रविवार, 24 अक्तूबर 2010

सबसे मंहगा ग्लोबल ब्रॉण्ड बाबा रामदेव

     मुझे बाबा रामदेव अच्छे लगते हैं। वे इच्छाओं को जगाते हैं आम आदमी में जीने की ललक पैदा करते हैं। भारत जैसे दमित समाज में इच्छाओं को जगाना ही सामाजिक जागरण है। जो लोग कल तक अपने शरीर की उपेक्षा करते थे, अपने शरीर की केयर नहीं करते थे,उन सभी को बाबा रामदेव ने जगा दिया है।
    इच्छा दमन का कंजूसी के भावबोध,सामाजिक रूढ़ियों और दमित वातावरण से गहरा संबंध है। बाबा रामदेव ने एक ऐसे दौर में पदार्पण किया जिस समय मीडिया और विज्ञापनों से चौतरफा मन,शरीर और पॉकेट खोल देने की मुहिम आरंभ हुई है। यह एक तरह से बंद समाज को खोलने की मुहिम है जिसमें परंपरागत मान्यताओं के लोगों को बाबा रामदेव ने सम्बोधित किया है।
     परंपरागत भारतीयों को खुले समाज में लाना,खुले में व्यायाम कराना,खुले में स्वास्थ्य चर्चा के केन्द्र में लाकर बाबा रामदेव ने कारपोरेट पूंजीवाद की महान सेवा की है। बाबा रामदेव ने जब अपना मिशन आरंभ किया था तब उनके पास क्या था ?और आज क्या है ? इसे जानना चाहिए।
     आरंभ में बाबा रामदेव सिर्फ संयासी थे, उनके पास नाममात्र की संपदा भी नहीं थी आज वे पूंजीवादी बाजार के सबसे मंहगे ग्लोबल ब्रॉण्ड हैं। अरबों की संपत्ति के मालिक हैं। यह संपत्ति योग-प्राणायाम से कमाई गई है। इतनी बडी संपदा अर्जित करके बाबा रामदेव ने एक संदेश दिया है कि अगर जमकर परिश्रम किया जाए तो कुछ भी कमा सकते हो। कारपोरेट जगत की सेवा की जाए तो कुछ भी अर्जित किया जा सकता है।
    बाबा ने एक ही झटके में योग -प्राणायांम का बाजार तैयार किया है। जड़ी-बूटियों का बाजार तैयार किया है। योग को स्वास्थ्य और शरीर से जोड़कर योग शिक्षा की नई संभावनाओं को जन्म दिया है। पूंजीवादी आर्थिक दबाबों में पिस रहे समाज को बाबा रामदेव ने योग के जरिए डायवर्जन दिया है। सामान्य आदमी के लिए यह डायवर्जन बेहद मूल्यवान है। जिसके कारण वह कुछ समय के लिए ही सही प्रतिदिन तनावों के संसार से बाहर आने की चेष्टा करता है।
   जिस समाज में आम आदमी को  निजी परिवेश न मिलता हो उसे विभिन्न योग शिविरों के जरिए निजी परिवेश मुहैय्या कराना,एकांत में योग करने का अभ्यास कराना।जिस आदमी ने वर्षों से सुबह उठना बंद कर दिया था उस आदमी को सुबह उठाने की आदत को नए सिरे से पैदा करना बड़ा काम है।
     नई आदतें पैदा करने का अर्थ है नई इच्छाएं पैदा करना। स्वयं से प्यार करने,अपने शरीर से प्यार करने की आदत डालना मूलतः व्यक्ति को व्यक्तिवादी बनाना है और यह काम एक संयासी ने किया है,जबकि यह काम बुर्जुआजी का था।
    बाबा रामदेव की सफलता यह है कि उन्होंने व्यक्ति के शरीर में पैदा हुई व्याधियों के कारणों से व्यक्ति को अनभिज्ञ बना दिया। मसलन किसी व्यक्ति को गठिया है तो उसके कारण हैं और उनका निदान मेडीकल में है लेकिन जो आदमी बाबा के पास गया उसे यही कहा गया आप फलां -फलां योग करें,प्राणायाम करें,आपकी गठिया ठीक हो जाएगी। अब व्यक्ति को योग और गठिया के संबंध के बारे में मालूम रहता है,गठिया के वास्तव कारणों के बारे में मालूम नहीं होता।
    बाबा चालाक हैं अतः मेडीकल में जो कारण बताए गए हैं उनका अपनी वक्तृता में इस्तेमाल करते हैं, जबकि बाबा ने मेडीकल साइंस की शिक्षा ही नहीं ली है। ऐसी अवस्था में उनका मेडीकल ज्ञान अविश्वसनीय ही नहीं खतरनाक है और इस चक्कर में वे एक ही काम करते हैं कि समस्या के वस्तुगत ज्ञान से व्यक्ति को विच्छिन्न कर देते हैं।  इस तरह बाबा ने व्यक्ति का उसकी वस्तुगत समस्या से संबंध तोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली।
  बाबा रामदेव की कामयाबी के पीछे एक अन्य बड़ा कारण है रामजन्मभूमि आंदोलन का असफल होना। भाजपा और संघ परिवार की यह चिन्ता थी कि किसी भी तरह जो हिन्दू जागरण रथयात्रा के नाम पर हुआ है उस जनता को किसी न किसी रूप में गोलबंद रखा जाए और उत्तरप्रदेश और देश के बाकी हिस्सों में राममंदिर के लेकर जो मोहभंग हुआ था ,उसने हिन्दुओं के मानस में एक खालीपन पैदा किया था। इस खालीपन को बाबा ने खूब अच्छे ढ़ंग से इस्तेमाल किया और हिन्दुओं को गोलबंद किया।
