क्रिश्चियन फंडामेंटलिस्टों का अमेरिका में व्यापक स्तर पर शिक्षा और मीडिया नेटवर्क है।इसमें बॉब जॉन यूनीवर्सिटी का नाम सबसे ऊपर है।इजराइली तत्ववादियों का अनुकरण करते हुए इस विश्वविद्यालय ने ईसाइयों में धार्मिक शुध्दता का पाठ पढ़ाया जाता है। ये लोग समाज में किसी भी किस्म के सम्मिश्रण को स्वीकार नहीं करते। रूढ़िवादी विचारों और संस्कारों में पूरी तरह आस्था रखते हैं। बाइबिल इनके लिए अंतिम और एकमात्र सत्य है। ये आक्रामक और रक्षात्मक दोनों ही किस्म की रणनीति का अपने सांगठनिक विकास के लिए इस्तेमाल करते हैं।
बॉब जॉन यूनीवर्सिटी के छात्र सिर्फ विचारों और संस्कारों में ही तत्ववादी नहीं होते अपितु उग्रवादी भी होते हैं। ये किसी भी किस्म की विज्ञानसम्मत शिक्षा और विचारों का विरोध करते हैं। शिक्षा के पाठ्यक्रमों में किसी भी किस्म की उदारतावादी दृष्टि को स्वीकार नहीं करते। इस विश्वविद्यालय के द्वारा पृथकतावादी और तत्ववादी ताकतों का खुलकर समर्थन किया जाता है। ये लोग नस्लवादी श्रेष्ठत्व पर जोर देते हैं। नस्लवादी श्रेष्ठत्व इनके धार्मिक उसूलों से जुड़ा हुआ है।
आमतौर पर तत्ववादी या पृथकतापंथी संगठन अपने कार्यों को वैध ठहराने के लिए अंधविश्वास और अनहोनी या विलक्षण घटनाओं को चुनते हैं। इजराइली और क्रिश्चियन तत्ववादियों ने मध्य-पूर्व में ईराक पर अमरीका और उसके मित्र राष्ट्रों के हमले और तबाही को ईश्वर की कृपा से किए गए हमले और पाप के दण्ड के तौर पर व्याख्यायित किया।इसके लिए सैन्य पदावली का प्रयोग किया गया।
बॉब जॉन यूनीवर्सिटी के छात्र सिर्फ विचारों और संस्कारों में ही तत्ववादी नहीं होते अपितु उग्रवादी भी होते हैं। ये किसी भी किस्म की विज्ञानसम्मत शिक्षा और विचारों का विरोध करते हैं। शिक्षा के पाठ्यक्रमों में किसी भी किस्म की उदारतावादी दृष्टि को स्वीकार नहीं करते। इस विश्वविद्यालय के द्वारा पृथकतावादी और तत्ववादी ताकतों का खुलकर समर्थन किया जाता है। ये लोग नस्लवादी श्रेष्ठत्व पर जोर देते हैं। नस्लवादी श्रेष्ठत्व इनके धार्मिक उसूलों से जुड़ा हुआ है।
आमतौर पर तत्ववादी या पृथकतापंथी संगठन अपने कार्यों को वैध ठहराने के लिए अंधविश्वास और अनहोनी या विलक्षण घटनाओं को चुनते हैं। इजराइली और क्रिश्चियन तत्ववादियों ने मध्य-पूर्व में ईराक पर अमरीका और उसके मित्र राष्ट्रों के हमले और तबाही को ईश्वर की कृपा से किए गए हमले और पाप के दण्ड के तौर पर व्याख्यायित किया।इसके लिए सैन्य पदावली का प्रयोग किया गया।
सुसान रोज ने ''क्रिश्चियन फंडामेंटलिज्म एण्ड ऐजुकेशन इन दि यूनाइटेड स्टेट्स''(1993) में लिखा कि कैथोलिक स्कूलों की तुलना में प्रोटेस्टेण्ट या इवानगेलिकल्स स्कूलों में छात्रों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। इसके विपरीत कैथोलिक स्कूलों में छात्रों की संख्या में गिरावट आई है। निजी क्षेत्र में इन स्कूलों का बड़ी तेजी से विकास हुआ है। अनुमानत: दस लाख विद्यार्थी 18,000 हजार निजी धार्मिक स्कूलों में पढ़ते हैं। ये कुल निजी स्कूली छात्रों की संख्या का 20 फीसद हिस्सा हैं।
सन्1965 से कैथोलिक स्कूलों में आज तक 65 फीसदी से ज्यादा इनरोलमेंट में गिरावट आई है। जबकि गैर-कैथोलिक स्कूलों में इनरोलमेंट 149 फीसदी बढ़ा है।इसका अर्थ यह है कि इवानगेलिक और तत्ववादी स्कूलों में विगत दो दशकों में छात्रों की भर्ती में तेजी से इजाफा हुआ है। इसी दौरान इन स्कूलों ने पृथकतावादी मार्ग की अपेक्षा ज्यादा से ज्यादा कठमुल्लावादी मार्ग का अनुसरण किया है। इसके लिए इन संगठनों ने अदालती कार्रवाईयों तक का सहारा लिया है। अदालतों से इन्हें अपनी गतिविधियां जारी रखने का एक तरह से लाईसेंस मिल गया है।
इन समस्त घटनाओं से इस तथ्य पर रोशनी पड़ती है कि अमरीकी न्याय व्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था किस हद तक तत्ववादी संगठनों के सामने असहाय साबित हुई है।साथ ही उनके शिक्षा संस्थान बगैर किसी बाधा के सुचारू रुप से चल रहे हैं।
