शुक्रवार, 11 जून 2010

शमशेरबहादुर सिंह की जन्मशती पर विशेष- अनकहे सत्य का कवि शमशेर -विजया सिंह

     कला विशेषकर कविता की कला कलाकार को, कवि को नितांत व्यक्तिगत, निजी मानवीय स्थितियों और संवेगों से परिचित कराती है। फिर भी कविता एकालाप नहीं अत्यंत अंतरंग किन्तु सक्रिय संवाद है। शमशेर का निजी उन्हें एकाकी नहीं बनाता। कविता के निजी पलों में कवि के साथ सम्पूर्ण संसार भी श्वांस लेने लगता है और इसी से हरियाती है शमशेर की कविताई। उनके पास कवि की ऑंखें, शिल्प का विवेक, मनुष्य होने की प्रतिबद्धता तथा रचनाकार के स्पष्ट सिद्धांत भी हैं-'एक अच्छे कवि के लिए यह ज़रूरी है कि वह अपने देश की और भाषा की काव्य परम्परा से अच्छी तरह परिचित हो और इस परम्परा में आनेवाले श्रेष्ठ कवियों का उसने बार-बार और अध्ययन किया हो।'(शमशेर: कुछ और गद्य रचनाएँ)
      आश्चर्य नहीं कि शमशेर के मौलिक कवित्व ने 'अपने स्वंय के शिल्प' का निर्माण किया है। उनकी कविताई व्यक्तित्व विकास से जुड़ी हुई है उनकी कविता में भाव, शिल्प, भाषा, बौद्धिकता का अनुपम संयोग है, जीवन के सुलझे-अनसुलझे, कहे-अनकहे पहलुओं से कोई परहेज नहीं। वहां सारा का सारा आवश्यक है, चुपचाप ही सही, ज़रूरी है। शमशेर के शिल्प की विशेषता को बारीकी से रेखांकित करते हैं मुक्तिबोध ने लिखा -'अपने स्वयं के शिल्प का विकास केवल वही कवि कर सकता है, जिसके पास अपने निज का कोई मौलिक विशेष हो, जो यह चाहता हो कि उसकी अभिव्यक्ति उसी के मनस्तत्वों के आकार की, उन्हीं मनस्तत्वों के रंग की, उन्हीं के स्पर्श और गंध की हों।'(शमशेर: मेरी दृश्टि में)
       शमशेर ने 'दूसरा सप्तक' की कविताएँ, 'उदिता', 'कुछ कविताएँ', 'कुछ और कविताएँ', 'चुका भी नहीं हूँ मैं','इतने पास अपने','काल तुझसे होड़ है मेरी' जैसे काव्य-संग्रहों की रचना की। इनके काव्य के प्रथम चरण में एक ओर छायावाद का प्रभाव और दूसरी ओर छायावाद से हटकर नए भाव, विषयों और शिल्प के निर्माण की कोशिश दिखाई देती है। आगे वामपंथ में पूरी आस्था के साथ उन्होंने सृजनकर्म के प्रति गहरे सरोकारों को व्यक्त किया। इसके बाद के चरण में शमशेर की काव्य कला का सर्वोत्तम रूप दिखता है जहाँ उनकी गहरी दृष्टि, समृद्ध भाव-बोध, प्रखर संवेदनशीलता, शिल्प एवं भाषा सौंदर्य स्वत: आकर्शित कर लेते है। इसी काल में लिखी कविता 'अमन का राग' बकौल मुक्तिबोध 'क्लासिकल ऊँचाई' की कविता है-
    'सब संस्कृतियाँ मेरे सरगम में विभोर हैं
     क्योंकि मैं हृदय की सच्ची सुख-शांति का राग हूँ।
     बहुत आदिम, बहुत अभिनव।'
       शमशेर की सबसे बड़ी खूबी उनकी ग्रहण शक्ति है जो सभी प्रभावों, प्रक्रियाओं को हजम कर उसे पुनर्सृजित कर अभिनव रूप में कविता के माध्यम से सामने लाती है। उनकी कविताई में छायावादी काव्य-परम्परा की झलक है तो उर्दू शायरी, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी साहित्य का गंभीर अध्ययन, समकालीन भाषा के साथ ही साथ यूरोपीय परम्परा का ज्ञान भी परिलक्षित होता है। उन्होंने अपने कई पसंदीदा रचनाकारों से भी प्रभाव ग्रहण किया जिनमें कबीर, शेक्सपीयर, मीर, गालिब, नज़ीर, फ़ानी, इकबाल, निराला का नाम प्रमुख है। निराला को महत्वपूर्ण मानने के कारणों को रेखांकित करते हुए शमशेर कहते हैं-'एक बड़े कवि में जिस गुण को मैं महत्व देता हूँ वह है एक आंतरिक फोर्स, एक तरह का फोर्स, ऊर्जा, जो कि निराला में है, फोर्स। और एक सेल्फ कानफीडेन्स जो उनकी कविता में बोलता है।'
