मुतादर अल जैदी आखिरकार जेल से बाहर आ ही गए। जेल से बाहर आते ही उन्होंने खुदा का शुक्रिया अदा किया और दुख व्यक्त किया कि उनका देश अभी अमेरिकी गुलामी और सेना के जूतों तले कराह रहा है। उल्लेखनीय है यह वही पत्रकार है जिसने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर जूता फेंका था और उन्हें इराकी सेना ने गिरफ्तार कर लिया था और सजा भी दी थी,अब मुतादर जेल के बाहर है। जेल से बाहर आते ही उसने एक बयान में कहा है , मैं कैद से मुक्त हो गया हूँ किन्तु मेरा देश अभी भी युद्ध में कैद है। मेरे प्रतिवाद के समय जिन लोगों ने मेरा साथ दिया था,चाहे वो देश अंदर या बाहर हों,मैं उन सबका धन्यवाद करता हूँ। मेरा वह प्रतीकात्मक प्रतिवाद था।
मुतादर ने अपने देश की दुर्दशा देखकर दुस्साहसिक फैसला लिया और बुश के ऊपर अपना जूता फेंककर मारा था। अपने बयान में उसने कहा है मेरे देश की जनता के साथ जिस तरह का अन्याय हो रहा है,देश पर कब्जा जमाने वालों ने हमारी मातृभूमि को जूतों तले रौंदकर जिस तरह अपमानित किया है,उसके कारण ही मैंने जूता फेंककर प्रतिवाद करने का फैसला लिया था। विगत चंद सालों में दस लाख से ज्यादा लोग कब्जा करने वालों की गोलियों से मारे गए हैं।तकरीबन पचास लाख इराकी शरणार्थी हो गए हैं। लाखों औरतें विधवा हो गयी हैं।लाखों बच्चे अनाथ हो गए हैं।देश के अंदर और बाहर विस्थापन के कारण लाखों लोगों के घर-द्वार नष्ट हो गए हैं।
मुतादर ने कहा कि हमारी एकता और धैर्य ने हमें दमन को भूलने नहीं दिया है। हमारे देश में विदेशी कब्जे के पहले मुक्ति का विभ्रम था,लेकिन देश पर विदेशियों का कब्जा हो जाने के बाद भाई भाई का दुश्मन हो गया । पड़ोसी पड़ोसी का दुश्मन हो गया । बेटा अपने चाचा का शत्रु हो गया। हमारे घर अहर्निश जलने वाली चिताओं के श्मशान बनकर रह गए हैं। पार्क और सड़कों पर कब्रगाह फैल गए हैं। यह प्लेग है। यह कब्जा है जो हमारी हत्या कर रहा है। हमारे घरों और मस्जिदों की पवित्रता नष्ट कर दी गयी है और उन्हें जेलखानों में तब्दील कर दिया गया है।
मुतादर न लिखा है मैं हीरो नहीं हूँ लेकिन मेरे पास नजरिया है।मेरे पास उदाहरण है। यह मेरा और मेरे देश का अपमान है। मैं बगदाद को जलते हुए देख रहा हूँ। मेरे लोग मारे जा रहे हैं। हजारों त्रासद तस्वीरें मेरे दिमाग में बसी हुई हैं। वे मुझे लगातार सही रास्ते की ओर ठेलती हैं। संघर्ष के रास्ते पर ठेलती हैं। अन्याय ,वंचना,दुरंगेपन को अस्वीकार करने के मार्ग पर ठेल रही हैं। ये मुझे चैन की नींद से वंचित कर रही हैं।मैंने पिछले साल अपने जलते हुए देश का दौरा किया था और अपनी आंखों से पीड़ितों के दर्द,पीड़ा,कष्ट,आंसुओं को देखा था।मुझे अपनी शक्तिहीनता पर शर्म आ रही थी।यही वह क्षण था जब मैंने जार्ज बुश पर जूता फेंकने का फैसला किया। मुतादर ने लिखा जब सभी मूल्यों का उल्लंघन हो जाए तो जूता ही एकमात्र उपयुक्त अस्त्र है। मैंने जब अपराधी बुश के मुँह पर जब जूता फेंका था, तो मैं अपने देश पर कब्जा जमाने के बारे में व्यक्त किए गए असत्य का खंडन कर रहा था। यह मेरा अपने लोगों की हत्या का अस्वीकार था।यह इराकी संपदा को नष्ट करने और लूटने का अस्वीकार था। इराकी जनता को लूटने,हत्या करने,अपमानित करने,इराकी समाज को बर्बाद करने वाला पीड़ितों से बदले में विदायी के फूल लेने आया था। कब्जा जमाने वाले के लिए जूता ही मेरे हाथ में फूल था। उल्लेखनीय है मुतादर ने जब जूता फेंका था तो उसे टेलीविजन चैनलों ने व्यापक कवरेज दिया।अतिरंजित प्रस्तुति की हद तक ले जाकर उसे छोड़ा था।मुतादर की जूता फेंकने की घटना प्रतिवाद की क्रांतिकारी शैली का आदर्श इराकी उदाहरण बन गयी।
