीकात्मक ढ़ंग से हिदायती स्वर में कहा नामवरजी "मर्यादा का कभी अतिक्रमण नहीं कर सकते।"

लेकिन इस समारोह का आदर्श लक्ष्य क्या है ? महेश शर्मा ने बताया-

"बूढ़े बैलों के संरक्षण की जिम्मेदारी हमारी है।" अब मोदी की गोदी में बैठने का वैचारिक प्रतिफलन इससे बेहतर नहीं हो सकता था नामवरजी !!



नामवरजी का स्वाभाविक चरित्र लिखकर भाषण देने का नहीं है। इंदिरा गांधी कला केन्द्र में उनका कल जो भाषण लिखित रूप में उनके द्वारा पढ़ा गया हमारा अनुमान है वह मोदी सरकार के द्वारा पास किया भाषण है । मोदीजी की साफ़ धारणा है सरकार के मंचों से सरकार के बारे में एक भी वाक्य आलोचना का नहीं होना चाहिए।मोदीजी की इस नीति का नामवरजी ने पालन किया । जो लोग नामवरजी महान कर रहे हैं वे ज़रा सोचें कि नामवरजी ने कल राजनाथ सिंह और महेश शर्मा के वक्तव्य में व्यक्त विवादास्पद बातों पर एक भी वाक्य क्यों नहीं बोला ? नामवरजी की यह स्वाभाविक प्रकृति नहीं है कि राजनेता कुछ भी उनके सामने बोलकर चले जाएँ और नामवरजी उस पर कुछ न बोलें। मोदी की गोदी में बैठने का यह साइड इफ़ेक्ट है कि नामवरजी की स्वतंत्र अभिव्यक्ति नदारत!

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