गूगल की डाकेजनी के खिलाफ भारतीय प्रकाशकों ने अमेरिकी अदालत में जाकर हस्तक्षेप किया है। भारतीय प्रकाशकों और लेखकों के प्रतिनिधि के अलावा IRRO और FIP ने भी इस विवाद में अपना कानूनी विरोध दर्ज कराया है। इनका तर्क है कि गूगल ने लाखों भारतीय किताबों को स्केन करके नेट पर अवैध धंधा आरंभ कर दिया है। यह सीधे
कॉपीराइट के अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और भारतीय कॉपीराइट एक्ट 1957 का सीधा उल्लंघन है।
उल्लेखनीय है कि गूगल ने विश्व के अनेक देशों के साथ किताबों के डिजिटल रुप को पेश करने के लिए गुप्त सौदे किए हैं। भारतीय प्रकाशकों के द्वारा अमेरिकी अदालत में जाकर प्रतिवाद करने और गूगल और अमेरिकी प्रकाशकों और लेखकों के बीच कुछ अर्सा पहले हुए समझौते का भी विरोध किया गया है। प्रतिवाद करने वालों में इंडियन रिप्रोग्राफिक राइटस ऑर्गनाइजेशन और फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर्स के नाम प्रमुख हैं। इन संगठनों ने गूगल बुक सेट्टलमेंट 2-0 को चुनौती दी है।
न्यूयार्क की जिला अदालत में प्रतिवाद दाखिल करने वालों में स्टार पब्लिकेशंस, अभिनव पब्लिकेशंस, दया पब्लिकेशंस हाउस, पुस्तक महल भी शामिल हैं।
IRRO के वकील सिद्धार्थ आर्य का मानना है गूगल का समझौता सभी अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन है। गूगल ने 2004 से अवैध तरीके से सारी दुनिया की 70 लाख से ज्यादा किताबें स्केन करके अपनी डिजिटल लाइब्रेरी में ड़ाल दी हैं। अमेरिकी लेखकों और प्रकाशकों के बीच पिछले दिनों जो समझौता हुआ है वह सारी दुनिया के लेखकों -प्रकाशकों पर भी लागू होता है। गूगल के समझौते में एक शर्त यह भी है कि कोई लेखक अपने कॉपीराइट उल्लंघन पर चुप रहता है तो इसे लेखक की अनुमति मान लिया जाए। यह प्रावधान अब तक के समस्त कॉपीराइट प्रावधानों का उल्लंघन है। भारतीय प्रकाशकों ने मांग की है कि गूगल के द्वारा जिन भारतीय लेखकों की किताबें वगैर अनुमति लिए गूगल बुक में ड़ाल दी हैं उन्हें तुरंत ङटाया जाए। अदालत की सुनवाई फरवरी 2010 के मध्य में होने की संभावना है।
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