(सरसंघचालक गुरू गोलवलकर)
आज भारत के नौजवान आरएसएस के बारे में न्यूनतम जानते हैं। भारत में युवाओं के मन को विचारधारात्मक तौर पर विषाक्त करने में संघ परिवार की सबसे बड़ी भूमिका रही है। अधिकांश युवा नहीं जानते कि संघ का लक्ष्य भारत को लेकर क्या था ?
आज हमारे देश में जो लोकतंत्र ,धर्मनिरपेक्षता और संघात्मक राष्ट्र का वातावरण है और जिस संघात्मक व्यवस्था में हमारा शासन चल रहा है। इन सबका संघ ने विरोध किया था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ उन संगठनों में है जिसने वयस्क मताधिकार का विरोध किया था।
सन् 1949 में वयस्क मताधिकार का विरोध करते हुए गोलवल्कर ने लिखा ‘ वयस्क मताधिकार सभी देशों में नहीं है। केवल नहीं है जहाँ शताब्दियों का अनुभव है और वहां अशिक्षित जन समुदाय को मताधिकार प्रदान करना अनुचित प्रतीत नहीं होता। सर्वप्रथम जन समुदाय को शिक्षित करना आवश्यक है।’ ( पत्रकारों के बीच श्री गुरूजी,हिन्दुस्तान साहित्य 2,राष्ट्रधर्म प्रकाशन लखनऊ,पृ38)
भारत में भाषावार राज्यों का गठन हो, यह स्वाधीनता संग्राम में पैदा हुई साझा राष्ट्रीय मांग थी, कांग्रेस का यह वायदा भी था कि आजादी के बाद भाषावार राज्यों का गठन किया जाएगा। गोलवलकर ने भाषावार राज्यों को ‘राष्ट्र की व्याधि’ कहा था। उन्होंने राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद कहा- ‘ हम संघात्मक संविधान की चर्चा एकदम बंद कर दें ;भारत में पूर्ण या अर्द्ध स्वायत्त सभी राज्यों को समाप्त कर दें तथा एक देश ,एक राज्य,एक विधानसभा और कार्यपालिका की घोषणा करें,जो प्रादेशिक,सांप्रदायिक अभिनिवेश से मुक्त हो तथा जिसकी अखंडता को किसी भी भांति भंग न किया जा सके।’ (पालकर, श्री गुरूजी व्यक्ति और कार्य,पृ.277)
धर्मनिरपेक्ष राज्य का विरोध करते हुए लिखा ‘ असांप्रदायिक (धर्मनिरपेक्ष) राज्य का कोई अर्थ नहीं।’ ( पत्रकारों के बीच गुरूजी,पृ36)
आरएसएस के सरसंघचालक ने फासीवादियों की तरह ही एकात्मक निगमीय अथवा सहकार्य (कारपोरेट) राज्य की स्थापना को संघ का लक्ष्य बताया था। उसकी स्थापना के उद्देश्यों की घोषणा में कहा गया है कि वह एक सुसंगठित और सु-अनुशासित निगमीय (कारपोरेट) जीवन का निर्माण करने के लिए स्थापित किया गया था।’( एंथनी एलेनजी मित्तम पूर्वोक्त,पृ.79)
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