सोमवार, 14 दिसंबर 2009

इस्लाम के प्रति ग्लोबल मीडिया में घृणा कैसे आयी - 2-




आज अमरीका ने अरब देशों और फिलिस्तीनियों की सुरक्षा की बजाय इजरायल की सुरक्षा के सवाल पर आम राय बना ली है।इस इलाके में अमरीका पश्चिम का वर्चस्व स्थापित करना चाहता है।वे यह भ्रम पैदा कर रहे हैं कि 'ओरिएण्ट' के ऊपर'पश्चिम' का राज चलेगा।दूसरा भ्रम यह फैला रहे हैं कि पश्चिम की स्व-निर्मित इमेज सर्वश्रेष्ठ है।तीसरा भ्रम यह फैलाया जा रहा है कि इजरायल पश्चिमी मूल्यों का प्रतीक है।एडवर्ड सईद ने लिखा कि इन तीन भ्रमों के तहत अमरीका का सारा प्रचारतंत्र काम कर रहा है।इन भ्रमों के इर्द-गिर्द राष्ट्रों को गोलबंद किया जा रहा है।
          ध्यान रहे माध्यमों में जो प्रस्तुत किया जाता है वह न तो स्व:स्फूर्त्त होता है और न पूरी तरह स्वतंत्र होता है और न वह यथार्थ की तात्कालिक उपज होता है।बल्कि वह निर्मित सत्य होता है।यह अनेक रुपों में आता है।उसके वैविध्य को हम रोक नहीं सकते।इसकी प्रस्तुति के कुछ नियम हैं जिनके कारण हमें यह विवेकपूर्ण लगता है।यही वजह है कि वह यथार्थ से ज्यादा सम्प्रेषित करता है।उसकी इमेज माध्यम द्वारा प्रस्तुत सामग्री से निर्मित होती है।वह प्रच्छन्नत: उन नियमों के साथ सहमति बनाता है या उनको संयोजित करता है जो यथार्थ को 'न्यूज' या'स्टोरी' में रुपान्तरित करते हैं।चूँकि माध्यम को सुनिश्चित ऑडिएंस तक पहुँचना होता है,फलत: उसे इकसार शैली में यथार्थ अनुमानों से नियमित किया जाता है।इकसार छवि हमेशा संकुचित और सतही होती है।इसी कारण जल्दी ग्रहण कर ली जाती है,मुनाफा देने वाली होती है और इसके निर्माण में कम लागत लगती है।इस तरह की प्रस्तुतियों को वस्तुगत कहना ठीक नहीं होगा।बल्कि ये विशेष राजनीतिक संदर्भ और मंशा के तहत निर्मित की जाती हैं।इसके तहत यह तय किया जाता है कि क्या प्रस्तुत किया जाय और क्या प्रस्तुत न किया जाय।
     प्रत्येक अमरीकी रिपोर्टर यह मानकर चलता है कि उसका देश एकमात्र महाशक्ति है और उसके हितों को आगे बढ़ाना उसका लक्ष्य है।वह यह भी जानता है कि अमरीका के हितों और अन्य देशों के हितों में फ़र्क है,वे एक नहीं हैं।अमरीकी रिपोर्टर यह भी मानता है कि वह जिस कारपोरेशन का हिस्सा है वह अमरीकी सत्ता में हिस्सेदार है।अत:वह पूरी ताकत के साथ अमरीकी हितों को विस्तार देने का काम करता है।वह माध्यमों की स्वतंत्रता को कारपोरेशन एवं राष्ट्रवाद के मातहत कर देता है।इस तरह वह सीधे राष्ट्र के साथ पहचान बनाता है।यही वजह है कि अमरीकी माध्यम कभी भी विदेशनीति से भिन्न दृष्टिकोण से खबरें प्रस्तुत नहीं करते।बाहरी दुनिया की सूचनाएं अमरीकी नीति के तहत एकत्र करता है।भिन्न रवैया वह जनता के दबाव में व्यक्त करता है।
       विदेशी राष्ट्रों की अमरीकी माध्यमों में प्रस्तुति इस परिप्रेक्ष्य से की जाती है कि 'हम'(पश्चिम) के हितों को विस्तार दिया जाय।इस तरह की प्रस्तुतियों में अमरीका की राय को बड़े पैमाने पर प्रस्तुत किया जाता है और अन्य राष्ट्रों की राय की उपेक्षा की जाती है।सभी प्रस्तुतियां सहमति के बिन्दु पर केन्द्रित होती हैं।अमरीकी नीति किस बात से सहमत है,इस पहलु को ख्याल में रखकर रिपोर्ट तैयार की जाती है।सभी माध्यम इसे आम सहमति के तौरपर प्रस्तुत करते हैं।
       भूमंडलीय माध्यम'हम'(पश्चिम) क्या है और क्या होगा,इसके प्रति जबावदेह है।यहाँ सहमति की सीमा तय है।साथ ही यह जनप्रिय धारणा प्रचलित है कि अमरीका शुभ शक्तियों का प्रतीक है,महान् सैन्य शक्ति है,उसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सैन्य शक्ति के इस्तेमाल का अधिकार है,वह विश्व के लिए जो कुछ करता है अच्छा करता है,सही करता है। यही वह मिथ है जो बारबार वास्तव जीवन की रोशनी में गलत साबित हो रहा है।
       आम जनता में आतंकवादी गिरोहों के निर्माण को लेकर अमरीका ने जितने भी दुष्कर्म किए वे सब अमरीकी जनता को तब तक जायज लग रहे थे जब तक 11 सितम्बर क हमल नहीं हु ।इ हमलों के कारण यह मिथ टूटा है कि अमरीका सुरक्षित है और अमरीका आतंकवादियों को खुली मदद देकर सही काम कर रहा था। भूमंडलीय माध्यमों के पास इसका तर्क नहीं है कि उन्होंने अब तक आतंकवादियों को कभी आतंकवादी क्यों नहीं कहा ? क्यों उन्हें स्वाधीनता सेनानी बनाया गया ?कल तक जो विद्रोही था वह 11सितम्बर के बाद से आतंकवादी कैसे हो गया ?जो सरकार खुलेआम आतंकवादियों के प्रशिक्षण से लेकर संरक्षण तक का सारा काम करती रही है वह रातों-रात आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में अमरीका की मददगार कैसे हो गयी ?यह जानते हुए कि तालिबान कट्टरपंथी हैं,बुनियादपरस्त हैं, उन्हें सीआईए एवं अमरीका ने तीन विलियन डॉलर की मदद क्यों दी ?क्या कारण थे कि सन् 2002 में अमरीका ने तालिबान को 50 मिलियन पॉण्ड की मानवता के आधार पर सहायता राशि दी।विगत दस वर्षों से पाकिस्तान के खजाने से प्रतिमाह 30लाख डॉलर का भुगतान तालिबान को होता रहा है। यह सहायता 11सितम्बर के बाद बंद हुई है।यह सच है कि अमरीका दुनियाभर में आतंकवादी गुटों को आर्थिक एवं सैन्य मदद देता रहा है।मदद का सबूत यह है कि इन सब संगठनों के अमरीका में बैंक एकाउण्ट हैं।इसका यह भी अर्थ है कि इन संगठनों की गतिविधियां अमरीका से संचालित होती रही हैं।वैचारिक तौर पर भूमंडलीय माध्यमों एवं अमरीका का इनके साथ सहयोग,संपर्क और रिश्ता है।
         
    
                                        

1 टिप्पणी:

  1. ग्लोबल मीडिया का एक मुख्य पर्यायवाची है अमेरिकी मीडिया और यूरोपियन मीडिया... और अमेरिकन और यूरोपियन मीडिया क्या चाहता है यह अब किसी से छिपा नहीं है... इराक़, अफ़गानिस्तान, फलस्तीन, चेचेन्या और अब पाकिस्तान शायद कल भारत भी.....

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