सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

अमेरि‍का में फंडामेंटलि‍ज्‍म का असली चेहरा

सा 

     जनमाध्यमों से अमेरिकी समाज की आम तौर पर जो तस्वीर पेश की जाती है उसमें ग्लैमर, चमकदमक,शानो-शौकत,खुशी,आनंद,मजा,सेक्स,सिनेमा,उपभोक्ता वस्तुओं की भरमार,सत्ता के खेल, अमीरी के सपने प्रमुख होते हैं।इस तरह की प्रस्तुतियों में कभी भी यह नहीं बताया जाता कि अमेरिकी समाज फंडामेंटलिज्म की ओर जा रहा है। अथवा अमेरिका में फंडामेंटलिस्टों का बोलवाला है। फंडामेंटलिज्म को अमेरिकी मीडिया ने हमेशा गैर अमेरिकी फिनोमिना या तीसरी दुनिया के फिनोमिना के रूप में पेश किया है।सच किंतु यह नहीं है। फंडामेंटलिज्म के मामले में भी अमेरिका विश्व का सिरमौर है। किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को क्रिश्चियन फंडामेंटलिज्म की उपेक्षा करना संभव नहीं है। वैसे ही जैसे मुशर्रफ और अटलबिहारी बाजपेयी को अपने फंडामेंटलिस्ट बिरादराना संगठनों की उपेक्षा करनी संभव नहीं है। 11सितम्बर की घटना के बाद अमेरिकी प्रशासन का जो चेहरा सामने आया है उसका जनतंत्र से कम फंडामेंटलिज्म से ज्यादा करीबी संबंध है। अमेरिकी मीडिया का बड़ा हिस्सा किस तरह युध्दपंथी है और मुसलमान विरोधी है इसके बारे में 11सितम्बर के बाद के घटनाक्रम ने ऑँखें खोल दी हैं। शुरू में राष्ट्रपति बुश ने यह जरूर कहा कि 11सितम्बर की घटनाओं का मुसलमानों से कोई संबंध नहीं है। किंतु व्यवहार में अमेरिकी पुलिस ने अमेरिका में रहने वाले मुसलमानों को जिस तरह परेशान किया और उनके नागरिक अधिकारों का हनन किया वह अमेरिकी समाज के अभिजनों और मीडिया के एक बड़े हिस्से में व्याप्त मुस्लिम विरोधी मानसिकता को समझने का अच्छा पैमाना हो सकता है। सभ्यताओं के संघर्ष की सैध्दान्तिकी के तहत इस्लाम को कलंकित किया गया। इस्लाम को फंडामेंटलिज्म और आतंकवाद से जोड़ा गया। क्रिश्चियन फंडामेंटलिस्टों के नेताओं जेरी फेलवैल और पेट रॉबर्टसन ने इस्लाम विरोधी प्रचार अभियान को चरमोत्कर्ष तक ले जाते हुए मोहम्मद साहब को आतंकवादी तक घोषित कर दिया। यह भी कहा इस्लाम धर्म हिंसा और घृणा का धर्म है। गॉड पर भरोसा है खुदा पर नहीं। इस बयान की अमेरिकी प्रशासन के किसी मंत्री या अधिकारी ने निंदा तक नहीं की। क्रिश्चियन फंडामेंटलिस्टों ने प्रचार अभियान चलाया हुआ है कि अब प्रलय होने वाली इनका विश्वास है कि जब धर्म और अधर्म के बीच युध्द होगा तो धार्मिक लोग सीधे स्वर्ग जाएंगे। सभी यहूदी ईसाई हो जाएंगे या जला दिए जाएंगे। यही हाल मुसलमानों का होगा।सभी मुसलमान आग के हवाले कर दिए जाएंगे।
11सितम्बर की घटना के बाद मुसलमानों के खिलाफ मीडिया के माध्यम से भय,पूर्वाग्रह और उन्माद पैदा करने की कोशिशें जारी हैं। यह कार्य मुस्लिम और ईसाई फंडामेंटलिस्ट अपने- अपने तरीके से कर रहे हैं।इन दोनों किस्म के फंडामेंटलिस्टों के नेताओं को राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहज ही मीडिया की अग्रणी कतारों में देखा जा सकता है। इन दोनों के लिए जनतंत्र,संवाद, सहिष्णुता और मानवाधिकारों की कोई कीमत नहीं रह गई है। इंटरनेट पर गुगल डाटकॉम पर इस्लाम पर सामग्री खोजने वालों की संख्या में बेतहाशा वृध्दि हुई है। गुगल पर चालीस लाख से ज्यादा वेबसाइट हैं।इनमें 20 वेबसाइट मुसलमानों के द्वारा बनायी हुई हैं।इनमें आप संवाद नहीं कर सकते।अमेरिकी पुलिस और खुफिया विभाग इन वेबसाइट पर आने वाली प्रत्येक सामग्री का अध्ययन करती रहती हैं।