    राममंदिर के राजनीतिक मोहभंग को चौतरफा धार्मिक संतों और बाबा रामदेव के योग के विस्फोट के जरिए भरा गया। राममंदिर के मोहभंग को  आध्यात्मिक -यौगिक ध्रुवीकरण के जरिए भरा गया। राममंदिर का सपना चला गया लेकिन उसकी जगह हिन्दू का सपना बना रहा है। विभिन्न संतों और बाबाओं की राष्ट्रीय आध्यात्मिक आंधी ने यह काम बड़े कौशल के साथ किया है।
      हिन्दू स्वप्न को पहले राममंदिर से जोड़ा गया बाद में बाबा रामदेव के सहारे हिन्दू सपने को योग से जोड़ा गया। बाबा के लाइव टीवी कार्यक्रमों में हिन्दू धर्म का प्रचार स्थायी विषय रहा है। जबकि सच है कि योग-प्राणायाम की भारतीय परंपरा वह है जो चार्वाकों की परंपरा है। ये वे लोग रहे हैं जो नास्तिक थे,भगवान को नहीं मानते थे। हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज की अनेक बुनियादी मान्यताओं की तीखी आलोचना किया करते थे।
    बाबा रामदेव ने बड़ी ही चालाकी और प्रौपेगैण्डा के जरिए योग को हिन्दूधर्म से जोड़ दिया है और यही उनका धार्मिक भ्रष्टाचार है। इस तरह बाबा रामदेव ने योग के साथ  हिन्दूधर्म को जोड़कर योग से उसके वस्तुगत विचारधारात्मक आधार को ही अलग कर दिया है।
हम सब लोग जानते हैं कि बाबा रामदेव ने पतंजलि के नाम से सारा प्रपंच चलाया हुआ है लेकिन उनके प्रवचनों में व्यक्त हिन्दू विचारों का पतंजलि के नजरिए से दूर का संबंध है।
योग का सबसे पुराना ग्रंथ है ‘योगसूत्र’ । इसकी धारणाओं का हिन्दुत्व और सामयिक हिन्दू संस्कृति के प्रवक्ताओं की धारणाओं के साथ किसी भी किस्म का रिश्ता नहीं है। प्रसिद्ध दार्शनिक देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय ने लिखा है ‘वैदिक साहित्य में योग शब्द का अर्थ था जुए में बांधना  या जोतना।’
     अति प्राचीन युग से ही यह शब्द कुछ ऐसी क्रियाओं के लिए प्रयोग में लाया जाता था जो सर्वोच्च लक्ष्य के लिए सहायक थीं। अंततः यही इस शब्द का प्रमुख अर्थ बन गया। दर्शन में योग का गहरा संबंध पतंजलि के ‘योगसूत्र’ से है। जेकोबी का मानना ये पतंजलि वैय्याकरण के पंडित पतंजलि से भिन्न हैं। लेकिन एस.एन.दास गुप्त के अनुसार ये दोनों एक ही व्यक्ति हैं। और उन्होंने इस किताब का रचनाकाल 147 ई.पू. माना है। जेकोबी ‘योगसूत्र’का रचनाकाल संभवतः540 ई. है।
       सांख्य और योग के बीच में गहरा संबंध है। हम सवाल कर सकते हैं कि आखिरकार बाबा रामदेव सांख्य-योग का आज के संघ परिवार के द्वारा प्रचारित हिन्दुत्व के साथ संबंध किस आधार पर बिठाते हैं ? दूसरी महत्वपूर्म बात यह है कि पतंजलि के ‘योगसूत्र’ लिखे जाने के काफी पहले से लोगों में योग और उसकी क्रियाओं का प्रचलन था।
    डी.पी चट्टोपाध्याय ने लिखा है  ‘‘ ‘योगसूत्र’ में वर्णित योग, मूल यौगिक क्रियाओं से बहुत भिन्न था। इस विचार में कोई नवीनता नहीं है। योग्य विद्वान इसे तर्क द्वारा गलत साबित कर चुके हैं। इनमें से कुछ विद्वानों का कहना है कि योग का प्रादुर्भाव आदिम समाज के लोगों की जादू टोने की क्रियाओं से हुआ।’’
    एस.एन.दास गुप्त ने ‘ए हिस्टरी ऑफ इण्डियन फिलॉसफी’ में लिखा है ‘‘ पतंजलि का सांख्यमत,योग का विषय है ... संभवतःपतंजलि सबसे विलक्षण व्यक्ति थे क्योंकि उन्होंने न केवल योग की विभिन्न विद्याओं का संकलन किया और योग के साथ संबंध की विभिन्न संभावना वाले विभिन्न विचारों को एकत्र किया,बल्कि इन सबको सांख्य तत्वमीमांसा के साथ जोड़ दिया,और इन्हें वह रूप दिया जो हम तक पहुंचा है।पतंजलि के ‘योगसूत्र’ पर सबसे प्रारंभिक भाष्य ,‘व्यास भास’ पर टीका लिखने वाले दो महान भाष्यकार वाचस्पति और विज्ञानभिक्षु हमारे इस विचार से सहमत हैं कि पतंजलि योग के प्रतिष्ठापक नहीं बल्कि संपादक थे। सूत्रों के विश्लेषणात्मक अध्ययन करने से भी इस विचार की पुष्टि होती है कि इनमें कोई मौलिक प्रयत्न नहीं किया गया बल्कि एक दक्षता पूर्ण तथा सुनियोजित संकलन किया गया और साथ ही समुचित टिप्पणियां भी लिखी गईं।’’
     यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि योग का आदिमरूप तंत्रवाद में मिलता है। दासगुप्त ने लिखा है कि योग क्रियाएं पतंजलि के पहले समाज में प्रचलित थीं। पतंजलि का योगदान यह है कि उसने योग क्रियाओं को ,जिनका नास्तिकों में ज्यादा प्रचलन था, तांत्रिकों में प्रचलन था, इन क्रियाओं को आस्तिकों में जनप्रिय बनाने के लिए इन क्रियाओं के साथ भाववादी दर्शन को जोड़ दिया।
    
