सोमवार, 25 जनवरी 2010

टेलीविजन ज्योतिष और सामाजिक विभाजन -1-



टेलीविजन जनमाध्यम है।सबका माध्यम है।यह धर्म और सम्प्रदाय की सीमाओं को अस्वीकार करता है।इसके बावजूद धर्म के बगैर इसका जिंदा रहना असंभव है।ज्यादा से ज्यादा श्रोता जुटाने के चक्कर में टेलीविजन समाज की अविवेकवादी परंपराओं का इस्तेमाल करता है। अविवेकवादी परंपराएं सहज स्वीकार्य होती हैं।जो सहज स्वीकार्य है वह टेलीविजन का अंग बन सकता है।जटिल और विवेकपूर्ण सहज स्वीकार्य नहीं होता और इस तरह के कार्यक्रमों को प्रायोजक भी जल्दी नहीं मिलते।साथ ही सबसे महत्वपूर्ण  बात यह है कि फलित ज्योतिषशास्त्र सामाजिक जीवन में यथास्थिति बनाए रखने का सबसे प्रभावी औजार है।इसे सामाजिक परिवर्तन से घृणा है।इस परिप्रेक्ष्य में सीटीवीएन,अल्फा,एटीएन वर्ल्ड आदि बांग्ला चैनलों और संस्कार,आस्था आदि हिन्दी चैनलों से प्रसारित ज्योतिष कार्यक्रमों पर विचार करने से कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।पहली बात यह कि ये चैनल टेलीविजन के माध्यम से हिंदुओं को गोलबंद कर रहे हैं।यह साम्प्रदायिक कार्य है। इस कारण इस तरह के प्रसारणों पर तुरंत पाबंदी लगायी जानी चाहिए। टेलीविजन से फलित ज्योतिष का प्रसारण सामाजिक विभाजन और असुरक्षा को बढ़ाता है।
       फलित ज्योतिषशास्त्र हमेशा से जनप्रिय रहा है।इसकी जनप्रियता का प्रधान कारण है इसका यथास्थितिवादी होना।ज्योतिषशास्त्र की प्रत्येक देश और धर्म में अलग-अलग परंपराएं हैं। ज्योतिष के इस वैविध्यमय स्वरूप के बावजूद ज्योतिष की हिन्दूवादी परंपरा का टेलीविजन प्रसारण स्वभावत: हिंदुओं को गोलबंद कर रहा है।टेलीविजन चैनलों से ज्योतिष के जिन फार्मूलों,पध्दतियों ,उपायों और भाषा का प्रयोग हो रहा है।वे सभी हिन्दू धर्म के तहत प्रचलित फलित ज्योतिषशास्त्र की देन हैं।यह हमारी अविवेकवादी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है।
टेलीविजन की खूबी है कि वह अपने दर्शकों की सामाजिक अवस्था को हमेशा ध्यान में रखता है। यही खूबी फलित ज्योतिषशास्त्र की भी है।फलादेश की प्रकृति से पाठक की प्रकृति का अंदाजा लगाया जा सकता है।चूंकि केबल टेलीविजन के ग्राहक घोषित हैं और उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि भी घोषित है अत: ज्योतिषी को अपने मुहावरे और सलाह तय करने में समय नहीं लगता।साथ ही उसे फुसलाने में भी मदद मिलती है।टेलीविजन पर पूछे जाने वाले सवालों के जबाव पुंसवादी दृष्टिकोण से दिए जाते हैं।सवाल करने वाले सिर्फ हिन्दू होते हैं।टेलीविजन वालों से सवाल किया जाना चाहिए कि क्या उनके चैनल को मुसलमान और ईसाई नहीं देखते? अथवा सवाल प्रायोजित होते हैं ?यदि मुसलमान और ईसाई देखते हैं तो उनके लिए एक जैसी समस्याओं पर उनकी परंपरा के मुताबिक उत्तर क्यों नहीं दिए जाते ?
टेलीविजन से प्रसारित फलित ज्योतिषशास्त्र के सीधा प्रसारण कार्यक्रमों के दर्शकों में सवाल पूछने वालों में ज्यादातर महिलाएं होती हैं।कभी-कभार पुरूषों की संख्या ज्यादा होती है।यह भी देखा गया है कि महिला और पुरूषों की संख्या बराबर होती है।ज्योतिषी का औरतों के प्रति जो व्यवहार होता है वही पुरूषों के प्रति होता है।इसके कारण स्त्रियां ज्यादा आकर्षित होती हैं। क्योंकि ज्योतिषी उनसे समान व्यवहार करता है।साथ ही घरेलू औरतें इससे यह भी महसूस करती हैं कि उनसे वीआईपी की तरह व्यवहार किया जा रहा है।ज्यादातर सवालों के व्यवहारिक उत्तर दिए जाते हैं। ज्योतिषी यह संदेश देता है कि जो बताया जा रहा है उसका पालन करो। पालन कराने वाले की छबि पुरूष की ही होती है।