चीन ने इस बार अपना जब 60वॉं स्थापना दिवस मनाया तो इस जलसे में जनता को शामिल नहीं किया गया। जनता घर में बैठकर टीवी चैनलों के जरिए क्रांति के उपभोक्ता क्रांति में उत्कर्ष का चरमोल्लास देख रही थी। चीन के विगत साठ साल महान परिवर्तनों के साल रहे हैं। सन् 1975 में जार्ज बुश जब चीन गए थे तो उस समय चीन में चंद कारें थीं। सारा देश साईकिल पर चलता था। स्वयं बुश भी बीजिंग में साईकिल पर घूमे थे। चीनी मजदूर नीले और हरे रंग के कपड़े पहने हुए थे। उस समय चीन में किसी के पास निजी कार नहीं थी,चंद लोगों के पास निजी घर थे। किंतु जब बुश ने सन् 2002 के फरवरी माह में चीन की यात्रा की तो देखकर अचम्भित रह गए। सारा शहर कारों से भरा हुआ था। उस समय अकेले बीजिंग में रजिस्टर्ड तीन हजार से ज्यादा बीएमडब्ल्यू कारें थीं। हजारों मर्सडीज कारें थी, और 20 से ज्यादा पोर्चेज कारें थीं। एक साल बाद ही बीएमडब्ल्यू ने अपना कार उत्पादन केन्द्र चीन में खोल दिया।
चीन में कितने अमीर हैं इसके प्रामाणिक आंकड़े अभी सरकार ने जारी नहीं किए हैं इसका प्रधान कारण है कि कहीं आंकड़े देखकर जन असन्तोष न भड़क उठे। एक मर्तबा चीन के टीवी केन्द्र ने अमीरों के ऊपर एक वृत्तचित्र बनाने का निर्णय लिया और उसकी शूटिंग भी शुरू कर दी गयी,किंतु अचानक ऊपर के दबाव में काम बंद कर दिया गया। सत्ता में बैठे अधिकांश लोगों का मानना था कि जो लोग सुधार के दौर में अमीर बने हैं ये वे लोग हैं जिन्होंने कानून तोडे हैं अत: कानूनभंजकों का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए। सन् 2001 में समाजविज्ञान अकादमी के द्वारा कराए सर्वे से पता चलता है कि चीन की बैंकों में बीस फीसद लोगों के खातों में 894 बिलियन डालर की पूंजी जमा है।
चीन के अमीरों और कम्युनिस्टों के बीच घनिष्ठ संबंध है। चीन के अमीरों में ज्यादातर लोग वे लोग हैं जो कभी सेना में वफादार रह चुके हैं अथवा कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं अथवा किसी कम्युनिस्ट के रिश्तेदार अथवा दोस्त हैं। अथवा कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार हैं। नयी संपदा के उदय ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की भाषा और सैध्दान्तिकी को बदल दिया है। पहले कम्युनिस्टों का कहना था कि उनका लक्ष्य है सर्वहारा के हितों की रक्षा करना। नया नारा है सत्ता में रहो '' चीन की अतिविकसित उत्पादक शक्तियों'' के हितों का संरक्षण करो। 'अतिविकसित उत्पादक शक्ति' से यहां तात्पर्य अमीरों और मध्यवर्ग से है। यह पुराने नजरिए का एकदम उलटा है जिसमें मजदूरों,किसानों और सैनिकों के हितों की रक्षा करने की बात कही गयी थी।
आज चीन में सामाजिक असंतुलन और अव्यवस्था के जो रूप नजर आ रहे हैं वैसे पहले कभी नहीं देखे गए। अचानक समाज में लड़कियों की जन्मदर कम हो गयी है। समाज में बेटा पाने की चाहत और एक संतान के नियम के कारण लड़कियों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। आज स्थिति इतनी भयावह है कि चीन में चार करोड़ लोगों की शादी के लिए कोई लड़की उपलब्ध नहीं है। लिंग असंतुलन का इतना व्यापक कहर पहले कभी चीन में नहीं देखा गया। अनेक समाजविज्ञानी मानते हैं कि लड़कियों की अचानक कमी का प्रधान कारण है औरतों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैयया।
चीनी लोग अमूमन परंपरागत बच्चे और आज्ञाकारी बच्चे पसंद करते हैं। लड़की की तुलना में लड़के को तरजीह देते हैं। चूंकि एक ही संतान का नियम है अत: पहली संतान के रूप में लड़का ही चाहते हैं इसके कारण असंतुलन और भी बढ़ा है। समाजविज्ञानियों का अनुमान है कि यदि यही सिलसिला जारी रहा तो सन् 2020 तक आते-आते लड़कों के लिए लड़कियां मिलना मुश्किल हो जाएंगी। चीनी लोगों में लड़के की चाहत का एक अन्य कारण यह मान्यता भी है कि लड़कियों की तुलना में लड़के श्रेष्ठ होते हैं। इस मान्यता को बदलना बेहद मुश्किल है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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