रविवार, 20 जून 2010

पोर्नोग्राफी पर महिला संगठनों की चुप्पी क्यों ?


                हाल ही में दिल्ली में एक महिला ने अपने पति के खिलाफ पुलिस में जबर्दस्ती ग्रुप सेक्स की शिकायत की और बताया कि उसके साथ यह नारकीय काण्ड 4 साल से चल रहा था। ग्रुप सेक्स का यह पहला सार्वजनिक मामला है। ग्रुप सेक्स की कुसंस्कृति का इंटरनेट पर दिखाए जा रहे ग्रुप सेक्स के चित्रों के साथ गहरा संबंध है। इंटरनेट ऐसी अवांछित आपराधिक क्रीडाओं के लिए प्रेरित कर रहा है। इस घटना ने समाज में आ रहे सेक्स के अस्वाभाविक रूपों के दुष्प्रभाव की ओर ध्यान खींचा है। हमें इस प्रवृत्ति से सावधान होना चाहिए।
     उल्लेखनीय है इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी का धंधा जमकर चल रहा है। लेकिन भारत के महिला और राजनीतिक संगठन सोए हुए हैं। मैं लगातार महिला संगठनों के प्रकाशनों और आंदोलन की खबरों को दैनिक अखबारों में पढ़ता रहता हूँ लेकिन अभी तक कहीं पर भी ऐसी खबर देखने में नहीं आयी है कि महिला संगठनों ने इंटरनेट के जरिए चल रहे पोर्न के धंधे पर कुछ भी बोला हो। इसका यह अर्थ नहीं है कि महिला संगठनों का पोर्नोग्राफी को समर्थन है।
       लेकिन वास्तविकता यह है कि महिला संगठनों को पोर्न के इंटरनेट प्रसारण का विरोध करते सड़कों पर या इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी के दरवाजे पर नहीं देखा गया। पोर्नोग्राफी के मामले पर महिला संगठनों की चुप्पी चिन्ता की चीज है।
           महिला संगठनों को बताना चाहिए कि क्या पोर्न महिलाओं और समाज के लिए घातक है ? क्या पोर्न के प्रसारण से महिलाओं पर हमले बढ़े हैं ? क्या पोर्न से वैवाहिक संबंधों में दरार आती है ? क्या पोर्न के प्रभाववश समाज में अस्वाभाविक सेक्स का रूझान बढ़ा है ? क्या पोर्न का बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है ? क्या पोर्न महज मनोरंजन है ? क्या पोर्न पर भारत में पाबंदी लगाना सही होगा ? क्या भारत सरकार और कारपोरेट घरानों को पोर्न का धंधा करने की इजाजत देनी चाहिए ? महिला और राजनीतिक संगठनों ने पोर्नोग्राफी के खिलाफ चुप्पी क्यों साधी हुई है ? आखिरकार हम क्या करें ? हमें इन सब सवालों पर सोचना चाहिए।

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