    क्रिश्चियन फंडामेंटलिस्टों का अमेरिका में व्यापक स्तर पर शिक्षा और मीडिया नेटवर्क है।इसमें बॉब जॉन यूनीवर्सिटी का नाम सबसे ऊपर है।यहूदी तत्ववादियों का अनुकरण करते हुए इस विश्वविद्यालय ने ईसाइयों को धार्मिक शुध्दता का पाठ पढ़ाया जाता है। ये लोग समाज में किसी भी किस्म के सम्मिश्रण को स्वीकार नहीं करते। रूढ़िवादी विचारों और संस्कारों में पूरी तरह आस्था रखते हैं। बाइबिल इनके लिए अंतिम और एकमात्र सत्य है। ये आक्रामक और रक्षात्मक दोनों ही किस्म की रणनीति का अपने सांगठनिक विकास के लिए इस्तेमाल करते हैं। बॉब जॉन यूनीवर्सिटी के छात्र सिर्फ विचारों और संस्कारों में ही तत्ववादी नहीं होते अपितु उग्रवादी भी होते हैं। ये किसी भी किस्म की विज्ञानसम्मत शिक्षा और विचारों का विरोध करते हैं। शिक्षा के पाठ्यक्रमों में किसी भी किस्म की उदारतावादी दृष्टि को स्वीकार नहीं करते। इस विश्वविद्यालय के द्वारा पृथकतावादी और तत्ववादी ताकतों का  खुलकर समर्थन किया जाता है। ये लोग नस्लवादी श्रेष्ठत्व पर जोर देते हैं। नस्लवादी श्रेष्ठत्व इनके धार्मिक उसूलों से जुड़ा हुआ है। आमतौर पर तत्ववादी या पृथकतापंथी संगठन अपने कार्यों को वैध ठहराने के लिए अंधविश्वास और अनहोनी या विलक्षण घटनाओं को चुनते हैं। इजराइली और क्रिश्चियन तत्ववादियों ने मध्य-पूर्व में ईराक पर अमरीका और उसके मित्र राष्ट्रों के हमले और तबाही को ईश्वर की कृपा से किए गए हमले और पाप के दण्ड के तौर पर व्याख्यायित किया।इसके लिए सैन्य पदावली का प्रयोग किया गया।
       सुसान रोज ने ''क्रिश्चियन फंडामेंटलिज्म एण्ड ऐजुकेशन इन दि यूनाइटेड स्टेट्स''(1993) में लिखा कैथोलिक स्कूलों की तुलना में प्रोटेस्टेण्ट या इवानगेलिकल्स स्कूलों में छात्रों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। इसके विपरीत कैथोलिक स्कूलों में छात्रों की संख्या में गिरावट आई है। निजी क्षेत्र में इन स्कूलों का बड़ी तेजी से विकास हुआ है। अनुमानत: दस लाख विद्यार्थी 18,000 हजार निजी धार्मिक स्कूलों में पढ़ते हैं। ये कुल निजी स्कूली छात्रों की संख्या का  20 फीसद हिस्सा हैं।
इवानगेलिक और तत्ववादी स्कूलों में विगत दो दशकों में छात्रों की भर्ती में तेजी से इजाफा हुआ है। इसी दौरान इन स्कूलों ने पृथकतावादी मार्ग की अपेक्षा ज्यादा से ज्यादा  कठमुल्लावादी मार्ग का अनुसरण किया है। इसके लिए इन संगठनों ने अदालती कार्रवाईयों तक का सहारा लिया है। अदालतों से इन्हें अपनी गतिविधियां जारी रखने का एक तरह से लाईसेंस  मिल गया है।इन समस्त घटनाओं से इस तथ्य पर रोशनी पड़ती है कि अमरीकी न्याय व्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था किस हद तक तत्ववादी संगठनों के सामने असहाय साबित हुई है।साथ ही उनके शिक्षा संस्थान बगैर किसी बाधा के सुचारू रुप से चल रहे हैं।
