अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हाल ही में स्वास्थ्य और चिकित्सा की अमेरिका में स्थिति को लेकर हाल ही में अपने देश की सीनेट में जब बयान दिया तब उस बयान को लेकर सीनेटरों ने ओबामा को झूठा तक करार दे दिया। यह मामला थमा ही नहीं था कि भू.पू.राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने आग में घी डालने वाला बयान दे डाला कि ओबामा के खिलाफ जो लोग हल्ला मचा रहे हैं वे ओबामा के प्रति रंगेभेदीय घृणा व्यक्त कर रहे हैं। कार्टर साहब के बयान में सच का लेशमात्र भी अंश नहीं है । सच यह है कि राष्ट्रपति ओबामा ने सीनेट में असत्य कहा था। ओबामा ने अपनी 40 मिनट के भाषण की शुरूआत ही इस वाक्य से की थी 'एक चिन्ता की खबर है', ' यह पता चला है कि 65 साल की उम्र के तकरीबन आधे से ज्यादा अमरीकी आगामी 10 सालों अपनी स्वास्थ्य सुरक्षा गारंटी खो देंगे।'' और '' एक-तिहाई से ज्यादा लोगों के पास एक वर्ष से भी ज्यादा समय तक कोई स्वास्थ्य सुरक्षा गारंटी नहीं होगी।'' सीनेटरों ने चीखकर ओबामा के बयान का प्रतिवाद किया और कहा कि राष्ट्रपति झूठ बोल रहे हैं। तथ्य ओबामा के बयान की पुष्टि नहीं करते।
मिशिंगन विश्वविद्यालय के द्वारा सन्1997- 2006 के बीच 17 हजार लोगों में सर्वे किया गया। उससे यह तथ्य सामने आया है कि उपरोक्त दशक के दौरान 47.7 प्रतिशत लोगों ने अपनी स्वास्थ्य सुरक्षा गारंटी खो दी। इसी अवधि में 36 फीसद ऐसे भी लोग थे जिनके पास एक वर्ष तक कोई स्वास्थ्य सुरक्षा गारंटी नहीं थी। असल में ओबामा ने इस सर्वे के आंकड़ों का दुरूपयोग किया है और कहा कि ऐसा भविष्य में हो सकता है। जबकि यह सर्वे भविष्य के बारे में नहीं था अतीत के बारे में था। मजेदार बात यह है कि इस तर्क वितर्क का काले गोरे से कोई संबंध नहीं है। इसके बावजूद भू.पू.जिमी कार्टर जैसे दिग्गज नेता ने इस बहस को रंगभेदीय रंग दे दिया। जिमी कार्टर जो कह रहे हैं उसमें सत्य यही है कि अमेरिका में अभी भी रंगभेद है। रंगभेदीय उत्पीडन अभी भी जारी है। लेकिन ओबामा के खिलाफ हाल ही में जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं उनमें ज्यादातर नस्लभेदीय नहीं हैं। मजेदार बात यह है जिस दिन जिमी कार्टर ने अपना बयान दिया उसी दिन स्कूली बच्चों की एक बस में बच्चों के बीच मारपीट हो गयी और उसे एक नस्लभेदीय नजरिए से प्रेस में हवा दे दी गयी। प्रेस में छपे बयान में कहा गया कि बस में सफर करने वाले गोरे बच्चे अब काले बच्चों के हाथों सुरक्षित नहीं हैं।
सच यह है कि ओबामा को गोरे-काले सभी रंगत के लोगों से व्यापक जनमर्थन मिला था,इसके बावजूद उनकी जीत को सुनिश्चित बनाने में श्वेत फंडामेंटलिस्टों और ईसाई फंडामेंटलिस्टों की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
जिमी कार्टर का बयान ओबामा को पुन: अस्मिता की राजनीति के विवाद में ले जा सकता है, इससे अमेरिका में अस्मिता की बहस फिर से जोर पकड़ सकती है।
'अस्मिता के सम्मोहन' के साँचे में सजाकर जब चीजें पेश की जाती हैं तो आप आलोचनात्मक नजरिए से मूल्यांकन करने में असमर्थ होते हैं। 'अस्मिता सम्मोहन' की राजनीति में आकर्षण और सम्मोहन दोनों है। इसके आधार पर विरोधियों को सम्मोहित करते हैं। छलते हैं। निरूत्तर करते हैं। यह खोखला सम्मोहन है। वह विरोधी को 'सम्मोहन' के नियमों के अनुसार खेलने के लिए मजबूर करता है। 'सम्मोहन' में वही देखते हैं जो दिखाया जाता है।
