गरीबी और भुखमरी विश्वबैंक और अमरीकी कारपोरेट घरानों का सबसे प्रिय विषय है। यह विषय जितना त्रासद है उतना ही उपेक्षा का शिकार भी है। विश्वबैंक की सन् 2008 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार सारी दुनिया में सन् 2005 में 350 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या ढाई डालर प्रतिदिन के आधार पर गुजारा कर रही थी। इनमें भी 44 प्रतिशत लोग मात्र सवा डालर प्रतिदिन के आधार पर ही गुजारा कर रहे थे। अब इतनी बड़ी जनसंख्या के पास जब खाने के ही लाले पड़े हैं तो ऐसे में फोन,मोबाइल,घर,दवा,चिकित्सा आदि की बातें तो स्वर्ग की कल्पना नजर आती हैं। सारी दुनिया में प्रतिदिन भूख से तीस हजार लोग मर जाते हैं। इनमें पांच साल से कम उम्र के 85 प्रतिशत बच्चे कुपोषण ,भूख और इलाज होने लायक बीमारियों के कारण ही मर जाते हैं।गैर जरूरी कारणों से मरने वालों की संख्या विगत चालीस सालों में 30लाख का आंकड़ा पार कर गयी है। इन मरने वालों में वे लोग ज्यादा हैं जो अभागे स्थानों में पैदा हुए हैं।
अभागे और भाग्यवानों के बीच में बंटे हुए इस संसार में संपत्ति भी बंटी हुई है। डेविड रूथकॉफ ने 'सुपरक्लास' नामक किताब में लिखा है कि दुनिया के सर्वोच्च दस प्रतिशत वयस्कों के पास सारी दुनिया की 84 प्रतिशत दौलत है। जबकि सबसे नीचे के लोगों के पास एक प्रतिशत दौलत है। इन दस प्रतिशत दौलतमंदों में एक हजार बिलिनियर हैं। अमीरी और गरीबी के बीच का यह आंकडा क्या सिर्फ भाग्य का खेल है ?चांस की बात है ?पूर्वजन्म के पुण्य का फल है ?अथवा कुछ और है ?
सारी दुनिया में किसान सबसे ज्यादा खाद्य पैदा करता है। वह इतना पैदा करता है कि सारी दुनिया का आसानी से पेट भरा जा सके,इसके बावजूद अगर लोग भूख और गरीबी के शिकार हैं तो यह भाग्य और भगवान का खेल तो कम से कम नहीं हो सकता। सन् 2007 में सारी दुनिया में किसानों ने 2.3 बिलियन टन गेंहूँ पैदा किया जो सन् 2006 की पैदावार से चार प्रतिशत ज्यादा था। इसके बावजूद भूखों की तादाद करोडों में पहुँच गयी है।
अब एक नया नारा कारपोरेट जगत में चल निकला है कि 'भूखा रखो अमीर बनो'। अमीरों की अमीरी भाग्य का खेल नहीं है बल्कि अमीरों की संवेदनहीनता और लालसा का खेल है। वे लोग आम आदमी को भूख से मारकर अमीर बन रहे हैं। अमीरी के इस नुस्खे में 'हल्दी लगे न फिटकरी रंग चोखो ही चोखो' की कहावत चरितार्थ हो रही है। ऊपर से चैनलों में बाबा रामदेव से लेकर श्रीश्री रविशंकर तक सभी परलोक, भगवान,भाग्य का उपदेश देते रहते हैं। इन लोगों को कभी यह तथ्य समझ में नहीं आता कि गरीबी और भुखमरी का कारण भाग्य और भगवान नहीं है। यह सवाल पैदा होता है कि कभी ये बाबा ,संत और महंत गरीबी और भुखमरी के लिए अमीरों पर आग बरसाते क्यों नजर नहीं आते ? वस्तुओं की जमाखोरी से पैदा होने वाले बेशुमार धन को कारपोरेट घराने सट्टाबाजार में लगाते हैं और एक के सौ बनाते हैं। अमीरों के लिए अकाल,सूखा और भुखमरी चिंता की चीज नहीं हैं बल्कि उनके लिए आनंद, उल्लास और मुनाफे की खबर है।
