जसवंत सिंह की किताब पर गुजरात सरकार ने जो प्रतिबंध लगाया था उसे गुजरात उच्चन्यायालय के तीन जजों की बैंच ने हटा दिया है। इस प्रसंग में दो बातें महत्वपूर्ण हैं,पहली बात यह कि उच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार को दोबारा प्रतिबंध संबंधी आदेश जारी करने से रोका नहीं है। दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि गुजरात सरकार ने बिना पढे ही किताब पर पाबंदी लगायी थी,इसी बात को आधार बनाकर प्रतिबंध हटाया गया है। गुजरात सरकार नए सिरे से पाबंदी लगाने की तैयारी कर रही है। उच्च न्यायालय का मानना है राज्य सरकार ने बगैर पढे ही किताब पर पाबंदी लगायी है। ''राज्य सरकार की अधिसूचना में सिर्फ पुस्तक प्रकाशन पर पाबंदी लगायी गयी थी, उसकी अंतर्वस्तु पर नहीं।'' अधिसूचना में यह नहीं बताया गया है कि कैसे अंतर्वस्तु के द्वारा सार्वजनिक सदभाव और राज्य के हितों पर प्रभाव पडेगा। इस समझ के अभाव का अर्थ है कि इस पर सोचा ही नहीं गया इसका अर्थ है समझ का अभाव,ध्यान रहे राज्य नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के बारे में राज्य कार्रवाई कर रहा है अत: उसे ज्यादा सतर्कता से काम लेना चाहिए।
गुजरात उच्चन्यायालय के इस फैसले का एक ही संदेश है कि बिना पढे,बिना जाने,समझे किसी भी पाबंदी को वैध नहीं माना जाएगा। सवाल उठता है क्या इस आधार पर राज्य सरकारें काम करेंगी ?
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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