वही समाज में फैसले लेता है।ज्योतिष के पुंसवाद के कारण महिला ज्योतिषी भी मर्दभाषा में ही बोलती हैं। ज्यादातर औरतें सामाजिक जीवन में फैसले के लिए पुरूषों पर निर्भर होती हैं।अत: उन्हे समाधान इसी चीज को ध्यान रखकर सुझाए जाते हैं।जब किसी युवा (30साल तक)को सलाह दी जाती है तो उसमें आनंद और रोमांस के तत्व पर ज्यादा जोर रहता है।जो औरत नौकरी की तलाश में है या नौकरी कर रही है उसे पेशेवर रिश्तों और रवैयये में इजाफा करने की सलाह दी जाती है।युवा नौकरीपेशा लोगों को पेशेवर कौशल में वृध्दि करने की सलाह दी जाती है।जब तय है कि सवाल करने वाला हिन्दू है तो उसके हिन्दू कर्मकाण्ड के मुताबिक समाधान भी तय हैं।यही वह जगह है जहां टेलीविजन विशेष रूप से हिन्दुओं को सम्बोधित करता है।मसलन् एक ही जैसी समस्या से हिन्दू परेशान है और मुसलमान भी परेशान है।या यह भी संभव है कि सवाल करने वाला मुसलमान हो तब क्या ज्योतिषी उसे हिन्दू समाधान देगा या इस्लामिक समाधान देगा।मसलन् किसी मुस्लिम युवक की नौकरी नहीं लगी है या वह गंभीर बीमारी का शिकार है।तब ज्योतिषी क्या समाधान देगा ?जाहिरा तौर पर हमारे टेलीविजन ज्योतिषियों को इस्लामिक परंपरा का ज्ञान ही नहीं है।फर्ज कीजिए जो मुस्लिम युवक गंभीर बीमारी का शिकार है और उसका मारकेश ग्रह का समय चल रहा है।ऐसे में क्या किया जाय ?ज्योतिष में ऐसी स्थितियों के लिए जितने भी उपाय सुझाए गए हैं उनमें से किसी को भी मुसलमान को मानना संभव नहीं है।मसलन् आप उसे महामृत्युंजय का जप करने को बोलें या मारकेश ग्रह का मंत्र जप करने के लिए कहें यह सब इस्लामिक परंपरा में नहीं है।तब क्या मुस्लिम युवक को मरने के लिए छोड़ दें ?यह बात रखने का प्रमुख उद्देश्य है ज्योतिष में निहित साम्प्रदायिकबोध को सामने लाना। ध्यान रहे अधिनायकवादी,सर्वसत्तावादी और फासीवादी ताकतें अपने जनाधार का विस्तार करने के लिए ज्योतिष रूपी अविवेकवादी सांस्कृतिक परंपरा का जमकर इस्तेमाल करती हैं।साथ ही यह भी ध्यान रहे कि ज्योतिषी के द्वारा बताए गए समाधान हमेशा सामान्य और आनंद के समय धार्मिक उपायों पर जोर देते हैं।अथवा यह कोशिश होती है कि किसी अन्य के बहाने उपाय करा दिया जाय।
      अमूमन प्रश्र्त्ता से यह सवाल किया जाता है कि वह क्या करता है,कितना पढ़ा - लिखा है, कितनी उम्र है।  इस सबकी पध्दति पर गौर करें तो फलित ज्योतिष और मनोविज्ञान के बीच के रिश्ते को बखूबी समझ सकते हैं।ज्योतिषी किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं करता।वह आशा बनाए रखता है।साथ ही वह यह जानता है कि सवाल करने वाले मध्यवर्ग-निम्नमध्यवर्ग से हैं और इनमें ज्यादा से ज्यादा पाने की लालसा होती है।सब कुछ शॉर्टकट रास्ते से पाना चाहते हैं।इसके लिए वह रत्नधारण करने,ताबीज पहनने और मंत्र जप करने के उपाय सुझाता है।यह सारे उपाय मध्यवर्ग के शॉर्टकट को रास आते हैं।इसमें सफलता प्रमुख है चाहे वह किसी भी तरीके से हासिल की जाय।यह मानसिकता राजनीतिक तौर पर अजनतांत्रिक व्यक्तित्व का निर्माण करती है जिससे अधिनायकवादी और फासीवादी ताकतें लाभ उठाती हैं।

1 टिप्पणी:

  1. प्रार्थना मत कर, मत कर मनुज पराजय के स्मारक हैं मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर प्रार्थना मत कर, मत कर

    ज्योतिष, कर्मकांड भी मनुष्य की पराजय स्वीकारने के प्रतीक हैं.

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...