(शनि ग्रह का असली स्वरूप )
‘स्टार न्यूज’ वाले अंधाधुंध अंधविश्वास का प्रचार कर रहे हैं। अंधविश्वास के प्रचार का ताजा नमूना है दीपक चौरसिया के द्वारा 11जून 2010 को पेश किया गया कार्यक्रम। इस कार्यक्रम का शीर्षक था ‘शनि के नाम पर दुकानदारी’। इस कार्यक्रम में ज्योतिषी, तर्कशास्त्री,वैज्ञानिक सबको बुलाया गया,सतह पर यही लग सकता है कि ‘स्टार न्यूज’ वाले संतुलन से काम ले रहे हैं। लेकिन समस्त प्रस्तुति का झुकाव शनि और अंधविश्वास की ओर था।
(शनि की नकली इमेज)
सवाल किया जाना चाहिए क्या अंधविश्वास और विज्ञान के मानने वालों को समान आधार पर रखा जा सकता है ? क्या अंधविश्वास और विज्ञान को संतुलन के नाम पर समान आधार पर रखना सही होगा ? क्या इस तरह के कार्यक्रम अंधविश्वास की मार्केटिंग करते हैं ? क्या यह शनि के बहाने ‘स्टार न्यूज’ की दुकानदारी है ? क्या इस कार्यक्रम में शनि के बारे में तथ्यपूर्ण और वैज्ञानिक जानकारियों का प्रसारण हुआ ? क्या इस तरह के कार्यक्रम अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं ? आदि सवालों पर हमें गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए।
(अंतरिक्षयान कासिनी द्वारा भेजी शनि की प्रामाणिक इमेज, क्या किसी ज्योतिषी ने आज तक किसी ग्रह को देखा है ? )
‘स्टार न्यूज’ के इस कार्यक्रम में एंकर दीपक चौरसिया अतार्किक सवाल कर रहे थे। एंकर जब अतार्किक सवाल करता है तो वह कुतर्क को बढ़ावा देता है। बक-बक को बढ़ावा देता है। सही सवाल करने पर सही जबाब खोज सकते हैं। दीपक चौरसिया का प्रधान सवाल था ‘शनि के नाम पर दुकानदारी हो रही है या नहीं’,कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति से यह सवाल पूछा गया जाहिरा तौर पर जबाब होगा ‘हां’, अगला सवाल था शनि से ड़रना चाहिए या नहीं ? उत्तर था ‘नहीं’। पहले सवाल के जबाब में वक्ताओं शनि के नाम पर दुकानदारी का विरोध किया। दूसरे सवाल के जबाब में कहा शनि से नहीं डरना चाहिए।
कायदे से देखें तो इन दोनों सवालों में ‘स्टार न्यूज’ वालों की शनि भक्ति और आस्था छिपी है। ये दोनों सवाल यह मानकर चल रहे हैं शनि है, रहेगा और शनि को मानो। सिर्फ शनि के धंधेबाजों से बचो, शनि से डरो मत ,शनि को मानो। पूरे कार्यक्रम में दीपक चौरसिया एकबार भी यह नहीं कहते कि शनि पूजा मत करो,शनि को मत मानो, शनि अंधविश्वास है, उनकी चिंता शनि के नाम पर हो रही दुकानदारी और भय को लेकर थी। एंकर द्वारा शनि की स्वीकृति अंधविश्वास का प्रचार है।
‘स्टार न्यूज’ ने कार्यक्रम के आरंभ में शनि की पूजा के विजुअल दिखाए गए । पूजा के विजुअल प्रेरक और फुसलाने का काम करते हैं।मोबलाईजेशन करते हैं। ये विजुअल शनि अमावास्या के पहले वाली रात को प्राइम टाइम में दिखाए गए हैं। इस कार्यक्रम में मौजूद ज्योतिषियों ने ज्योतिष के बारे में,शनि के बारे में जो कुछ भी कहा उसे अंधविश्वास की कोटि में ही रखा जाएगा।
मजेदार बात यह हैकि ज्योतिषियों को अपनी पूरी बात कहने का अवसर दिया गया और वैज्ञानिकों को आधे-अधूरे ढ़ंग से बोलने दिया गया और कम समय दिया गया। एक वैज्ञानिक जब शनि के बारे में वैज्ञानिक तथ्य रखने की कोशिश कर रहा था तो उसे बीच में ही रोक दिया गया।
समूचे कार्यक्रम में एंकर की दिलचस्पी शनि के बारे में वैज्ञानिक जानकारियों को सामने लाने में नहीं थी। बल्कि वह तो सिर्फ यह जानना चाहता था कि शनि के नाम पर जो दुकानदारी चल रही है ,उसके बारे में वैज्ञानिकों की क्या राय है ? वे कम से कम शब्दों में राय दें।
