बिना अलसाए
अल्लसुबह
उठने का।
धुली सफ्फाक
स्कूली पोशाकों में
झण्डोत्तोलन और
विजयी विश्व गाने के
उत्साह में स्कूल भागने का।
बूँदी, नमकीन और देशभक्ति के गीतों का।
छब्बीस जनवरी दो हजार दस-
ठण्ड और कुहासे में हमें
इंतजार है
टी वी पर घट सकनेवाली
आतंकी घटना का।
सरकार करेगी साबित
अपनी ताकत अपनी जरूरत।
सैन्यशक्ति प्रदर्शन की ट्यूनिंग के साथ
असंगत सुर।
सुर मिलेगा हमारा तुम्हारा।
मेरी कक्षा में एक नेत्रहीन छात्रा
प्रश्न करती है--
सरकारी चौकसी की सूचनाएँ
आतंकियों को भी चौकस करती होंगी ?
इस आशंकित प्रश्न का
क्या दूँ जबाव ?
समझाती हूँ-सरकार, आतंक, जनता,
मनोविज्ञान आदि
अवधारणात्मक पद-
आशंकित मन से !
लगता है प्लेटो के राज्य से
नागरिक बाहर है !
Chhoti kintu sargarbhit kvita k liye aabhar. Sachmuch bachpan k behisab sadgi aur chapalta se bhare schooly din fir shikshika k rup me bachcho ki taiyari k sath ekmek ho jana.... sach AATAKWD,BHAY,ASURAKSHA me hum kho se gye hai.
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