' हिन्दू' अखबार की चीन संवाददाता पल्लवी अययर ने लिखा है चीन व्यवहारवादी समाज है। साधारण चीनी नागरिक गलतियों को निकालने में माहिर है। बच निकलने के रास्ते खोजने में उस्ताद होता है। कौन आदमी काम का है और उससे कैसे काम निकालना है। कैसे नियमों की उपेक्षा करनी है।अगर जरूरत हो तो अंधी औरत को कांटेक्ट लेंस और शाकाहारी को मुर्गे बेच सकता है।
पल्लवी अययर ने लिखा है चीन मूलत: बुध्दिजीवी विरोधी समाज है। राजनीति और शिक्षाऐसी है जो आलोचना को हतोत्साहित करती है और भीड़चिन्तन को बढ़ावा देती है। चीन का यह सबसे चिन्तित करने वाला पहलू है। चीन में आनंद के साथ तर्क करने वाले लोग नहीं मिलेंगे। तर्क के लिए तर्क करने वाले लोग नहीं मिलेंगे। जिसकी वजह से मुझे अपने देश की याद आती है। पल्लवी को विदेश मंत्रालय द्वारा दिए अनुवादक ने बताया कि चीन अन्य देशों से पूरी तरह भिन्न है। सभी चीनी एक साथ एक जैसा ही सोचते हैं। जो लोग सरकारी राय से भिन्न राय रखते हैं उन्हें बागी करार दे दिया जाता है। उन पर संदेह किया जाता है,परेशान किया जाता है। धमकियां दी जाती हैं। यदि प्रोफेसर पत्रकारों से बात करता पाया जाता है उसकी तत्काल पदावनति कर दी जाती है। जो संपादक भ्रष्टाचार के मामले की जांच कर रहा हो वह अचानक पाता है कि उस पर हमले होने शुरू हो गए। जो वकील अपने मुवक्किल की मदद करना चाहे तो उसे जेल में डाल दिया जाता है।
पल्लवी अययर ने लिखा है विश्वविद्यालयों में छात्रों को ऐसी शिक्षा दी जाती है कि वे सिर्फ सिर हिलाकर उत्तार दें। अस्पष्टता और मूर्खता का इसके बहाने दोहन किया जाता है। शुध्द बौध्दिक धरातल पर छात्रों के लिए कोई जगह नहीं है। पाठयक्रम रट लेना,प्रतियोगिता परीक्षा पास कर लेना और पार्टी के सहारे नौकरी जुगाड़ कर लेना,इस कला में चीनी युवा सिध्दहस्त हैं। भारत जैसे तर्कवादी देश में विचारों का वैविध्य है और विश्वविद्यालयों में इस वैविध्य को बनाए रखने की कोशिश की जातीहै। इसके विपरीत चीनी विश्वविद्यालयों में विचारों के वैविध्य और आलोचना और तर्क के लिए कोई जगह नहीं है। फलत: चीनी बौध्दिक जीवन में खास किस्म की रूढिबध्दता है।
पल्लवी अययर ने लिखा है चीन का विगत तीस साल का आर्थिक विकास अतुलनीय है। किंतु भारत का विगत साठ साल का लोकतंत्र का विकास भी अतुलनीय है। जितने भी राष्ट्र औपनिवेशिक दासता से मुक्त हुए उनकी तुलना में भारत में लोकतंत्र तमाम बाधाओं के बावजूद देश को एकजुट बनाए रखने में सफल रहा है। भौगोलिक,भाषायी और जातीय वैविध्य के बावजूद भारत लोकतंत्र केप्रति वचनबध्द है। देश एकताबध्द है।
