शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

क्रिसमस पर सेना के हमले बंद नहीं होते




क्रिसमस के अवसर पर मीडिया सीधे छुट्टी के मूड में होता। अधिकांश पत्रकार यह मानते हैं ये छुट्टी के दिन हैं। वे तरह-तरह से आनंद मनाते हैं। इसका अर्थ है कि क्रिसमस पर चूंकि सब छुट्टी पर हैं अत:कोई ठोस वास्तव खबर नहीं होती। ऐसी अवस्था में जो भी आकर्षक खबर लगे उसे ले लो। पुरानी खबरों का संकलन दे दो। क्रिसमस पत्रकार की नजर दफ्तर के बाहर चली जाती हैं। वह खबरों से भागता है। दफ्तर से भागता है।
   चैनलों में बाजार और चर्च की रौनक का व्यापक कवरेज आने लगता है। आनंद देने वाली वस्तुओं की खपत और मांग बढ़ जाती है। उपहार लेने देने ,खिलाने-पिलाने ,पार्टी लेने-देने का चक्कर केन्द्र में आ जाता है। सोना खूब बिकता है। सूखे मेवा ,शराब और केक खूब बिकता है। चर्च जाने वालों की संख्या बढ़ जाती है। इन्हीं सब चीजों का कवरेज आने लगता है। कवरेज के केन्द्र में आनंद आ जाता है।
  क्रिश्चियन परिवारों में यह परिवार के मिलन और नए सिरे से परिभाषित करने का अवसर है। ईसाई संतों के द्वारा इस मौके पर शांति संदेश का प्रसारण किया जाता है। सबसे दुख की बात यह है कि ईसाई संतों के शांति पाठ को ईसाई राष्ट्राध्यक्ष कभी नहीं मानते। क्रिसमस पर सेना की छुट्टी नहीं होती। सेना के हमले बंद नहीं होते।      






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