बुधवार, 16 दिसंबर 2009

इस्लाम,मध्यपूर्व ,बहुराष्ट्रीय कारपोरेट मीडिया और एडवर्ड सईद -3-


एडवर्ड सईद का सबसे सुंदर और महत्वपूर्ण आख्यान वह है जिसमें उन्होंने '' जन के बिना जमीन और जमीन के बिना जन'' का आख्यान तैयार किया। इस अवधारणा के आधार पर सईद ने इजरायल के विस्तारवादी विचारकों के उन तमाम तर्कों को खंडित किया है जिनके द्वारा बार-बार फिलीस्तीन की मौजूदगी को ही अस्वीकार किया गया, इजरायली विस्तारवादियों का तर्क है कि 1948 में फिलीस्तीनी लोग स्वयं ही अपने नेताओं के कहने पर अपनी जमीन छोड़कर चले गए थे। इसके अलावा इजरायली विस्तारवादी वे सारे तर्क देते हैं जो एक ओरिएण्टलिस्ट देता है। फिलीस्तीन के अस्तित्व और एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उनके राष्ट्र के अस्तित्व को आज सारी दुनिया मानती है, संयुक्तराष्ट्र संघ भी मानता है सिर्फ अमरीका और इजरायल ही हैं जो फिलीस्तीन के स्वतंत्र-संप्रभु राष्ट्र के अस्तित्व को अस्वीकार करते  हैं। फिलीस्तीनियों की जमीन पर इजरायल लंबे समय से अवैध कब्जा जमाए बैठा है। फिलीस्तीनियों की जमीन और जनता पर इजरायली कब्जे को सईद ने औपनिवेशिक गुलामी और वर्चस्व कहा है। 
सईद का समूचा विमर्श इजरायल को यूरोपीय उपनिवेशवाद के संदर्भ में पेश करता है। इसके जरिए सईद ने यह दरशाने की कोशिश की है कि द्वितीय विश्वयुध्द की जनसंहारक विभीषिका के गर्भ से जिस इजरायल का गठन किया गया वह इजरायल स्वयं ही अवैधानिक और हिंसक आक्रामकता का फिलीस्तीनियों और अरब जनता के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है। इजरायली आक्रामकता को विभिन्ना तर्कों के जरिए वैध और स्वीकृत बनाने का प्रयास होता रहा है। इसके कारण फिलीस्तीन की बृहत्तार जनता अदृश्य हो गयी है। यह एक तरह से 'अन्य' के लोप का प्रयास होने के साथ विकृत प्रस्तुति भी है। यह ओरिएण्टलिस्टों के द्वारा पूर्व का 'अन्य' के रूप में किया गया विकृतिकरण है।
सईद ने ''क्वेश्चन ऑफ पैलेस्टाइन'' में लिखा है यूरोपीय उपनिवेशवाद की सैध्दान्तिकी यहूदीवाद के लिए तार्किक विचारधारात्मक आधार प्रदान करती है। सईद ने इजरायल के एक राष्ट्र के तौर पर निर्माण को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के संदर्भ में विश्लेषित किया है। सईद ने लिखा है फिलीस्तीनियों की इच्छा आकांक्षाओं की अवहेलना करके इजरायल राज्य को थोपा गया था। इस क्षेत्र के मूल वाशिंदे फिलीस्तीनियों को उनकी जमीन से बेदखल करके इजरायल का निर्माण किया गया। ब्रिटिश जमाने के बर्बर नस्लवादी कानूनों को इजरायल ने लागू किया हुआ है। इस संदर्भ में सबसे आदर्श और सटीक उदाहरण है 'आपात्कालीन रक्षा अधिनियम', इस कानून का 1922 से 1948 के बीच ब्रिटिश शासक इस्तेमाल करते रहे हैं। उस जमाने में यहूदियों के प्रतिवाद के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया जाता था, 1948 के बाद इस कानून का इजरायल के द्वारा अरब और फिलीस्तीनियों के खिलाफ जमकर दुरूपयोग किया गया। इस कानून के तहत अरब नागरिकों को जमीन खरीदने ,बेचने,आने-जाने, अपने घर और बस्तियां बसाने आदि के बुनियादी अधिकारों से वंचित किया गया।
    सईद ने यूरोपीय उपनिवेशवाद और यहूदीवाद के बीच में अनेक अंतर भी दरशाए हैं। पहला, यहूदीवादी जिस समाज को बनाना चाहते हैं खासकर फिलीस्तीनियों को समेटते हुए ,जो समाज बनाना चाहते हैं उसमें फिलीस्तनियों को और कुछ नहीं सिर्फ''नेटिव'' यानी पैदाइशी गुलाम के रूप में रखा गया है। दूसरा, इजरायल को पश्चिम के ज्यादा करीब रखा है। साथ ही बताया है कि किस तरह यहूदी इतिहास यूरोप में यंत्रणा का इतिहास रहा है। इस यंत्रण्ाा के इतिहास की भरपायी के तौर पर फिलीस्तीनियों को यंत्रणा दी जा रही है। तीसरा ,इजरायल वस्तुत: ''सेटलर कोलोनियलिज्म'' का प्रतीक है। इसका जन्म गलत आधार पर हुआ है। सईद ने लिखा है इजरायल और दक्षिण अफ्रीका में भिन्ना किस्म की ''सेटलर कोलोनियां'' हैं। किंतु इनमें प्रभावित और उत्पीड़ित लोग घायल और भयाक्रांत होकर रह रहे हैं। इस अर्थ में वे एक जैसी हैं।