भारत का वैशिष्टय है कि आप बहुत चीजों की चाह और एक चीज की चाह एक ही साथ रख सकते हैं। एक ही साथ बहुस्तरीय अस्मिता जी सकते हैं। भारत ने वैविध्य के साथ संवाद का तंत्र विकसित किया है। साथ ही आक्रामक ढ़ंग से असहमति भी रख सकते हैं। लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए सहमत होना जरूरी नहीं है सिर्फ असहमति के जमीनी नियमों को जानना जरूरी है। भारत की खूबी है कि आपके पास पैसा हो तो सरकारी व्यवस्था असफल हो जाए तब भी आप आराम से रह सकते हैं। मसलन् दिल्ली में बिजली लंबे समय तक गुल रहती है किंतु आप अपने पैसे से जेनरेटर लगा सकते हैं। दिल्ली प्रशासन पानी की सप्लाई न भी करे तो आप अपने निजी ट्यूबबैल लगाकर अपना गार्डन हरा रख सकते हैं। दिल्ली में पुलिस न्यूनतम सुरक्षा नहीं देती फलत: विभिन्न कालोनियों में निजी सुरक्षा गार्डों की व्यवस्था है। भारत में आप चाहें तो अपने निजी चैनल खोल सकते हैं। चैनलों पर बहस कर सकते हैं, उसमें आनंद ले सकते हैं। तर्कवादी भारत का आनंद सिर्फ यहां के अभिजन ही नहीं लेते बल्कि साधारण नागरिक भी आनंद लेते हैं। तर्कवादी भारत की परंपरा ने ही लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष राजनीति बनायी है। सभी सामाजिक वर्गों के लिए इसके व्यापक सामाजिक परिणाम भी हैं। इसके विपरीत चीन में अधिनायकवाद है। मतदान का अधिकार नहीं है। एक अच्छे खानपान,कपड़े और मकान के लिए तुलनात्मक तौर पर बहुत ज्यादा खर्चा करना पड़ेगा। चीन में उच्चस्तरीय सामाजिक-आर्थिक गतिशील विकास के ज्यादा अवसर हैं।
भारत में मतदान का अधिकार गरीबों को सामूहिक सौदेबाजी का अवसर देता है। किसी भी बड़े प्रकल्प के लिए लोगों को अपदस्थ अथवा विस्थापित करना सहज नहीं है। किंतु चीन में ऐसा नहीं है। वहां अगर सरकार ने एकबार तय कर लिया कि मकान गिराए जाने हैं तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता। बीजिंग को नया शहर बनाने के लिए कितने बड़े पैमाने पर तबाही मची है इसकी कल्पना नहीं कर सकते। ''चाइना: दि वैलेंस सीट''( सेंटर फोर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टैडीज एंड दि इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल इकोनॉमिक,वाशिंगटन,डीसी,2006) के अनुसार चीन में चार करोड़ किसानों को जबर्दस्ती उनकी जमीन से बेदखल करके सड़क,हवाईअड्डा,बांध,कारखाने और अन्य निजी और सरकारी निवेश के क्षेत्र निर्मित किए गए। भारत में ऐसा आप कभी भी नहीं कर सकते।
पल्लवी अययर ने लिखा है भारत में लोकतंत्र की वैधता अनेक मामलों में सरकार को अपने दायित्वों को पूरा करने की जिम्मेदारी से मुक्त कर देती है। ऐसी स्थिति चीन की नहीं है। इस तरह की लग्जरी चीन की सरकार मुहैयया नहीं करा सकती। इसके विपरीत चीन की सरकार आर्थिक-राजनीतिक समस्याओं के प्रति ज्यादा जिम्मेदार भूमिका अदा करती है।
पल्लवी अययर ने नए उदीयमान चीनी समाज को दुनिया के सबसे विषम समाज की संज्ञा दी है। सामाजिक और आर्थिक स्वाधीनता पर अहर्निश राजनीतिक नियंत्रण है। शहरी मध्यवर्ग और किसान और यायावर मजदूरों के हितों के बीच सीधा अन्तर्विरोध है। चीन में जबर्दस्त संभानाएं है जिसके कारण अभावोंमें बड़े हुए लाखों लोग अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर विदेश जाने को तैयार हैं। नया चीन अन्तर्विरोधों से भरा है। जैसे अराजकता और नियंत्रण,परिवर्तन और निरंतरता,संपदा और गरीबी, अच्छे और बुरे को एक ही साथ पाएंगे। कुल मिला जुलाकर बड़ी विस्फोटक अवस्था है।
