सोमवार, 18 जनवरी 2010

कष्ट और कुर्बानी से बने थे ज्योति बाबू




आम आदमी की जिंदगी जीना सबसे मुश्किल काम है। अभिजन परिवार में पैदा होने और सुखों से भरी जिंदगी छोड़ने की किसी की इच्छा नहीं होती। खासकर इन दिनों सभी रंगत के राजनीतिक दलों में सुख और वैभव के साथ राजनीति करने की होड़ मची है । ऐसी अवस्था में ज्योति बाबू का चले जाना क्रांतिकारी कतारों को तो बड़ा झटका है ही। साथ ही देश की स्वच्छ राजनीति के लिए भी गहरा झटका है।
    ज्योति बाबू सही अर्थ में गांधी के दरिद्र नारायण के प्रतीक पुरुष थे। उनके व्यक्तित्व में भारत के मजदूरों का बिंब झलकता था। भारत में महात्मा गांधी ने राजनीति को जहां छोड़ा था ज्योति बाबू ने देश की राजनीति को उस बिंदु से आगे बढ़ाया। गांधी ने भारत की आजादी की जंग में प्रेरक प्रतीक की भूमिका अदा की थी ,साम्प्रदायिकता को रोकने की प्राणपण से चेष्टा की थी,राष्ट्र के सम्मान और जनता के हितों की रक्षा करने के लिए अपने जीवन के समस्त सुखों को त्याग दिया था, ठीक यही प्रस्थान बिंदु है जहां से ज्योति बाबू अपनी कम्युनिस्ट जिंदगी आरंभ करते हैं।
     लंदन से बैरिस्टरी पास करके भारत आने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी के पूरावक्ती कार्यकर्त्ता का जीवनपथ स्वीकार करते हैं। उल्लेखनीय है  ज्योति बाबू के यहां दौलत की कमी नहीं थी, गरीब मजदूरों -किसानों की सेवा के लिए उन्होंने सादगीपूर्ण जीवनशैली अपनायी। सादगी और कष्टपूर्ण जीवन का मंत्र उन्हें मजदूरों से मिला था। अभिजनवर्ग के स्वभाव ,वैभव,मूल्य और राजनीति का विकल्प गरीबों के जीवन में खोजा, जिस समय राजनेता गांधी की विचारधारा के पीछे भाग रहे थे उस समय ज्योति बाबू गरीबों के हितों और सम्मान की रक्षा के लिए खेतों -खलिहानों से लेकर कारखाने के दरवाजों पर दस्तक दे रहे थे। गांधी की राजनीति खेतों और कारखानों के पहले खत्म हो जाती थी जबकि ज्योति बाबू की राजनीति वहां से आरंभ होकर संसद-विधानसभा के गलियारों तक जाती थी।
  ज्योति बाबू ने सही अर्थों में गरीब और संसद के बीच में सेतु का काम किया था। गरीबों के बोध में जीकर ज्योति बाबू ने अपने मार्क्सवादी सोच को परिष्कृत किया था। कल बांग्ला चैनल स्टार आनंद पर साक्षात्कार में पश्चिम बंगाल के भू.पू. मुख्यमंत्री सिद्धार्थशंकर राय ने कहा वे ज्योति बाबू के घर नियमित आते -जाते थे। साथ ही रसोईघर में भी जाते थे , उन्होंने कहा मैंने कभी उनके यहां मांस-मछली का खाना बनते हुए नहीं देखा। उस समय ज्योति बाबू विधायक थे, और आधा विधायक भत्ता पार्टी ले लेती थी। भत्ता भी कम मिलता था। आधे भत्ते में ज्योति बाबू किसी तरह गुजारा करते थे। एकदिन सिद्धार्थशंकर राय ने प.बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचन्द्र राय से कहा कि ज्योति बाबू बेहद कष्ट में जीवनयापन कर रहे हैं ,उन्हें विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दीजिए और भत्ता भी बढ़ा दीजिए ,उन्होंने तुरंत ज्योति बाबू को विपक्ष का नेता बना दिया और भत्ता बढ़ाकर 750 रुपये कर दिया। ज्योति बाबू ने यह भत्ता कभी नहीं लिया। और कष्टमय जीवन जीना पसंद किया। सिद्धार्थशंकर राय ने कहा कि ज्योति बाबू ने सारा जीवन कष्ट और कुर्बानी देकर गुजारा। उनके जैसा बेहतरीन इंसान होना असंभव है।  

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