(महात्मा गांधी)
कांग्रेस पार्टी का आरएसएस के प्रति हमेशा नरम-गरम रुख रहा है। कांग्रेस में एक तबका हमेशा से संघ के साथ मधुर संबंध बनाकर चलता रहा है। आरएसएस के दावे पर विश्वास किया जाए तो सन् 1946 में हैदराबाद (सिंध) में जवाहरलाल नेहरू की जनसभा की रक्षा के लिए आरएसएस की मदद ली गयी थी। उस समय संघ की मदद के आधार पर ही मुस्लिम लीग के नेताओं के द्वारा नेहरू की सभा में होने वाली गड़बड़ी को रोकने में सफलता मिली।
(सरदार बल्लभ भाई पटेल)
17 सितम्बर 1947 को दिल्ली की भंगी कालोनी की संघ शाखा के स्वयंसेवकों की खुद गांधीजी ने प्रशंसा की थी। वे उस समय वहां ठहरे थे, और संघ के अनुशासन की गांधीजी ने प्रशंसा की थी।
भारत के स्वतंत्र बनने के बाद स्वयं बल्लभभाई पटेल ने संघ की प्रशंसा की और संघ की हर तरह से मदद की। गृहमंत्री के पद पर रहते हुए पटेल ने संघ की कैसे मदद की थी इसका जिक्र अब्दुल कलाम आजाद ने अपनी किताब ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ में जनवरी 1948 के दिल्ली के दंगे के संबंध में किया है।
‘ श्री गुरूजीःव्यक्तित्व और कार्य’ नामक किताब में लिखा हैः ‘ सन् 1947 में नवंबर मास में महाराष्ट्र में एक लाख स्वयंसेवकों तथा हितचिंतकों की एक रैली पूना के पास चिचवड़ नामक स्खान में करने का निश्चय किया गया। यह रैली 1 तथा 2 नवंबर के लिए आयोजित की गई। ... इस कार्यक्रम में सरसंघचालक श्री गुरूजी तो उपस्थित होने वाले थे ही, भारत के गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने भी उपस्थित रहने का वचन दिया था। रैली में दिए जाने वाले उनके भाषण को रेडियो से प्रसारित करने के लिए ऑल इंडिया रेडियो के अधिकारियों ने भी संघ के अधिकारियों से वार्ता करना आरंभ कर दिया था, किंतु तभी बंबई के गृहमंत्री ने वातावरण की अस्थिरता का बहाना लेकर जिला अधिकारियों के द्वारा वह प्रबंध करा लिया कि यह रैली न हो।’
इसी किताब में पटेल का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रशंसा में दिया गया एक भाषण भी मिलता है। 6 जनवरी 1948 को लखनऊ में एक सार्वजनिक सभा में उन्होंने कहा, ‘अधिकारारूढ़ कांग्रेसियों को अपने अधिकार तथा आदेशों पर जोर न देते हुए संघ के साथ दूसरे ढ़ंग का व्यवहार करना चाहिए। वे लोग स्वार्थ के लिए झगड़ने वालों में नहीं हैं। वे तो अपना मातृभूमि से प्रेम करने वाले देशभक्त हैं।’
पटेल का यह बयान ऐसे समय में आया था जब भारत-पाक में दंगे हो रहे थे। दिल्ली और पूर्वी पंजाब में संघ के लोग मुसलमानों को उत्पीडित कर रहे थे. खदेड़ रहे थे। उस समय पटेल को गांधी,नेहरू और आजाद के दंगा विरोधी प्रयास एकदम नापसंद थे। खुद दिल्ली मे नेहरू के मुसलमानों को बचाने के सभी असफल हो चुके थे।
अंत में 12 जनवरी 1948 को गांधीजी को अनशन आरंभ करना पड़ा था। पटेल गांधी को अनशन करता छोड़कर बंबई चले गए थे। उस समय कांग्रेस के नेतृत्व ने पटेल को दिल्ली में ही रहने को कहा था, इस पर पटेल ने खीझकर कहा था ,‘ यहां मेरे ठहरने से क्या लाभ ? गांधी जी मेरी बात सुनने को तैयार नहीं। लगता है कि वे सारी दुनिया के सामने हिंदुओं के नाम पर कालिख लगाने पर तुले हैं। अगर यही उनका रुख है तो मैं उनके किसी काम का नहीं मैं अपना कार्यक्रम बदल नहीं सकता,मैं बंबई अवश्य जाऊँगा।’
उल्लेखनीय है उस समय पाक के निरपराध हिन्दुओं को निकाले जाने के प्रतिवाद में पटेल ने संघ परिवार और हिन्दू महासभा की मुस्लिम विरोधी हरकतों का समर्थन किया था। वे भारत में मुसलमानों के खिलाफ बदले की कार्रवाई कर रहे थे। संघ की इन कार्रवाईयों का गांधी-नेहरू विरोध कर रहे थे और पटेल खुला समर्थन कर रहे थे। उस जमाने में गांधी जी के प्रति संघ परिवार ने जिस तरह की घृणा पैदा की थी उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ संघ कार्यकर्ताओं ने तो गांधी जी के चित्र को जूते के अंदर रखकर कलकत्ता में जुलूस निकाला था।
(नाथूराम गोडसे के हाथों मारे गए महात्मा गांधी)