       शमशेर सन् 1945 में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने। उनकी कविताओं में मार्क्सवादी आग्रहों को लेकर कई अटकलें भी लगाई जाती रहीं हैं। जबकि सचाई यह है कि किसी भी वाद से परे शमशेर मानव-जीवन सत्यों, सुख-दुख, सौंदर्य, प्रेम से जुड़े कवि हैं और निरन्तर कष्टसाध्य सर्जन उनका कर्म है। उनकी कविताई 'ह्यूमैनाइजिंग इफेक्ट' (मुक्तिबोध) से भरपूर है। डॉ. विजयदेव नारायण साही भी शमशेर को किसी विचारधारा के प्रचारात्मक प्रभाव से इतर मानते हैं-'आरंभ में जिसे शमशेर मार्क्सवाद कहते थे उसके लिए दस वर्ष बाद कुछ अधिक ढीली शब्दावली 'समाज सत्य' या उससे भी अधिक ढीली शब्दावली 'समाज सत्य का मर्म', 'इतिहास की धड़कन' आदि का प्रयोग करते है। शायद यह हाशिए की लिखावट को कुछ और सूक्ष्म या धुँधला बनाने की कोशिश है। वस्तुत: शमशेर ने मार्क्सवादी दर्शन को पूर्णत: आत्मसात कर लिया था इसीलिए उनमें अपने को मार्क्सवादी कहलाने का प्रचारात्मक आग्रह नहीं पाया जाता।' यही कारण है कि शमशेर की कविता मूल्यों, जनपक्षधरता तथा संघर्ष की बातें करती है-
       'एक - जनता का
           दु:ख : एक।
        हवा में उड़ती पताकाएँ
            अनेक।
            दैन्य दानव। क्रूर स्थिति।
            कंगाल बुद्धि : मजूर घर-भर।
            एक जनता का - अमर वर
            एक का स्वर
            -अन्यथा स्वातंत्र्य-इति।       (बात बोलेगी)
         शमशेर कवि होने के साथ- साथ सिद्धहस्त चित्रकार भी हैं। मुक्तिबोध के शब्दों में 'शमशेर की मूल मनोवृत्ति एक इम्प्रेषनिस्टिक चित्रकार की है।' उनकी कविताई कवित्व और चित्रकारी का सम्मिलित रूप है। कवि की टेकनीक चित्रकार ने न केवल समृद्ध की है बल्कि उसे प्रखर, बारीक और सर्वसमावेशी भी बनाया है। शमशेर दुगुनी शक्ति से जीवन के वास्तविक भाव प्रसंगों का काव्यात्मक चित्र प्रस्तुत करते है। भावों को प्रकृति से युक्त कर सचित्र ऐंद्रिक रूप में साकार करना कविता के आस्वाद को बढ़ाता है-   
       'घिर गया है समय का रथ कहीं
       लालिमा में मँढ़ गया है राग।
       भावना की तुंग लहरें
       पंथ अपना, अन्त अपना जान
       रोलती है मुक्ति के उदगार।'   (घिर गया है समय का रथ)
    शमशेर की कविताएँ यथार्थ के धरातल पर मनोभावों के तारों से बुनी गई है जिनकी मनोवैज्ञानिकता उन्हें कहीं अधिक गहन, संश्लिष्ट बना देती है। कई बार दुरूह भी। उनकी कविताएँ सहज कथन मात्र न होकर तीव्र प्रतिक्रियाएँ हैं। जीने, सोचने और लड़ने को मजबूर करती हुई।
     प्रकृति के विविध शेड्स, बिम्ब, चित्र शमशेर के काव्य में प्रमुखता से लक्षित किए जा सकते है। भोर, शाम, पर्वत, बारिश, बादल कई बार कवि की 'इम्प्रेषनिस्ट कला' में घुलकर महत्वपूर्ण बिंदुओं पर मुखर तो अन्य पर धुंधले आकारों में सामने आते है। कहीं वाचाल प्रकृति है तो कहीं मूक किन्तु सजीव प्रकृति ऑंखों के सामने तैरने लगती है। पाठकों की संवेदनाओं को ललचाती, उद्दीप्त करती हुई।
          'जो कि सिकुड़ा हुआ बैठा था, वो पत्थर
           सजग-सा होकर पसरने लगा
           आप से आप।'
