किसी भी देश में नव्य उदारतावादी अर्थव्यवस्था लागू होगी तो आम लोगों का सेक्स और औरत के प्रति नजरिया भी बदलेगा। किसी भी देश में सेक्स और स्त्री के प्रति क्या नजरिया है यह अर्थव्यवस्था की प्रकृति से तय होता है। अर्थव्यवस्था और सेक्स के अन्तस्संबंध को विच्छिन्न भाव से नहीं देखना चाहिए। चीन में आए आर्थिक खुलेपन ने सेक्स के प्रति खुलेपन को ,ज्यादा उदार नजरिए को हवा दी है। माओ के जमाने में सेक्स टेबू था, आज चीन में सेक्स टेबू नहीं है। बल्कि टेबू से बाहर निकलने की कोशिशें ज्यादा हो रही हैं। आम लोगों में टेबुओं के प्रति घृणा सामान्य बात है।
'चाइना डेली'(12मई 2008) में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि विशेषज्ञों की नजर में चीनी लोग सेक्स के प्रति ज्यादा उदार हैं। पेन सुई मिंग (निदेशक,इंस्टीट्यूट ऑफ सैक्सुअलिटी एंड जेण्डर, रींमीन विश्वविद्यालय ,चीन) ने कहा है आज चीन में एकाधिक व्यक्ति से शारीरिक संबंध रखने वालों की चीन में संख्या पच्चीस फीसद है। इसके कारा यह बहस छिड़ गयी है कि क्या चीनी नैतिक तौर पर भ्रष्ट होते हैं ?
पेन का कहना है एकाधिक सेक्स पार्टनर का होना सेक्स क्रांति का प्रतीक है। चीनी नागरिकों में खुला और पारदर्शी कामुक रवैयया पैदा हो रहा है। सन् 2000-2006 के बीच में किए गए सेक्स सर्वे बताते हैं कि आम लोगों में सेक्स और समलैंगिक सेक्स दोनों में ही इजाफा हुआ है। जिस तरह दो अंकों में अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़ी है उसी तरह दो अंकों में सेक्सदर में भी इजाफा हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में एक से अधिक के साथ सेक्स करने की परंपरा में इजाफा हुआ है। सन् 2000 में ऐसे लोगों की संख्या 16.9 प्रतिशत थी, इसमें सन् 2006 तक सात फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सन् 1980 में जब आर्थिक सुधार लागू किए गए थे तो उस समय ऐसे लोगों की संख्या छह प्रतिशत थी। महज तीस सालों में एक से अधिक स्त्री या पुरूष के साथ शारीरिक संबंध रखने वालों की संख्या का छह प्रतिशत से बढ़कर पच्चीस प्रतिशत हो जाना निश्चित तौर पर चिन्ता की चीज है। इसका अर्थ यह नहीं है कि विवाह संस्था संकट में है अथवा अप्रासंगिक हो गयी है। बल्कि यह सेक्स के प्रति बदलते नजरिए का संकेत है। इस बदलाव में गांव से शहरों में माइग्रेट करके आयी औरतों की बड़ी भूमिका है।
आम धारणा रही है कि औरत जीवन में पेसिव और बिस्तर पर एक्टिव होती है। किंतु इस धारणा को भी चीन की औरतों ने पलट दिया है वे जीवन में भी एक्टिव भूमिका अदा रही हैं। इस नए परिवर्तन की वाहक बनी हैं गांवों से आई औरतें। इसके अलावा औरतों में शिक्षा के विकास के कारण भी परंपरागत स्टीरियोटाईप नजरिया टूटा है। साथ ही गर्भपात और परिवार नियोजन की सुविधाओं की सहज उपलब्धता के कारण भी सेक्स के प्रति उदार रूख का विकास हुआ है। इसके अलावा ज्यादा समय तक प्यार करने और आनंद उठाने के कारण भी औरतों का सेक्स के प्रति नजरियाबदला है। सेक्स क्रांति में सेक्स का वैविध्य बढ़ा है ,कामुक गतिविधियों में इजाफा हुआ है। पेन का मानना है कि सद्भाव समाज में सेक्स को शामिल किया जाना चाहिए। यह क्रांति नहीं बल्कि हमारे जीवन का हिस्सा है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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