   सईद ने ''कवरिंग इस्लाम'' (1981) में इजरायली उपनिवेशवाद की प्रकृति की व्यापक ब्यौरों के साथ समीक्षा पेश की है। साथ ही '' आफ्टर दि लास्ट स्काई''(1986) में बताया है कि इजरायली उपनिवेशवाद एक सर्वस्वीकृत तथ्य है। इसी बात को विस्तार के साथ '' ब्लेमिंग दि विक्टिमस'',''दि पेन एंड दि स्वोर्ड एण्ड दि पॉलिटिक्स ऑफ डिसपोजीसन'' में विस्तार से विश्लेषित किया है। '' दि क्वेशचन ऑफ पैलेस्टाइन'' में सईद ने इजरायल,दक्षिण अफ्रीका और अल्जीरिया के बीच तुलना की है और बताया है कि कैसे अन्यायपूर्ण गुलामी और शोषण में इन देशों में अल्यसंख्यक जी रहे हैं।
    सईद ने आतंकवाद के रेहटोरिक को भी अपने लेखन में चुनौती दी है। इस संदर्भ में मीडिया की भूमिका की विस्तार से आलोचना लिखी है। आतंकवाद के रेहटोरिक की आलोचना करते हुए सईद सिर्फ अमरीका की ही आलोचना के साथ मीडिया की भूमिका की भी आलोचना की है। मध्यपूर्व के संदर्भ में अमरीकी नीतियों को प्रभावित करने में अमरीकी मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका रही है। सईद ने अपनी आलोचना के जरिए फिलीस्तीनियों की मीडिया द्वारा निर्मित अमानवीय इमेज का खंडन किया है। साथ ही इसमें निहित अतिसरलीकरण की आलोचना की है। सईद ने लिखा है  फिलीस्तीन आतंकवाद को प्रस्तुत करते समय मीडिया अतिवाद का शिकार हो गया, उसने फिलीस्तीन आतंकवाद पर इसलिए जोर दिया जिससे इजरायल की एक राष्ट्र के तौर पर फिलीस्तीनियों के खिलाफ की गई बर्बर गतिविधियों को छिपाया जा सके। इजरायल ने एक राष्ट्र के तौर पर फिलीस्तीनियों,अरब मुस्लिमों और लेबनानी नागरिकों पर ज्यादा हमले किए हैं।
सईद ने अपनी अनेक किताबों में फिलीस्तीन और आतंकवाद के बीच में साम्य बिठाने को अस्वीकार किया है और फिलीस्तीनियों को आतंकवाद से भिन्ना परिप्रेक्ष्य में पेश किया है।  आतंकवाद के साथ फिलीस्तीन के अंतरों को दरशाते हुए सईद ने लिखा है कि अनेक किस्म के आधार पर इन दोनों में अंतर किया जा सकता है। पहला , अधिकांश फिलीस्तीनियों के पास सामान्य नागरिक और राजनीतिक अधिकार नहीं हैं। दूसरा, उन्हें अपनी जमीन दुबारा हासिल करने के अधिकार से वंचित रखा गया है क्योंकि उनके ऊपर आतंकवादी का लेबिल लगा है। सच यह है ये दोनों ही बातें उनके अपदस्थीकरण के कारण जन्मी हैं। उन्हें अपने खोए देश और सम्मान को पाने का संघर्ष करने का अधिकार नहीं है। सईद ने ''ब्लेमिंग दि विक्टिम' में विस्तार के साथ रोशनी डाली है। इसी किताब के '' एसेंशियल टेरटिस्ट'' नामक अध्याय में लिखा सईद ने लिखा है अमरीका में आतंकवाद सम-सामयिक फिनोमिना है।
     इजरायली विचारक आए दिन आतंकवाद, कम्युनिज्म और यहूदीवाद विरोधी के बीच में घालमेल करते हैं , उसे एकमेक करते हैं। ऐसा करते समय फिलीस्तीन को महज नारे में ,शक्लविहीन पहचान में ,अपमानजनक पहचान में तब्दील कर देते हैं। सईद ने '' दि पॉलिटिक्स ऑफ डिसपोजीशन''  में '' वन आइडियोलॉजी ऑफ डिफरेंस'' नामक निबंध में सईद विस्तार के साथ फिलीस्तीनियों की आतंकवाद के साथ इमेज को जोड़ने वाले तर्कों का खंडन किया है। सईद ने लिखा है नस्लभेद के दर्शन को आधार बनाकर अरब जनता के प्रति इजरायल के अन्यायपूर्ण व्यवहार को वैधता प्रदान की जा रही है। जबकि ''परमीशन टु नरेट'' (1884) निबंध में उन्होंने अमरीकी मीडिया में आतंकवाद की अवधारणा के तर्कों की वैधतापूर्ण प्रस्तुतियों की मीमांसा पेश की है। उन्होंने लिखा आतंकवाद का विमर्श हमेशा दो प्रतिस्पर्धी ग्रुपों में ध्रुवीकरण कर देता है जिसमें 'हम' और 'वे' के आधार पर वर्गीकृत करके पेश किया जाता है। ''आइडेंटिटी ,नेगेशन एण्ड वायलेंस''(1988) में लिखा  इस्लाम,अरब और खासकर फिलीस्तीनियों को आतंकवाद के साथ जोड़कर पेश जाता है। कायदे से आतंकवाद के संदर्भ को खोला जाना चाहिए। इस्लामिक जगत के खिलाफ आतंकवाद का संक्रामक बीमारी की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। 
(लेखक- जगदीश्वर चतुर्वेदी, सुधा सिंह)
   

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