      छायावादी कवियों से इतर शमशेर प्रेम में शरीर के आकर्षण को नैतिकता के बाड़ों से मुक्त कर सहर्ष स्वीकारते है। यह प्रेम का कुंठित और अमर्यादित रूप नहीं है बल्कि मनुष्य की कामुक वृत्तियों की निर्द्वन्द, सुन्दर, आवश्यक अभिव्यक्ति है। प्रिय के सौंदर्य और प्रेम में डूबा कवि अपराधबोध और झूठी नैतिकता का बोझ नहीं उठाता। वायवीय फंतासियों से अलग मन और शरीर की इच्छा, कामना व तृप्ति की बात करता है। यहाँ गौरतलब है कि शमशेर तथाकथित पुंसवादी मानसिकता से ग्रस्त होकर सतही चित्रण नहीं करते वरन् प्रेम की दृष्टि से सौंदर्य की छवि अंकित करते है। वे कहीं भी निरंकुश नहीं होते वरन् स्वत: निर्मित सेंसर के साथ सक्रिय होते है। कहते हुए भी एक अनकहापन, गोपन रखने या मूक हो जाने की प्रवृत्ति वस्तुत: कवि की सचेत दृष्टि है जो भाव, अनुभूतियों को उनके सम्पूर्ण आरोहों-अवरोहों के साथ स्पेस देती है, जहाँ केवल प्रेम महत्वपूर्ण रह जाता है। इस प्रकार देखा जाए तो नई कविता को छायावादी काव्य परम्परा का नवीन विकास माना जा सकता है-
               'ऐसा लगता है जैसे
              तुम चारों तरफ़ से मुझसे लिपटी हुई हो
              मैं तुम्हारे व्यक्तित्व के मुख में
              आनंद का स्थायी ग्रास...हूँ
              मूक।'                           (तुमने मुझे)
       शमशेर की कविता अकेले व्यक्ति की प्रणय कविता है। प्रेम में वे स्वयं को एकाकी बनाते है, स्वाधीन और उन्नत भी। वास्तविकता यही है कि प्रेम दो सामाजिक अस्तित्वों के मिलन का निजी कार्यव्यापार है जिसे करते हुए हम स्वतंत्र ,ताकतवर  और बेहतर होते जाते हैं। यह शमशेर की अपनी ताकत है। संक्षिप्त, कभी रहस्यपूर्ण, कभी आधी-अधूरी पंक्तियों में कवि पूर्ण प्रेम कर रहा होता है। प्रेम को महसूसने और थामने की कोमलता कवि में है। प्रेम के हल्के मीठे दर्द से कवि मन अनजान नहीं। किसी गंभीर वैचारिक तर्कणा व समझ के परे प्रेम अधिक मनुष्य होते जाने की सार्थकता है-
                   'ठंड भी एक मुस्कराहट लिए हुए है
                      जो कि मेरी दोस्त है।
               कबूतरों ने एक ग़ज़ल गुनगुनायी...
                       मैं समझ न सका,रदीफ़-काफ़िये क्या थे,
               इतना खफ़ीफ, इतना हलका, इतना मीठा
                       उनका दर्द था।'       
                                      (टूटी हुई,बिखरी हुई)
          रघुवीर सहाय के मतानुसार 'शमशेर ने व्यक्ति की अपूर्णता की बेचैनी और पूर्ण होने की बेचैनी को एक ही व्यक्ति में समो दिया है। इससे अधिक गहरी, गाढ़ी, अंधेर शांति और हो ही नहीं सकती। साधारण लोग इसी को प्रेम की पीड़ा कहते है। परन्तु यह एक नया इंसान पैदा होने की पीड़ा है।' (टूटी हुई,बिखरी हुई: एक प्रतिक्रिया)
          शमशेर के कवित्व का आलम यह है कि गद्य की अन्य विधाओं, कहानी, डायरी, रेखाचित्र(स्कैच) सभी, में उनकी कविताई की झलक मिलती है। ''मेरी कुछ कवितानुमा कहानियाँ हैं-लेकिन देखने की बात यह है कि अनेक विधाओं में काम करने वाला आदमी मुख्यत: किस विधा में सक्षम है।''(कुछ और गद्य रचनाएँ- शमशेर)। उदाहरणस्वरूप 'एक बिल्कुल पर्सनल एसे', 'सुभद्राकुमारी चौहान: एक अध्ययन', 'एक आधुनिक विदेशी विद्वान का मौलिक काव्य संग्रह', 'कवि कर्म: प्रतिभा और अभिव्यक्ति' जैसे निबंधों, 'प्लाट का मोर्चा', 'तिराहा', 'द क्रीसेन्ट लॉज' कहानियों, स्कैच 'मालिष: जाड़ों की एक सुबह', 'कुल्हाड़ियाँ', 'रात पानी बड़ा बरसा' के साथ डायरी में भी उनकी काव्य कला और चित्रकला को सहज ही देखा जा सकता है। डायरी की प्रस्तुत पंक्तियों में भी यह दृष्टव्य है-'नभ की सीपी जो रात्रि की कालिमा में पड़ी थी, धीरे-धीरे उशा की कोमल लहरों में घुलती और पसरती चली गई।'