अब हम जरा अमीरों के स्वर्ग अमरीका की ओर नजर डालें कि वहां क्या हो रहा है। गरीबी,भुखमरी और बेकारी के प्रति कारपोरेट मीडिया का क्या रवैयया है ? अमरीका की गरीबी और तबाही का सबसे ज्यादा आख्यान वेबसाइट पर उपलब्ध है। चमकीले चैनलों और कारपोरेट प्रेस में अमरीकी तबाही का आख्यान एकसिरे से गायब है। अमेरिका के स्वयंसेवी संगठनों की वेबसाइटें गरीबी और तबाही के आख्यान से भरी हैं।
अक्टूबर 2008 में गरीबों के बारे में जारी एक रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका में 28 प्रतिशत से ज्यादा परिवार ऐसे हैं जिनके दोनों या एक अभिभावक काम करते हैं और गरीबी में जीने के लिए अभिशप्त हैं। सन् 2004 से 2006 के बीच के श्रम विभाग और जनसंख्या विभाग से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि 9.6 मिलियन परिवार ऐसे हैं जो सबसे कम आमदनी वाली 'अतिगरीब' की केटेगरी में रखे जा सकते हैं। ये वे लोग हैं जो आधिकारिक स्तर पर गरीबी की जो परिभाषा है उससे 200 प्रतिशत कम कमाते हैं। सन् 2002 में तकरीबन 2.1 मिलियन बच्चे 'अतिगरीब' की केटेगरी में आते थे जिनकी संख्या सन् 2006 में बढकर आठ लाख का आंकड़ा पार कर गयी है। सन् 2006 में 29 मिलियन रोजगार 'अतिगरीब' केटेगरी में आते थे, इन लोगों को सरकार द्वारा घोषित वेतनमान से भी कम वेतन दिया जाता था। इन 'अतिगरीब' मजदूरों की संख्या बढकर पांच मिलियन का आंकडा पार कर गयी है। सन् 2002 से 2006 के बीच में अमरीका में परिवारों की आमदनी में असमानता तेजी से बढ़ी है। सन् 2006 में सर्वोच्च 20 प्रतिशत अमरीकी परिवारों की आमदनी सबसे निचले स्तर पर जीने वाले परिवार की आमदनी से 9.2 गुना ज्यादा दर्ज की गई।
सन् 2008 के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में 13.2 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी में जी रही है। अमेरिका में गरीबी का यह विगत 11 सालों का सर्वोच्च आंकड़ा है। इनमें अफ्रीकन अमेरिकी आबादी में गरीबों की तादाद दुगुना हो गयी है तकरीबन24.7 प्रतिशत आंकी गयी है। मंदी के कारण तकरीबन 31 प्रतिशत अमेरिकियों में गरीबी ने अपने पैर पसारे हैं। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि सन् 2008 में 39.8 मिलियन लोग अभावपूर्ण अवस्था में जी रहे थे।सन् 1960 के बाद का अभावग्रस्त लोगों का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है।सन् 1999-2008 के दौरान प्रति व्यक्ति अमेरिकी आय में अभूतपूर्व गिरावट आई है। यह स्थिति तब है जब कि युद्ध के बहाने सैन्य उद्योग को चंगा करने की कोशिश की गई और इसके बावजूद आम जनता की जीवनदशा में गिरावट को रोका नहीं जा सका।
आर्थिक मंदी आने के बाद से अमेरिका की सामाजिक असमानता और भी बढी है। आज प्रति आठ में से एक व्यक्ति को गरीबी ने तबाह कर रखा है। तकरीबन 25 लाख लोग सालाना कारखानाबंदी,छंटनी आदि कारणों से लोग अतिगरीबी की केटेगरी में ठेले जा रहे हैं। ये आंकड़े 1998 के गरीबी के स्तर से तुलना करके जारी किए गए हैं।
