मंगलवार, 15 जून 2010

प्याज की धुलाई

( प्रसिद्ध चीनी ब्लॉगर हन हन) 
            हाल ही में चीन के महान ब्लॉगर हन हन ने जिआमेन विश्वविद्यालय में भाषण दिया और कुछ महत्वपूर्ण बातें कही हैं, हन हन के भाषण से यह साफ है कि चीन में सब कुछ नार्मल नहीं चल रहा है। चीन में अब तक के सांस्कृतिक विकास पर हन हन की बातें काफी महत्वपूर्ण हैं।
   हन हन ने कहा है कि हमें इस सवाल पर विचार करना चाहिए कि चीन अब तक सांस्कृतिक शक्ति क्यों नहीं बन पाया ? हन हन ने इस सवाल का उत्तर तलाशने की कोशिश की है। कहा है कि चीन सास्कृतिक शक्ति इसलिए नहीं बन पाया क्योंकि हमारे यहां ‘ नेता’ प्रथम आते हैं और हमारे सभी नेता अशिक्षित हैं।  वे संस्कृति (ज्ञान) से डरते हैं। उनका काम है संस्कृति को सेंसर करना। जिससे वे सस्कृति का नियंत्रण कर सकें। हन हन ने कहा जब ऐसे नेता संस्कृति को नियंत्रित कर रहे हों तो वैसे में चीन कैसे सांस्कृतिक शक्ति बन सकता है ?
   हन हन ने अपनी एक अन्य ब्लॉग पोस्ट में चीन में चल रही आत्म-सेंसरशिप,दिमाग की धुलाई और चीन की उच्च शिक्षा पर लिखा कि संवाददाता सत्य की खोज करता है, इतिहास का शिक्षक इतिहास के बारे में बताता है। लेखक और स्कॉलर थोड़ा बहुत सत्य के बारे में बताते हैं। सिनेमा के निर्देशक फिल्मी यथार्थ को दरशाते हैं। ये लोग ज्यादा से ज्यादा विचारों का प्रतिपादन करते हैं। सबसे बुरा तब होगा जब ये लोग अपराध करने लगें।
       चीन में हालात यह हैं कि एक आदमी ज्योंही अनुमान करना आरंभ करता है उसका अनेक लोग पीछा करने लगते हैं। सरकारी लोग सोचते हैं क्या यह आदमी नशे में है। कुछ समय बाद उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया जाता है। चीजें ऐसे ही घटती रहती हैं हम देखते रहते हैं। हम व्यक्ति के साथ घट रही इन बातों को बड़ी घटना नहीं मानते। आज किसी व्यक्ति के बारे में सभी आपराधिक प्रमाण नष्ट कर दिए गए हमें , इसके बावजूद लोग इसे सामान्य रूप में नहीं ले रहे हैं। लोग अपने लिए ज्यादा से  ज्यादा की चाहत में मशगूल हैं।
      हन हन ने लिखा है कि आज चीन में दिमाग की वैसे ही धुलाई की जा रही है जैसे सब्जियों की करते हैं।  सब्जियों की धुलाई के बाद भी कुछ प्याज साफ नहीं हो पाते। वैसे ही चीन में प्रतिवादी जनता है जो दिमागी धुलाई के बाद भी बच गयी है। सरकारी लोग इसी प्याज (प्रतिवादी जनता) को धोकर साफ करना चाहते हैं। प्याज को काटना चाहते हैं।    


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...