एंकर कोशिश करता रहा कि वैज्ञानिक विस्तार के साथ न बोल पाएं। एक वैज्ञानिक ने कहा शनि का समाज पर कोई प्रभाव नहीं होता,दूसरे ने कहा शनि पूजा के नाम पर भय पैदा किया जा रहा है,अंधविश्वास फैलाया जा रहा है। तीसरे वैज्ञानिक ने कहा शनिपूजा अपराध है। बालशोषण है। शनि के नाम पर बच्चों से भिक्षावृत्ति कराई जा रही है। यह अपराध है।
इस बहस का सबसे मजेदार पहलू था एक ज्योतिषी द्वारा शनि ग्रह पर अपनी किताब को दिखाना, इस किताब के कवर पेज पर जो चित्र था उसके बारे में ज्योतिषी-लेखक ने कहा यह शनि का चित्र है,इसका तुरंत वैज्ञानिकों ने प्रतिवाद किया और कहा यह शनि ग्रह का फोटो नहीं है। ज्योतिषी एक क्षण के लिए बहस में उलझा लेकिन वैज्ञानिकों के खंडन के सामने उसके चेहरे की हवाईयां उड़ने लगीं।
असल बात यह कि ज्योतिषी यह तक नहीं जानता था कि शनि ग्रह देखने में कैसा है ? शनि को इमेज मात्र से नहीं पहचानने वाले ज्योतिषी को शनि का कितना ज्ञान होगा आप स्वयं कल्पना कर सकते हैं ? इसके विपरीत पैनल में मौजूद वैज्ञानिकों को अपनी पूरी बात कहने का मौका ही नहीं दिया गया। दीपक यौरसिया का सवाल था शनि से डरना चाहिए या नहीं ? एक ही जबाब था नहीं। सवाल डरने का नहीं है।
सवाल यह है कि शनि को विज्ञान के नजरिए से देखें या अंधविश्वास के नजरिए से देखें ? विज्ञान के नजरिए से शनि एक ग्रह है,उसकी अपनी एक कक्षा है। स्वायत्त संसार है। वैज्ञानिकों के द्वारा सैंकडों सालों के अनुसंधान के बाद शनि के बारे में मनुष्य जाति की जानकारी में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। इसके लाखों चित्र हमारे पास हैं। शनि में क्या हो रहा है उसके बारे में उपग्रह यान के द्वारा बहुत ही मूल्यवान और नई जानकारी हम तक पहुँची है।
इसके विपरीत ज्योतिषियों ने विगत दो -डेढ़ हजार साल पहले शनि के बारे में ज्योतिष ग्रंथों में जो अनुमान लगाए थे वे अभी तक वहीं पर ही अटके हुए हैं।
कार्यक्रम में शनि के बारे में नई जानकारियों को सामने लाने में एकर की कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह बार-बार ज्योतिषियों से काल्पनिक बातें सुनवाता रहा। ज्योतिषियों को इस सवाल का जबाब देना चाहिए कि उनके पास शनि के बारे में क्या नई प्रामाणिक जानकारियां हैं ?
मैंने ज्योतिषशास्त्र का औपचारिक तौर पर नियमित विद्यार्थी के रूप में संस्कृत के माध्यम से 13 साल प्रथमा से आचार्य तक अध्ययन किया है और ज्योतिषशास्त्र के तकरीबन सभी स्कूलों के गणित-फलित सिद्धान्तकारों को भारत के श्रेष्ठतम ज्योतिष प्रोफेसरों के जरिए पढ़ा है। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि सैंकड़ों सालों से ग्रहों के बारे में ज्योतिष में कोई नयी रिसर्च नहीं हुई है।
ज्योतिषियों की ग्रहों के नाम पर अवैज्ञानिक बातों के प्रचार में रूचि रही है लेकिन रिसर्च में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रही है। जब सैंकड़ों सालों से फलित ज्योतिष से लेकर सिद्धान्त ज्योतिष के पंड़ितों ने ग्रहों को लेकर कोई अनुसंधान ही नहीं किया तो क्या यह ज्योतिषशास्त्र की असफलता और अवैज्ञानिकता का प्रमाण नहीं है ? हम जानना चाहेंगे कि जो ज्योतिषी ग्रहों के सामाजिक प्रभाव के बारे में तरह-तरह के दावे करते रहते हैं वे किसी भी ग्रह के बारे में किसी भी ज्योतिषाचार्य द्वारा मात्र विगत सौ सालों में की गई किसी नई रिसर्च का नाम बताएं ? क्या किसी ज्योतिषी ने कभी किसी ग्रह को देखा है ? ज्योतिष की किस पुरानी किताब में ग्रहों का आंखों देखा वर्णन लिखा है ? सवाल उठता है जब ग्रह को देखा ही नहीं,जाना ही नहीं,तो उसके सामाजिक प्रभाव के बारे में दावे के साथ कैसे कहा जा सकता है।
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