          कवि की चेतना ऐंद्रिक रूपों गंध, रूप, स्पर्ष, रस में नए इमेज का निर्माण करती है। नए रचनात्मक अर्थों के साथ शमशेर की काव्य-भाषा एक खास तरह के अनुशासन में गतिशील होती है। शब्दों के द्वारा कवि भावों, अनुभूतियों को सचेत रूप में क्रियेट करते है। कई बार शब्द कविता से अलग थलग भी दिखाई देते है और कविता की अनेकार्थता में वृद्धि करते है। वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण शमशेर की कविताओं को एक विशेष अर्थ में 'शब्द रचनाएँ' भी कहते है 'मानो शब्द भाषा के नियमों से बँधे नहीं उसमें खुले से पड़े है।'(शमशेर बहादुर सिंह: इतने पास अपने)
          शमशेर पाठकों और आलोचकों की आलोचना के केन्द्र में भी रहे। उनके काव्य को अस्पष्ट, दुरूह कहा गया तो कभी अत्यधिक शिल्प भार से बोझिल। कभी-कभी कवि और चित्रकार का क्षेत्र भी आपस में उलझता दिखता है या कविता में बढ़ते मूकभाव से पाठक परेशान होता है। इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि शमशेर का काव्य भावों, अनुभूतियों, मनोवेगों, संबंधों की यथार्थ अभिव्यक्ति करता है। ये सभी मूलरूप में जटिल मानवीय सच्चाईयाँ है, जिनका सरलीकरण पाठको के लिए सुविधापूर्ण भले हो लेकिन काव्याभिव्यक्ति के सौंदर्य को घटाने वाला होगा। जबरन सरलीकरण की प्रक्रिया हानिकारक भी हो सकती है। दूसरी बात, शमशेर प्रसंग विशेष, परिस्थिति विशेष के अनुसार विशिष्ट इमेज निर्मित करते है जो सामान्य रूढ़िबद्ध, मशीनी पाठकों व आलोचकों से थोड़ी उदारता की भी अपेक्षा रखता है। जड़ समझ और यांत्रिक पठन द्वारा चेतन-अवचेतन के बहुरेखीय पाठ को समझना मुश्किल है। शमशेर का काव्य धीरे-धीरे ही सही पाठक की समझ, सौंदर्यबोध को परम्परागत यांत्रिकता से मुक्त कर सक्रिय बनाता है।
          ऐसा भी होता है कि रचना के दौरान कवि इतना आत्मगत और केंद्रित हो जाता है कि उसके मनस्तत्वों का संप्रेषण समान रूपाकारों में नहीं हो पाता। मुक्तिबोध इसका कारण शमशेर के दोहरे व्यक्तित्व को मानते है-'मेरा ख्याल है कि शमशेर शब्द-संकेत को रंग-संकेत का स्थानापन्न मान बैठते हैं। कवि को चित्रकार का स्थानापन्न बना देने से, और उस स्थापन्न कवि के सम्मुख कार्यक्षेत्र विस्तृत कर देने से, शमशेर की रचनात्मक प्रतिभा ने बहुत बार घोटाला कर दिया है...'
          शमशेर के काव्य में संकोच की झलक भी है। कहते-कहते रुक जाना, बिखरे-बिखरे शब्द समूह, अधूरी पंक्तियाँ, टूटे इमेज बताते है कि कवि का विश्वास अनवरत कहते जाने में नहीं है। यहाँ कवि में सामान्य स्त्रियों का गुण भी दिखता है जो चुप होकर सबसे ज्यादा मुखर होती हैं। 'उनके लिए कहे के बजाय अनकहे में अधिक कविता है।'(अशोक वाजपेयी)    
 ( लेखिका- विजया सिंह,रिसर्च स्कॉलर,हिन्दी विभाग,कलकत्ता वि.वि. कोलकाता )         
 
       
        

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