गुरुवार, 24 जून 2010

लेखक -साहित्यकार से ऊँचा दर्जा है ब्लॉगर का

         ब्लॉगरों में जबर्गस्त सक्रियता है। इसे देखकर लेखन का भविष्य सुंदर नजर आता है। ब्लॉगर का दर्जा लेखक या साहित्यकार से ऊँचा है। ब्लॉगर को परंपरागत लेखक-साहित्कार से भिन्न इसलिए मानना चाहिए क्योंकि यह अपने लिखे का सामना करता है,पाठक का सामना करता है।
       ब्लॉगर किसी का गुलाम नहीं है। अपनी प्रतिक्रिया पर जितना विश्वास और प्यार है वैसा सिर्फ पक्षियों में होता है। पक्षियों जैसी निर्मल -निच्छल अभिव्यक्ति ब्लॉगर को परंपरागत लेखक से ऊँचा बनाती है। वह इस मायने में भी भिन्न है क्योंकि ब्लॉगिंग में लिखा उसके हाथ में हमेशा रहता है जब भी चाहे लिखे को मिटा सकता है। पुराना लेखक एकबार प्रकाशित होने के बाद लिखे को मिटा नहीं सकता था। यह भी कह सकते हैं पुराना लेखक सर्जक था,छपने के बाद रचना उसके नियंत्रण के बाहर होती थी। लेकिन ब्लॉगर की  स्थिति उससे थोड़ा आगे की है ब्लॉगर सर्जक है और मालिक है। वह जब भी चाहे लिखे को मिटा सकता है।
      जो लोग ब्लॉगिंग को अभी समझ नहीं पाए हैं अथवा उसकी उपेक्षा कर रहे हैं उनके लिए यही कहना है कि ब्लॉगिंग लेखन का स्वर्णयुग है। रीयल टाइम में ,देश की सीमाओं का अतिक्रमण करके किया गया ग्लोबल संवाद है। लेखक को छापने के लिए प्रेस की जरूरत थी,प्रकाशक की जरूरत थी, ब्लॉगिंग के लिए न तो किसी प्रेस की जरूरत है और नहीं किसी प्रकाशक की जरूरत है। ब्लॉगिंग ने प्रेस की भूमिका की सीमाएं उजागर कर दी हैं और लेखन का जो वर्चुअल वातावरण बनाया है उसके सामने प्रेस फीका है।
     आज ब्लॉगर के सामने पहला सवाल यह है कि वह किसके लिए लिखता है ? मैं जहां तक समझ पाया हूँ ब्लॉगर निजी अभिव्यक्ति के लिए लिखता है। दूसरा सवाल यह उठता है कि हम ब्लॉगर से क्या पूछें ? ब्लॉगिंग में इसका दायरा इतना व्यापक है कि सोचकर सिहरन होने लगती है। ब्लॉगर से कुछ भी पूछ सकते हैं और उसके बारे में कुछ भी लिख सकते हैं। ऐसा परंपरागत लेखक के साथ नहीं था।
   ब्लॉगर के यहां किन मूल्यों की अभिव्यक्ति होती है ? क्या उसे परंपरागत मूल्य-संरचना में वर्गीकृत करके पढ़ा जा सकता है ? जी नहीं, ब्लॉगिंग का सारा खेल मूल्य के परंपरागत ढ़ांचे का अतिक्रमण करता है। ब्लॉगिंग में प्रतिबद्धता के आधार पर लिखना बेबकूफी है। ब्लॉगर प्रतिबद्ध नहीं हो सकता।
     ब्लॉगिंग की तेज स्पीड में मूल्य और प्रतिबद्धता के लिए कोई जगह नहीं है। ब्लॉगिंग मुक्त लेखन है। अबाधित लेखन है। यहां विचारधारा,वर्ग,जाति,धर्म आदि सब निरर्थक हैं। इन सबका प्रेसजनित संस्कृति से संबंध था। प्रेस के उदय के साथ लेखक नामक संस्था का भी उदय हुआ। विचारधारा और वर्गों का भी प्रेस के उदय के साथ संबंध है। ब्लॉगिंग का संबंध प्रेसजनित संस्कृति और संरचनाओं से एकदम नहीं है। यही वजह है कि ब्लॉगर विचारधारा के बंधनों और परंपरागत विचारधारात्मक लामबंदी के दायरे के बाहर सक्रिय रहता है।
    ब्लॉगिंग में पवित्र लेखन जैसी धारणा के लिए कोई जगह नहीं है। यही वजह है कि प्रेस के साथ लेखन की पवित्रता का जो नवीनीकरण हुआ था उसे ब्लॉग ध्वस्त कर देता है। ब्लॉगिंग में कोई महान नहीं होता। ब्लागिंग करने वाले परंपरागत तर्क को औजार नहीं बनाते,जो ब्लॉगिंग में लेखन के पुराने तर्कों के सहारे जीना चाहते हैं उन्हें असफलता ही हाथ लगेगी।
     ब्लॉगर का महानता से तीन-तेरह का रिश्ता है। लेखक की महानता का अंत ब्लॉगिग की सफलता है। ब्लॉगर के यहां कोई बड़ा -छोटा लेखक नहीं है। इस अर्थ में ब्लॉगर को पुराने लेखन में व्याप्त भेदभाव को खत्म करने वाले मीडियम-विधा के रूप में देखना चाहिए।
     ब्लॉगिंग में मौलिक सृजन नहीं होता बल्कि लेखन होता। इसका सृजन से कोई संबंध नहीं है। ब्लॉगिंग महज लेखन है। नश्वर लेखन है। यहां लेखन की कोई राजनीति नहीं होती.इस अर्थ में ब्लॉगिंग परंपरागत साहित्य और राजनीति के अन्तस्संबंध के दायरे का अतिक्रमण कर जाता है। ब्लॉगिंग में मानवीय अनुभवों का महत्व है विचारों का गौण स्थान है।
      ब्लॉगर अपने लेखन से पहचाना जाता है। लेखक अपने पद-गरिमा,संगठन,संस्थान और सत्ता के साथ संबंधों के आधार पर पहचाना जाता था। यानी लेखक की पहचान के इन सभी दायरों को ब्लॉगिंग ने अप्रासंगिक बना दिया है। इसी अर्थ में ब्लॉगर का दर्जा लेखक-साहित्यकार से ऊँचा है।          
                 





4 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...