एक जमाना था जब सेक्स का प्रजनन से संबंध था। प्रजनन के कारण बड़े पैमाने पर औरतों को अकाल मृत्यु का शिकार होना पड़ता था। एक तरह से स्त्री के लिए सेक्स का मतलब मौत था। किंतु परिवार नियोजन के उपायों के आने के बाद सेक्स का प्रजनन से संबंध विच्छेद हो गया। आज स्थिति यह है कि बगैर सेक्स किए गर्भधारण किया जा सकता है।
आज सेक्स और कामुकता पूरी तरह स्वायत्त हैं। यह कामुकता की मुक्ति की घोषणा है। अब कामुकता पूरी तरह व्यक्ति का निजी गुण बन गई है वह चाहे तो अन्य से इसका विनिमय कर सकता है। यह कृत्रिम कामुकता है। यह स्त्री की सबसे बड़ी जीत है।
अधिकांश औरतें सैकड़ों वर्षों से कामुक आनंद से वंचित थीं। कामुक आनंद स्त्रियों के लिए भयानक सपने की तरह था। वे सेक्स करते हुए डरती थीं कि उन्हें इसके कारण गर्भधारण की पीड़ा से गुजरना पड़ेगा। बार-बार गर्भधारण का अर्थ था स्त्री की असमय मौत। आज भी भारतीय समाज में परिवार नियोजन के उपायों के प्रति अज्ञानता और सामान्य-से खर्चे पर इनकी अनुपलब्धता के कारण बड़ी संख्या में स्त्रियां प्रजनन के दौरान ही मर जाती हैं। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो परिवार नियोजन के उपायों ने स्त्री को मौत से मुक्ति दिलाकर क्रांतिकारी भूमिका अदा की है।
इधर के वर्षों में एड्स के आने के कारण कुछ लोगों ने सेक्स का मौत से फिर से संबंध जोड़ने की कोशिश की है। किंतु यह सेक्स और मौत के पुराने संबंध की वापसी नहीं है क्योंकि एड्स स्त्री और पुरुष में फर्क नहीं करता। पहले सेक्स के कारण स्त्री के लिए ही मौत का खतरा था जबकि एड्स के कारण स्त्री-पुरुष दोनों ही मर सकते हैं।
इसके अलावा एड्स जैसी भयानक बीमारी से बचने में सबसे प्रभावी परिवार नियोजन का मैथड 'कंडोम' ही है। भारतीय समाज की सामंती मानसिकता साधारण नागरिक को परिवार नियोजन के पुरुष केंद्रित उपायों के इस्तेमाल से रोकती है।
आज भी मेडीकल स्टोर्स पर गर्भ निरोधक गोलियां या कंडोम मांगते हुए लोग शर्माते हैं। दुकानदार भी देते हुए शर्माता है। यहां तक कि सेक्सोलॉजी के विशेषज्ञ डाक्टरों के चैंबर चारों ओर से बंद गुप्त घर की तरह होते हैं।
पत्र-पत्रिकाओं की दुकानों पर सेक्स या कामुकता का साहित्य चोरी-छिपे बिकता है या फिर आम आदमी जिस निस्संकोच भाव के साथ राजनीति, साहित्य, धर्म आदि की पत्र-पत्रिकाएं पढ़ लेता है, उलट-पुलटकर देख लेता है उसी निस्संकोच भाव का वह सेक्स या कामुकता पर केंद्रित पत्रिका को देखते समय प्रदर्शन नहीं करता।
सामंती मानसिकता का आलम यह है कि सेक्स और कामुकता केंद्रित पत्रिकाएं अमूमन सीलबंद होती हैं। जबकि अन्य विषयों की पत्रिकाएं सीलबंद नहीं होतीं। कहने का तात्पर्य यह कि कामुकता का बिक्रेता भी सामंती मानसिकता का सम्मान करता है।
विगत पचास वर्षों में जो कामुक क्रांति हुई है उसके कारण लिंगाधारित तटस्थ कामुकबोध का भौतिक आधार निर्मित हुआ। इसके कारण स्त्री को कामुक स्वायत्तता की दिशा में आगे कदम बढ़ाने का अवसर मिला है। वहीं दूसरी ओर समलैंगिक कामुकता और परवर्जन का स्त्री और पुरुष दोनों में तेजी से विकास हुआ है। ये कृत्रिम कामुकता (प्लास्टिक सेक्सुएलिटी) की देन है।
कुछ लोग कामुकता को फ्रायड से जोड़ते हैं। जबकि फ्रायड ने कामुकता और निजी अस्मिता के अंतस्सबंध की खोज की। फ्रायड के पहले समाज इस संबंध से अनभिज्ञ था। फ्रायड ने कामुकता को निजी मसला बनाया। मनोविज्ञान का मानना है कामुकता मनुष्य की चेतन और अवचेतन फैंटेसी है। जहां पर अस्मिता के संघर्ष उभरेंगे वहां पर स्त्री, कामुकता और सेक्स के सवाल भी उठेंगे। इस परिप्रेक्ष्य में कामुकता का संबंध अस्मिता के साथ है।
आज विश्वभर में अस्मिता का सवाल सबसे बड़ा मसला है। आज समाज में स्त्रियां यह सवाल कर रही हैं कि स्त्री क्या है? उसके अधिकार क्या हैं? क्या वह पुरुष के समान है? क्या उसे पुरुष संदर्भ के बगैर अपनी पहचान बनाने और अपनी शर्तों पर जीने का अधिकार है? आज स्त्रियां कह रही हैं कि मेरा तन, मन और धन सिर्फ मेरा है।
आज समाज में इस तरह की भावना के कारण शरीर हमारी अस्मिता की पहचान का मुख्य उपकरण बन गया है। आज प्रत्येक सामाजिक प्राणी शरीर के माध्यम से अपनी इमेज प्रक्षेपित कर रहा है। शरीर के नए-नए कद, आकार-प्रकार, बनावट, नाक-नक्श, हाव-भाव आदि पर जोर दिया जा रहा है। स्त्री पुरानी पहचान और भूमिका को त्याग रही है। चारों ओर उसी की रूप चर्चा है और मुक्त रूप का बोलबाला है। इसके कारण कामुकता का अर्थशास्त्र पैदा हुआ है।
कामुकता और सेक्स का उद्योग विशालकाय रूप में उभरकर सामने आया है। यही स्थिति समलैंगिक पंथियों की है वे भी अपनी पहचान खोज रहे हैं। वे पहले से तयशुदा हैट्रोसेक्सुअल स्टीरियोटाइप को चुनौती दे रहे हैं।
कहने का तात्पर्य यह कि लिंगाधारित पहचान के प्रश्न प्रमुखता हासिल कर रहे हैं। साथ ही, प्रत्येक अपने 'निजी' भावों, इच्छाओं, शरीर आदि पर जोर दे रहा है। शारीरिक 'एपियरेंस' और 'कंट्रोल' को तरह-तरह की माध्यम प्रस्तुतियों के जरिए उभारा जा रहा है। यह बायो पावर के युग की सूचना है। आज बॉडी संचालक शक्ति है। उसे अस्मिता और जीवनशैली के साथ जोड़कर पेश किया जा रहा है। इस क्रम में धार्मिक तत्ववादी संगठन धर्म को जीवन शैली के रूप में व्याख्यायित कर रहे हैं।
सारांशतः यह कि काम अब और भी कामुक हो चला है!
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति !
लग रहा है कि जैसे किसी बड़े लेख या ग्रंथ के लिए इकठ्ठा किए गए नोट्स सहेज लिए गए हों - भविष्य में सन्दर्भ के लिए। बिखराव है, अनुच्छेद विलग से आ रहे हैं।
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