पोर्नोग्राफी के सवाल पर जब भी बहस होती है तो वह नैतिक-अनैतिक ,शुभ-अशुभ, पाप-पुण्य में वर्गीकृत करके होती है। पोर्नोग्राफी के सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभावों को हमें इन सब केटेगरी के पार जाकर पेशेवर व्यक्तियों के द्वारा किए शोधकार्यों के जरिए समझने की कोशिश करनी चाहिए। पोर्नोग्राफी के बारे में वैज्ञानिक समझ बनाने के लिए समाजविज्ञानियों,मनोचिकित्सकों और व्यवहार विज्ञान के विशेषज्ञों की राय को जानना सही होगा।
सन् 1970 में अमेरिका के राष्ट्रपति ने अश्लीलता और पोर्नोग्राफी पर एक आयोग बनाया था इस आयोग ने अमेरिका में पोर्न पर किए 80 शोध कार्यों का मूल्यांकन करके कुछ निष्कर्ष निकाले थे। सन् 1970 में अमेरिका में किए गए राष्ट्रीय सर्वे में पांच में से दो- तीन व्यक्तियों का मानना था कि सेक्स से संबंधित नग्न सामग्री में सेक्स के बारे में सूचनाएं होती हैं। ये सूचनाएं मनोरंजन के रूप में होती हैं। इससे नैतिक पतन होता है। इससे विवाहित युगल के शारीरिक संबंधों में सुधार आता है। लोगों में बलात्कार की भावना पैदा होती है।
सेक्सुअली नग्न सामग्री बोरियत पैदा करती है। वैवाहिक युगलों में नए तरीके से सेक्स करने का रूझान बढ़ता है। इससे व्यक्ति में औरत के प्रति सम्मानभाव घटता है। इस सर्वे के निष्कर्षों की 1985 के गेलप पोल द्वारा किए सर्वे से पुष्टि हुई। उसके भी यही निष्कर्ष थे।
पोर्नोग्राफी के व्यवहारमूलक अनुभवों पर किए सर्वे से पता चला कि सेक्सुअल गतिविधि में पोर्न से थोड़ा बढ़ोतरी होती है। पोर्न की फैंटेसियों से सेक्स में थोड़ा इजाफा होता है। लेकिन कोई बड़ा इजाफा नहीं होता। कमीशन ने यह भी पाया कि पोर्न और अपराध के रिश्ते को पुष्ट करने वाले तथ्य अभी तक नहीं मिले हैं। ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं जिनसे पोर्नोग्राफी और अपराध के अन्तस्संबंध की पुष्टि हो। लेकिन पोर्नोग्राफिक सामग्री पर लगी पाबंदियों को हटा देने से अपराध में बढ़ोतरी हो सकती है इस तरह के आंकड़े डेनमार्क से मिले हैं।
सन् 1970 के आयोग ने निष्कर्ष में कहा कि हमारे पास ऐसी जानकारियां नहीं हैं जिनसे यह बात पुष्ट हो कि सेक्सुअली नग्न सामग्री देखने से युवाओं और वयस्कों में अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ती है। कमीशन यह नहीं कह सकता कि इरोटिक सामग्री से अपराध में इजाफा होता है।
अनेक विद्वानों ने कमीशन के निष्कर्षों को अस्वीकार किया और चुनौती दी। उन्होंने रेखांकित किया कि 1970 वाले कमीशन की पोर्न के प्रभाव के अध्ययन की पद्धति दोषपूर्ण थी। साथ ही यह भी बताया कि हिंसक पोर्नोग्राफी के प्रभाव का तो इस सर्वे में अध्ययन ही नहीं किया गया।
इस कमीशन के सर्वे करने वालों के पास समय की कमी थी जिससे बेहतर रिसर्च नहीं हो पायी। अधिकांश रिसर्चर को 9 महिने से ज्यादा का समय नहीं मिला। उस समय कोई शोध पद्धति भी नहीं थी,ज्यादातर रिसर्च निजी अनुभव पर आधारित थी। इससे निजी अनुभव और कामुक उत्तेजना के बीच के संबंधों अन्तस्संबंध,उत्तेजक पोर्न सामग्री और निजी अनुभव के अन्तस्संबंध की वैज्ञानिक मीमांसा नहीं हो पायी। कालान्तर में इसके अनेक आयामों को खोला गया।
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