समलैंगिकता गुलाबी है। समलैंगिकता के सवाल हठात् मीडिया चर्चा के केन्द्र में आ गए और लंबी चौडी तर्क पद्धति के जरिए इस समस्या के अनेक आयाम खोले गए हैं। समलैंगिकता के सामाजिक,शारीरिक और सांस्कृतिक आयामों के अलावा उसका एक बाजार आयाम भी है जो अन्य सभी आयामों से ज्यादा ताकतवर और निर्णायक है। समलैंगिकता महज शारीरिक और मानसिक स्वतंत्रता की समस्या नहीं है,इसका भूमंडलीकरण की प्रक्रिया और बाजार के साथ गहरा संबंध है।
समलैंगिकता की नयी हवा भूमंडलीकरण के साथ आयी है। उसने पर्यटन और बाजार के आवरण में अपना विकास किया है। पश्चिमी पर्यटकों का भारत आकर्षक केन्द्र बने इसके लिए जरूरी है कि यहां वे तमाम आकर्षण की चीजें मुहैया करायी जाएं जो उन्हें लुभा सकें। उन तमाम चीजों में से एक है समलैंगिकता। दूसरा महत्वपूर्ण कारण है कि भारतीय बाजार को अब समलैंगिकों के पिंक ब्रॉण्ड की जरूरत है। पिंक ब्रॉण्ड को हिंदी में गुलाबी कहते हैं। अंग्रेजों के भारत में आने के पहले से ही समलैंगिकों को खासकर समलैंगिक लड़कों को गुलाबी लौण्डा कहने का भारत में रिवाज रहा है। आगरा, दिल्ली, मथुरा,हाथरस,अलीगढ,लखनÅ आदि के गुलाबी गालों वाले लड़के समलैंगिकों के रूप में चर्चित रहे हैं। कहने का अर्थ यह है कि गुलाबी का समलैंगिकता के साथ पुराना संबंध है। इसमें दूसरा तत्व मर्दानगी का भी जुड़ता है।
सारी दुनिया में मानवाधिकारों का जहां हनन होता है, उन मानवाधिकारों के हनन में समलैंगिकता पर पाबंदी भी शामिल है। सारी दुनिया में तकरीबन 80 देश हैं जहां समलैगिंता पर कानूनी पाबंदी है। पश्चिम पर्यटकों में एक हिस्सा गे पर्यटकों का भी है और यह बहुत बड़ा पर्यटन बाजार है। कोई भी सरकार इस बाजार की उपेक्षा नहीं कर सकती। अभी तक भारत में पर्यटन की दुनिया में समलैंगिकता की उपेक्षा होती रही है। अब यह संभव नहीं लगता कि इस बाजार की पर्यटन उद्योग उपेक्षा कर पाएगा। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि पर्यटन उद्योग की पैकेजिंग का समलैंगिकता अन्तर्गृथित हिस्सा बन जाएगी।
समलैंगिकों,लेस्बियनों आदि को ध्यान में रखकर पर्यटन पैकेज और प्रचार अभियान तेजी पकड़ेगा। सारी दुनिया का तजुर्बा है कि गे और लेस्बियन समुदाय में जो लोग आते हैं उनके पास पैसा काफी होता है, यह बात दीगर है कि हमारे यहां अभी अमीर समलैंगिकों की संख्या ज्यादा नहीं है। लेकिन दुनिया के अन्य देशों के बारे में यह अनुभव है कि समलैंगिक ज्यादा पैसे वाले होते हैं। ये लोग पर्यटन ज्यादा करते हैं। भारत के समलैंगिक पर्यटन कम करते हैं। मैं निजी तौर पर ऐसे अनेक समलैंगिकों को जानता हूॅ जिन्होंने कभी भ्रमण ही नहीं किया। समलैंगिकों के पास मकान ज्यादा होते हैं,कारें खूब होती हैं, वे घूमते भी ज्यादा हैं। उनकी इलैक्ट्रोनिक सामान खरीदने में ज्यादा दिलचस्पी होती है। वे अमूमन नयी लुभावनी वस्तु को तुरंत खरीदते हैं। गे और लेस्बियन कुल मिलाकर बाजार के दस फीसदी ग्राहक हैं।
समलैंगिकों की बाजार खरीद विशिष्ट प्रस्तुति पर टिकी है। किसी भी कंपनी को अपना माल यदि इस समुदाय के लोगों को बेचना है तो इनके स्वभाव,मूल्यबोध, संवेदनशीलता और भावबोध का ख्याल रखना होता है। खासकर फैशन,ऑटोमोबाइल्स, मनोरंजन, पर्यटन,इलैक्ट्रोनिक्स,वस्त्र आदि की मार्केटिंग में समलैंगिक मुहावरे के प्रयोग आने वाले दिनों में बढ़ने की संभावना है। चूंकि हमने अमरीका के बाजार की अंधी नकल करनी शुरू कर दी है अत: समलैंगिक बाजार के अमरीकी तर्क और मर्म को भी हमारा बाजार जल्दी ही पकड़ने लगेगा।
अकेले अमरीका में समलैंगिंक व्यक्तियों की खरीददारी का बाजार 660 बिलियन डालर का है जिसके सन् 2011 तक 835 बिलियन डालर हो जाने की संभावना है। सन् 2004 में फार्चुन पत्रिका में सूचीबद्ध 100 कंपनियों में से 36 फीसदी कंपनियों ने सीधे समलैंगिकों को सम्बोधित करते हुए विज्ञापन बाजार में उतारे। विज्ञापनों का अधिकांश हिस्सा प्रेस पर खर्च किया गया। तकरीबन 223.3मिलियन डालर प्रेस विज्ञापनों पर खर्च किया गया। जबकि ऑन लाइन गे मीडिया पर 20 मिलियन डालर खर्च किया गया। इसके अतिरिक्त वायकॉम के द्वारा संचालित 'लोगो' गे नेटवर्क पर 20 मिलियन डालर खर्च किया गया।
अनेक कंपनियां हैं जो सीधे समलैंगिकों के लिए ही प्रचार करती हैं, इनमें प्रमुख हैं एमरो वर्ल्ड वाइड , मान ट्रेवल और गे कनाडा । इसके अलावा अमेरिकी कंपनियों में न्यू कंसल्टिंग,कम्युनिटी मार्केटिंग ,पिंक बनाना मीडिया के नाम प्रमुख हैं। इंटरनेशनल गे एंड लेस्बियन ट्रेवल एसोशिएशन दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी व्यापारिक संस्था है जो गे व्यापार के क्षेत्र में अग्रणी है। इसके अलावा 1200 विभिन्न रंगत के सदस्य हैं जो विभिन्न तरीकों से पर्यटन सेवाओं के माध्यम से गे मार्केट को सम्बोधित करते हैं। वे जानते हैं कि कौन से हौटल और कौन से रिसार्ट को विशेष रूप से समलैंगिकों के लिए तैयार किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भारत में समलैंगिकों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होने की संभावना है। अमरीकी,ब्रिटिश, फ्रांस, जर्मनी,बेल्जियम,कनाडा और आस्ट्रेलियाई समलैंगिक उद्योग की इस पर गिद्ध दृष्टि लगी है।
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