अश्वेत परिवारों की तुलना में श्वेत परिवारों के पास नौ गुना ज्यादा संपदा है। इसी तरह अश्वेत युवाओं की तुलना में श्वेत युवाओं के पास सात गुना ज्यादा संपदा है। अमरीका में गरीबों में खासकर अफ्रीकी-अमरीकी नागरिकों में बीमारियों ने अपने घर बसा लिए हैं। अमरीका के 75 फीसदी टीवी के शिकार अश्वेत हैं। स्वयं ओबामा के राज्य इलीनोसिस में एचआईवी-एड्स के अधिकांश मरीज अश्वेत हैं। दस में से तीन काले और लातिनी लोग गरीबी में गुजारा कर रहे हैं। इसी तरह गरीब अश्वेत बच्चों की तादाद श्वेत बच्चों की तुलना में तीन गुना ज्यादा है।
अमरीका के आंकड़े बताते हैं कि सन् 2007 में बच्चों में भुखमरी 50 फीसद बढ़ी है। अमरीका में सन् 2007 में 691,000 बच्चे भुखमरी के शिकार थे। यह संख्या विगत वर्ष की तुलना में पचास फीसदी ज्यादा है। प्रति आठ अमरीकियों में एक अमरीकी अपना पेट मुश्किल से भर पाता है। तकरीबन 36.2 मिलियन लोग इस वर्ष भूख से लड़ रहे थे। यानी उन्हें किसी एक समय बिना खाए रहना पड़ रहा है। सन् 2007 में भयानक भूख से पीड़ितों की संख्या 11.9 मिलियन थी। यानी सन् 2000 की तुलना में भूखे लोगों की संख्या में 49 फीसद का इजाफा हुआ है।
सन् 2008 की आर्थिक मंदी के बाद भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या और भी ज्यादा होने की संभावना है। चार लोगों के परिवार की आय 21,027 डालर के नीचे है तो उसे गरीब परिवार की केटेगरी में रखा जाता है। इतनी कम आय के लोगों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। खाद्य असुरक्षितों की संख्या बढ़कर 37.7 फीसद हो गयी है। इनमें अफ्रीकी-अमेरिकी परिवारों में 22.2 फीसद परिवार खाद्य असुरक्षा के शिकार हैं। 20.1 फीसदी हिसपेनिक परिवार, एकल महिला अभिभावक 30.2 फीसद परिवार और एकल पुरूष अभिभावक परिवारों की संख्या 18 फीसद है। यानी एकल अभिभावक परिवार ज्यादा गरीब हैं।
अमरीका के दक्षिणी राज्यों में ज्यादा खाद्य असुरक्षा है। इनमें मिसीसिपी (17.4 फीसद),न्यू मैक्सिको ( 15 फीसद) ,टेक्सास ( 14.8 फीसद) और अरकन्सास ( 14.4 फीसद) में सबसे ज्यादा गरीबी है। खाद्य असुरक्षा सिर्फ शहर के अंदरूनी इलाकों अथवा महानगरों तक ही सीमित नहीं है बल्कि गांवों और कम आबादी के इलाकों में भी खाद्य असुरक्षा ने पांव पसार दिए हैं। कम आबादी वाले अलास्का और लोवा में विगत नौ सालों से भयानक खाद्य असुरक्षा चल रही है। उल्लेखनीय है कि अमरीका में खाने पर ही लोग सबसे ज्यादा खर्च करते हैं। नए संकट ने सभी को खाने के बजट में कमी करने को मजबूर किया है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मेरा बचपन- माँ के दुख और हम
माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...
-
मथुरा के इतिहास की चर्चा चौबों के बिना संभव नहीं है। ऐतिहासिक तौर पर इस जाति ने यहां के माहौल,प...
-
लेव तोलस्तोय के अनुसार जीवन के प्रत्येक चरण में कुछ निश्चित विशेषताएं होती हैं,जो केवल उस चरण में पायी जाती हैं।जैसे बचपन में भावानाओ...
-
(जनकवि बाबा नागार्जुन) साहित्य के तुलनात्मक मूल्यांकन के पक्ष में जितनी भी दलीलें दी जाएं ,एक बात सच है कि मूल्यांकन की यह पद्धत...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें