सोमवार, 21 जून 2010

संघ परिवार का नरक का एजेण्डा

(संघ के हिन्दू एजेण्डे की सामाजिक परिणति है साम्प्रदायिक हिंसा और विद्वेष)
        आरएसएस ने कभी भी भारत के स्वतंत्र होने पर खुशी नहीं मनाई,उलटे आजादी का मखौल उडाया है,आजादी की जंग में भाग लेने वालों की आलोचना की है। भारत में उदार लोकतंत्र की आलोचना में संघ परिवार फंडामेंटलिस्टों के साथ रहा है। इसके अलावा कम्युनिस्टों का विरोध करने और उनके खिलाफ साधारण लोगों में नफरत पैदा करने के साथ अपने कार्यकर्ताओं में भी साम्यवाद विरोधी नफरत भरता रहा है। संघ का क्रांति में नहीं क्रमिक विकास में विश्वास है। वह ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ के नारे का विरोध करता रहा है।
     जमींदारों और पूंजीपतियों की हिमायत में संघ परिवार के संगठन सबसे आगे रहे हैं। अमेरिका की भक्ति में संघ के नेता हमेशा अग्रणी कतारों में रहे हैं। संघ की अमेरिकी भक्ति का एक उदाहरण देखें। एक बार गुरू गोलवलकर ने अमरीका के राष्ट्रपति के नाम एक संदेश भेजा था ,.यह संदेश ऐसे समय में भेजा गया था जब अमरीका का भारत के साथ टकराव सामने आ चुका था,वियतनाम में अमरीकी बर्बरता के खिलाफ सारी दुनिया में जगह-जगह लाखों लोग प्रतिवाद कर रहे थे अमेरिकी शासकों को स्वयं अमेरिका में जबर्दस्त प्रतिवाद का सामना करना पड़ रहा था। ऐसी अवस्था में गोलवलकर ने अमरीकी राष्ट्रपति के नाम एक संदेश भेजा था, उसमें लिखा , ‘ ईश्वर की कृपा है कि अमरीका मुक्त विश्व का नेता है, आज धर्म और अधर्म के बीच में सारी दुनिया के पैमाने पर युद्ध छिड़ा हुआ है ; इस युद्ध में अमरीका धर्म के समर्थन में सबसे आगे है।’ एक अन्य जगह संघ के प्रवक्ता ने साम्यवाद का विरोध करते हुए लिखा कि ‘समाजवाद भारतीय ग्राम पंचायत में है,... युद्ध समाप्ति के पूर्व के इटली के निगमवाद (सहकार्यवाद) में है।...समाजवाद उपनिषदों और वेदांत के दर्शन में है।’
      संघ के विचारकों का मानना है कि संघ का लक्ष्य मानव हितकारी है। जबकि तथ्य इसकी पुष्टि नहीं करते, संघ के कार्कलापों से सामाजिक तनाव और फूट में इजाफा हुआ है। अनेक रंगत के तथाकथित विकास कार्यों के बहाने संघ परिवार अपने विभाजनकारी एजेण्डे को छिपाने की कोशिश करता रहा है ,किशोरों के मन में हिन्दुत्व के नाम पर अवैज्ञानिक सोच का निर्माण करता रहा है। अल्पसंख्यकों और गैर हिन्दुओं के प्रति घृणा पैदा करता रहा है।
      हिन्दू धर्म के परंपरागत विचारधारात्मक वैविध्य को संघ नहीं मानता। संघ ने अपनी हिन्दुत्ववादी विचारधारा के लिए खास किस्म की अधार्मिक-फासीवादी लफ्फाजीभरी भाषा का निर्माण किया है। इस लफ्फाजी के कारण ही संघ के लोग उसे पराक्रमी, शूरवीर,युक्तिवादी, अनुशासित, मानववादी,राष्ट्रवादी,हिन्दू धर्मरक्षक,21वीं सदी की मशाल आदि कहते हैं।
      संघ परिवार ने बड़े पैमाने पर भाषा और अवधारणाओं के विकृतिकरण के प्रयास किए हैं। एक ही वाक्य में कहें तो आरएसएस स्वयं हिन्दू धर्म का साकार विकृत रूप है। इसका भारत की वास्तव हिन्दू परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं के साथ कोई लेना-देना नहीं है। हिन्दू परंपराओं के बारे में इसकी फंडामेंटलिस्ट और प्रतिगामी समझ है।
      संघ के लिए परंपरा पूजा की चीज है। अतीत में स्वर्णयुग था। आधुनिक समस्याओं के समाधान वह वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रखकर नहीं करता अपितु समाधान हेतु अतीत में जाता है।
     संघ की विचारधारा अंध अतीत प्रेम को महत्व देती है। संघ के लिए भारत का अतीत पूजा की चीज है। अतीत के बारे में वह समग्रता में नहीं सोचता,अतीत को आलोचनात्मक नजरिए से नहीं देखता। यही वजह है कि संघ सबसे गंभीर प्रतिक्रियावादी विचारधारा का प्रचारक बनकर रह गया है। इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव समाज पर और उसके कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है। वे संघ के ढिंढोरची बनकर रह गए हैं। उनके पास अपना विवेक नहीं होता,वे तोते की तरह अविवेकपूर्ण ढ़ंग से संघ के प्रचारकों की भाषा को दोहराते रहते हैं,विषयान्तर करते रहते हैं,किसी भी मुद्दे पर केन्द्रित होकर बातें नहीं करते बल्कि आक्रामक और निन्दा के स्वर में अपने विचार व्यक्त करते हैं।
      संघ की बुनियादी मुश्किल यह है कि उसके पास भारत की जनता के लिए भविष्य को सुंदर बनाने वाला एक भी सकारात्मक कार्यक्रम नहीं है। संघ के सभी कार्यक्रम हिन्दू बनाने, हिन्दुत्व का प्रचार करने,हिन्दुत्व के नाम पर गोलबंद करने पर केन्द्रित हैं।
   सवाल उठता 21वीं सदी में कोई संगठन सैंकड़ों साल पुराने एजेण्डे  ( हिन्दू बनाने) को लागू करना क्यों चाहता है ? क्यों सैंकड़ों साल पुरानी पहचान के रूपों को जीवित करना चाहता है ? क्यों हजारों साल पुराने मृत संस्कारों का प्रचार-प्रसार कर रहा है ? क्या वर्तमान के सवालों के जबाब अतीत में खोजे जा सकते हैं ? संघ का हिन्दू अतीत प्रेम हमें कूपमंडूक बनाएगा। हमें पिछड़ेपन से मुक्त करने में मददगार साबित नहीं होगा। भारत के भविष्य को संवारने के लिए हमें युवाओं में भविष्य और वर्तमान को सजाने -संवारने वाली विचारधारा का प्रचार करना चाहिए। संघ परिवार का हिन्दू अतीत का प्रौपेगैण्डा नरक में ले जा सकता है।
       
   
       

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