पल्लवी अययर ने एक और चौंकाने वाली चीज की तरफ ध्यान खींचा है। मई 2004 में पल्लवी ने तिऐनमैन स्क्वायर की पन्द्रहवीं वर्षी पर एक टीवी स्टोरी के लिए दस विद्यार्थियों से साक्षात्कार लिए किंतु आश्चर्य की बात यह थी कि सन् 1989 की घटना को लेकर किसी ने भी कुछ नहीं बोला।यहां तक कि इस स्टोरी के लिए पल्लवी ने अनेक शिक्षाविदों और नामी लोगों के साथ बात की किंतु उन्होंने भी इस घटना के बारे में किसी भी किस्म के विवरण नहीं दिए। ज्यादातर लोगों ने यही कहा '' यह घटना दोहरायी न जाए।''
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में परिवर्तन आ रहे हैं सन् 2001 में व्यापारियों को कम्युनिस्ट पार्टी के दरवाजे खोल दिए गए। सन् 2007 में व्यक्तिगत संपत्तिा का अधिकार दे दिया गया। चीन के विकास ने शहरी मध्यवर्ग और किसान जनता के बीच में बहुत बड़ी खाई पैदा कर दी है। शहरी मध्यवर्गऔर किसानों की प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं। चीन में बुर्जुआजी का उदय और विकास हो रहा है। किसानों की पामाली बढ़ी है। शहर और गांव के बीच जमीन आसमान का अंतर आ गया है। पल्लवी अययर ने लिखा है गांवों में बढ़ते हुए असंतोष के कारण ग्रामीणों के प्रतिवाद ज्यादा हो रहे हैं। मोटेतौर पर सन् 2005 में जनप्रतिवाद की 87 हजार घटनाएं हुईं। यह विगत दशक की तुलना में 600 गुना ज्यादा है। गांवों में अवैध ढ़ंग से जमीन हथियाने ,फैक्ट्रियों के जरिए अवैध प्रदूषण,सरकारी दफ्तरों में भयानक भ्रष्टाचार और सामाजिक सुरक्षा प्रावधानों के कम हो जाने के कारण सामाजिक तौर पर विस्फोटक स्थिति बन रही है। जिसके कारण जब भी प्रतिवाद होता है तो हिंसक प्रतिवाद होता है।
पल्लवी ने लिखा है चीन में आज भेदभावपूर्ण विकास पर कम और संसाधनों के वितरण और आय में संतुलन बनाने पर ज्यादा जोर है। सरकार ने बुनियादी शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था पर निवेश बढ़ा दिया है। किसानों को अतिरिक्त सब्सीडी दी जा रही है। ग्रामीण कर समाप्त कर दिए गए हैं। बड़े पैमाने पर गांवों के इंफ्रास्ट्रक्चर को निर्मित करने के लिए पैसा दिया गया है। इसके कारण जनप्रतिवाद की घटनाओं में सन् 2006 में बीस प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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aksar chand dinon ke liye gaye log ay turant-furant mein aisi dharna hi banate hain.jise chinese nahin aati.uski soochnayen kitni chhn kar ya jud kar aati hongi.
जवाब देंहटाएंek ahcha lekh jisme dono desho ka tulnatmak vivran kafi gyan vardhak hai,,,
जवाब देंहटाएंek ahcha lekh jisme dono desho ka tulnatmak vivran kafi gyan vardhak hai,,,
जवाब देंहटाएंvery true indeed even though my father told me all these things in 1978.
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