       इवानगेलिक स्कूलों का पाठ्यक्रम,पध्दति और प्रभाव सार्वजनिक धर्मनिरपेक्ष स्कूलों से भिन्न है। धार्मिक तत्ववादी स्कूलों का अमरीका में लक्ष्य है धर्मनिरपेक्ष जीवन शैली का विरोध करना ,धार्मिक और पितृसत्ता की स्थापना करना,बच्चों को नशेबाजी,कामुकता,हिंसा और अनुशासनहीनता से बचाना। इसके अलावा तत्ववादी शिक्षा का मुख्य जोर बाइबिल, धार्मिक संस्कारों की शिक्षा और धर्मनिरपेक्ष सार्वजनिक स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले विषयों के खिलाफ रहा है। इन स्कूलों में दण्ड और अध्यापन की सार्वभौम पध्दति अपनायी जाती है। विद्यार्थियों के लिए महंगी से महंगी किताबें और पाठ्यक्रम सामग्री तुरंत प्रदान की जाती है। पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए किसी शिक्षक की मदद की जरूरत महसूस नहीं होती क्योंकि छात्र स्वयं ही पढ़ सकता है। पाठ्यक्रम पढ़कर शायद ही कोई सवाल किसी के मन में उठे क्योंकि समस्त सवालों के जबाव पाठ में ही होते हैं। इन स्कूलों के छात्र सार्वजनिक धर्मनिरपेक्ष स्कूलों की तुलना में ज्यादा संख्या में पास होते हैं। यहां तक कि स्टैण्डफोर्ड अचीवमेंट टेस्ट में इन स्कूलों के छात्रों को राष्ट्रीय नियम की तुलना में एक साल और सात माह ज्यादा की वरीयता मिलती है।सेना में इन तत्ववादी स्कूलों के छात्रों को बेहतरीन विद्यार्थी मानकर वरीयता के साथ भर्ती किया जाता है।क्योंकि इनमें अनुशासन, अनुकरण और अधिकारियों के प्रति सम्मान का भाव होता है।
         अमरीका में धार्मिक तत्ववादी स्कूलों में आमतौर पर गोरे मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे दाखिले लेते हैं। इनके परिवारों की औसत आमदनी 25,000हजार डालर है।यह सम्मिश्रित किस्म का प्रभुत्वशाली समुदाय है। अत: इस समुदाय के छात्रों में धार्मिक तत्ववादी शिक्षा का आधार निर्मित होने से धार्मिक शिक्षा का प्रभाव कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। रीगन प्रशासन ने एक जमाने में तत्ववादी स्कूलों पर अंकुश लगाने की काफी कोशिश की किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके विपरीत तत्ववादी स्कूलों ने धर्मनिरपेक्ष स्कूलों को अपनी दिशा बदलने के लिए दबाव तेज कर दिया है। इस दिशा में उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली और बड़ी संख्या में ईसाई स्कूलों और धर्मनिरपेक्ष स्कूलों में विलय भी हुआ। आज स्थिति यह है कि अमरीका में तत्ववादियों के नियंत्रण वाली उच्च शिक्षा और टेलीविजन का मजबूत गठबंधन  है। खासकर लिबर्टी यूनीवर्सिटी और रीजेंट विश्वविद्यालय के माध्यम से यह काम बखूबी अंजाम दिया जा रहा है। ये विश्वविद्यालय धार्मिक कठमुल्लापन के साथ आधुनिक विज्ञान,प्रौद्योगिकी और शिक्षा का सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर  रहे हैं।
        



              


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