    डी.पी.चट्टोपाध्याय ने लिखा है ‘ये भाववादी परिवर्तन सैद्धांतिक और क्रियात्मक दोनों प्रकार के हुए।’ इस प्रसंग में आर. गार्बे ने लिखा है कि ‘‘ योग प्रणाली द्वारा सांख्य दर्शन में व्यक्तिगत ईश्वर की अवधारणा को सम्मिलित करने का उद्देश्य केवल आस्तिक लोगों को संतुष्ट करना और सांख्य द्वारा प्रतिपादित विश्व रचना संबंधी सिद्धांत को प्रसारित करना था। योग प्रणाली में ईश्वर संबंधी विचार निहित नहीं बल्कि उन्हें यूं ही शामिल कर लिया गया था।‘योगसूत्र’ के जिन अंशों में ईश्वर का प्रतिपादन हुआ है ,वे एक-दूसरे से असंबद्ध हैं और वास्तव में योगदर्शन की विषयवस्तु तथा लक्ष्य के विपरीत हैं। ईश्वर न तो विश्व का सृजन करता है और न ही संचालन। मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार पुरस्कार या दण्ड नहीं देता। ईश्वर में विलीन को मनुष्य (कम से कम प्राचीन योगदर्शन के अनुसार) अपने जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य नहीं मानता... प्रत्यक्ष है कि ईश्वर का जो अर्थ हम लगाते हैं यह उस प्रकार के ईश्वर का मूल नहीं है और हमें काफी उलझे हुए विचारों का सामना करना पड़ता है जिनका लक्ष्य इस दर्शन के मूल नास्तिक स्वरूप को छिपाना तथा ईश्वर को मूल विचारों के अनुकूल जैसे तैसे बनाना है। स्पष्ट है कि ये उलझे हुए विचार इस बात को सिद्ध करते हैं कि यदि किसी प्रमाण की आवश्यकता हो तो वे वास्तविक योग में किसी व्यक्तिगत ईश्वर के लिए कोई स्थान नहीं है।... किंतु योग प्रणाली में एक बार ईश्वर संबंधी विचार को सम्मिलित कर लेने के बाद यह आवश्यक हो गया कि ईश्वर और मानव जगत के बीच कोई संबंध स्थापित किया जाए क्योंकि ईश्वर केवल अपने ही अस्तित्व में बना नहीं रह सकता था। मनुष्य और ईश्वर के बीच का यह संबंध इस तथ्य को लाकर स्थापित किया गया कि जहां ईश्वर आपको इहलौकिक या नैसर्गिक जीवन प्रदान नहीं करता ( क्योंकि वह तो व्यक्ति के सुकर्मों अथवा कुकर्मों के अनुसार मिलते हैं ),वहां ईश्वर अपनी करूणा दिखाकर मनुष्य की सहायता करता है और यह मनुष्य उसके प्रति पूर्ण आस्था रखता है ताकि मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में आने वाली बाधाएं दूर हो सकें। किंतु ईश्वर में मानव की आस्था और दैवी कृपा पर आधारित यह क्षीण संबंध भी योग दर्शन में सम्मिलित होकर दुर्बोध सा प्रतीत होता है।’’(एनसाइक्लोपीडिया आफ रिलीजन ऐंड एथिक्स, सं.जे. हेस्टिंग्स, एडिबरा, 1908-18)   





10 टिप्‍पणियां:

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  2. कुछ इन बिन्दुओ पर भी विचार कीजिये
    (१) ये जिस संपत्ति की बात कर रहे है वो ट्रस्ट के नाम है . बाबा जी तो आज भी फक्कड़ है .
    (२) बाबा जी सन्यासी है ,वे ग्रहस्त नही है. तो ये धन की आवश्यकता क्यों ये भी जान ले '
    लाल झंडे का आन्दोलन क्या बिना धन के चला था.
    किसी भी आन्दोलन को चलने के लिए जन और धन दोनों चाहिए .
    ये धन उस आन्दोलन के लिए है जो आप जैसो के कुप्रचार को विराम लगा कर राष्ट्रवाद की भावना जगाये .
    (३) ये वामपंथी कितने नीच है इस का उद्दहरण अभी कुव्ह वर्ष पूर्व वृन्दा करात ने प्रस्तुत किया था . बाबा जी को बदनाम करने के लिए एक औरत भेजी थी . शायद बाबा जी का स्ट्रिंग आप्रेसन कर के उन को बदनाम कर किया जाये .पर ये नही पता था की असली योगी से पाला पड़ा है . वो औरत तो सफल न हुई पर उस की पोल जरुर खुल गयी .
    तो आप की बाबा जी से दुश्मनी समझ सकता हू
    (४) क्या आप ये कहना चाहते है की बाबा जी लोगो को स्वास्थ कर जिस में मुस्लिम भी है अपराध कर रहे है ?

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  3. aap sabhi ne baba ko itna mahtvya kyun diya hua hai,wo koi mangal grah se aaya nahi hai,yahin ki peidaish hai,fir baba apne shareer ko tod-mod kar jis kalaa ka pradarshan kar raha hai wo kalla to humare gaon me nat bhi kar lete hain,aap sabhi yatartha ke dharatal par soch kar dekhein,baba agar nispaksha hota to raajneeti kyun karta,jaago hindustaniyon,in dhongi babaon ke changul se bacho..

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  4. aap sabhi ne baba ko itna mahtvya kyun diya hua hai,wo koi mangal grah se aaya nahi hai,yahin ki peidaish hai,fir baba apne shareer ko tod-mod kar jis kalaa ka pradarshan kar raha hai wo kalla to humare gaon me nat bhi kar lete hain,aap sabhi yatartha ke dharatal par soch kar dekhein,baba agar nispaksha hota to raajneeti kyun karta,jaago hindustaniyon,in dhongi babaon ke changul se bacho..

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  5. आपकी बात सही है कि सबसे महेंगा ब्रांड है बाबा रामदेव.

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  6. लेकिन हर आदमी में छिपा बैठा है एक कामदेव.

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  7. इस युग का सत्य तो यही है-
    कारपोरेट जगत की सेवा की जाए तो कुछ भी अर्जित किया जा सकता है।

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  8. सर! इतना सुंदर विश्लेषण मैंने कभी नहीं पढा। यह लेख आपके अन्य लेखों की तरह संग्रहणीय है। मैं बार-बार पढ़ूँगा। सेठ रामदेव का जिसने भी विरोध किया उसे दबा दिया गया। वृंदा करात ने आंदोलन चलाया पूरा राजनैतिक तंत्र उनके पीछे पड़ गया और वो भी कमज़ोर निकलीं। पटना में डॉक्टरों ने विरोध किया उन्हें लालू यादव ने दबा दिया। डॉ दिगम्बर सिंह तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजस्थान सरकार ने विरोध किया उनकी चलने न दी गई। यह पूरा प्रकरण राजनैतिक उद्देश्यों का कॉरपोरेटाइजेशन है। मैंने पहली बार सेठ रामदेव का कार्यक्रम सन् दो हज़ार चार में जैसलमेर यात्रा में टीवी पर देखा था और तब से इस सोच रहा हूँ रोक क्यों नहीं लगी अबतक।

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