बुधवार, 23 जून 2010

आरएसएस का मार्गदर्शक मुसोलिनी

  (संघ के संस्थापकों में से एक बी.एस मुंजे)                    
       संघी कार्यकर्ता और भक्त इन दिनों मुझसे नाराज हैं। जब मौका मिलता है अनाप-शनाप प्रतिक्रिया देते हैं। उनकी विषयान्तर करने वाली प्रतिक्रियाएं इस बात का सकेत है कि वे संघ के इतिहास और विचारधारा के बारे में सही बातें नहीं जानते हैं। उनकी इसी अवस्था ने मुझे गंभीरता के साथ संघ के बारे में तथ्यपूर्ण लेखन के लिए मजबूर किया है।
    एक पाठक ने ईमेल के जरिए जानना चाहा है कि मैं मुसोलिनी-हिटलर के साथ आरएसएस की तुलना क्यों कर रहा हूँ ? बंधु, सच यह है कि हेडगेवार के साथी बी.एस .मुंजे ने मुसोलिनी से मुलाकात की थी। संघ की हिन्दू शब्दावली में इसे आशीर्वाद लेना कहते हैं। इस संदर्भ में मुंजे की ऐतिहासिक डायरी को कोई भी पाठक नेहरू म्यूजियम लाइब्रेरी नई दिल्ली में जाकर फिल्म के रूप में देख सकता है।
   आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार के जीवनी लेखक एस.आर,रामास्वामी ने लिखा है बी.एस.मुंजे ने ही जवानी के दिनों में हेडगेवार को अपने घर में रखा था। बाद में मेडीकल की पढ़ाई के लिए कोलकाता भेजा था। मुंजे ने 1931 के फरवरी-मार्च महीने में यूरोप की यात्रा की ,इस दौरान इटली में वे काफी दिनों तक रहे। ये सारे तथ्य उनकी डायरी में दर्ज हैं।
        मुंजे की डायरियों में लिखे विवरण से पता चलता है कि वे 15 से 24 मार्च 1931 तक रोम में रहे। 19 मार्च को वे अन्य स्थलों के अलावा मिलिट्री कॉलेज,सेन्ट्रल मिलिट्री स्कूल ऑफ फिजिकल एजुकेशन तथा सर्वोपरि मुसोलिनी के हमलावर दस्तों के संगठन बेलिल्ला और अवांगार्द संगठनों में भी गए। उल्लेखनीय है मुसोलिनी के फासिस्ट कारनामों को अंजाम देने में इन संगठनों की सक्रिय नेतृत्वकारी भूमिका थी। मुंजे ने इन संगठनों का जैसा विवरण और ब्यौरा पेश किया है आरएसएस का सांगठनिक ढ़ाचा तकरीबन वैसा ही बनाया गया।
      