टीवी प्रस्तुतियां तकनीकी कौशल की देन हैं। इनमें बेचैनी, प्रेरणा और परिवर्तन की क्षमता नहीं होती। ये महज प्रस्तुतियां हैं। जितना जल्दी संप्रेषित होती हैं उतनी ही जल्दी गायब हो जाती हैं। प्रस्तुतियां आनंद देती हैं,मनोरंजन करती हैं और खाली समय भरती हैं। इनके जरिए राजनीतिक यथार्थ समझ में नहीं आता। राजनीतिक यथार्थ तो टीवी प्रस्तुतियों के बाहर होता है।टीवी जिन्हें 'महानायक' बनाता है उनकी इमेज का विलोम भी वह स्वयं तैयार करता है, जिस मीडिया ने बुश को 'महानायक' बनाया था वही बुश एक ही झटके में अपना विलोम बनते हुए मीडिया में देख रहा था। टीवी की यह वैचारिक विशेषता है कि वह जिसे आइकॉन बनाता है फिर उसकी इमेज का विलोम भी तैयार करता है।
यथार्थ की कठोर वास्तविकता ने बुश की 'महानायक' वाली फैण्टेसीमय इमेज को जूते फेंकने वाली घटना ने एक ही झटके में खत्म कर दिया। अपने आखिरी इराकी दौरे के समय एक प्रेस कॉफ्रेस में एक पत्रकार ने जब बुश के ऊपर प्रतिवाद स्वरूप जूता फेंककर मारा तो सारी दुनिया में जूते फेंकने वाले के पक्ष में हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया। अमरीकी मीडिया में भी इस घटना का प्रभावशाली रूपायन हुआ और अमरीकी राजनीतिक सर्किल में बुश के पक्ष में कोई बोलने के लिए तैयार नहीं हुआ।
एक पत्रकार के जूते के सामने बुश बौने लग रहे थे,जूते की मार से बचने के लिए सिर झुका रहे थे। डिजिटल फोटो में इराकी जूता ऊपर था जॉर्ज बुश का सिर नीचे था। यह बुश की प्रतीकात्मक पराजय थी। महायथार्थ के फैंटेसीमय महाख्यान का शानदार ग्लोबल अंत था। अब बुश महान नहीं थे । बुश सद्दाम से जीत गए किंतु इराकी जूते से हार गए। जूते का सच इराकी सच है। यह उन तमाम तर्कों का अंत है जो बुश को वैध बनाते हैं,महान् बनाते हैं। यह उस सेंसरशिप का भी अंत है जो अमरीकी मीडिया में इराक को लेकर जारी है। संदेश यह है कि इराकी जूता सच है अमरीकी प्रशासन गलत है। इराक को लेकर अमरीकी नीतियां गलत हैं। इराक विजय से आरंभ हुआ बुश आख्यान इराकी जूते के आगमन से खत्म हुआ। एक जूता अमरीका की विशाल सेना पर भारी पड़ा, यह साधारण इराकी का जूता था और इसे भी ओबामा की जीत के बाद ही पड़ना था। तात्पर्य यह कि मीडिया निर्मित फैंटेसी नकली होती है, उसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं होता। एक स्थिति के बाद यह गायब हो जाती है।
महायथार्थ ( वर्चुअल रिसलिटी) की धुरी है विवरण,ब्यौरे और सुनियोजित फैंटेसीमय प्रस्तुति । इस तरह की प्रस्तुतियां संवाद नहीं करती बल्कि इकतरफा प्रचार करती हैं। दर्शक के पास ग्रहण करने के अलावा कोई चारा नहीं होता। वह इसमें हस्तक्षेप नहीं कर पाता। महायथार्थ की आंतरिक संरचना में नागरिक की आकांक्षाओं को समाहित कर लिया जाता है। आकांक्षाओं को समाहित कर लेने के कारण नागरिक को बोलने,हस्तक्षेप, प्रतिवाद और सवाल पूछने की जरूरत नहीं होती। नागरिक को निष्क्रिय बनाकर महायथार्थ के फ्रेम में प्रचार चलता है । चर्चा का नकली वातावरण बनता है । सामाजिक जीवन में बहस एकसिरे से गायब हो जाती है। मुतादर अल जैदी की कहानी भी महायथार्थ के फ्रेम में आई और व्यापक प्रभाव छोड़कर चली गयी। उसका प्रतीकात्मक प्रतिवाद क्रांतिकारी कार्रवाई है। वह साधारण जूता फेंकने वाली कार्रवाई नहीं है। इराकी जनता का प्रत्येक प्रतिवाद हमें साम्राज्यवाद के खिलाफ जंग की प्रेरणा देता है। जबकि टीवी के लिए यह महज घटनामात्र है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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