कल दोपहर टीवी चैनलों में अंधविश्वास की दोपहर थी। सभी चैनलों में सेक्स स्कैण्डल में फंसे स्वामी नित्यानंद की तथाकथित अग्नि परीक्षा का कवरेज प्रधान खबरों में था। दूसरी ओर ‘लाइव इंडिया’ टीवी चैनल ने कल अचानक दोपहर में एक कार्यक्रम के जरिए अंधविश्वास पर धावा बोल दिया।
टीवी चैनलों पर अंधविश्वास का बढ़ता हुआ ‘फ्लो’ इस बात का प्रमाण है कि समाज में अंधविश्वास अब स्वैच्छिक कुटीर उद्योग नहीं रहा बल्कि संगठित कारपोरेट उद्योग की शक्ल ले चुका है। मनोरंजन उद्योग या संस्कृति उद्योग ने उसे अपने सांस्कृतिक ‘फ्लो’ और विज्ञापन के जरिए मुनाफा कमाने का जरिया बना लिया है।
‘लाइव इंडिया’ के द्वारा 13 जून 2010 को विज्ञानसम्मतचेतना के प्रचार-प्रसार के नाम पर जो कार्यक्रम पेश किया उसमें बार-बार बाबाओ के द्वारा जनता को गुमराह करने और ठगने वाली चमत्कारिक घटनाओं को निशाना बनाया गया और सही ढ़ंग से कई चमत्कारों की पोल खोली गयी। समूचे कार्यक्रम का ढ़ांचा अंधविश्वासों पर प्रश्न चिन्ह लगाता था। इस तरह के कार्यक्रम की सीमित उपयोगिता है। यह कार्यक्रम ऐसे समय में आया था जब स्टार न्यूज वाले एक दिन पहले शनि पर केन्द्रित कार्यक्रम पेश कर चुके थे। दूसरी ओर स्वामी नित्यानंद की अग्निपरीक्षा का कवरेज विभिन्न चैनलों में दिखाया जा रहा था।
‘लाइव इंडिया’ टीवी चैनल के इस चमत्कार-अंधविश्वास विरोधी कार्यक्रम को चैनल के एक कार्यक्रम के रूप में देखने से चीजें समझने में असुविधा हो सकती है। टीवी पर अंधविश्वासों की प्रस्तुति के बारे में यह ध्यान रहे कि चैनल के कार्यक्रमों के समग्र ‘फ्लो’ के संदर्भ में किसी कार्यक्रम के प्रभाव को देखा जाना चाहिए। ‘लाइव इंडिया’ की मुश्किलों का सिलसिला यहीं से शुरू होता है।
मजेदार बात यह है कि ज्योंही इस चैनल ने चमत्कारों के खिलाफ कार्यक्रम खत्म किया उसके तत्काल बाद ज्योतिष फलादेश का कार्यक्रम दिखाना आरंभ कर दिया और अपने कार्यक्रम की महत्ता और प्रभाव को नष्ट कर दिया।
अंधविश्वास और चमत्कार हजारों सालों से चले आ रहे हैं और इनका विशाल सामाजिक-वैचारिक आधार है। आम लोग चमत्कारों-अंधविश्वासों को लेकर भरोसे में जी रहे हैं। आम लोग के भरोसे को सनसनी फैलाकर या वैचारिक घालमेल करके या तदर्थ उपायों से जीतना संभव नहीं है। इस तरह के सभी हथकंड़े अंधविश्वासों को मानने वाले लोगों का दिल जीतने में मदद नहीं करते।
‘लाइव इंडिया’ टीवी का पूरा फॉरमेट सनसनी वाला है। सनसनी के जरिए विवेक पैदा नहीं होता ,इससे सिर्फ ध्यानाकर्षित करने में मदद मिलती है। ध्यानाकर्षित करने की कला रेटिंग बढ़ाने की कला है। ज्ञान की रेटिंग सनसनीखेज प्रस्तुति से नहीं बढ़ती । सनसनीखेज प्रस्तुति से मनोरंजन होता है। वैज्ञानिकचेतना पैदा नहीं होती। सनसनी की कला ‘सेल’ की कला है।
इस कार्यक्रम में वैज्ञानिक अमिताभ ने सही कहा कि हम वैज्ञानिक अज्ञात को ज्ञात से जानते हैं। व्याख्यायित करते हैं। ये बाबा लोग ज्ञात को अज्ञात के जरिए व्याख्यायित करते हैं। डा़ नायर ने कहा चैनलों के जरिए अंधविश्वास फैलाना सामाजिक अपराध है और संविधान के अनुच्छेद 51 की भावनाओं का उल्लंघन है। हमारे समाज की मुश्किल यह है कि 16वीं सदी की मानसिकता का 21वीं सदी की तकनीक के साथ घालमेल हो रहा है।
चैनलों पर अंधविश्वास-चमत्कार विरोधी कार्यक्रमों के सकारात्मक प्रभाव के लिए जरूरी है चैनल का विवेकसम्मत फॉरमेट हो। चैनल की दबे-कुचले लोगों के प्रति प्रतिबद्धता के रूप में साख हो। खासकर कमजोर मन के लोगों,बच्चों और औरतों के प्रति प्रतिबद्धता हो। क्योंकि इन समूहों को अंधविश्वास जल्दी निशाना बनाते हैं।
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