अब क्या ?
कवयित्री स्टेला मोर्ताज़ावी
बमबारी अब बंद है और एक प्रकार की मरणासन्न शांति पसरी है,
जो केवल चीखों और असह्य रुदन से खंडित हो रही है.
शोक ग्रसित मनुष्यों का अब साँस लेना भी दूभर है,
फिर भी वे इन प्राणघाती हमलों के क्षणिक स्थगन के आभारी हैं।
चाँदी के प्रदेश में रहनेवाले इंसान,
नारकीय जीवन जीने को बाध्य हैं।
और अब वे क्या करेंगे, कैसे जीएँगे,
जब उनकी सभी अपनी और प्रिय चीजें दूर चली गई हैं.
ऐसा लगता है एक बार फिर संसार बदलेगा,
इस धरती के लोग फिर भी वंचित रह जाएँगे.
कम से कम, जीना उन सभी का अधिकार है.
हमें उन्हें नहीं भूलना, न ही उस घटित नृशंस अन्याय को,
यह वह संघर्ष है जो जीता नही गया.
और यदि अतीत के इन जघन्य अपराधों से सीख नहीं ली गई,
तो कैसे संभव होगा शांतिपूर्ण समाधान ?
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