संघ की गांधी के प्रति फैलायी घृणा का चरमोत्कर्ष था 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे के हाथों गांधी जी की हत्या। गांधी जी की हत्या ने पटेल को गलत साबित कर दिया था। लेकिन पटेल का संघ प्रेम इससे कम नहीं हुआ उनके मंत्रालय ने नाथूराम गोडसे के बारे में मुकदमे के दौरान एक भी ऐसा प्रमाण पेश नहीं किया जिससे नाथूराम गोडसे को संघ का सदस्य सिद्ध किया जा सके। हां हिन्दू महासभा का सदस्य जरूर सिद्ध कर दिया गया था।
किंतु 1949 में जेल से मुक्त होने के बाद गोलवलकर ने पत्रकारों के सवालों के जबाब देते हुए कहा गोडसे किसी समय संघ का सदस्य था। उन्होंने कहा था , ‘गोडसे किसी समय संघ का सदस्य था अवश्य किंतु बाद में ( आज से 10 साल पूर्व) उसने संघ से त्यागपत्र दे दिया था।’
आयरनी यह कि बल्लभभाई पटेल ने जितने देशभक्ति के प्रमाणपत्र संघ को दिए थे वे स्वयं उन्हें ही खारिज करते हुए कुछ दूसरी बातें संघ के बारे में कहनी पड़ीं। गांधी जी की हत्या के बाद संघ पर 4फरवरी 1948 को पाबंदी लगी और संघ को अवैध घोषित कर दिया गया।
इस मौके पर जारी सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘ संघ के स्वयंसेवक अनुचित कार्य भी करते रहे हैं। देश के विभिन्न भागों में उसके सदस्य व्यक्तिगत रूप से आगजनी, लूटमार, डाके,हत्याएं तथा लुक छिपकर शस्त्र,गोला और बारूद भी संग्रह करने जैसी हिंसक कार्यवाहियां कर रहे हैं। यह भी देखा गया कि ये लोग ऐसे भी परचे बांटते हैं जिसमें जनता को आतंकवादी मार्गों का अवलंबन करने,बंदूकें एकत्र करने तथा सरकार के बारे में असंतोष निर्माण कर सेना और पुलिस में उपद्रव कराने की प्रेरणा दी जाती है।... संघ द्वारा समर्थित हिंसा वृत्ति के अनेक लोग शिकार हुए जिनमें स्वतः गांधी जी ही नवीनतम बलि हैं।’
गांधी जी की हत्या के बाद पटेल ने कम्युनिस्टों के लड़ने के लिए संघ परिवार का कांग्रेस से मेल-मिलाप कराने का प्रयास किया था। उन्होंने गोलवलकर के द्वारा 24 सितम्बर 1948 को लिखे पत्र के जबाब में 26 सितम्बर को लिखा, ‘ मुझे विश्वास है कि संघ के लोग कांग्रेस के साथ मिलकर ही अपने देशप्रेम को सफल कर सकते हैं।’
सरदार बल्लभ भाई पटेल की मौत के बाद कांग्रेस ने संघ से दूरी बनाने की कोशिश की, लेकिन चीन युद्ध के समय पंडित नेहरू भी संघ के सामने झुक गए और उसकी मदद ली बाद में बदले में आरएसएस को 26 जनवरी 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में शामिल किया गया। नेहरू की आज्ञा से ‘ संघ के गणवेशधारी स्वयंसेवकों का एक दस्ता 26जनवरी 1963 को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल हुआ था।’
फिर 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान दिल्ली की ट्रैफिक व्यवस्था 18 दिन के लिए संघ के स्वयंसेवकों के हाथों सौंप दी गयी।’ बाद में 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद संघ के सदस्य अटलबिहारी बाजपेयी ने श्रीमती गांधी को दुर्गा कहा।
आपातकाल में संघ के सरसंघचालक ने स्वयं आपातकाल का समर्थन किया और सहयोग का प्रस्ताव करते हुए श्रीमती गांधी को तीन पत्र लिखे थे।
कालान्तर में राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद की जमीन पर अपने हाथों राममंदिर का शिलान्यास किया।
विदेशों से दर्जनों बहुराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा संघ परिवार के द्वारा संचालित स्वयंसेवी संस्थाओं को करोडों रूपये की अबाधित मदद मिल रही है इसका ये संगठन घृणा फैलाने के कामों में इस्तेमाल कर रहे हैं,इसके ठोस प्रमाण सामने आने के बाद भी कांग्रेसी करकारों ने कभी इन संगठनों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया है। ये कुछ नमूने हैं जो कांग्रेस के संघ के प्रति नरम रूख की पुष्टि करते हैं। इससे भी बड़ा प्रमाण यह है कि कांग्रेस ने हिन्दुत्व के एजेण्डे का पुरजोर शब्दों में कभी विरोध नहीं किया।
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