शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

मीडि‍या सर्वे : भारतीय पाठक आगे हैं नेट यूजर से

      इंटरनेट के चालीस साल हो चुके हैं। इंटरनेट जब आया था तो लोग कह रहे थे कि‍ अब अखबार के दि‍न लद गए। लोग अखबार नहीं पढेंगे। टीवी क्रांति‍ हुई तो हल्‍ला शुरू हो गया कि‍ अखबार के दि‍न लद गए। लेकि‍न अखबार अभी भी जिंदा है। भारत में अखबार के पाठकों की संख्‍या तेजी से बढ रही है। अखबारों का प्रकाशन बढ रहा है। कल तक जो अखबार की मौत पर शोक प्रस्‍ताव पढ रहे थे वे आज  प्रेस क्रांति‍ देखकर अवाक हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि‍ आखि‍रकार भारत में प्रिंट क्रांति‍ का रहस्‍य क्‍या है ।
      प्रेस क्रांति‍ के कारण भारत में सन् 2007  में  दैनि‍क अखबारों के पाठकों की संख्‍या 150 मि‍लि‍यन का आंकडा पार गयी। इसकी तुलना में अमेरि‍का में दैनि‍क अखबार के 97 मि‍लि‍यन पाठक हैं। जर्मनी में 48 मि‍लि‍यन पाठक हैं। इसके वि‍परीत भारत में अखबारों का सर्कुलेशन छलांग लगा रहा है। अखबारों की आय में बढोतरी हुई है। वि‍ज्ञापनों में इजाफा हुआ है। सन् 2007 में वि‍ज्ञापनों से होने वाली आय में 15 फीसद की बढोतरी हुई। अकेले दि‍ल्‍ली से 15 भाषाओं में अखबार प्रकाशि‍त होते हैं। इनमें अंग्रेजी और हि‍न्‍दी के अखबारों का क्षेत्रीय रूझान है। जैसे तेलुगू भाषी अखबारों का होता है। दि‍ल्‍ली में एक ऐसी दुकान भी है जि‍स पर आपको 117 भारतीय दैनि‍क अखबार मि‍ल जाएंगे।
       अखबार वालों का मानना है कि‍ भारत में अभी भी व्‍यापक पाठक समुदाय है जि‍स तक अखबार को पहुँचना है और इसी चीज को ध्‍यान में रखकर आए दि‍न नए संस्‍करण और नए अखबार प्रकाशि‍त हो रहे हैं। खासकर छोटे शहरों,कस्‍बों और गांवों के पाठकों तक पहुँचने की होड़ मची हुई है। भारत में कम्‍प्‍यूटर तकनीक का महि‍मागान होनेके बावजूद सन् 2007 में 8.5 मि‍लि‍यन लोग ही इंटरनेट का इस्‍तेमाल कर रहे थे।
      सरकारी आंकडे बताते हैं कि‍ जो लोग कम्‍प्‍यूटर का इस्‍तेमाल करते हैं उनमें एक बडा हि‍स्‍सा है ऐसे लोगों का भी है जो इंटरनेट का इस्‍तेमाल नहीं करता। भारत में जि‍स समय प्रेस क्रांति‍ घट रही थी और वि‍ज्ञापनों में उछाल आ रहा था उस समय अमेरि‍की प्रेस में (सन् 2006)  गि‍रावट दर्ज की गयी। उल्‍लेखनीय है यह मंदी का साल नहीं था।
       भारत के अखबार 35 प्रति‍शत वयस्‍कों तक पहुँच चुके हैं। वर्ल्‍ड न्‍यूज एसोशि‍एशन के अनुसार अमेरि‍का में प्रति‍दि‍न 17 प्रति‍शत लोग दैनि‍क अखबार खरीदते हैं। प्रत्‍येक अखबार को एक से अधि‍क लोग मि‍लकर पढते हैं।  अमेरि‍कन न्‍यूजपेपर एसोशि‍एसन के अनुसार वि‍गत दो दशकों में अमेरि‍का में अखबारों के सर्कुलेशन में नि‍रंतर गि‍रावट आयी है। सन् 1985 में 63 मि‍लि‍यन से गि‍रकर सन् 2005 में सर्कुलेशन घटकर 53 मि‍लि‍यन रह गया।
       इसी तरह ब्रि‍टेन में भी अखबारों का सर्कुलेशन गि‍रा है। सन् 2001 से 2005 के बीच में ब्रि‍टेन में अखबारों का सर्कुलेशन 3 प्रति‍शत कम हुआ। जबकि‍ जर्मनी में  इसी अवधि‍ में अखबारों का सर्कुलेशन 11 प्रति‍शत गि‍रा। इसके वि‍परीत भारत में सन् 2001 से 2005 के बीच में दैनि‍क अखबारों का सर्कुलेशन 33 फीसदी बढा है। भारत में अभी बहुत बडा हि‍स्‍सा है जो साक्षर है लेकि‍न अखबार नहीं पढता। साथ ही जि‍स गति‍ से साक्षरता अभि‍यान चल रहा है उसके कारण भी भवि‍ष्‍य में अखबारों के पाठक बढने की अनंत संभावनाएं हैं। भारत के अखबारों में रसीली खबरों से लेकर ठोस खबरें रहती हैं। इनके कारण पाठकों को अखबार पढने में मजा आता है। सर्कुलेशन बढने का अन्‍य कारण है अखबार की कीमत कम होना। आमतौर पर दो रूपये में अखबार मि‍ल जाता है। तकरीबन 11मि‍लि‍यन अंग्रेजी अखबार बि‍कते हैं, इसकी तुलना में हि‍न्‍दी के 34 मि‍लि‍यन अखबार बि‍कते हैं। उल्‍लेखनीय है भारत में तकरीबन 300 बडे दैनि‍क अखबार हैं।