मीडिया प्रचार में ओबामा अश्वेत है, अश्वेत का अमरीका में जीतना सारी दुनिया में अश्वेतों या दलितों या वंचितों को प्रेरणा देता है। ओबामा अश्वेत है इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। अश्वेत होने के नाते वह युवाओं और राजनीति का आदर्श प्रेरक के रूप में उभर कर आए थे । लेकिन औबामा जिस विचारधारा और राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं वह श्वेतों की राजनीति है। ओबामा अमरीका की अश्वेत राजनीतिक परंपरा का हिस्सा नहीं है, वे कारपोरेट राजनीति के प्रतिनिधि हैं। कारपोरेट राजनीति के बिना ओबामा की कोई हैसियत नहीं है। ओबामा को लोग राष्ट्रपति के रूप में जानते हैं न कि अश्वेत नेता के रूप में। अश्वेत असंतोष को ओबामा ने राजनीतिक पूंजी में तब्दील किया है। जिस तरह अन्य रिपब्लिकन नेता अश्वेत राजनीति के फल भोगते रहे हैं उसी तरह ओबामा भी फल भोग रहे हैं।
राजनीति सत्ता का खेल है । व्यक्ति जब एकबार सत्ता के खेल में शामिल हो जाता है तो उसकी श्वेत,अश्वेत,हिन्दू,मुसलमान, दलित,नारी आदि की पहचान गायब हो जाती है। राजनीति की अपनी स्वतंत्र पहचान और राजनीतिक प्रक्रियाएं होती हैं जिसमें सिर्फ एक ही पहचान बचती है वह है राजनेता की और एक ही खेल होता है सत्ता का खेल। बाकी सब नाटक है।
राजनेता की पहचान व्यक्ति की समस्त अस्मिताओं को हजम कर जाती है। राजनेता कभी भी सत्ता के खेल के बाहर नहीं होता। श्वेत,अश्वेत,नारी,दलित आदि रूप सामाजिक जीवन में असर दिखाते हैं। व्यक्ति जब राजनीति करने लगता है तो वह सामाजिक पैराडाइम के बाहर चला जाता है। राजनीति उसका मूल पैराडाइम होता है। राजनीति पावर का क्षेत्र है अस्मिता का नहीं।
आंबेडकर दलित थे किंतु अंतत राजनीति का हिस्सा बने। राजनीति के पावरगेम का हिस्सा बने। दक्षिण अफ्रीका में अफ्रीकी कांग्रेस अश्वेतों का दल है,एक से बढ़कर एक अश्वेत क्रांतिकारी नेता इस दल ने पैदा किए हैं किंतु अंतत: अफ्रीकी कांग्रेस को राजनीति करनी है तो पावरगेम का हिस्सा बनना होगा और अश्वेत भावबोध को त्यागना होगा। आज अफ्रीकी कांग्रेस सत्ता की राजनीति कर रही है उसके कार्यकलापों का अस्मिता के कार्यकलापों के साथ प्रतीकात्मक संबंध है , निर्णायक संबंध पावरगेम के साथ है। श्रीमती इंदिरागांधी स्त्री थीं किंतु राजनीति के पावरगेम का हिस्सा थीं। यही दशा मायावती,ममता बनर्जी, जयललिता आदि नेत्रियों की है। सत्ता की राजनीति की चौपड़ में जब अस्मिता शामिल हो जाती है तो अस्मिता नहीं रहती बल्कि राजनीतिक पावरगेम में रूपान्तरित हो जाती है।
ओबामा अब काले नहीं हैं,डेमोक्रेट भी नहीं हैं। अमरीकी राजनीति के पावरगेम के नायक हैं। पावरगेम, नायक के द्वारा नहीं पावरगेम के मदारियों के द्वारा संचालित होता है। पावर वह है जो व्यक्ति पर प्रभुत्व स्थापित करता है। पावर के सामने व्यक्ति को समर्पण करना जरूरी है। पावर के सामने व्यक्ति का समर्पण ही राजनीति की धुरी है।
राजनीति के पावरगेम में शामिल होने के बाद व्यक्ति एक ऑब्जेक्ट बनकर रह जाता है। पावरगेम का अपना अनुशासन है। वह व्यक्ति के सामान्य कार्यव्यापार को इस तरह निर्देशित करता है जिससे सबको स्वाभाविक लगे। वह राजनीति के एथिक्स,व्यवहार आदि सीखता है। व्यक्ति आज्ञाकारी और ज्यादा उपयोगी हो जाता है। ओबामा ने कारपोरेट हितों और अमरीका की प्रचलित नव्य उदार नीतियों के सामने समर्पण किया है और वे वही सब काम कर रहे हैं जो विगत राष्ट्रपति बुश कर रहे थे। इसका ही यह दुष्परिणाम है कि अमेरिका में ओबामा की जनप्रियता में तेजी से गिरावट आयी है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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