एनडीटीवी की प्रणवराय-विनोद दुआ टीम अब नंगे रूप में मनमोहन सरकार और कांग्रेस की भक्ति में सक्रिय हो गई है। ये लोग खबरों में कारसेवा कर रहे हैं। इस चैनल की खबरों में खासकर हिन्दी चैनल एनडीटीवी इंडिया में कांग्रेस की भक्ति और विपक्ष पर कटाक्ष का धारदार तरीके से इस्तेमाल हो रहा है। कांग्रेस और मनमोहन सरकार की भक्ति का ताजा उदाहरण है 26 जून को आपातकाल की बरसी पर किसी कार्यक्रम का टीवी पर न होना। वैसे सीएनएन-आईबीएन ने भी 26 जून पर कोई कार्यक्रम नहीं दिया।
सन् 1975 को इसी दिन भारत में आपातकाल लगाया था। आपातकाल पर किसी भी कार्यक्रम का न आना टीवी चैनलों में बढ़ रहे नव्य-उदार नजरिए को सामने लाता है। आपातकाल कोई साधारण घटना नहीं थी,बल्कि स्वतंत्र भारत की असाधारण राजनीतिक घटना थी। इन दोनों ही चैनलों की बेवसाइट पर आपातकाल से संबंधित किसी भी कार्यक्रम की कोई जानकारी नहीं है।
दूसरा प्रसंग हाल ही में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों के बढ़ाए जाने और सरकारी नियंत्रण हटाने का है। एनडीटीवी इंडिया ने इस पर जिस तरह से खबरें दी हैं वह इस बात का प्रमाण है कि यह चैनल बड़े ही घटिया तरीके से विपक्ष और प्रतिवाद के बारे में प्रचार कर रहा है।
एनडीटीवी ने काग्रेस के प्रवक्ता की प्रेस कांफ्रेंस की रिपोर्टिंग की तो उसके बयान को वगैर किसी टिप्पणी के पेश किया। इसके विपरीत जब विपक्ष की रिपोर्टिंग की तो खबर के बीच में अपने मंतव्य को व्यक्त किया,विपक्ष का मूल्य-निर्णय किया ।
एनडीटीवी यह तो जानता है कि पेशेवर ढ़ंग से खबर पेश करने का मनलब क्या है ? प्रणवराय-विनोद दुआ यह भी जानते हैं कि खबर में संवाददाता की राय का समावेश नहीं किया जाना चाहिए। यदि संवाददाता अपनी राय व्यक्त करना चाहे तो यह काम वह स्वतंत्र रूप से कर सकता है। लेकिन खबर में राय देना और मूल्य निर्णय देना पेशेवर प्रस्तुति नहीं कही जाएगी। यह खबर का मेनीपुलेशन है। नमूना देखें कांग्रेस प्रवक्ता के बयान को शीर्षक दिया - ‘तेल की कीमतों में बढ़ोतरी मजबूरी में की गई’, इस खबर में संवाददाता ने अपनी राय व्यक्त करने की कोशिश नहीं की। साथ ही यह भी आभास दिया कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढ़ाना अपरिहार्य कदम था। मजबूरी थी।
दूसरी खबर का शीर्षक था - ‘ईंधन कीमतों में वृद्धि पर बीजेपी-लेफ्ट का प्रदर्शन’, इस खबर को उसी तरह पेश नहीं किया जैसे काग्रेस की खबर को पेश किया था। इस खबर में खबर के अलावा संवाददाता ने भाजपा के बारे में, उसके प्रतिवाद के बारे में मूल्य-निर्णय किया है जो समाचार-मूल्य का सीधे उल्लंघन है। इस खबर को पूरा पढ़ना समीचीन होगा।-
" ईंधन कीमतों में वृद्धि पर बीजेपी-लेफ्ट का प्रदर्शन
एनडीटीवी इंडिया
दिल्ली/कोलकाता, शनिवार, जून 26, 2010
यूपीए सरकार ने जैसे ही शुक्रवार को तेल और गैस की कीमतें बढ़ाने का ऐलान किया विपक्ष विरोध में खड़ा हो गया। तेल गैस की बढ़ी हुई कीमतों के खिलाफ शनिवार को दिल्ली में बीजेपी ने चक्का जाम किया। दिल्ली के सबसे व्यस्त आईटीओ चौराहे पर बीजेपी के कार्यकर्ता धरना प्रदर्शन पर उतर आए और यहां घंटों जाम लगा रहा। वहीं मुंबई में भी बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने तेल-गैस की बढ़ी कीमतों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इनमें गोपीनाथ मुंडे, स्मृति ईरानी ने बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं समेत गिरफ्तारी भी दीं।
उधर, ईंधन कीमतों में वृद्धि के खिलाफ माकपा समर्थित सीटू की हड़ताल के आह्वान का असर सार्वजनिक परिवहन पर देखने को मिला है। राज्यभर में 24 घंटे की हड़ताल के कारण बस, मिनी बस और टैक्सियां सड़कों पर नहीं दिखीं लेकिन मेट्रो सेवाएं सामान्य हैं। पूर्वी रेलवे के सूत्रों ने कहा कि हड़ताल से रेल सेवाओं को अलग रखा गया है। हवाई अड्डा के सूत्रों ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर विमान सेवाएं सामान्य थीं।
एक तरफ सरकार आम लोगों को महंगाई से मार रही है तो दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी दल बीजेपी विरोध की नौटंकी कर रही है। उसने शुक्रवार को दिल्ली में ऐसे लोगों को लेकर जूलूस निकाला जिनको बेघर होने का दर्द है लेकिन बीजेपी ऐसे जता रही है जैसे कि वे पेट्रोल-डीज़ल के खिलाफ सड़कों पर हैं। पेट्रोल-डीज़ल और रसोई गैस की बढ़ी क़ीमतों के खिलाफ बीजेपी ने दिल्ली के गोल डाकखाने पर एक प्रदर्शन का आयोजन किया। पुलिस ने ज्यादातर कार्यकर्ताओं को एहतियातन हिरासत में ले लिया। जुलूस में चल रही महिलाओं की गोद में छोटे बच्चे भी थे। हमें शक हुआ कि आखिर इतने छोटे बच्चों के साथ क्या ये वाकई महंगाई के लिए सड़क पर उतरी हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि इन पर महंगाई की भी भारी मार पड़ रही है लेकिन बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टी के कुछ कार्यकर्ता अपना उल्लू सीधा करने के लिए इनकी भावनाओं से खेल रहे हैं। इन लोगों का घर टूटा है लेकिन वे इनका इस्तेमाल महंगाई के मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए कर रहे हैं।’’
यहां पर जो पंक्तियां रेखांकित की गई हैं उन्हें गौर से देखने से चैनल की पक्षधरता सहज ही समझ में आ जाएगी। सवाल यह है कि क्या खबर में संवाददाता की राय को शामिल करना सही होगा ? खबर या राय या मूल्य-निर्णय का फार्मूला सही है तो उसे कांग्रेस वाली खबर पर लागू क्यों नहीं किया ? असल में , यह मंहगाई के प्रतिवाद का उपहास उड़ाना है। नव्य-उदारतावाद की नीतियों के प्रतिवाद का उपहास करो,यही नीतिगत फार्मूला है जिससे टीवी चैनल संचालित हैं। वे प्रतिवाद को नौटंकी कह रहे हैं और चैनल के द्वारा की जा रही सरकारी कारसेवा को खबर की वस्तुगत प्रस्तुति कह रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें