सोमवार, 25 जनवरी 2010

फिलिस्तीन मुक्ति सप्ताह- फिलीस्तीनी महिला लेखिकाओं की कविताएं








              अब क्या ?
                                      कवयित्री स्टेला मोर्ताज़ावी

बमबारी अब बंद है और एक प्रकार की मरणासन्न शांति पसरी है,
जो केवल चीखों और असह्य रुदन से खंडित हो रही है.
शोक ग्रसित मनुष्यों का अब साँस लेना भी दूर है,
फिर भी वे इन प्राणघाती हमलों के क्षणिक स्थगन के आभारी हैं।
चाँदी के प्रदे में रहनेवाले इंसान,
नारकीय जीवन जीने को बाध्य हैं।
और अब वे क्या करेंगे, कैसे जीएँगे,
जब उनकी सभी अपनी और प्रिय चीजें दूर चली गई हैं.
ऐसा लगता है एक बार फिर संसार बदलेगा,
इस धरती के लोग फिर भी वंचित रह जाएँगे.
कम से कम, जीना उन सभी का अधिकार है.
हमें उन्हें नहीं भूलना, न ही उस घटित नृशंस अन्याय को,
यह वह संघर् है जो जीता नही गया.
और यदि अतीत के इन जघन्य अपराधों से सीख नहीं ली गई,
तो कैसे संभव होगा शांतिपूर्ण समाधान ?


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...