इवानगेलिक स्कूलों का पाठ्यक्रम,पध्दति और प्रभाव सार्वजनिक धर्मनिरपेक्ष स्कूलों से भिन्न है। धार्मिक तत्ववादी स्कूलों का अमरीका में लक्ष्य है धर्मनिरपेक्ष जीवन शैली का विरोध करना ,धार्मिक और पितृसत्ता की स्थापना करना,बच्चों को नशेबाजी,कामुकता,हिंसा और अनुशासनहीनता से बचाना। इसके अलावा तत्ववादी शिक्षा का मुख्य जोर बाइबिल, धार्मिक संस्कारों की शिक्षा और धर्मनिरपेक्ष सार्वजनिक स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले विषयों के खिलाफ रहा है। इन स्कूलों में दण्ड और अध्यापन की सार्वभौम पध्दति अपनायी जाती है। विद्यार्थियों के लिए महंगी से महंगी किताबें और पाठ्यक्रम सामग्री तुरंत प्रदान की जाती है। पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए किसी शिक्षक की मदद की जरूरत महसूस नहीं होती क्योंकि छात्र स्वयं ही पढ़ सकता है। पाठ्यक्रम पढ़कर शायद ही कोई सवाल किसी के मन में उठे क्योंकि समस्त सवालों के जबाव पाठ में ही होते हैं। इन स्कूलों के छात्र सार्वजनिक धर्मनिरपेक्ष स्कूलों की तुलना में ज्यादा संख्या में पास होते हैं। यहां तक कि स्टैण्डफोर्ड अचीवमेंट टेस्ट में इन स्कूलों के छात्रों को राष्ट्रीय नियम की तुलना में एक साल और सात माह ज्यादा की वरीयता मिलती है।सेना में इन तत्ववादी स्कूलों के छात्रों को बेहतरीन विद्यार्थी मानकर वरीयता के साथ भर्ती किया जाता है।क्योंकि इनमें अनुशासन, अनुकरण और अधिकारियों के प्रति सम्मान का भाव होता है।
अमरीका में धार्मिक तत्ववादी स्कूलों में आमतौर पर गोरे मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे दाखिले लेते हैं। इनके परिवारों की औसत आमदनी 25,000हजार डालर है।यह सम्मिश्रित किस्म का प्रभुत्वशाली समुदाय है। अत: इस समुदाय के छात्रों में धार्मिक तत्ववादी शिक्षा का आधार निर्मित होने से धार्मिक शिक्षा का प्रभाव कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। रीगन प्रशासन ने एक जमाने में तत्ववादी स्कूलों पर अंकुश लगाने की काफी कोशिश की किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके विपरीत तत्ववादी स्कूलों ने धर्मनिरपेक्ष स्कूलों को अपनी दिशा बदलने के लिए दबाव तेज कर दिया है। इस दिशा में उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली और बड़ी संख्या में ईसाई स्कूलों और धर्मनिरपेक्ष स्कूलों में विलय भी हुआ। आज स्थिति यह है कि अमरीका में तत्ववादियों के नियंत्रण वाली उच्च शिक्षा और टेलीविजन का मजबूत गठबंधन है। खासकर लिबर्टी यूनीवर्सिटी और रीजेंट विश्वविद्यालय के माध्यम से यह काम बखूबी अंजाम दिया जा रहा है। ये विश्वविद्यालय धार्मिक कठमुल्लापन के साथ आधुनिक विज्ञान,प्रौद्योगिकी और शिक्षा का सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रहे हैं।
बोर्द्रिओ ने ''अगेंस्ट डिपॉलिटिसाइज पॉलिटिक्स''(11 अप्रैल,2001) निबंध में लिखा 'ग्लोबलाईजेशन' का अर्थ अपरिहार्य आर्थिक विकास का रास्ता नहीं है। बल्कि यह सोची-समझी सचेत नीति है जो इसके विध्वंसकारी परिणामों के प्रति सचेत नहीं है। यह नीति शर्मनाक ढ़ंग से स्वतंत्रता,उदारीकरण,उदारतावाद और विनियमन की भाषा का इस्तेमाल कर रही है। यथार्थत: यह अ-राजनीतिकरण की नीति है। यह बिडम्बना ही है कि इसका लक्ष्य है सभी किस्म की आर्थिक बाधाओं से मुक्त करना। यह साधारण जनता को सरकारी नीतियों और विनियमित अर्थव्यवस्था के सामने निहत्था मरने के लिए छोड़ देती है। सभी बड़े अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे विश्व व्यापार संगठन अथवा यूरोपीय आर्थिक समुदाय के द्वारा सभी बहुराष्ट्रीय निगमों के नेटवर्क के हित में नीतियां बनायी जा रही हैं। ये सारी नीतियां भिन्न-भिन्न तरीके से स्वीकृति पा रही हैं। पहले इन नीतियों को कानूनी तौर पर मान्यता दिलायी जाती है। उदार और सामाजिक जनवादियों की सरकारों के द्वारा विकसित देशों में एक ही साथ स्वीकृति दिलायी गयी है। इसके कारण सरकारों ने अर्थव्यवस्था पर अपना प्रभुत्व धीरे-धीरे खत्म किया है।
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