रूथ डेविड ने फॉरबिस मैगजीन में लिखा है कि मीडिया के नए आंकड़े बताते हैं कि नए विदेशी पूंजी निवेश की भारत में अनंत संभावनाएं हैं। भारत में लोग ज्यादा चैनल देखना चाहते हैं। प्रतिवर्ष इस क्षेत्र में 20 फीसद आय में इजाफा हो रहा है। सन् 2011 तक समग्र आय 22.5 बिलियन डॉलर का आंकडा पार कर जाएगी। उपभोक्ता की आय में निरंतर इजाफा हो रहा है। प्रिंट मीडिया को 22 करोड़ लोग पढ़ रहे हैं  इसके अलावा आंकड़े बताते हैं कि 37 करोड़ लोग हैं जो किसी न कि‍सी भी मीडिया का इस्तेमाल नहीं करते। भारतीय प्रिंट उद्योग में सन् 2006 में 90.80 मिलियन डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ। नव्य-उदारतावादी नीतिगत बदलाव के साथ प्रिंट उद्योग में मात्र 26 फीसद का ही निवेश किया जा सकता है और प्रबंधन का नियंत्रण विदेशी नागरिक के हाथ में नहीं होगा। यानी पूंजी विदेशी होगी किंतु मीडिया पर प्रबंधन भारतीय लोगों के हाथों में ही होगा।
     भारतीय मीडिया परिदृश्य में सन् 2006 तक इंटरनेट के ग्राहकों की संख्या सवा तीन करोड़ से ज्यादा थी। इनमें दो करोड़ दस लाख नियमित ग्राहक हैं। तकरीबन 59 मिलियन पीसी साक्षर हैं और ये इंटरनेट विज्ञापनों के लक्ष्यीभूत श्रोता हैं। सन् 2008 तक इंटरनेट के नियमित ग्राहकों की संख्या साढ़े तीन करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी। एक अनुमान के अनुसार टेलीविजन उद्योग की आय 22 फीसद प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है। आंकड़ों के मुताबिक यह 4.34 बिलियन डॉलर से बढ़कर 11.78 बिलियन हो जाने की संभावना है। जबकि प्रिंट उद्योग की आय 13 फीसद सालाना की दर से बढ़ रही है। यानी 2.90 बिलियन डालर से बढ़कर 5.27 बिलियन डॉलर हो जाने की संभावना है। विश्व समाचार परिषद के आंकड़ों के अनुसार भारत में दैनिक अखबारी संस्कृति का स्वस्थ ढ़ंग से विकास हो रहा है। दैनिक अखबारों का सर्कुलेशन आठ प्रतिशत की दर से बढ़ा है। जबकि इसी अवधि में ब्रिटेन में दैनिक अखबारों का सर्कुलेशन 4.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा है।गार्जियन के अनुसार भारतीय अखबारों में आया यह उछाल आगे भी जारी रहेगा। भारत की आबादी 100 करोड़ से ज्यादा है और लाखों लोग गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इसके कारण प्रतिदिन नए पाठक पैदा हो रहे हैं। भारत में साक्षरता दर अभी 60 फीसद है और भविष्य में इसमें सुधार होगा। अर्थव्यवस्था में तेजी से विकास हो रहा है।
       भारत में शिक्षित मध्यवर्ग का विकास हो रहा है। मुख्यभाषा के रूप में हिन्दी,उर्दू और अंग्रेजी स्थानीय भाषाओं की कीमत पर अपनी जमीन बना रही हैं। भवि‍ष्‍य में कुछ मीडि‍या कंपनि‍यां मुफ्त में अखबार बांटने की योजना भी बना रही है। इनका मानना है भारत के लोग गरीब हैं और वे अखबार पढ़ते और पढ़ाते हैं अत: विज्ञापन के प्रचार के लिहाज से मुफ्त में अखबार बांटना फायदे का सौदा है।

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