(मुसोलिनी और हिटलर)
        19 मार्च 1931 को दोपहर 3 बजे इटली सरकार के केन्द्रीय दफ्तर पलाजो वेनेजिया में मुसोलिनी की मुंजे से मुलाकात हुई। मुंजे ने इस मुलाकात के बारे में लिखा है ‘ जैसे ही मैंने दरवाजे पर दस्तक दी, वे उठ खड़े हुए और मेरे स्वागत के लिए आगे आए। मैंने यह कहते हुए कि मैं ड़ा.मुंजे हूँ,उनसे हाथ मिलाया। वे मेरे बारे में सब कुछ जानते थे और लगता था कि स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष को बहुत निकट से देख रहे थे। गांधी के लिए उनमें काफी सम्मान का भाव दिखायी दिया। वे अपनी मेज के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गए और लगभग आधा घंटे तक मुझसे बातें करते रहे। उन्होंने मुझसे गांधी और उनके आन्दोलन के बारे में पूछा और यह सीधा सवाल किया कि क्या गोलमेज सम्मेलन भारत और इंग्लैण्ड के बीच शांति शांति कायम करेगा। मैंने कहा ,यदि अंग्रेज ईमानदारी से हमें अपने साम्राज्य के अन्य हिस्सों की तरह समानता का दर्जा देता हैं तो हमें साम्राज्य के प्रति शांतिपूर्ण और विश्वासपात्र बने रहने में कोई आपत्ति नहीं है अन्यथा संघर्ष और तेज होगा,जारी रहेगा। भारत यदि उसके प्रति मित्रवत् और शांतिपूर्ण रहता है तो इससे ब्रिटेन को लाभ होगा और यूरोपीय राष्ट्रों में वह अपनी प्रमुखता बनाए रख सकेगा। लेकिन भारत में तब तक ऐसा नहीं होगा जब तक उसे अन्य डोमीनियंस के साथ बराबरी की शर्त पर डोमीनियन स्टेट्स नहीं मिलता। सिगमोर मुसोलिनी मेरी इस टिप्पणी से प्रभावित दिखे। तब उन्होंने मुझसे पूछा कि आपने विश्वविद्यालय देखा ? मैंने कहा मेरी लड़कों के सैनिक प्रशिक्षण के बारे में दिलचस्पी है और मैंने इंग्लैण्ड,फ्रांस तथा जर्मनी के सैनिक स्कूलों को देखा है, मैं इसी उद्देश्य से इटली आया हूँ तथा आभारी हूँ कि विदेश विभाग और युद्ध विभाग ने इन स्कूलों में मेरे दौरे का अच्छा प्रबंध किया। आज सुबह और दोपहर को ही मैंने बलिल्ला और फासिस्ट संगठनों को देखा है और उन्होंने मुझे काफी प्रभावित किया। इटली को अपने विकास और समृद्धि के लिए उनकी जरूरत है। मैंने उनमें आपत्तिजनक कुछ भी नहीं देखा जबकि अखबारों में उनके बारे में बहुत कुछ ऐसा पढ़ता रहा हूँ जिसे मित्रतापूर्ण आलोचना नहीं कहा जा सकता।’’
     मुसोलिनी ने जब फासिस्ट संगठनों के बारे में मुंजे की राय जानने की कोशिश की तो मुंजे ने शान के साथ कहाः ‘‘ महामहिम,मैं काफी प्रभावित हूँ, प्रत्येक महत्वाकांक्षी और विकासमान राज्य को ऐसे संगठनों की जरूरत है।भारत को उसके सैनिक पुनर्जागरण के लिए इनकी सबसे अधिक जरूरत है। पिछले डेढ़ सौ वर्षों के ब्रिटिश शासन में भारतीयों को सैनिक पेशे से अलग कर दिया गया है। भारत इपनी रक्षा के लिए खुद को तैयार करने की इच्छा रखता है। मैं उसके लिए काम कर रहा हूँ। मैंने खुद अपना संगठन इन्हीं उद्देश्यों के लिए बनाया है।इंग्लैण्ड या भारत,जहाँ भी जरूरत पड़ेगी आपके बल्लिला और अन्य फासिस्ट संगठनों के पक्ष में सार्वजनिक मंच से आवाज उठाने में मुझे कोई हिचक नहीं होगी। मैं इनके अच्छे भाग्य और पूर्ण सफलता की कामना करता हूँ।’’
  बी.एस.मुंजे ने जिस बेबाकी के साथ फासिज्म और उसके संगठनों की प्रशंसा की है उससे मुसोलिनी और फासीवादी संगठनों के साथ आरएसएस के अन्तस्संबंधों पर पड़ा पर्दा उठ जाता है।
     भारत लौट आने के बाद मुंजे ने पुणे से प्रकाशित ‘मराठा’ नामक अखबार को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘ वास्तव में नेताओं को जर्मनी , बलिल्ला और इटली के फासिस्ट संगठनों का अनुकरण करना चाहिए। मुझे लगता है कि भारत के लिए वे सर्वथा उपयुक्त हैं। यहाँ की खास परिस्थिति ने अनुरूप उन्हें अपनाना चाहिए। मैं इन आंदोलनों से भारी प्रभावित हुआ हूँ और अपनी आँखों से पूरे विस्तार के साथ मैंने उनके कामों को देखा है।’’
    मुंजे ने यह भी लिखा "The idea of fascism vividly brings out the conception of unity amongst people... India and particularly Hindu Indians need some such institution for the military regeneration of the Hindus: so that the artificial distinction so much emphasised by the British of martial and non–martial classes amongst the Hindus may disappear. ... Our institution of Rashtriya Swayamsevak Sangh of Nagpur under Dr. Hedgewar is of this kind, though quite independently conceived. I will spend the rest of my life in developing and extending this Institution of Dr. Hedgewar all throughout Maharashtra and other provinces." 
       आरएसएस के संस्थापकों में से एक बी.एस मुंजे की डायरी के उपर्युक्त अंश आरएसएस के कई मिथों और झूठ को नष्ट करते हैं। मसलन् इससे यह झूठ नष्ट होता है कि संघ का मुसोलिनी और फासीवादी संगठनों के साथ कोई संबंध नहीं है। दूसरा यह झूठ खंडित होता है कि संघ एक सांस्कृतिक संगठन है। तीसरा यह झूठ नष्ट होता है कि संघ की राजनीति में दिलचस्पी नहीं है, वह अ-राजनीतिक संगठन है। चौथा यह झूठ खंडित होता है कि संघ में सिर्फ हिन्दू संस्कृति की शिक्षा दी जाती है।
  सच यह है कि संघ का समूचा ढ़ांचा फासीवादी संगठनों के अनुकरण पर तैयार किया गया है। उसका हिन्दू संस्कृति से कोई संबंध नहीं है।     





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